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400 किमी चलकर ATR आई बाघिन : सिर्फ बाघों का आवास नहीं, टाईगर कॉरिडोर्स को भी बचाना होगा - रजनीश सिंह


 बिलासपुर /
  TODAY छत्तीसगढ़  /  मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में स्थित पेंच नेशनल पार्क की एक बाघिन नए ठिकाने की तलाश में छत्तीसगढ़ राज्‍य के अचानकमार टाइगर रिजर्व पहुंच गई है. साल 2022 के अखिल भारतीय बाघ ऑकलन के दौरान यह बाघिन सिवनी पेंच नेशनल पार्क के कर्माझिरी और घाटकोहका परिक्षेत्र में लगे कैमरों में दर्ज हुई थी. दो साल बाद यह बाघिन की लोकेशन अचानकमार टाइगर रिजर्व में पाई गई है.

भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान टाइगर सेल के वैज्ञानिकों ने अचानकमार टाइगर रिजर्व के द्वारा उपलब्‍ध कराए गए बाघिन के फोटोग्राफ का मध्‍य भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों के टाइगर के डॉटाबेस से मिलान कर किया. जिसमें पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन से धारियों के मिलान के आधार पर पुष्टि की गई. अचानकमार प्रबंधन ने बताया कि यह बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में 2023 शीत ऋतु के पहले से ही देखी जा रही है.

पेंच से चलकर अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन, रास आ रही ATR की आबो हवा 

यह खबर सभी वन्‍यजीव प्रेमियों के लिए हर्ष और गौरव का क्षण हैं. क्‍योंकि बाघिन ने लगभग 400 किमी से अधिक की दूरी तय करके अपने नए आवास में गई है. यह खोज इस दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है कि इससे आमजन को कॉरीडोर के संरक्षण की आवश्‍यकता और महत्‍व को समझाने में मदद मिलेगी.

माना जा रहा है कि बीच का एक साल वह कान्हा के जंगल में रही होगी। जिसने एक-दो और 10 नहीं बल्कि पूरे 400 किमी का सफर तय कर यहां पहुंची है। इस बाघिन ने मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से 2022 में अपना सफर शुरु किया था और 2023 में इसे अचानकमार टाइगर रिजर्व में देखा गया और तब से ये बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण कर रही है। अचानकमार टाइगर रिजर्व में इसकी तस्वीर सबसे पहले शीतऋतु की गणना के दौरान सामने आई।

दूसरे टाइगर रिजर्व से अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघों का आना बेहतर संकेत है। अभी बिलासपुर से कान्हा को बाघ कारीडोर माना जा रहा था। लेकिन, इसका दायरा बढ़कर पेंच तक पहुंच गया। अचानकमार के अलावा भी ओडिशा, महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्व से भी छत्तीसगढ़ में बाघ पहुंच रहे हैं। वन विभाग को अब कारीडोर पर बेहतर काम करना होगा।

इस मामले में पेंच टाईगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह से बातचीत हुई, रजनीश सिंह का कहना है - 

"बाघों की फितरत होती है आवास और जीवन साथी की तलाश में अक्सर वे बहुत दूर-दूर तक सफर कर लेते हैं। करीब 400 किमी चलकर पेंच से अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन इस बात को बल देती है कि सिर्फ बाघों का आवास बचाने से काम नहीं चलेगा, टाईगर कॉरिडोर को भी बड़ी जिम्मेदारी के साथ बचाकर सुरक्षित रखना होगा। बाघ और पृथ्वी को बचाने के लिए कॉरिडोर्स का सुरक्षित रहना बहुत जरुरी है। पेंच से कान्हा और कान्हा से अचानकमार टाइगर कॉरिडोर के रास्ते ही ये बाघिन वहां पहुँची होगी। "

C.G. : बिजली करंट से हाथियों की मौत, मामले में हाईकोर्ट ने कहा भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दतः और मूल भावना में पालन किया जाये


रायपुर /  TODAY छत्तीसगढ़  /  हाथियों की बिजली करंट से हो रही मृत्यु को लेकर दूसरी बार दायर की गई जनहित याचिका में वन विभाग ने कोर्ट में शपथपत्र देकर कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी अब भारत सरकार द्वारा हाथियों को बिजली करंट से बचाने के लिए कार्य करेगी। इसके लिए बिजली कंपनी ने निर्देश भी जारी किये है। इसके उपरांत मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. डी. गुरु की युगलपीठ ने रायपुर के नितिन सिंघवी द्वारा दायर जनहित याचिका का निराकरण यह कहते हुए किया कि भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दतः और मूल भावना में पालन किया जाये। 

क्या है भारत सरकार की गाइडलाइंस - 

भारत सरकार की वर्ष 2016 की गाइडलाइंस के अनुसार हाथी जैसे वन्य प्राणियों को बिजली करंट से बचाने के लिए हाथी की सूंड जहां तक जा सकती है इतनी ऊंचाई तक विद्युत लाइन रखनी है। गौरतलब है कि पीछे के पांव पर खड़े होने पर और सूंड ऊपर उठाने पर एक व्यस्क हाथी की लंबाई 20 फीट तक हो सकती है। गाइडलाइंस के अनुसार बिजली कंपनी हाथियों के मूवमेंट वाले वन क्षेत्र में विद्युत लाइनों की ऊंचाई 20 फीट करने और विद्युत तारों को कवर्ड कंडक्टर में बदलने या अंडरग्राउंड केबल बिछाने के लिए कार्य करेगी। कंपनी समय-समय पर झुकी हुई बिजली की लाइनों और बिजली के खम्बों को ठीक करने के अलावा बिजली के खम्बों पर 3 से 4 मीटर तक बारबेट वायर लगाएगी ताकि वन्य प्राणी सुरक्षित रहे। हाथी विचरण क्षेत्र में बिजली कंपनी जंगली जानवरों के शिकार हेतु फैलाए जाने वाले स्थान एवं फसलों एवं घरों की सुरक्षा हेतु बनाए गए घेरे में विद्युत फैलाए जाने की नियमित जांच करेगी और अस्थाई पंप और अवैध विद्युत कनेक्शन की भी जांच करेगी। प्रोटेक्टेड एरिया अर्थात नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व, अभ्यारण, एलिफेंट कॉरिडोर में वन विभाग के साथ वर्ष में दो बार संयुक्त सर्वे करेगी। 

आपको बताते चलें कि 26 जून 2024 को अपर मुख्य सचिव वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की अध्यक्षता में ऊर्जा विभाग, विद्युत वितरण कंपनी और वन विभाग के अधिकारियों की बैठक में निर्णय लिया गया कि हाथियों को बिजली करंट से बचाने के लिए भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी गाइडलाइंस का पालन किया जावेगा। बैठक में निर्देश दिए गए की ऊर्जा विभाग बिजली के 11 केवी, 33 केवी लाइन एवं एलटी लाइन के झुके हुए तारों को कसने का काम, तार की ऊंचाई बढ़ाने का काम तथा वन क्षेत्र, हाथी रहवास, हाथी विचरण क्षेत्र में भूमिगत बिजली की लाइन बिछाने अथवा इंसुलेटेड केबल लगाने का कार्य करेंगे। इसके बाद प्रधान मुख्य संरक्षण (वन्यप्राणी) द्वारा सितम्बर में ली गई बैठक में बिजली कंपनी ने बताया कि पंप कनेक्शन के लिए केबल कार्य लगाने का कार्य जारी है। बेयर कंडेक्टर को कवर्ड कंडेक्टर में बदलने का कार्य चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। वन विभाग ने 2333 लूज पॉइंट को चिन्हित किया गया है जहां सुधार कार्य मार्च 2025 तक करा लिया जायेगा।

जानकारी के मुताबिक़ हाथियों की बिजली करंट से हो रही मृत्यु को लेकर 2018 में सिंघवी द्वारा दायर की गई पहली  जनहित याचिका में विद्युत वितरण कंपनी ने लगभग 8500 किलोमीटर 33 केवी, 11 केवी और निम्न दाब लाइनों की ऊंचाई बढ़ाने और बेयेर कंडक्टर के स्थान पर कवर्ड कंडक्टर और एबीसी केबल लगाने के लिए रुपए 1674 करोड की मांग वन विभाग से की थी। तब से दोनों विभाग खर्चा वहन करने के लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे थे। इसको लेकर 2021 में पुनः सिंघवी द्वारा जनहित याचिका दायर कर मांग की गई कि खर्चा कौन वहन करेगा इसकी जवाबदारी तय की जावे। 

प्रकृति की यात्रा पर निकले विदेशी मेहमान प्यास बुझाने और थकान मिटाने मोहनभाठा में उतरे


 बिलासपुर /  
TODAY छत्तीसगढ़  /  मोहनभाठा, आज (06 सितम्बर 2024) के ख़ास मेहमान यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू कैमरे का मुख्य आकर्षण रहे। दिन भर की तलाश के बाद अचानक जैकपॉट लगा, 16 की संख्या में एक साथ Eurasian Curlew मैदान में उतरे। मैंने इसके पहले साल 2020 में Eurasian Curlew को मोहनभाठा के इसी मैदान में 8 की संख्या में रिकार्ड किया है।  कहते हैं ना उम्मीदें जब पूरी हो जायें तो बांछे खुद-ब-खुद खिल उठती हैं। मेरे साथ आज कुछ ऐसा ही हुआ। ये बाते और पक्षियों की तस्वीरें खींचने वाले वाइल्डलाइफ फोटो जर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने कहीं। उन्होंने इस खूबसूरत और आकर्षक विदेशी मेहमान की कुछ तस्वीरों साथ इंटरनेट से हासिल की गई जानकारी भी साझा की है   .... 

यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू (न्यूमेनियस अर्क्वेटा) बड़े परिवार स्कोलोपेसिडे में एक वेडर है। यह यूरोप और एशिया में प्रजनन करने वाले कर्ल्यू में सबसे व्यापक रूप से फैला हुआ है। यूरोप में, इस प्रजाति को अक्सर "कर्ल्यू" के रूप में संदर्भित किया जाता है, और स्कॉटलैंड में इसे "व्हाउप" के रूप में जाना जाता है। 

यूरेशियन कर्ल्यू अपनी सीमा में सबसे बड़ा वेडर है, जिसकी लंबाई 50-60 सेमी (20-24 इंच) है, जिसका पंख फैलाव 89-106 सेमी (35-42 इंच) है और शरीर का वजन 410-1,360 ग्राम (0.90-3.00 पाउंड) है। यह मुख्य रूप से भूरे रंग का होता है, जिसकी पीठ सफ़ेद, पैर भूरे-नीले और बहुत लंबी घुमावदार चोंच होती है। नर और मादा एक जैसे दिखते हैं, लेकिन वयस्क मादा में चोंच सबसे लंबी होती है। आम तौर पर एक यूरेशियन कर्ल्यू या कई कर्ल्यू के लिंग को पहचानना संभव नहीं है, क्योंकि उनमें बहुत भिन्नता होती है; हालाँकि, संभोग करने वाले जोड़े में नर और मादा को अलग-अलग पहचानना आम तौर पर संभव है। परिचित आवाज़ ज़ोर से कर्लू-ऊ होती है।

कर्ल्यू की अधिकांश सीमा में एकमात्र समान प्रजाति यूरेशियन व्हिम्ब्रेल (न्यूमेनियस फेओपस) है। व्हिम्ब्रेल छोटा होता है और इसमें चिकनी वक्र के बजाय एक मोड़ के साथ एक छोटी चोंच होती है। फ्लाइंग कर्ल्यू अपने सर्दियों के पंखों में बार-टेल्ड गॉडविट्स (लिमोसा लैपोनिका) से मिलते जुलते हो सकते हैं; हालाँकि, बाद वाले का शरीर छोटा होता है, थोड़ी ऊपर की ओर उठी हुई चोंच होती है, और पैर जो उनकी पूंछ की नोक से बहुत आगे तक नहीं पहुँचते हैं। यूरेशियन कर्ल्यू के पैर लंबे होते हैं, जो एक विशिष्ट "बिंदु" बनाते हैं।

" पहले मुझ पर पांच लोगों की हत्या का आरोप लगाया, फिर जंजीरों से जकड़कर ज़ुल्म की इन्तेहा पार की "

" एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। "


 2015 की बात है, मैं 15 साल का था, अपने 15 सदस्य परिवार के साथ छत्तीसगढ़ के अचानक मार्ग टाइगर रिजर्व (रिजर्व) पंहुचा। हम हाथियों के परिवार में नर हाथी को 10 से 15 वर्षों की आयु में अलग कर दिया जाता है ताकि एक ही खून से वंशवृद्धि ना हो। मैं अपने परिवार और मां से बहुत प्यार करता था परंतु परिवार मुझे अकेला छोड़कर चला गया। रिजर्व में मैं अकेला जंगली हाथी था। अकेले में बहुत रोना आता था, अकेला घूमता था, अनाज खाने की लालच से ग्रामीणों के घर पहुंच जाता था, जरा सा छूने से दीवाल गिर जाती। जब मेरा परिवार रिजर्व आया था तो किसी सदस्य से एक जनहानि हो गई थी परंतु मुझ पर पांच लोगों को मारने का आरोप लगाया गया। विश्वास मानिए आज तक मुझसे एक भी जनहानि नहीं हुई, मैं बहुत शांत स्वभाव का हूं। खैर आदेश जारी हुआ मुझे पड़कर दूसरे हाथी रहवास में छोड़ दिया जावे। 

छत्तीसगढ़ के दो डॉक्टरों की टीम मुझे पकड़ने के लिए लगाई गई। रिजर्व में चार बंधक हाथी भी थे सिविल बहादुर, राजू, लाली और लाली की 10 साल की बेटी पूर्णिमा। मुझे हनी ट्रैप करने के लिए पूर्णिमा को जबरदस्ती जंगल में खदेड़ा जाता था। पूर्णिमा पास आती तो मैं पसंद नहीं करता था अपने छोटे हाथी दांतों से उसे मार भगा देता था। ऐसा कई दिन चला और एक दिन डाक्टरों ने मुझे बेहोश कर पकड़ लिया और उसी जगह ले गए जहां पर बाकी चार हाथी थे परंतु पूर्णिमा नहीं थी। मुझे बाद में पता चला कि मुझे पकड़ने के एक दिन पहले जब अपनी मां लाली के साथ खेल रही थी तब अचानक गिरी और मर गई। पोस्टमार्टम में उसे अंदरूनी चोटें शायद मेरे दांतों से लगी थी, परंतु दस साल की बच्ची को हनी ट्रैप के लिए मैंने तो नहीं बुलाया था, डॉक्टरों ने ही भेजा था। 

एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। मेरे इलाज के लिए भारतीय एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने दो डॉक्टर दूसरे प्रदेशों से भेजें। डॉक्टरों ने इलाज किया और अपनी रिपोर्ट दी, कहा मैं चार सप्ताह में ठीक हो जाऊंगा और उसके बाद मुझे जंगल में छोड़ दें। डॉक्टर ने लाली, सिविल, राजू की दुर्दशा भी रिपोर्ट में लिखी। सिविल बहादुर के मुंह के अंदर बहुत बड़ा फोड़ा था, जिसका इलाज भी नहीं किया गया था। सिविल, राजू, लाली के सामने के दोनों पांव को ऐसे बाँध कर रखे जाते थे कि वे आगे पीछे भी नहीं हो सकें। डॉक्टरों ने रिपोर्ट में किसी बड़ी सर्विस के दो अधिकारियों द्वारा मुझ पर अत्याचार करने के लिए बहुत भर्त्सना की, कहा अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। कोर्ट में अधिकारियों ने कहा ठीक होते ही मुझे छोड़ देंगे। 

चार सप्ताह में मैं ठीक हो गया, खुश हो रहा था कि अत्याचार से आजादी मिलेगी। परन्तु अधिकारियों को बहुत बुरा लगा था कि दो पशु चिकित्सकों ने उनकी भर्त्सना कर दी। बस अपनी औकात और हैसियत बताने के लिए अधिकारियों ने मुझे नहीं छोड़ा। छोटा अधिकारी कहता था कि मैं पालतू हो गया हूं। मेरे ऊपर महावत को बैठा कर, लोहे के नुकीले अंकुश से मेरे कान के पीछे की नस जोर से दबाकर महावत कहता बैठ, तो दर्द के कारण में बैठ जाता, तो छोटा अधिकारी कहता यह तो पालतू हो गया, इसे कैसे छोड़ा जाए और मुझे नहीं छोड़ा गया। बड़ा अधिकारी पहले से ही मुझे पालतू बनाना चाहता था। चार महीने बाद बाहरी डॉक्टरों की टीम दोबारा आई लिख कर दिया कि मुझे तत्काल जंगल में छोड़ दिया जाए परंतु मेरी किस्मत में सुख नहीं लिखा था। 

