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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद: मध्यप्रदेश के टाइगर रिज़र्व में नाइट सफारी पर आज से पूर्ण प्रतिबंध


भोपाल।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  मध्यप्रदेश के सभी टाइगर रिज़र्व में रात्रिकालीन सफारी अब पूरी तरह बंद हो गई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 17 नवम्बर 2025 को T.N. Godavarman बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिए गए आदेश के बाद प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) ने शुक्रवार को यह निर्देश जारी किए। आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि देशभर में नाइट टूरिज़्म पर पूर्ण प्रतिबंध लागू होगा और सभी राज्यों को NTCA (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) की पर्यटन संबंधी गाइडलाइन्स का सख्ती से पालन करना होगा। यह आदेश आज 1 दिसंबर 2025 से प्रभावशील होगा। 

जारी पत्र में उल्लेख है कि सर्वोच्च न्यायालय ने नाइट टूरिज़्म को बाघ संरक्षण के हित में प्रतिबंधित करते हुए सामुदायिक आधारित पर्यटन व्यवस्था को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे पर्यटन गतिविधियों को नियंत्रित कर ऐसी प्रणाली विकसित करें जिससे वन्यजीवों के प्राकृतिक व्यवहार में बाधा न हो। 

आदेश के तहत मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्र संचालकों को त्वरित प्रभाव से रात्रिकालीन सफारी रोकने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही बताया गया है कि सभी टाइगर रिज़र्व प्रबंधन इस आदेश की सूचना स्थानीय स्तर पर तुरंत प्रसारित करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी नाइट सफारी वाहिकाएँ जंगल में प्रवेश न करें।

वन विभाग द्वारा जारी इस आदेश की प्रति राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), नई दिल्ली के सदस्य सचिव तथा राज्य सरकार के संबंधित विभागों को भी भेजी गई है।

वन विभाग का मानना है कि नाइट सफारी बंद होने से जंगल के वन्यजीवों को रात के समय होने वाली मानव गतिविधियों से मुक्ति मिलेगी और बाघ संरक्षण के प्रयासों को मजबूती मिलेगी।

जटगा रेंज में 65 हाथियों की धमक: रातभर चला रेस्क्यू अभियान, कोई जनहानि नहीं

Chhattisgarh: कड़ाके की ठंड और गहरी रात के बावजूद वन कर्मियों ने टार्च की रोशनी और जिप्सी के हूटर की मदद से हाथियों को गांव की सीमा से दूर करने का अभियान शुरू किया। यह रेस्क्यू ऑपरेशन लगभग तीन से चार घंटे तक चला। पूरी रात डीएफओ और वन विभाग की टीम जंगल में डटी रही तथा ग्रामीणों के बीच रहकर हालात पर नजर बनाए रखी। 

सांकेतिक तस्वीर / TCG NEWS 

आसमान की शहजादियां: Amur falcon ने 6 दिन में मणिपुर से केन्या तक रिकॉर्ड उड़ान भरी


नई दिल्ली।
 TODAY छत्तीसगढ़  /  मणिपुर के घने जंगलों से सैटेलाइट टैग के जरिये निगरानी में रखे गए तीन अमूर फाल्कन ने इस साल फिर ऐसा कमाल कर दिखाया है, जिसने दुनिया भर के पक्षी वैज्ञानिकों को हैरत में डाल दिया है। महज 150 ग्राम वज़न वाले इन छोटे परिंदों ने कुछ ही दिनों में महाद्वीप पार कर अविश्वसनीय दूरी तय की है।

सबसे आगे रही ‘अपापंग’, जिसे नारंगी टैग लगाया गया है। इस नन्ही योद्धा ने पूर्वोत्तर भारत से उड़ान भरकर महज 6 दिन 8 घंटे में 6,100 किलोमीटर की नॉन-स्टॉप यात्रा पूरी की। भारत के पूर्वी पहाड़ों से लेकर प्रायद्वीपीय भारत, अरब सागर और हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका को पार करते हुए उसने केन्या में लैंड किया। वैज्ञानिकों के मुताबिक इतनी लंबी निर्बाध उड़ान किसी छोटे शिकारी पक्षी के लिए लगभग असंभव मानी जाती है।

पीछे-पीछे पहुंची ‘अलांग’, जिसे पीला टैग मिला है और जो इन तीनों में सबसे कम उम्र की है। उसने 5,600 किलोमीटर की दूरी 6 दिन 14 घंटे में तय की। रास्ते में उसने एक रात तेलंगाना में बिताई और महाराष्ट्र में लगभग तीन घंटे का छोटा विश्राम लेकर दोबारा समुद्र पार करने उड़ चली। पहली बार लंबी दूरी की यात्रा करने वाली अलांग की सहनशक्ति ने विशेषज्ञों को भी चौंका दिया है। आखिरकार वह भी केन्या पहुंच गई।

तीसरी सदस्य ‘अहू’ (लाल टैग) ने थोड़ा उत्तरी रास्ता चुना और अरब सागर के पार जाने से पहले पश्चिमी बांग्लादेश में रणनीतिक ठहराव लिया। उसने अब तक 5,100 किलोमीटर की उड़ान 5 दिन 14 घंटे में पूरी कर ली है और इस समय सोमालिया के उत्तरी सिरे पर रुकी हुई है। अनुमान है कि वह जल्द ही अपने साथियों से केन्या के प्रसिद्ध Tsavo National Park में आ मिलेगी, जहां ये पक्षी हर साल रुकते हैं।

अमूर फाल्कन को यूँ ही “टाइनी लॉन्ग-डिस्टेंस वॉयेजर” नहीं कहा जाता। भारत से पूर्वी अफ्रीका तक इनका सालाना प्रवास, जिसमें वे सागर, रेगिस्तान और निर्जन इलाकों को पार करती हैं, दुनिया भर के पक्षी प्रेमियों और संरक्षणवादियों को लगातार प्रेरित करता है। इनकी ये यात्राएं बताती हैं कि महाद्वीपों को जोड़ने वाली प्राकृतिक प्रवासी मार्गों की रक्षा कितनी ज़रूरी है।



मैकू मठ का टूटा शिलालेख: जंगल की स्मृति पर प्रहार और समाज के टूटते विवेक का आईना


बिलासपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / अचानकमार टाइगर रिज़र्व (ATR) के कोर ज़ोन में स्थित ऐतिहासिक मेकू मठ सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं है—यह जंगल, वन्यजीवन और उन लोगों के साहस का मौन स्मारक है, जिन्होंने इस कठिन भौगोलिक क्षेत्र में अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया। लेकिन हाल ही में इस स्मारक के शिलालेख को तोड़ दिया गया। यह केवल एक पत्थर तोड़ने की घटना नहीं, बल्कि इतिहास, स्मृति और संवेदनशीलता पर किया गया असंवेदनशील प्रहार है।

एक शहीद वनरक्षक की विरासत

मेकू गोंड, बिंदावल वन ग्राम के एक फायर वॉचर थे—सीमित संसाधनों के बीच जंगल की रक्षा करने वाले उन अनेक अज्ञात नायकों में से एक। 10 अप्रैल 1949 को वह आदमखोर बाघिन का शिकार बने। वन विभाग ने कार्रवाई की और 13 अप्रैल 1949 को कोटा परिक्षेत्र के रेंजर एम. डब्ल्यू. के. खोखर ने उस बाघिन का सफाया किया। इस घटना की याद में यहाँ स्मारक बनाया गया। समय के साथ दूसरा स्मारक भी खड़ा किया गया। लेकिन अब नए मठ का शिलालेख किसी ने तोड़ दिया—यह कृत्य सिर्फ गलत ही नहीं, बल्कि बेहद दुखद और चिंताजनक भी है।  

कोर ज़ोन में हुई शरारत: गंभीर प्रश्नों को जन्म

यह क्षेत्र सामान्य नहीं है। अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र का यह कोर ज़ोन है, जहाँ आज भी बाघों की उपस्थिति दर्ज की जाती है। ऐसे सुरक्षित क्षेत्र में किसी का घुसकर शिलालेख तोड़ देना सुरक्षा व्यवस्था और संवेदनशीलता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या यह महज शरारत है, या स्मारकों से असम्मान का बढ़ता चलन ? 

स्मारक—इतिहास का संरक्षक

एक समाज तभी सभ्य माना जाता है जब वह अपने इतिहास, अपने नायकों और अपनी विरासत को संजोकर रखे। मेकू मठ का शिलालेख केवल पत्थर नहीं था। वह उस व्यक्ति के साहस का प्रतीक था, जिसने वन की रक्षा करते हुए अपना जीवन आहुति कर दिया। उस स्मृति को नष्ट करना न केवल अपराध है, बल्कि हमारे सामाजिक विवेक पर भी गहरा धब्बा है। ऐसा कृत्य किसी ‘शैतानी दिमाग’ की उपज है और इससे कठोर संदेश जाना चाहिए कि इतिहास और संरक्षित क्षेत्रों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए, दोषियों की पहचान करके उन्हें दंडित करना चाहिए। 


ओडिशा में बनेगी दुनिया की पहली ब्लैक टाइगर सफारी, सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी


 भुवनेश्वर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / ओडिशा के प्रकृति प्रेमियों के लिए बड़ी खुशखबरी है। मयूरभंज जिले में दुनिया की पहली मेलेनिस्टिक (ब्लैक) टाइगर सफारी स्थापित करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। कोर्ट की अनुमति के साथ इस प्रोजेक्ट से जुड़ी अंतिम कानूनी अड़चन भी दूर हो गई है।

यह सफारी बारीपदा से करीब 10 किलोमीटर दूर मंचबंधा में विकसित की जाएगी। इससे पहले प्रोजेक्ट को सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) और नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) से भी स्वीकृति मिल चुकी थी। अब सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद ओडिशा सरकार इस परियोजना को शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। अधिकारियों के अनुसार यह पहल राज्य को वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का बड़ा केंद्र बनाएगी और पूर्वी भारत में रेस्क्यू एवं कंज़र्वेशन व्यवस्था को मजबूत करेगी।

200 हेक्टेयर में विकसित होगा प्रोजेक्ट

कुल 200 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रस्तावित इस सफारी में 100 हेक्टेयर हिस्सा टाइगर हैबिटैट के लिए तय किया गया है, जबकि शेष 100 हेक्टेयर क्षेत्र में रेस्क्यू सेंटर, वेटेरिनरी यूनिट, स्टाफ इन्फ्रास्ट्रक्चर और पार्किंग जैसी सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

पहले चरण में पांच ब्लैक टाइगर होंगे शामिल

पहले चरण में नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क से तीन और रांची जू से दो मेलेनिस्टिक टाइगर लाए जाने की योजना है। इन बाघों को डिस्प्ले और कंज़र्वेशन यूनिट में स्थानांतरित किए जाने से पहले विशेषज्ञों की देखरेख में उन्हें नए वातावरण के अनुकूल बनाया जाएगा।

अचानकमार टाइगर रिज़र्व में मंत्री केदार कश्यप का निरीक्षण, पर्यटन बढ़ाने पर फोकस


 बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप ने शुक्रवार को अचानकमार टाइगर रिज़र्व का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने पर्यटक मार्ग, रिसॉर्ट, चारागाह क्षेत्र और वन्यजीव गतिविधियों का विस्तृत निरीक्षण किया। वन मंत्री केदार कश्यप के साथ PCCF (वन्यप्राणी) अरुण पांडेय मौजूद रहे। वन मंत्री ने मौके पर ही अधिकारियों को कई अहम निर्देश भी दिए।

शुक्रवार की सुबह वन मंत्री श्री कश्यप लोरमी पहुँचे, जहाँ उन्होंने सबसे पहले पर्यटक मार्ग का जायजा लिया। इसके बाद वे हाथी कैंप सिहावल सागर पहुंचे, जो मनियारी नदी का उद्गम स्थल है। निरीक्षण के दौरान मंत्री ने मार्ग सुधार, सुविधाओं के उन्नयन और सुरक्षा प्रबंधन को बेहतर करने के निर्देश दिए।