कोर्ट के कहने पर डेढ़ साल बाद फिर वही डॉक्टरों की टीम बुलाई गई, डॉक्टर ने कहा कि डेढ़ साल हो गए, मुझे एक बार में छोड़ने की बजाय ऐसी जगह पर रखा जाए जहां जंगली हाथी हों उनसे मुझे मिलने दिया जाए, ताकि मैं धीरे-धीरे वापस जंगली जीवन अपना सकूं। डॉक्टर ने कहा कि राजू, सिविल और लाली से मेरी गहरी दोस्ती हो गई है, राजू और मेरा बहुत लगाव है, हम दोनों बहुत खेलते हैं। डॉक्टर ने कहा हम चारों को बिना बांधे जंगली हाथियों के क्षेत्र में रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट डॉक्टर की रिपोर्ट को मानते हैं, परंतु मुझे कब छोड़ा जाए यह वह अधिकारियों की बुद्धि पर छोड़ते हैं। 

कुछ महीनों बाद सिविल और मुझको बहुत दूर रमकोला में बनाये रेस्क्यू सेंटर ले जाने दो ट्रक आए। मैंने महावत से पूछा कि डॉक्टर ने तो कहा था कि राजू, लाली, सिविल और मुझे चारों को जाना है, कोर्ट ने भी माना था, फिर राजू और लाली क्यों नहीं आ रहे? महावत ने कहा सरगुजा के एक हाथी एक्सपर्ट अधिकारी ने कहा है कि राजू और लाली रिजर्व में पेट्रोलिंग का काम करेंगे इसलिए यही रहेंगे। भाग्य की विडंबना देखिए पहले अपने परिवार से बिछड़ा, फिर अत्याचार सहे और अब अपने प्रिय और अजीज राजू से हरदम के बिछड रहा था, रोते रोते मै ट्रक चढ़ा और ट्रक रमकोला के लिए रवाना हो गया।

रमकोला में सिविल और मै दोनों ही थे। बाद में तीन नर और दो मादा कुनकी हाथी आए। मेरी उनसे दोस्ती नहीं हुई, मै पूरे समय में सिविल के साथ ही रहता, परंतु मेरा दुर्भाग्य देखिये एक दिन सिविल भी साथ छोड़कर हरदम के लिए चला गया। यहां भी हम हाथियों के पांव चेन से बांध के रखा जाता है, यहां के अत्याचार के बारे में फिर कभी और हां महावत बता रहा था कि वन्यजीव प्रेमी ने एक बार सबसे बड़े अधिकारी से पूछा कि मुझे छोड़ क्यों नहीं रहे? अधिकारी ने कहा याद नहीं है कोर्ट ने हमारी बुद्धि पर छोड़ा है, अभी हमको बुद्धि नहीं आई है। मेरा नाम सोनू है। 

'उस गाँव में पक्षियों को लेकर ना फिर वैसी भीड़ जुटी ना मेले लगे'

( रिपोर्ट / सत्यप्रकाश पांडेय )
बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /   बेमेतरा जिले के दुर्ग वन मंडल का गिधवा-परसदा, जिसे पक्षी विहार के रूप में भी कुछ लोग जानते हैं। साल 2021 में पहली बार पक्षियों के लिये गाँव में मेला सजा। गाँव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उनके मंत्री-संतरी और नौकरशाह बड़ी संख्या में पहुँचें। गिधवा-परसदा, जहाँ हर साल सैकड़ों की संख्या में प्रवासी परिंदे पहुँचते हैं उसे राज्य के नक्शे में अलग पहचान देने का शोर मचाया गया। पक्षी मेले के मंच से आते शोर में रोजगार और रोजगार के अवसर का भरोसा पाकर ग्रामीण सपनों की दीवार चुनने लगे। अफ़सोस,  उस दिन के बाद से आज तलक गाँव में पक्षियों को लेकर ना वैसी भीड़ जुटी ना मेले लगे। ग्रामीणों को रोजगार के अवसर की तलाश, तलाश बनकर ही रह गई। कुछ बेरोजगारों को उम्मीद थी रोजगार मिलेगा, जिन्हें बतौर वालेंटियर काम मिला उन्हें इतना भी मानदेय नहीं मिलता कि वे घर चला सकें। कुछ बातें उसी गिधवा गाँव से जहाँ लोगों को आज भी 'उस मेले में कही गई बातें याद हैं।'   

बता दें कि देश-दुनिया के अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों को पनाह देने वाले गिधवा-परसदा में छत्तीसगढ़ का पहला पक्षी महोत्सव का आयोजन साल 2021 में 31 जनवरी से 2 फरवरी तक तीन दिनों तक किया गया था । जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गिधवा में 150 प्रकार के पक्षियों का अनूठा संसार है। पक्षी मेला, इको टूरिज्म के विकास और स्थानीय रोजगार की दृष्टि से गिधवा-परसदा में आयोजन किया गया ।

तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गिधवा-परसदा क्षेत्र में पक्षी जागरूकता एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना का बड़ा ऐलान किया था,  इसके लिये भवन निर्माण का काम प्रगति पर है। गिधवा-परसदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ये भी कहा था की राज्य के समस्त वेटलैंड का संरक्षण एवं प्रबंधन छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड करेगा। एकाध जगह छोड़ दें तो इस दिशा में धरातल पर ठोस काम होता कहीं दिखाई नहीं पड़ता। 

 ‘गिधवा-परसदा पक्षी विहार’ को विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की बात कही गई थी । भरोसा यह भी दिलाया गया कि छत्तीसगढ़ के इस पक्षी विहार को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र में स्थापित करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। पक्षी विज्ञानियों, प्रकृति प्रेमियों और यहां आने वाले सैलानियों के लिए विभिन्न सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

यहाँ करीब 100 एकड़ में फैले पुराने तालाब के अलावा परसदा में भी 125 एकड़ के जलभराव वाला जलाशय है। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का अघोषित अभयारण्य माना जाता है। सर्दियों की दस्तक के साथ अक्टूबर से मार्च के बीच यहां यूरोप, मंगोलिया, बर्मा और बांग्लादेश से पक्षी पहुंचते हैं। जलाशय की मछलियां, गांव की नम भूमि और जैव विविधता इन्हें काफी आकर्षित करती है। गिधवा परसदा के अलावा एरमशाही,कूंरा और आसपास के छोटे-बड़े तालाब इन पक्षियों की शरणस्थली हैं। 

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जंगल राज : राजकीय पशु वन भैंसा पर करोड़ों खर्च, संख्या केवल एक वो भी अंधा और बूढा


रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  सच को सामने आने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है लेकिन झूठ का मायाजाल और उसकी निगहबानी करने वालों का घेरा काफी बड़ा होता है लिहाजा सच सामने होकर भी दिखाई नहीं पड़ता। अफसरशाही के झूठे मायाजाल में फंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु अपनी संख्या और वजूद दोनों को लेकर संघर्ष करता दिखाई पड़ रहा है। वैसे डिप्टी डायरेक्टर उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व के एक पत्र ने वन विभाग के कुछ बड़े अफसरों की पोल खोल दी है। 

 अब यह अधिकारिक है कि छत्तीसगढ़ में शुद्ध रक्तता का सिर्फ एक राजकीय वन भैंसा बचा है वन विभाग दावा करता रहा है कि छत्तीसगढ़ में 8 वन भैंसे है, छ: उदंती सीतानदी में बाड़े में, एक उदंती सीतानदी के जंगल में स्वतंत्र विचरण कर रहा है और एक जंगल सफारी में है परन्तु डिप्टी डायरेक्टर उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व के पत्र ने वन विभाग की पोल खोल दी है। 

जू अथॉरिटी के पत्र के बाद सकते में आ गया वन विभाग  -

दरअसल वन विभाग ने असम से लाई गई पांच मादा वन भैसों से, छत्तीसगढ़ के सात नर वन भैसों द्वारा प्रजनन कराने का ब्रीडिंग प्लान बना कर सेन्ट्रल जू अथॉरिटी को भेजा, साथ में छत्तीसगढ़ के वन भैसों के नामों की सूची भी भेजी। जू अथॉरिटी ने जवाब में कहा कि जो नाम भेजे हैं उनमे सिर्फ छोटू वन भैंसा ही शुद्ध नस्ल का है, बाकी सब हाइब्रिड है, इनसे प्रजनन नहीं कराया जा सकता, अथॉरिटी के नियम इसकी अनुमति नहीं देते।