इसके बाद मंत्री अचानकमार ग्राम पहुँचे, जहाँ ग्रामीणों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। शिवतराई पहुँचकर उन्होंने बैगा रिसॉर्ट, कैंटीन और सोविनियर शॉप के संचालन की विस्तृत समीक्षा की। स्थानीय महिला समूहों ने भी मंत्री का स्वागत किया। मंत्री ने बैगा रिसॉर्ट की आय बढ़ाने के लिए बिलासपुर और रायपुर के होटल संचालकों व टूर ऑपरेटरों के साथ बैठक कर सुझाव लेने के निर्देश दिए और रिज़र्व के व्यापक प्रचार-प्रसार पर जोर दिया।

मंत्री कश्यप ने कहा कि रोड मैपिंग और वाटर बॉडी मार्किंग के बाद नए पर्यटन रूट तैयार किए जाएँ, ताकि पर्यटकों को वन्यजीवों की बेहतर साईटिंग मिल सके। उन्होंने चारागाह विकास कार्यों का निरीक्षण किया और खाद्य घास प्रजातियों के बीज संग्रहण सहित चल रही गतिविधियों पर संतोष जताया।

यह इस वर्ष मंत्री का अचानकमार टाइगर रिज़र्व का दूसरा दौरा है। उन्होंने 19 मई को दिए गए निर्देशों की भी समीक्षा की और अब तक हुए कार्यों की सराहना की। मंत्री ने कहा कि रिज़र्व के विकास से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे।

इस दौरान प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडे, मुख्य वन संरक्षक मनोज पांडे, उप संचालक गणेश यू.आर. सहित कई अधिकारी मौजूद रहे।

Chhattisgarh: दुर्लभ पक्षियों के आसरे को मिलेगा वैश्विक दर्जा: कोपरा जलाशय प्रस्तावित रामसर स्थल


रायपुर ।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ सरकार ने बिलासपुर जिले में स्थित कोपरा जलाशय को प्रस्तावित रामसर स्थल घोषित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप के निर्देश पर राज्य वेटलैंड प्राधिकरण ने इसके लिए औपचारिक प्रस्ताव भेजा है। प्राकृतिक एवं मानव निर्मित विशेषताओं वाला यह जलाशय जल संसाधन, सिंचाई और जैव विविधता के लिए क्षेत्र का प्रमुख केंद्र माना जाता है।

राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने की उम्मीद

वन मंत्री श्री कश्यप ने कहा कि कोपरा जलाशय को रामसर स्थल का दर्जा मिलने से न केवल इसका संरक्षण और मजबूत होगा, बल्कि क्षेत्र को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलेगी। यह जलाशय वर्षा और आसपास के नालों से भरता है तथा स्थानीय ग्रामीणों की पेयजल और सिंचाई आवश्यकताओं का मुख्य स्रोत है। जलाशय के आसपास की भूमि अत्यंत उपजाऊ होने के कारण कई गाँवों की कृषि गतिविधियाँ इसी पर निर्भर हैं। 

जैव विविधता का समृद्ध केंद्र

कोपरा जलाशय वर्षभर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों, जलचर जीवों और वनस्पतियों का सुरक्षित आवास बना हुआ है। खासकर प्रवासी पक्षियों की यहां बड़ी संख्या में मौजूदगी दर्ज की जाती है। जलाशय में मछलियों, जलीय पौधों, उभयचर, सरीसृपों और असंख्य कीट-पतंगों की उपस्थिति इसे महत्वपूर्ण जैव विविधता क्षेत्र बनाती है।

दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण का उपयुक्त स्थल

राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के अनुसार यह क्षेत्र रिवर टर्न, कॉमन पोचार्ड और इजिप्शियन वल्चर जैसे दुर्लभ एवं संवेदनशील पक्षियों के संरक्षण के लिए अत्यंत उपयुक्त है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोपरा जलाशय रामसर मानदंड 02, 03 और 05 को पूरा करता है, जो इसे एक उत्कृष्ट वेटलैंड इकोसिस्टम बनाते हैं। 

पर्यटन और संरक्षण दोनों को मिलेगा बढ़ावा

केंद्र से स्वीकृति मिलने पर कोपरा जलाशय को अंतरराष्ट्रीय स्तर का संरक्षण मिलेगा और इसका वैज्ञानिक, पर्यावरणीय तथा पर्यटन संबंधी महत्व और बढ़ जाएगा। सरकार जल संरक्षण, जैव विविधता संवर्धन और ग्रामीण आजीविका से जुड़ी गतिविधियों को भी सुदृढ़ करने की तैयारी कर रही है, ताकि क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय समुदाय के बीच बेहतर संतुलन स्थापित किया जा सके।

कर्नाटक के चिड़ियाघर में चार दिन में 31 काले हिरणों की मौत, जीवाणु संक्रमण की आशंका


बेलगावी।
 TODAY छत्तीसगढ़  /  कर्नाटक के बेलगावी जिले में स्थित कित्तूर रानी चेन्नम्मा चिड़ियाघर से एक बेहद चिंताजनक खबर सामने आई है। यहां जीवाणु संक्रमण के चलते चार दिनों में 31 काले हिरणों की मौत हो गई है। लगातार हो रही मौतों के बाद चिड़ियाघर में अब सिर्फ 7 काले हिरण बचे हैं। मामला सामने आते ही सरकार ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश जारी कर दिए हैं।

4 दिनों में ऐसे हुईं मौतें

चिड़ियाघर सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार को 8 हिरणों की मौत हुई। इसके बाद शनिवार को हालात बिगड़ते गए और 20 हिरणों ने दम तोड़ दिया। पिछले दो दिनों में तीन और हिरण मर गए। ये सभी हिरण 4 से 6 साल की उम्र के थे और गडग के बिंकदत्ती चिड़ियाघर से बेलगावी लाए गए थे।

चिड़ियाघर के उप निदेशक नागेश बालेहोसुर ने बताया कि 29वें हिरण की मौत शनिवार रात, 30वें की रविवार शाम और एक घायल हिरण की मौत सोमवार सुबह हुई। अंतिम हिरण की मौत संक्रमण से हुई या पैर में लगी चोट से, यह पोस्टमार्टम के बाद तय होगा।