जीव दया जागी वन विभाग के मन में, संविधान का दिया हवाला और भाग जाने दिया  -

जू अथॉरिटी की आपत्ति के बाद वन्य जीवों को आजीवन बंधक बनाने की मानसिकता रखने वाले वन विभाग में अचानक जीव दया जाग गई। 10 अगस्त 2023 से उदंती सीतानदी में बाड़े में बंद हाइब्रिड भैंसों को फ़ूड सप्लीमेंट (दलिया, मक्का, विटामिन सप्लीमेंट) देना बंद कर दिया गया। खाना देना बंद करने के 21 दिन बाद डिप्टी डायरेक्टर ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को पत्र लिखा कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखे, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे। डिप्टी डायरेक्टर ने लिखा कि संविधान के अनुसार राज्य का भी कर्तव्य है कि राज्य पर्यावरण रक्षा और सुधार करने तथा देश के सभी वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा। डिप्टी डायरेक्टर ने जू अथॉरिटी की आपत्ति का हवाला देकर लिखा कि समस्त हाइब्रिड वन भैसों को स्वतंत्र विचरण हेतु छोड़ा जाना उचित होगा। 


तीन लॉट में भागे हाइब्रिड वन भैंसे - 

वन भैंसों को खाना देना बंद करने के 23 दिन बाद 3 सितम्बर की रात भूख के कारण 11 हाइब्रिड वन भैंसे बाड़ा तोड़ कर भाग गए, उसके बाद 24 सितम्बर की रात 5 और 17 अक्टूबर को 2 कुल 18 वन भैंसा जंगल भाग गए। 

बाड़े में कौन कौन तीन बचे -

1. एक मात्र बचा शुद्ध नस्ल का छोटू वन भैंसा, 23 वर्ष का उम्रदराज वन भैंसा है, बाड़े में वीरा नामक वन भैंसा से हुई लड़ाई के दौरान उसकी दोनों आँख ख़राब हो गई, वह लगभग अँधा है। बताया जाता है कि बाड़े में लगे लोहे के बाहर निकले टुकडों से टकरा कर उसकी आखें ख़राब हो गई है। 

2.हाइब्रिड प्रिंस पूर्णत: अँधा है बताया जाता है, वह स्वछंद विचरण करता था परन्तु अज्ञात कारणों से उसकी दोनों आँख ख़राब हो गई, उसे अलग बाड़े में रखा गया है।

3.हाइब्रिड आनंद बीमार है। आनंद की वीरा से लड़ाई के दौरान दोनों सिंग ऊपर से टूट गए थे। आज से तीन माह पूर्व उसमे पस पड़ा हुआ था, उसके बाद उसे और कोई डॉक्टर देखने नहीं गया। 

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने उदंती सीतानदी में जीव दया दिखा कर वन भैंसों को बाड़ा तोड़कर जाने को मजबूर करने पर और जाने देने के लिए वन विभाग को बधाई दी है। उन्होंने चर्चा में बताया कि कुछ साल पहले ग्रामीणों से रम्भा और मेनका नामक हाइब्रिड वन भैंसा ले कर आ गया था, उन दोनों का परिवार बढ़ गया और सब जंगल भाग गए। पछले 3 महीने से वे जंगल में स्वच्छंद और स्वतंत्र घूम रहे हैं। 

महाराष्ट्र के कोलामारका कंजर्वेशन रिजर्व में है शुद्ध नस्ल के वन भैंसे 

अब सेंट्रल इंडिया में शुद्ध नस्ल के कुछ ही वन भैंसे स्वतंत्र विचरण करने वाले बचे हैं, जो कि अधिकतर समय महाराष्ट्र के गडचिरोली के कोलामारका कंजर्वेशन रिजर्व में रहते हैं, कभी-कभी इंद्रावती नदी पार करके वह छत्तीसगढ़ में आ जाते हैं। छत्तीसगढ़ वन विभाग दावा करता है कि वह छत्तीसगढ़ के हैं।

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चंद्रपुर : 'बजरंग' की ज़िंदगी पर भारी पड़ा 'छोटा मटका', ताडोबा में क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर बाघों में संघर्ष

 

फोटो साभार / UCN NEWS 

चंद्रपुर। TODAY छत्तीसगढ़  /  ताडोबा टाईगर रिजर्व में दो बाघों में लड़ाई होने के बाद एक बाघ बजरंग की मौत से एक तरफ वन अमला परेशान है वहीं वन्यप्रेमियों के बीच इस खबर को लेकर खासा दुःख। बताया जा रहा है कि इस घटनाक्रम में दूसरा बाघ (छोटा मटका) गंभीर रूप से घायल हो गया है। पशु चिकित्सकों की निगरानी में घायल बाघ का इलाज हो सके ऐसे प्रयास किये जा रहें है। 

बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में स्थित ताडोबा टाईगर रिजर्व के बफर जोन के खडसंगी वन क्षेत्र के वाहनगांव में आज दो बाघों की क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर जमकर लड़ाई हुई। इस घटना में एक बाघ की मौत हो गई है। वहीं दूसरा बाघ गंभीर रूप से घायल होकर मौके पर ही बैठा हुआ है. जानकारी के मुताबिक़ यह घटना वाहनगांव के सुभाष दोडके के खेत में घटी है । TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें    

दीपावली : तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने के लिए उल्लुओं की बलि लेते हैं, शिकार करना दंडनीय अपराध है

 दीपावली में उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है। पक्षियों का व्यापार करने वाले उल्लुओं को मुँह माँगे दाम पर बेचते हैं। जानकार बताते हैं कि पक्षियों का व्यापार करने वाले कई दुकानदार इसके लिए तंत्र क्रिया करने वालों से एडवांस रूपये भी ले लेते हैं। दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वे उल्लुओं की बलि देते हैं। वन अधिनियम के तहत उल्लुओं का शिकार करना दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके उल्लुओं की खरीद-फरोख्त बेखौफ़ होती है। तंत्र-मंत्र की भेंट चढ़े उल्लूओं का कुनबा आज संकट में है, उल्लू की कई प्रजातियाँ अब दिखाई भी नहीं पड़ती। इस दीपावली कोशिश कीजियेगा हमारे इर्द-गिर्द उल्लू बलि ना चढ़े, अगर हम एक उल्लू भी बचाने में कामयाब रहे तो समझियेगा पर्यावरण को हम शुभ दीपावली का सबसे बेहतरीन उपहार दे पाए।    

दीपावली में उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है। पक्षियों का व्यापार करने वाले उल्लुओं को मुँह माँगे दाम पर बेचते हैं।

बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  विश्व में उल्लुओं की करीब 250 प्रजातियां हैं, इनमें से 36 प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं। ये सभी 36 प्रजातियां वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। अतः पक्षियों का शिकार करना, व्यापार करना, तस्करी करना या किसी अन्य तरह से उनका शोषण करना एक दंडनीय अपराध हैं। लेकिन कानून व्यवस्था के बावजूद भी, विशेषकर ग्रामीण परिवेश में, अंधविश्वासों, कुरीतियों और कुप्रथाओं के चलते सैंकडों निर्दोष उल्लू हर साल मार दिये जाते हैं। भारत में, उल्लुओं की ऐसी 16 प्रजातियां की पहचान की गयी है जिनकी आमतौर पर तस्करी की जाती है। 

इन 16 प्रजातियों का सबसे ज्यादा शिकार...