मंत्री खुद पहुंचे बेलगावी, अधिकारियों को फटकार

वन मंत्री ईश्वर खंड्रे सोमवार को बेलगावी पहुंचे और चिड़ियाघर अधिकारियों के साथ बैठक कर पूरे मामले की समीक्षा की। उन्होंने मौतों पर दुख जताते हुए बीमारी के स्रोत और फैलाव की दिशा में तुरंत जांच करने के आदेश दिए।

विसरा जांच के लिए भेजा गया

हिरणों के विसरा के सैंपल बेंगलुरु स्थित बन्नेरघट्टा वन्य प्राणी रोग निदान प्रयोगशाला भेजे गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर काले हिरणों की अचानक मौत इस चिड़ियाघर में पहली बार हुई है। डॉक्टरों को जानवरों के इलाज के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाया।

स्थानीय प्रशासन अलर्ट

लगातार मौतों के बाद चिड़ियाघर प्रशासन और वन विभाग हाई अलर्ट पर है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही असल वजह स्पष्ट हो पाएगी।

टाइगर सफारी पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त रोक, सिंघवी ने फैसले को वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट बताया


 रायपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार 17 नवम्बर 2025 को पारित ऐतिहासिक निर्णय में देशभर के टाइगर रिज़र्व प्रबंधन, वन प्रशासन और मानव–वन्यजीव संघर्ष से जुड़े मुआवज़ा ढांचे में व्यापक बदलाव की दिशा तय कर दी है। इस निर्णय ने राज्यों पर तत्काल प्रभाव से कई महत्त्वपूर्ण सुधार लागू करने की जिम्मेदारी भी डाली है।

रायपुर निवासी वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस फैसले को “वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट” बताते हुए मुख्य सचिव एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को पत्र लिखकर आदेश के तत्काल क्रियान्वयन की माँग की है।

कोर और क्रिटिकल हैबिटेट में टाइगर सफारी पर पूर्ण प्रतिबंध

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोर क्षेत्र और क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में किसी भी प्रकार की टाइगर सफारी संचालित नहीं की जा सकती। बफ़र क्षेत्र में सफारी की अनुमति भी तभी होगी जब भूमि गैर-वन अथवा अविकसित/अवक्रमित वन भूमि हो और वह किसी टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा न हो। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय बाघ संरक्षण और प्राकृतिक आवागमन को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने का निर्देश

अदालत ने सभी राज्यों से मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर तत्काल प्रभाव से कदम उठाने को कहा है। ऐसे मामलों में हर मानव मृत्यु पर 10 लाख रुपये का अनिवार्य एक्स-ग्रेशिया भुगतान किया जाएगा। यह प्रावधान विशेष रूप से हाथियों से प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहतकारी माना जा रहा है।

टाइगर रिज़र्व प्रबंधन में सुधारों पर जोर

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी राज्य सरकारें छह महीनों के भीतर टाइगर कंज़र्वेशन प्लान (TCP) तैयार करें। इसके साथ ही—

O टाइगर रिज़र्वों में लम्बे समय से खाली पड़े पदों को शीघ्र भरा जाए,

O वेटरिनरी डॉक्टर और वाइल्डलाइफ़ बायोलॉजिस्ट के लिए अलग कैडर बनाया जाए, ताकि फील्ड स्तर पर वैज्ञानिक और पेशेवर संरक्षण कार्यों को गति मिल सके।

O फ्रंटलाइन वनकर्मियों के लिए बीमा और सुरक्षा कवच

ड्यूटी के दौरान मृत्यु या पूर्ण विकलांगता की स्थिति में किसी भी वन कर्मी अथवा दैनिक वेतनभोगी को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी फील्ड स्टाफ को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने को भी अनिवार्य किया है।

MSP आधारित फसल मुआवज़े की माँग हुई तेज

अदालत ने राज्यों को फसल क्षति सहित मानव और मवेशियों की मृत्यु के मामलों में सरल एवं समावेशी मुआवज़ा नीति लागू करने की सलाह दी है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में वन्यजीव प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने फसल क्षति मुआवज़ा MSP के आधार पर निर्धारित करने की माँग तेज कर दी है।

वर्तमान में धान की क्षति पर मात्र ₹9,000 प्रति एकड़ मुआवज़ा मिलता है, जबकि किसान को सामान्य परिस्थितियों में लगभग ₹65,000 प्रति एकड़ की प्राप्ति होती है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यूनतम मुआवज़े के कारण किसान फसल बचाने खेतों में जाने को मजबूर होते हैं, जहाँ हाथियों से आमने-सामने की घटनाओं में जान का जोखिम बना रहता है।

रायपुर स्थित वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को भेजे पत्र में कहा है कि MSP आधारित मुआवज़ा लागू होने से किसान खेतों की सुरक्षा के लिए रात में जाने को विवश नहीं होंगे, जिससे संघर्ष की घटनाएँ भी कम होंगी और सरकार का आर्थिक बोझ भी अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा। यह आदेश राज्यों के लिए वन्यजीव संरक्षण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में तत्काल और निर्णायक कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है।

Supreme Court: मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ मानने पर राज्यों से विचार करने को कहा, टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश


नई दिल्ली। 
TODAY छत्तीसगढ़  /  सुप्रीम कोर्ट ने मानव–वन्यजीव संघर्ष के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर गंभीरता से विचार करें, ताकि पीड़ितों को त्वरित राहत मिल सके। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी घटनाओं में अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो परिजनों को 10 लाख रुपये का अनिवार्य मुआवजा दिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मुआवजा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सीएसएस–आईडब्ल्यूडीएच योजना के तहत तय मानकों के मुताबिक होगा। अदालत ने राज्यों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि मुआवजा प्रक्रिया सरल, सुलभ और समयबद्ध हो।

टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश

अदालत ने बाघ संरक्षण से जुड़े मामलों पर भी विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि कोर या सघन बाघ आवास क्षेत्रों में टाइगर सफारी की अनुमति नहीं दी जा सकती। सफारी सिर्फ बफर ज़ोन में ऐसी बंजर या गैर-वन भूमि पर स्थापित की जा सकेगी, जो बाघ गलियारे के दायरे में न आती हो। इसके साथ ही सफारी चलाने वालों को अनिवार्य रूप से एक रिस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर भी संचालित करना होगा।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व पर सख्त रुख

उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में कथित अवैध निर्माण और बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई की शिकायतों पर गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। राज्य सरकार को तीन महीनों के भीतर सभी अवैध संरचनाएँ गिराने और कटे हुए पेड़ों की भरपाई करने के निर्देश दिए गए हैं। फैसले के अनुसार पारिस्थितिक पुनर्स्थापना की संपूर्ण प्रक्रिया की निगरानी केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) करेगी।

राज्यों के लिए छह महीने की समय-सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को छह महीने के भीतर मानव–वन्यजीव संघर्ष पर मॉडल दिशानिर्देश तैयार करने का आदेश दिया है। राज्यों को इन्हें आगे छह महीनों के भीतर लागू करना होगा। अदालत ने वन, राजस्व, पुलिस, आपदा प्रबंधन और पंचायती राज विभागों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

बफर क्षेत्र में प्रतिबंधित गतिविधियाँ

कोर्ट ने बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में कई गतिविधियों पर रोक लगाने की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इनमें वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषणकारी उद्योग, बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ, खतरनाक पदार्थों का उत्पादन और कम-उड़ान वाले विमानों का संचालन शामिल है।

रिसॉर्ट्स प्रतिबंधित, रात के पर्यटन पर प्रतिबंध, शांत क्षेत्र अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के पास पर्यटन के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए. इसके तहत पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स को केवल बफर्स ​​में ही अनुमति दी जाएगी और वाहनों की वहन क्षमता लागू की जाए. रात्रि पर्यटन पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी. आपातकालीन वाहनों को छोड़कर, मुख्य क्षेत्रों से गुजरने वाली सड़कें शाम से सुबह तक बंद रखी जाएं. इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ईएसजेड सहित पूरा टाइगर रिजर्व तीन महीने के भीतर ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत साइलेंस जोन के रूप में अधिसूचित किया जाए.

पर्यटन पर नियंत्रण और ‘साइलेंस ज़ोन’ की घोषणा

टाइगर रिज़र्व के नजदीक पर्यटन गतिविधियों के लिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण-अनुकूल रिसॉर्ट्स सिर्फ बफर ज़ोन में ही अनुमति योग्य होंगे और गाड़ियों की वहन क्षमता का सख्ती से पालन किया जाएगा। रात्रि पर्यटन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पूरे टाइगर रिज़र्व क्षेत्र — जिसमें ईको-सेंसिटिव ज़ोन भी शामिल है — को तीन महीनों के भीतर साइलेंस ज़ोन के रूप में अधिसूचित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाघ संरक्षण को प्राथमिकता देना अनिवार्य है, और पर्यटन तभी बढ़ाया जा सकता है जब वह पर्यावरण के अनुकूल और स्थानीय पारिस्थितिकी से सामंजस्यपूर्ण हो।

Short Story: धारीदार सन्नाटा, उस दिन जंगल की चुप्पी अलग थी


TODAY
 छत्तीसगढ़  / 
जंगल के दिल में समाई वह संकरी सड़क हमेशा की तरह शांत थी—इतनी शांत कि लगता था पूरी दुनिया अपनी साँसें थामे खड़ी है। पेड़ों की लंबी छायाएँ सड़क पर जाल की तरह फैल रहीं थीं, और हवा में पत्तों, मिट्टी और धूप की मिली-जुली सुगंध तैर रही थी।

इसी रास्ते से रोज़ लौटता था चरवाहा रमू, अपनी काली, भारी भैंसों के साथ। वह इस पगडंडी के हर मोड़, हर उभार को जानता था—मानो यह रास्ता उसके भीतर ही बसा हो। भैंसें भी बिना कहे- सुने उसकी चाल को समझतीं, जैसे वर्षों की संगत ने उन्हें एक ही लय में बाँध दिया हो।

लेकिन उस दिन जंगल की चुप्पी अलग थी।

जैसे हवा कहीं थम गई हो।

जैसे कोई अनदेखी आँखें कहीं पास से देख रही हों।

और फिर, मोड़ के पास अचानक तीन धारीदार बिल्लियाँ सड़क पर प्रकट हुईं।

न शोर, न हलचल।

बस तीन सधी हुई, चिकनी आकृतियाँ—धूप में चमकती धारियों के साथ। उनके कान आगे को तने थे, पूँछें फड़कना भी भूल गई थीं, और उनकी जिज्ञासु आँखें भैंसों के झुंड पर टिकी थीं।

रमू एकदम रुक गया।

भैंसें उसके पीछे सटकर खड़ी हो गईं, जैसे किसी अदृश्य संकेत पर। उनकी साँसों की भारी गूँज उन बिल्लियों की स्थिरता के सामने एक अलग ही संगीत बना रही थी।

कुछ क्षण ऐसे बीते जो समय की पकड़ में नहीं आते—

दो अलग दुनियाएँ आमने-सामने खड़ी थीं।

एक ओर वे बिल्लियाँ—जन्मजात शिकारी—जिन्हें शायद ही कभी ऐसे शांत, संगठित जुलूस का सामना करना पड़ा होगा।

दूसरी ओर रमू और उसका झुंड—आदत, अनुशासन और एक-दूसरे पर भरोसे से बंधा परिवार।

बिल्लियाँ भैंसों को ऐसे देख रही थीं जैसे किसी पहेली को सुलझा रही हों।

क्या ये शिकार हैं?

नहीं।

क्या ये खतरा हैं?