ओरिएंटल स्कोप्स आउल, मोटल्ड वुड आउल, ब्राउन वुड, कॉलार्ड स्कोप्स, टॉनी फिश आउल, स्पॉट-बैलिड ईगल-आउल, स्पॉटेड आउलेट, जंगल आउलेट, ब्राउन हॉक आउल, बार्न आउल, कॉलर्ड आउलेट, एशियन बॉर्ड आउलेट, ब्राउनफिश आउल, डस्की-ईगल आउल, ईस्टर्न ग्रास आउल, रॉक फिश आउल।

ये उल्लू अंधविश्वास और रीति रिवाजों से पीड़ित हैं जिनका अक्सर उपयोग स्थानीय लोग करते हैं जो तांत्रिक कहलाते हैं। हर साल, तांत्रिकों के कारण और अंधविश्वास के चलते, कुलीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने , वर्जनाओं से जुड़े रीति रिवाजों एंव अनुष्ठानों की पूर्ति के लिये सैकड़ों उल्लुओं को बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है या फिर उनके विभिन्न अंगों जैसे खोपड़ी, पंख, हृदय, रक्त, आंख, अंड़े एंव हड्डियों इत्यादि का उपयोग कर ऐसे अनुष्ठानों को पूरा किया जाता है। 

आज उल्लुओं को ऐसे मारना एक मनोविकृति है, क्यों कि उल्लू एक शिकारी पक्षी हैं, जो चूहे, छछूंदर और हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार कर, पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। इसलिये इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी कहते हैं। उल्लू धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते है। 

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खलिहान की रखवाली कर रहे ग्रामीण दम्पत्ति पर हाथी का हमला, पति की मौत

धान की कटाई के बाद खलिहान में रखवाली के लिए रात रुके पति-पत्नी पर हाथी ने हमला कर दिया। हमले से ग्रामीण की मौके पर ही मौत हो गई

 गौरेला पेंड्रा मरवाही (जीपीएम)।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  धान की कटाई के बाद खलिहान में रखवाली के लिए रात रुके पति-पत्नी पर हाथी ने हमला कर दिया। हमले से ग्रामीण की मौके पर ही मौत हो गई और वहीँ मृतक की पत्नी इस घटना में घायल है जिसका इलाज़ जिला चिकित्सालय में चल रहा है। चिकित्सकों के मुताबिक़ घायल महिला की हालत फिलहाल चिंताजनक बनी हुई है। 

इस संबंध में हासिल जानकारी के मुताबिक गौरेला पेंड्रा मरवाही जिले के ग्राम पंचायत उसाढ के छातापटपर गांव की यह घटना है। ग्रामीण अशोक कुमार खैरवार खलिहान में अस्थायी झोपड़ी बनाकर अपनी पत्नी के साथ रात रुका हुआ था। देर रात एक हाथी ने पहुंचकर झोपड़ी उजाड़ी और उन पर हमला कर दिया। इससे किसान की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं उसकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गई।

सूचना मिलने पर वन विभाग के कर्मचारी और पुलिस मौके पर पहुंचे। महिला को उपचार के लिए अस्पताल में दाखिल किया गया है। वनमंडलाधिकारी शशि कुमार ने बताया है कि मृतक का मुआवजा प्रकरण बनाया जा रहा है, उसके परिजनों को करीब 6 लाख रुपए दिए जाएंगे .

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वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह : सत्यप्रकाश ने तस्वीरों के माध्यम से दिया वन्यजीवन संरक्षण का सन्देश

बिलासपुर /  TODAY छत्तीसगढ़  /  वन्यप्राणी संरक्षण सप्ताह के मौके पर वन मंडल मुंगेली द्वारा 2 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक विभिन्न आयोजन किये गए। निबंध, चित्रकला, पेंटिंग प्रतियोगिता और फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से वन मंडल मुंगेली ने वन्य प्राणियों और वन की महत्ता को बताते हुए नई पीढ़ी ख़ासकर स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों को जागरूक किया। इस ख़ास अवसर पर वन मंडल मुंगेली ने वन्य जीवन पर आधारित तीन दिवसीय फोटो प्रदर्शनी स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय परिसर मुंगेली में 8 अक्टूबर से आयोजित की जिसमें वाइल्डलाइफ फोटो जर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने 319 तस्वीरों के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य की वन संपदा, वन्य जीवन और जैव विविधता को जीवंत रूप से दिखाने की कोशिश की। 
जिला मुख्यालय मुंगेली में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय परिसर में कलेक्टर अजीत बसंत और डीएफ़ओ रामवतार दुबे के मार्गदर्शन में वन मंडल मुंगेली द्वारा 8 अक्टूबर को एक भव्य फोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। प्रदर्शनी का शुभारम्भ जिला पंचायत अध्यक्ष लेखनी सोनू चंद्राकर, हेमेंद्र गोस्वामी, सीसीएफ वाइल्डलाइफ जगदीशन, पुलिस अधीक्षक डी.आर. आंचला, सीईओ जिला पंचायत रोहित व्यास, उप वन मंडलाधिकारी चूड़ामणि सिंह, एसडीओ मुंगेली गणेश यूआर और डीईओ सतीश पांडेय की गरिमामय उपस्थिति में हुआ। तीन दिनों तक चली फोटो प्रदर्शनी में राज्य के वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने 319 तस्वीरों के माध्यम से प्रकृति, वन और वन्यप्राणियों की खूबसूरती को दिखाया। रविवार 10 अक्टूबर की शाम फोटो प्रदर्शनी का औपचारिक समापन हो गया लेकिन इस फोटो प्रदर्शनी ने वन्य जीवन से प्यार करने वाले दर्शकों के दिल पर गहरी छाप छोड़ दी। खासकर स्कूल-कालेज के छात्र-छात्राओं ने फोटो प्रदर्शनी देखकर वाइल्ड लाइफ के प्रति अपनी कई जिज्ञासा और सवालों के उत्तर प्राप्त किये। 
तीन दिन तक चली फोटो प्रदर्शनी में शहर के आवाम के बीच जिले के विभिन्न स्कूलों के करीब 1800 से अधिक बच्चों ने वाइल्डलाइफ को करीब से देखा। इस फोटो प्रद्रशनी में वन मंडल मुंगेली के अधिकारीयों, कर्मचारियों के अलावा बर्ड वॉचर एवं वाईल्ड लाइफ फोटोग्राफर कंचन पांडेय, जिला शिक्षा विभाग का विशेष सहयोग रहा।  

हँसना मना है : पैदा कराने गए थे वन भैंसा, पैदा हो गई देसी मुर्रा भैंस ! छत्तीसगढ़ वन विभाग परेशान आखिर बच्चा कैसे पैदा हो ?

 TODAY छत्तीसगढ़  /  रायपुर  /  छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैंसा के संरक्षण एवं संवर्धन के तहत पैदा कराए गए क्लोन दीप आशा के मामले में वन विभाग के अधिकारियों की अदूरदर्शिता का प्रमाण प्रमुख सचिव वन को ई-मेल से प्रेषित कर मांग की गई कि पैदा कराई गई क्लोन भैंस, उदंती अभ्यारण में रखी गई वनभैंसा आशा की क्लोने न होकर साधारण मुर्रा भैंस है. उसे भी प्राकृतिक जीवन जीने का अधिकार है इस लिए उसे प्राकृतिक जीवन जीने के लिए छोड़ देना चाहिए.

क्लोन दीपआशा, वनभैंसा आशा की क्लोन नहीं .... मुर्रा भैंस है.  

वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया कि छत्तीसगढ़ के उदंती अभ्यारण में बाडे  में रखी गई आशा नामक वनभैंसा  के कान से सेल कल्चर लेकर और दिल्ली के बूचड़खाने से देसी भैंस का अंडाशय लेकर अत्याधुनिक तकनीकी से 12 दिसंबर 2014 को दीपआशा नामक क्लोन वनभैंसा को नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टिट्यूट करनाल में पैदा कराया गया. दीपआशा को 28 अगस्त 2018 को रायपुर लाया गया और तब से रायपुर स्थित जंगल सफारी में रखा गया है. TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें   

गौरतलब है कि क्लोन हरदम उसी के समान दिखता है जिससे सेल कल्चर  लिया गया हो. क्लोन दीपआशा के प्रकरण में दीपआशा बिल्कुल वैसी ही दिखनी चाहिए जैसे कि उदंती की वनभैंसा आशा दिखती थी. परंतु दीपआशा मुर्रा भैंस समान दिखती है. वन भैंसों के सिंग बहुत लंबे होते हैं. वनभैंसा आशा के सिंग भी लंबे थे परंतु दीपआशा के सिंग मुर्रा भैंस के समान है और वह मुर्रा भैंस के समान ही दिखती है. 2018 में निर्णय लिया गया कि दीपआशा का डीएनए टेस्ट कराया जायेगा परन्तु दीप आशा 7 साल की होने को आई उसके बाद भी डीएनए टेस्ट आज तक नहीं करवाया गया नहीं कराया गया. 

वन विभाग के अधिकारियों की अदूरदर्शिता

वन विभाग के अधिकारियों को क्लोन पैदा करवाने के पहले यह विचार करना चाहिए था कि  क्लोन पैदा कराए जाने उपरांत उससे बच्चे कैसे और किससे पैदा कराए जाएंगे? ब्रीडिंग प्रोग्राम बनाया जाना चाहिए था. परंतु दीपआशा के पैदा होने के 4 साल बाद अधिकारियों को यह विचार आया कि दीपआशा से बच्चे कैसे पैदा कराए जाएं? इसलिए 2018 में मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रायपुर की अध्यक्षता में मीटिंग की गई. मीटिंग में चर्चा हुई कि उदंती अभ्यारण में बाड़े में रखे हुए प्रिंस, मोहन, वीरा, सोनू नामक वनभैंसा से अगर प्रजनन कराया जाना है तो उनका डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए, क्लोन दीपआशा का भी डीएनए टेस्ट कराया जाना चाहिए. चर्चा हुई कि दीपआशा का प्रजनन कराने के लिए मोहन वनभैंसा  को उदंती अभ्यारण से जंगल सफारी रायपुर लाया जावे. साथ ही निर्णय लिया गया कि दीपआशा का ब्रीडिंग प्रोग्राम बनाया जाए, जो की आज तक नहीं बनाया गया.