शायद।

या फिर बस एक असामान्य दृश्य—जो जंगल की अपनी दिनचर्या में बाधा डाल रहा है।

रमू के दिल की धड़कनें गूँजने लगीं।

उसे पता था कि ये बिल्लियाँ कुछ भी कर सकती हैं—लेकिन उतना ही यह भी कि भैंसें उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगी।

फिर अचानक, धूप में चमकती उनकी धारियाँ सरक गईं—चुपचाप—जंगल के घने झुरमुटों में वापस।

जैसे वे कभी आई ही न हों।

रमू ने गहरी साँस छोड़ी—एक जो राहत से भरी थी, और एक जो उन रहस्यमयी जंगल-जीवों के प्रति सम्मान से।

उसने धीरे से हाथ हिलाया, और भैंसें फिर चल पड़ीं—सड़क पर, धूप पर, और अपने रोज़ के जीवन की ओर।

सन्नाटा लौट आया, पर वह वैसा नहीं था।

उसमें अब एक कहानी थी—एक असंभव, ठहरी हुई मुठभेड़ की।

और रमू जानता था कि वह इस पल को उम्र भर याद रखेगा—जब जंगल ने एक क्षण के लिए अपने रहस्य उसके सामने खोल दिए थे। 

(साभार - @_planettiger_  credit @harsh_gate_photography)

वन्यजीव संरक्षण की नई पहल: जंगलों के पास रह रहे कुत्तों का होगा व्यापक टीकाकरण


 भोपाल।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  चीतों और बाघों को कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) जैसे खतरनाक संक्रमण से बचाने के लिए मध्यप्रदेश वन विभाग ने एक विशेष पहल शुरू की है। विभाग ने निर्णय लिया है कि जंगलों के आसपास रहने वाले सभी पालतू और आवारा कुत्तों का बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा, ताकि यह वायरस वन क्षेत्र में प्रवेश न कर सके। 

वन अधिकारियों के अनुसार CDV बड़े मांसाहारी जंतुओं—खासकर बाघों, तेंदुओं और चीतों—के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। यह वायरस संक्रमित कुत्तों के संपर्क से वन्यजीवों तक पहुँच सकता है और कई बार जानलेवा भी साबित होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आसपास के क्षेत्रों में कुत्तों का टीकाकरण वायरस के प्रसार को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है।

प्रदेश में हाल के वर्षों में वन्यजीव संरक्षण को लेकर कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें चीतों के पुनर्वास कार्यक्रम भी शामिल हैं। ऐसे में इस नए अभियान को जैव-विविधता की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। वन विभाग ने स्थानीय निकायों और ग्रामीण समुदायों से भी अभियान में सहयोग करने की अपील की है, ताकि अधिक से अधिक कुत्तों को टीका लगाया जा सके और जंगलों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखा जा सके।

हाथियों के हालात पर सिंघवी ने जताई चिंता, पूछा क्या हाथियों को पानी में डुबो-डुबो के मारेगा वन विभाग ?

 


रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य में 3 नवंबर की रात एक खुले कुएं में एक शावक सहित तीन हाथियों के गिरने की घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने इसे वन विभाग की घोर लापरवाही बताया। हालांकि वन विभाग ने बड़ी ही सूझ-बुझ के साथ कुँएं से हाथियों को बाहर निकालने में सफलता पाई है। वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमी सिंघवी ने बताया कि वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए और सूखे कुओं को बंद करने को लेकर वे 2018 से मांग कर रहे हैं। इसको गंभीरता से लेकर भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी कार्यवाही करने के लिए वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ शासन को पत्र लिखा था। बाद में सिंघवी के निवेदन पर भारत सरकार ने देश के सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को खुले हुए कुओं को बंद करने के लिए 2022 में आदेश दिया था।

वन विभाग ने राज्य बजट में कोई प्रस्ताव नहीं भेजा

सिंघवी ने बताया कि पिछले सात साल से वन विभाग ने इन कुओं को सुरक्षित करने हेतु राज्य शासन से बजट प्राप्त करने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि प्रदेश में वन क्षेत्र और उसके आसपास खुले और सूखे कुओं की संख्या पचीस हजार से ज्यादा होने का अनुमान है। वर्ष 2024 में कैंपा फंड से सिर्फ 450 खुले कुओं पर सुरक्षा दीवार बनाकर सुरक्षित किया गया, वह भी सिर्फ कांकेर जिले में जब कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने कोई कुआँ बंद नहीं करवाया।

एक माह पहले भी लिखा पत्र

सिंघवी ने बताया कि कीचड़ युक्त डबरी में हाथियों के फंसने को लेकर, कीचड़ युक्त डबरी, सूखे कुओं और खुले कुओं को बंद करने को लेकर उन्होंने राज्य शासन को 25 सितम्बर को पत्र लिखा था, जिसे शासन ने तो गंभीरता से लिया गया, परंतु बाद में विभागीय अधिकारियों ने कोई रूचि नहीं की दिखाई। 

वर्ष 2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी।

2017 की घटना से कोई सबक नहीं लिया

2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी। उसे क्रेन से निकाला गया, परंतु तत्काल ही उसकी मौत हो गई। सिंघवी ने आरोप लगाया कि इस घटना के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। हर साल कई भालू, तेंदुए, लकड़बग्घे और अन्य जानवर इन कुओं में गिरकर या तो मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं, जिन्हें बाद में आजीवन जू में कैद रहना पड़ता है। शायद वन विभाग को खुशी मिलती हो कि जू में जानवरों की संख्या बढ़ रही है। 

सिंघवी ने वर्ष 2018 में भी पत्र लिखा 

झूमर दिखाने के लिए भटक गया है वन विभाग

सिंघवी ने वन विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि वन्य प्राणियों के रक्षक कहलाने वाले अधिकारी वन्य प्राणियों के लिए कार्य करने की बजाय अब इको टूरिज्म बढ़ावा देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कांगेर वेली नेशनल पार्क में लाखों सालों से सुरक्षित झूमर और ग्रीन नामक गुफाएं, जिनकी जैव विविधता मानव हस्तक्षेप से नष्ट हो सकती है, उनकी रक्षा करने की बजाय विभाग उन गुफाओं को इको टूरिज्म के नाम से आम जनता के लिए खोलने की तैयारी में मेहनत और ज्यादा ध्यान दे रहा है। जनता को गुमराह करने के लिए और पब्लिसिटी पाने के लिए दावा कर रहा है कि अचनाकमार टाइगर रिजर्व में कान्हा से भी ज्यादा टाइगर दिखायेंगे।

*पिक्चर बनाने में ज्यादा ध्यान

सिंघवी ने चर्चा में बताया कि बलौदा बाजार वनमंडल, जहां चार हाथियों के कुएं में गिरने की घटना हुई है, उसी वनमंडल के कसडोल क्षेत्र के सिद्ध बाबा झरना के पास वन विभाग के संरक्षण तले दस दिन पहले एक निजी यूनिवर्सिटी ने अकादमिक कार्यों की अनुमति लेकर सूत्रों के अनुसार फिल्म निर्माण का कार्य किया। तब वहां हाथी विचरण कर रहे थे और जानकारी के अनुसार हाथियों की शूटिंग करने के लिए पटाखे फोड़े गए। वन विभाग की जानकारी में सब कुछ रहा, पर अधिकारी आंखें बंद करके बैठे रहे।*

कब तक वन्य प्राणियों कुओं में गिरेंगे 

सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से पूछा कि उन्हें प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खुलासा करना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता इको-टूरिज्म है या वन्यप्राणियों की रक्षा? अगर वन्यप्राणियों की रक्षा करना है, तो उन्हें बताना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए, सूखे कुएं और खतरनाक डबरियां कब तक वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित हो जायेंगी? 

मंडला: कान्हा नेशनल पार्क में जंगल सफ़ारी सीज़न का आज से शुभारंभ


 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  बैहर, 1 अक्टूबर। मध्य प्रदेश के मंडला ज़िले में स्थित कन्हा नेशनल पार्क में जंगल सफ़ारी सीज़न की शुरुआत आज 1 अक्टूबर से हो गई है। बुधवार को खटिया गेट पर आयोजित कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री सम्पतिया उइके ने हरी झंडी दिखाकर पर्यटकों के वाहनों को रवाना किया। इस अवसर पर कन्हा नेशनल पार्क का प्रबंधन दल भी मौजूद रहा। इस सीज़न में पर्यटक कन्हा की वादियों में बाघ, बारहसिंगा समेत कई दुर्लभ वन्यजीव प्रजातियों को नज़दीक से देखने का अनुभव ले सकेंगे। पार्क प्रबंधन के मुताबिक पर्यटन की यह शुरुआत न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाएगी, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोज़गार और आर्थिक गतिविधियों को भी नया बल देगी। 

आपको बता दें कि 30 जून को हर साल कान्हा, बांधवगढ़,पेंच समेत देश के अधिकाँश राष्ट्रीय उद्यान तीन माह के लिए बंद हो जाते हैं। नये सीजन की शुरुआत 1 अक्टूबर से होती है, आज से देश के सभी टाईगर रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान (छत्तीसगढ़ को छोड़कर) पर्यटकों के लिए खोल दिए गए हैं। 

🌿 कान्हा नेशनल पार्क की विशेषताएं

स्थापना: 1955 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत आया।

स्थान: मध्यप्रदेश के मंडला और बालाघाट ज़िलों में फैला।

क्षेत्रफल: लगभग 940 वर्ग किलोमीटर का कोर एरिया और 1,067 वर्ग किलोमीटर का बफर ज़ोन।

मुख्य आकर्षण:

बाघ, तेंदुआ और जंगली कुत्ता (ढोल), भालू, गौर, साम्भर, गिद्ध, के अलावा कई शिकारी वन्यजीव।

विश्व प्रसिद्ध बारहसिंगा (Swamp Deer) की विशेष प्रजाति, जो केवल कान्हा में पाई जाती है।

वनस्पति: साल, बांस और मिश्रित वनों का अनोखा विस्तार।

पर्यटन ज़ोन: खटिया, किसली, मुक्की और सरही मुख्य गेट हैं।

विशेष पहचान: "जंगल बुक" के लेखक रुडयार्ड किपलिंग की कहानियों का प्रेरणास्थल माना जाता है।

अचनाकमार टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या दोगुनी, WWF INDIA की रिपोर्ट में सामने आई खुशखबरी

 ATR:  2017 में 5 से बढ़कर 2024 में 10 बाघ

TODAY छत्तीसगढ़  /  रायपुर। बाघ संरक्षण की दिशा में छत्तीसगढ़ के लिए बड़ी उपलब्धि दर्ज हुई है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया ने “रिकवरिंग स्ट्राइप्स – अ पॉपुलेशन स्टेटस ऑफ टाइगर्स एंड देयर प्रे इन अचनाकमार टाइगर रिजर्व, छत्तीसगढ़” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें अचनाकमार टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में जहां अचनाकमार में केवल 5 बाघ दर्ज किए गए थे, वहीं 2024 तक यह संख्या बढ़कर 10 हो गई है। इनमें पड़ोसी बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिजर्व से आए बाघ भी शामिल हैं। यह स्वस्थ परिदृश्य-स्तरीय कनेक्टिविटी का संकेत है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के वरिष्ठ प्रोजेक्ट अधिकारी उपेंद्र दुबे ने बताया कि लगभग 15 वर्षों में पहली बार अचनाकमार में प्रजनन योग्य आयु वाले नर-मादा बाघ मौजूद हैं। संतुलित लैंगिक अनुपात और शावकों की मौजूदगी रिजर्व के लिए स्थायी जनसंख्या वृद्धि का बड़ा मोड़ साबित हो सकती है। 

कनेक्टिविटी है अहम - 

अचनाकमार का मध्य भारत में रणनीतिक स्थान इसे टाइगर कॉरिडोर नेटवर्क का अहम हिस्सा बनाता है, जो कान्हा और बांधवगढ़ जैसे बड़े टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है। यह कनेक्टिविटी बाघों की आवाजाही, आनुवंशिक विविधता और दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है।

 सीसीएफ (वन्यजीव) व फील्ड डायरेक्टर मनोज कुमार पांडेय ने बताया कि अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों से बाघों और उनके शिकार प्रजातियों की घनत्व का आकलन किया गया। “यह रिपोर्ट अचनाकमार में प्रभावी प्रबंधन और संरक्षण रणनीतियां बनाने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराती है।”