प्राकृतिक प्रजनन पर इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट करनाल ने आपत्ति दर्ज की

इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट से राय लेने पर उन्होंने राय दी की दीपआशा पालतू भैंसों के बीच बड़ी हुई है, इसलिए वनभैंसा से प्राकृतिक प्रजनन कराना लड़ाई के दृष्टिकोण से खतरनाक हो सकता है. अगर वनभैंसा से प्राकृतिक प्रजनन कराया जावे तो जंगली जानवरों से कई बीमारियां फैल सकती है, इसलिए वीर्य का भी जांच कराया जाना चाहिए.

प्रजनन पर केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की आपत्ति

2020 में केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने आपत्ति दर्ज की कि दीपआशा को प्रजनन के लिए वन में नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि उसे वहां घायल चोटिल होने की संभावना है. उन्होंने सुझाव दिया कि आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन पर विचार किया जावे.

आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन संभव नहीं

इस तकनीकी के तहत नर भैंसा से वीर्य इकट्ठा किया जाता है परंतु इसके लिए नर भैंसा को प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक होता है. यह कार्य उदंती में रखे गए वनभैंसों से कराया जाना लगभग असंभव है. इसी प्रकार महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में स्वतंत्र विचरण कर रहे वनभैंसों का भी वीर्य नहीं लिया जा सकता. वनभैसे बहुत आक्रामक होते है.

इंटर ब्रीडिंग कराने चले थे वन अधिकारी ... 

मुख्य वन संरक्षक वन्यप्राणी रायपुर की अध्यक्षता में 2018 में हुई मीटिंग में क्लोन दीपआशा की प्राकृतिक प्रजनन जिन वनभैंसा प्रिंस, मोहन, वीरा, सोमू से कराने की चर्चा की गई वह सभी वनभैंसा आशा की संतान है. क्लोन दीपआशा भी वनभैंसा  आशा के सेल कल्चर से पैदा की गई है. इस प्रकार के एक ही जीन पूल के सदस्यों के मध्य प्राकृतिक प्रजनन से इंटर ब्रीडिंग की समस्या पैदा होगी. इसी प्रकार अगर किसी भी प्रकार से इनमें से किसी का वीर्य भी लिया जाता है तब भी इंटर ब्रीडिंग होगी.

सिंघवी ने बताया कि इस प्रकार दीपआशा से प्रजनन कराने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं. अगर वन अधिकारी इस पर पहले विचार करते तो करोड़ों खर्च करा कर दीपआशा को पैदा ही नहीं कराते. 3 साल से उसे रायपुर की जंगल सफारी में कैद में रख रखा है, स्टाफ के अलावा कोई उसे देख नहीं सकता, कोई भी उसकी फोटो नहीं ले सकता. जबकि वनभैंसा  सामाजिक प्राणी होते हैं और ग्रुप में रहते हैं.  सिंघवी ने प्रश्न किया कि वन विभाग के अधिकारी यह बताएं कि  दीपआशा को पैदा  कराने के पूर्व सभी प्लान क्यों नहीं बनाए गए और कैद में रखकर उसे किस बात की सजा दे रहे हैं ?  

रिटायर्ड पीसीसीएफ जेएसीएस राव की वनौषधि बोर्ड के सीईओ पद पर संविदा नियुक्ति, आदेश जारी

TODAY छत्तीसगढ़  /  रायपुर / आखिरकार वन औषधि बोर्ड के अध्यक्ष बालकृष्ण पाठक  की तगड़ी लॉबिंग के चलते रिटायर्ड आईएफएस अफसर जेएसीएस राव को राज्य वनौषधि बोर्ड के सीईओ पद पर संविदा नियुक्ति मिल गई। राव की नियुक्ति तीन साल के लिए कर दी गई है। 

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भारतीय वन सेवा के 87 बैच के अफसर राव जुलाई में रिटायर हुए थे। पहले उन्हें  बोर्ड का सलाहकार बना दिया गया था। जिस पर वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने नाराजगी जताई थी, और नियुक्ति निरस्त कर दी गई थी। इसके बाद बोर्ड के अध्यक्ष  पाठक सक्रिय हुए, और उन्होंने सीएम भूपेश बघेल से मुलाकात की। 

सूत्र बताते हैं कि पाठक के अनुरोध पर जेएसीएस राव को बोर्ड का मुख्य कार्यपालन अधिकारी बनाने के लिए फाइल चली, और तीन साल के लिए नियुक्ति दे दी गई। राव की पदस्थापना के बाद के.मुरूगन बोर्ड के सीईओ के प्रभार से मुक्त होंगे। राव पहले आईएफएस अफसर हैं, जिन्हें एक बार में ही तीन साल के लिए संविदा नियुक्ति दी गई है। 

हाथी ने चलती मोटरसाइकिल का पीछा किया और महिला को नीचे गिराकर मार डाला, ग्रामीणों में आक्रोश


TODAY छत्तीसगढ़  / जशपुर। तपकरा से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आ रही है। यहां एक महिला अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर सवार होकर बाजार जा रही थी, रास्ते मे अचानक एक दंतैल हाथी ने पीछे बैठी महिला को खींचकर न केवल पटक दिया बल्कि पैरों से कुचल कर मार डाला । हाथी के हमले से महिला की मौके पर ही मौत हो गई जबकि पति ने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई।

जानकारी के मुताबिक केरसई पंचायत के बरटोली गांव निवासी खिज्मती बाई और उसका पति रामकुमार सोमवार की सुबह कुछ घरेलू सामान लेने बाइक से केरसई जा रहे थे। इसी दौरान रास्ते मे गोठान के जंगल मे दंपती पर पीछे से एक दंतैल हाथी ने हमला कर दिया। हाथी ने चलती हुई बाइक को कुछ दूर दौड़ाया और सूढ़ से पीछे बैठी हुई महिला को लपेट कर खींच लिया। हाथी के हमले से बाइक अनियंत्रित हो कर गिर गई। जमीन में गिरी हुई खिज्मती बाई को हाथी ने कुचल कर मौके पर ही मार डाला। 

हादसे में मृतिका के पति रामकुमार ने मौके से भाग कर किसी तरह से अपनी जान बचाई। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस घटना से पहले दल से अलग हो कर भटक रहे दंतैल ने रायमुण्डा गांव में एक अन्य महिला सुखों बाई 50 वर्ष को घायल किया है। उसे इलाज के लिए नजदीक के अस्पताल मे भर्ती किया गया है। केरसई के आसपास के जंगल मे तीन हाथी मौजूद हैं। महिला को कुचलने के बाद दंतैल आक्रामक हो चुका है। मौके पर अब भी वन अमला और ग्रामीण हाथी को खदेड़ने में जुटे हुए हैं। पिछले कुछ सालों के भीतर हाथी और मानव द्वंद काफी बढ़ गया है। खासकर उत्तरी छत्तीसगढ़ में लगातार मामले सामने आ रहे हैं।

स्वीकृत खदानों के शर्तों का पालन नहीं, डीएफओ डॉक्टर प्रणय मिश्रा को नोटिस

 TODAY छत्तीसगढ़  / रायपुर / वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर ने आज राजधानी के शंकर नगर स्थित अपने निवास कार्यालय में विभागीय समीक्षा बैठक ली। उन्होंने इस दौरान प्रदेश में वन संरक्षण अधिनियम के तहत स्वीकृत खदानों में भारत सरकार द्वारा अधिरोपित शर्तों के पालन के संबंध में वनवृत्तवार समीक्षा करते हुए जानकारी ली और इनका शीघ्रता से पालन सुनिश्चित कराने के लिए मुख्य वनसंरक्षकों को सख्त निर्देश दिए। 

वन मंत्री श्री अकबर द्वारा सभी मुख्य वनसंरक्षकों को पहले से ही अपने-अपने क्षेत्र अंतर्गत संचालित खदानों का मौका निरीक्षण करा कर शर्तों के पालन के संबंध में जानकारी चाही गई थी। उन्होंने बैठक में समीक्षा के दौरान वनमण्डलाधिकारी रायगढ़ डॉ. प्रणय मिश्रा को कारण बताओ नोटिस जारी करने के भी निर्देश दिए। वनमण्डलाधिकारी रायगढ़ डॉ. मिश्रा द्वारा वहां संचालित खदानों में शर्तों के पालन के संबंध में सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई थी। वन मंत्री श्री अकबर ने इसे गंभीरता से लेते हुए नाराजगी व्यक्त की और उन्हें तत्काल कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख को आवश्यक निर्देश दिए। 

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वन मंत्री श्री अकबर ने वनवृत्तवार समीक्षा करते हुए मुख्य वन संरक्षक सरगुजा को अपने क्षेत्र अंतर्गत संचालित तीन विभिन्न खदानों में शर्तों के पालन के संबंध में अब तक की कार्रवाई की वीडियोग्राफी भी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। इनमें परसा ईस्ट, केते बासेन, परसा माइंस और केते एक्सटेंशन खदान शामिल हैं। उन्होंने इसके अलावा सभी मुख्य वन संरक्षकों को अपने-अपने वनवृत्त के अंतर्गत संचालित खदानों में भारत सरकार द्वारा अधिरोपित शर्तों का तत्परता से शत-प्रतिशत पालन सुनिश्चित कराने के संबंध में निर्देशित किया। इस अवसर पर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख राकेश चतुर्वेदी, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील मिश्रा तथा समस्त मुख्य वन संरक्षक उपस्थित थे। 

बाघ की खाल बेचते छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के 2 तस्कर गिरफ्तार, वन्य जीवों का शिकार चरम पर

TODAY छत्तीसगढ़  /  भोपालपटनम /  छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा पर मुलुगु जिले की एतुर्नगरम पुलिस ने बाघ की खाल बेचते तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के 2 तस्करों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने इसकी जानकारी एतुर्नगरम के प्रभारी डीएफओ की दी। वन अधिकारी के द्वारा इस बाघ की खाल की पहचान कर आरोपियों के खिलाफ  वन अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। वन विभाग बाकी दोषियों की पतासाजी कर रही है। पुलिस के अनुसार तेलंगाना के मुलुगु जिले के एतुर्नगरम के सीआई (सर्किल इंस्पेक्टर)के नेतृत्व में पूर्व सूचना के आधार पर मुल्ला कट्टा पुल के पास बाघ की खाल को बेचने के फिराक में घूम रहे 2 तस्करों को दबोचने में कामयाब हो गए।

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पुलिस के द्वारा आरोपियों से पूछताछ करने पर बताया कि तिरमालेश निवासी वाजेड जिला मुलुगु व दूसरा व्यक्ति सत्यम निवासी चेन्दूर तहसील भोपालपटनम जिला बीजापुर छत्तीसगढ़ निवासी बताया गया। आरोपियों के पास से मौके से 1 बाघ की खाल, 2  मोटरसाइकिल, 1 मोबाइल जब्त किया गया। वाज़ेड निवासी तिरमालेश पिछले चार साल से छत्तीसगढ़ के चेन्दूर निवासी सागर के पास आते जाते रहता था। एक माह पहले सागर ने कहा कि उनके पास तेलंगाना के कुछ लोग बाघ की खाल को खरीदने तैयार है, इसे बेचने के लिए सहयोग करने के लिए कहा है। तिरमालेश ने एक व्यक्ति से सम्पर्क कर सागर को बताया कि बाघ की खाल की कीमत 30 लाख रूपये में सौदा हो गया और बाघ की खाल को तिरमालेश को दिया गया। 

तिरमालेश ने उक्त खाल को सत्यम के घर में छिपा रखा था। इसकी जानकारी एतुर्नगरम सर्किल इंस्पेक्टर को मिली तो सूचना के आधार पर मुल्ला कट्टा पुल के पास बाघ की खाल को बेचते समय पुलिस ने तिरमालेश व सत्यम को गिरफ्तार किया। पुलिस ने उक्त घटना की जानकारी एटूरनागारम के प्रभारी डीएफओ गोपाल राव की दी। वन विभाग के अधिकारी के द्वारा इस बाघ की खाल की पहचान कर आरोपियों के खिलाफ वन अधिनियम 1972 के तहत मामला दर्ज किया गया। वन विभाग के द्वारा आगे की कार्रवाई की जा रही है, बाकी दोषियों की पतासाजी की जा रही है।

इस बार ग्रामीण नहीं, शहर के संभ्रांत लोगों के पास मिली तेंदुए की खाल, मनीष अग्रवाल और निखिल कुमार पुलिस हिरासत में


TODAY छत्तीसगढ़  / रायपुर / राजधानी की माना पुलिस ने बुधवार रात दो युवकों को पकड़ा है। इनके पास से तेंदुए की खाल मिली है। पकड़े गए आरोपी स्कूटर से खाल बेचने की फिराक में थे। पुलिस ने आरोपियों के पास मौजूद सूटकेस से खाल बरामद की है। पकड़े गए दोनों आरोपी रायुपर के तेलीबांधा निवासी निखिल कुमार और बलौदाबाजार निवासी मनीष अग्रवाल हैं। दोनों को गुरुवार को जेल भेज दिया गया।

माना की पुलिस को निखिल और उसका साथी अपनी स्कूटर पर बैग लादे दिखे। सादे कपड़ों में दो अफसर टहलते हुए इनके पास गए। बातों-बातों में पूछ लिया कुछ खास सामान है क्या, निखिल ने कहा हां। दूर खड़ी टीम को अफसरों ने इशारा कर दिया। निखिल और उसके साथी ने भागने की कोशिश भी की मगर धर लिए गए। जांच टीम ने सूटकेस खुलवाया तो इसमें तेंदुए की खाल रखी मिली।

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अब तक हुई जांच में पता चला है कि रायपुर के किसी रईस कारोबारी को खाल 10 लाख में बेची जानी थी। पुलिस गिरफ्तार हुए युवकों से उस कारोबारी के बारे में भी पूछताछ कर रही है। फिलहाल खरीदार का खुलासा नहीं हो सका है। युवकों ने बताया कि वो वीआईपी रोड इलाके में इसी वजह से आए थे कि डील हो सके। युवकों का फोन बरामद कर पुलिस उसकी भी जांच कर रही है ताकि खुलासा हो सके। - भास्कर 

International Tiger Day 2021 : 'SAVE TIGER' जैसे राष्ट्रीय अभियानों की बदौलत देश में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई, छत्तीसगढ़ में स्थिति चिंताजनक

 TODAY छत्तीसगढ़  /  हर साल पूरे विश्व में 29 जुलाई को विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। भारत का राष्ट्रीय पशु है। यह देश की शक्ति, शान, सतर्कता, बुद्धि और धीरज का प्रतीक माना जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को छोड़कर पूरे देश में पाया जाता है। शुष्क खुले जंगल, नम और सदाबहार वन से लेकर मैंग्रोव दलदलों तक इसका क्षेत्र फैला हुआ है। चिंता की बात ये है कि बाघ को वन्यजीवों की लुप्त होती प्रजाति की सूची में रखा गया है। लेकिन राहत की बात ये है कि 'SAVE TIGER' जैसे राष्ट्रीय अभियानों की बदौलत देश में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है। 

बाघ संरक्षण के काम को प्रोत्साहित करने, उनकी घटती संख्या के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित एक शिखर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाने की घोषणा हुई थी। इस सम्मेलन में मौजूद विभिन्न देशों की सरकारों ने 2022 तक बाघों की आबादी को दोगुना करने का लक्ष्य तय किया था। 

O क्या है इस दिवस का महत्व

बाघों की लुप्त होती प्रजातियों की ओर ध्यान आकर्षित करने, उनकी रक्षा करने और बाघों के पारिस्थितिकीय महत्व बताने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में 116 और 2018 में 85 बाघों की मौत हुई है। 2018 में हुई गणना के अनुसार बाघों की संख्या 308 है। साल 2016 में 120 बाघों की मौतें हुईं थीं, जो साल 2006 के बाद सबसे ज्यादा थी। वहीं, साल 2015 में 80 बाघों की मौत की पुष्टि की गई थी। इस दिवस के जरिए बाघ के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाता है। 

O बाघों को लेकर अच्छी खबर क्या है ?

बाघों के बारे में यह जानकर आपको खुशी होगी कि देश में बाघों की संख्या बढ़ी है। विश्व बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलवार को ही देश में बाघों की गणना की विस्तृत रिपोर्ट जारी करते हुए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दुनिया के 70 फीसदी बाघ भारत में मौजूद हैं। मालूम हो कि बाघों की गणना की प्रारंभिक रिपोर्ट पिछले साल ही आ चुकी है। इसमें देश में बाघों की संख्या में भारी बढ़ोतरी का खुलासा हुआ था। साल 2018 की रिपोर्ट के तहत देश में बाघों की संख्या बढ़कर 2967 हो गई है। पूर्व में हुई गणना के लिहाज से देखा जाए तो साल 2014 के मुकाबले 741 बाघों की बढ़ोतरी हुई है।

O अन्य देशों की भी मदद करेगा भारत 

बाघों के संरक्षण को लेकर भारत अब दुनिया के दूसरे देशों की मदद करेगा। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने दुनियाभर में 13 ऐसे देशों की पहचान की है, जहां मौजूदा समय में बाघ पाए जाते हैं, लेकिन संरक्षण के अभाव में इनकी संख्या कम है। ऐसे में भारत इन देशों को बाघों के संरक्षण के लिए बेहतर तकनीक और योजना मुहैया कराएगा।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने वर्ष 2018 में हुई बाघों की गणना की रिपोर्ट जारी कर दी है। इसमें अचानकमार टाइगर रिजर्व में केवल पांच बाघ होने की पुष्टि हुई है। जबकि 2014 की गणना में यहां 12 बाघ थे। एकाएक संख्या घटने से वन विभाग में हड़कंप मचा हुआ है।

O छत्तीसगढ़ की स्थिति बेहद चिंताजनक 

 राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर चार साल में एक साथ देशभर के टाइगर रिजर्व में बाघों की गणना होती है। इसी के तहत 2018 में अंतिम में गणना हुई थी। ट्रैप कैमरे और पगमार्क के आधार पर टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने रिपोर्ट भेजी। इसके आधार पर एनटीसीए ने 29 जुलाई 2019 को राज्यवार आंकड़ा जारी किया था। इसमें छत्तीसगढ़ की स्थिति बेहद चिंताजनक थी।

देशभर में जहां संख्या में 33 प्रतिशत इजाफा हुआ है। वहीं छत्तीसगढ़ में 60 प्रतिशत कमी आई है। रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में 46 से घटकर बाघों की संख्या 19 पहुंच गई। 

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया कि जनहित याचिका से भी वन्य जीवों का संरक्षण किया जा सकता है.  वर्ष 2010 और 2011 के मध्य छत्तीसगढ़ में तीन बाघों का शिकार हुआ था. जिसके बाद उन्होंने सूचना का अधिकार के तहत जानकारी निकाल कर के जनहित याचिका दायर की. इसके पश्चात वन विभाग ने रैपिड रेस्क्यू टीम का गठन किया, निश्चेतना की बंदूकें और दवाइयां खरीदी. याचिका के दौरान कोर्ट को बताया कि वन विभाग में 240 बीट गार्ड की कमी है, जिसके पश्चात कोर्ट में बीट गार्ड भर्ती के आदेश दिए और वन विभाग में भर्ती की. अचानकमार टाइगर रिजर्व में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत बनाए जा रहे मकानों के निर्माण में रोक लगा दी गई. तथा भोरमदेव अभ्यारण होते हुए चिल्पी से रेंगाखार जाने वाले 150 करोड की लागत वाले रास्ते के निर्माण में रोक लगा दी गई.

जंगल गए ग्रामीण को भालू ने नोचा, मौत के दो दिन बाद मिली लाश

 TODAY छत्तीसगढ़  / पिथौरा /  स्थानीय वन परिक्षेत्र के जम्हर निवासी ग्रामीण की भालू के हमले से मौत हो गई। गुरुवार की सुबह उसका क्षत-विक्षत शव जम्हर जंगल के कक्ष क्रमांक 98 वन विकास निगम क्षेत्र में मिला।

बीते दिन ग्राम जम्हार निवासी कृष्ण कुमार बरिहा पिता गोकुल समीप के वन विकास निगम क्षेत्र के जंगल में फुटू एवं करील तोडऩे गया था। इस बीच हरे-भरे जंगल से अचानक एक भालू उसके समीप पहुंच गया। इससे पहले की कृष्णा भालू को देख भाग पाता, भालू उसे देखते ही उस पर टूट पड़ा और मार डाला। इधर कृष्णा के परिजन मंगलवार शाम से ही उसकी तलाश कर रहे थे। गुरुवार को उक्त जंगल में कृष्णा का क्षत-विक्षत शव मिला। शव का चेहरा बुरी तरह नोच डाला गया था, जबकि उसके पास एक थैले में करील और गमछे में फुटू मिलने से पता चला कि मृतक जंगल में फुटू और करील के लिए ही गया था।

स्थानीय परिक्षेत्र अधिकारी एस आर निराला ने उक्त घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि मृतक के परिजनों को नियमानुसार तत्काल 25 हजार की आर्थिक सहायता दे दी गयी है। शव को भी पोस्टमार्टम एवं पंचनामा के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है।

हाथी से हुआ सामना, पति की मौत पत्नी जान बचाकर भागी


TODAY छत्तीसगढ़  / धरमजयगढ़ / कल शाम तकरीबन सात बजे धरमजयगढ़ रेंज के नरकालो गांव के कोलमार बहला में एक वृद्ध को हांथी ने कुचलकर मार डाला। बताया जा रहा है कि सोमवार को मृतक दिलीप सिंह राठिया अपनी पत्नी लक्ष्मी के साथ पास के गांव नरकालो से रथ यात्रा देख वापस खेत के रास्ते घर लौट रहे थे। उसी दौरान कोलमार बहला के पास जंगल में पहले से मौजूद दंतैल हांथी से उसका अचानक सामना हो गया। इस घटनाक्रम में बुजुर्ग दिलीप राठिया की पत्नी ने भागकर अपनी जान बचा ली लेकिन दिलीप हांथी की पकड़ में आ गए। घटना की सूचना पर ग्रामवासी और वन अमला मौके पर पहुंचे। चूँकि रात हो जाने की वजह से लाश की पंचनामा कार्रवाही आज सुबह हुई।  TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें   


सवा करोड़ में तैयार हो रहा चिडि़यों का घरौंदा, लामनी पार्क में पर्यटकों की सुविधाओं के विस्तार का काम जोरो पर

TODAY छत्तीसगढ़  / जगदलपुर /  संभागीय मुख्यालय स्थित शहर सीमा से सटे लामनी पार्क में सवा करोड़ रुपए की लागत से एक चिडि़या घर (एवरी) तैयार किया जा रहा है। इसमें अलग-अलग प्रजाति के लगभग 600 पक्षियों को रखा जाएगा। 90 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊंचा पक्षियों का यह आशियाना संभाग का पहला चिडि़या घर होगा। इसके भीतर ही टनल बनाई जाएगी, जिससे होकर पर्यटक सुंदर चिडि़यों का दीदार नजदीक से कर सकेंगे।

 यह पूरी कवायद पर्यटकों को रिझाने के लिहाज से की जा रही है। निर्माण पूर्ण होने में 2 से 3 महीने का वक्त लगने की बात अफसर कह रहे हैं। संभागीय मुख्यालय से लगभग 5 किमी दूर स्थित लामनी पार्क में वन विभाग द्वारा पर्यटकों की सुविधा के लिए घोसला की तरह बड़ा चिडि़या घर (एवरी) का निर्माण किया जा रहा है। एवरी के निर्माण की शुरुआत लगभग एक वर्ष पूर्व की गई थी, लेकिन संबंधित ठेकेदार निर्माण किए बिना ही भाग गया था। अब वन विभाग ने नए ठेकेदार को इसका निर्माण कार्य दिया गया है, जिसने एवरी का निर्माण किया जा रहा है, ऐसी संभावना है कि यह कार्य 2-3 महीने में पूरा हो जाएगा। चिडि़याघर की देखरेख जगदलपुर परिक्षेत्र के प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी देवेन्द्र वर्मा कर रहे हैं। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें   

पर्यटकों की सुविधा के लिए वन विभाग के सीसीएफ मो. शाहिद ने बताया कि पर्यटकों की सुविधाएं बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यही कारण है कि लामनी पार्क में बड़ा चिडि़या घर का निर्माण किया जा रहा है। दो-तीन महीने में इसका निर्माण पूरा हो जाएगा, जहां पर्यटक चिडि़यों का दीदार कर सकेंगे। 

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