सामूहिक प्रयासों का नतीजा - 

अध्ययन में शिकार प्रजातियों की मजबूत आबादी की अहमियत भी रेखांकित की गई है, क्योंकि यही बाघों की दीर्घकालिक मौजूदगी का आधार है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया और छत्तीसगढ़ वन विभाग लंबे समय से अचनाकमार में आवास प्रबंधन, वनकर्मियों के प्रशिक्षण और स्थानीय समुदायों की सहभागिता जैसे कार्यक्रम चला रहे हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष इन प्रयासों की सफलता को दर्शाते हैं और यह भी साबित करते हैं कि विज्ञान-आधारित रणनीति और सतत सहयोग से ही भारत में बाघों का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है।


भालू के हमले में युवक घायल, फसल की रखवाली बदल गई डरावनी कहानी


TODAY छत्तीसगढ़  /  पत्थलगांव (जशपुर), 26 सितंबर 2025। रायगढ़ जिले के कापू थाना क्षेत्र के पारेमेर गांव में गुरुवार शाम को एक दिल दहला देने वाली घटना हुई। जंगली भालू के हमले में कुंवर साय (30) गंभीर रूप से घायल हो गए। युवक खेत में फसल की रखवाली के लिए आग जलाकर बैठे थे, तभी भालू ने अचानक उन पर झपट्टा मारा। हमले में युवक के पैरों और हाथों पर गहरी चोटें आईं। भालू उन्हें मृत समझकर जंगल की ओर भाग गया।

परिजन तुरंत युवक को 108 एंबुलेंस से पत्थलगांव सिविल अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने बताया कि चोटें गंभीर हैं, कई टांके लगाए गए हैं और एंटी-रेबीज इंजेक्शन का कोर्स शुरू किया गया है। बीएमओ डॉ. जेम्स मिंज ने कहा, "युवक की हालत स्थिर है, लेकिन निगरानी में रखा गया है।"

मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती समस्या - 

रायगढ़ जिले के कापू क्षेत्र में जंगल और खेती की सीमा नजदीक होने के कारण भालू और अन्य जंगली जानवर गांवों में प्रवेश कर रहे हैं। मानसून के बाद फसल पकने के समय भोजन की तलाश में यह जानवर खेतों में आ जाते हैं। पारेमेर गांव में पिछले एक महीने में तीन बार भालू की आवाजाही देखी गई। स्थानीय ग्रामीणों ने वन विभाग को कई बार शिकायत की, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

विशेषज्ञों की चेतावनी - 

वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, रात में अकेले जंगल या खेत में न जाएं, समूह में काम करें, भालू दिखाई देने पर शोर मचाएं और वन विभाग को सूचित करें। बच्चों और बुजुर्गों को विशेष सतर्क रहने की सलाह दी गई है। यह घटना ग्रामीण इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष की गंभीर समस्या को उजागर करती है और प्रशासन से तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

सिमिलीपाल का ब्लैक टाइगर केवल वन्य जीवन का चमत्कार नहीं है - प्रसेन्जीत


 TODAY छत्तीसगढ़  /   ये तस्वीर एक ऐसे बाघ की है, जो इतना दुर्लभ है कि पूरी दुनिया में सिर्फ़ एक ही जंगल में मौजूद है। तस्वीर में दिखाई देते काले रंग के बाघ की तस्वीर एक फोटोग्राफ़र के असीम धैर्य का प्रतीक है। ओडिशा के सिमिलीपाल टाइगर रिज़र्व के घने जंगलों में, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफ़र प्रसेन्जीत यादव ने 120 दिन इस सपने को पूरा करने में बिताए, उस जानवर की तस्वीर लेने के लिए जिसे यहाँ के लोग भी शायद ही देख पाते हों।

महीनों की खामोशी और कई असफल प्रयासों के बाद, उन्होंने आखिरकार एक स्यूडो-मेलानिस्टिक बाघ, जिसे अक्सर ब्लैक टाइगर कहा जाता है, की तस्वीर ली। यह जादुई पल अब अक्टूबर 2025 के नेशनल जियोग्राफिक के कवर पर है, और यह दुनिया में पहला अवसर है।

प्रसेन्जीत ने NatGeo को बताया:

 “ये ब्लैक टाइगर बहुत शर्मीले थे। वे मेरे कैमरा ट्रैप से दूर रहते थे और इंसानी मौजूदगी को सूंघ सकते थे। एक को देखने में मुझे दो महीने लग गए।” सिमिलीपाल, जो 2,700 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, दुनिया का एकमात्र स्थान है जहाँ ये दुर्लभ बाघ पाए जाते हैं। लगभग 30 बाघों में से, आधे से ज्यादा में एक अनोखी आनुवंशिक बदलाव होती है, जो उनके काले धारियों को जोड़कर उनका अद्भुत काला पैटर्न बनाती है।

प्रसेन्जीत यादव के लिए यह सिर्फ़ एक तस्वीर नहीं थी, बल्कि एक सपना था। उन्होंने कहा: “बारह साल पहले मैंने इस कहानी को बताने का सपना देखा था। आज, वह सपना National Geographic Magazine International के कवर पर है।”

सिमिलीपाल का ब्लैक टाइगर केवल वन्य जीवन का चमत्कार नहीं है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे देश के जंगल इन जीवों का घर हैं और उनकी सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है। [ साभार / द बेटर इण्डिया ] {Credits: प्रसेन्जीत यादव [@prasen.yadav on IG], National Geographic}


दुर्लभ प्रवासी Caspian plover की तस्वीरें खींचने का सेन्ट्रल इंडिया में पहला रिकार्ड सत्यप्रकाश के नाम

 


TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर / अकल्पनीय मोहनभाठा, कहने को तो बंजर भूमि है मगर प्रवासी, अप्रवासी पक्षियों के अलावा अन्य जीव जंतुओं के लिए जन्नत से कम नहीं है । एक ऐसी भूमि, जो किसी को खाली हाथ नहीं लौटाती । उसी जन्नत से वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने कुछ तस्वीरें खींची हैं । तस्वीर भी किसी आम पक्षी की नहीं बल्कि बेहद दुर्लभ प्रवासी कैस्पियन प्लोवर की। इस पक्षी का मोहनभाठा में दिखाई देना किसी आश्चर्य से कम नहीं, अनुकूल परिस्थितियां देखकर यह पक्षी मोहनभाठा में उतरा। 

       Caspian plover (Anarhynchus asiaticus)  इस बेहद ख़ास और दुर्लभ पक्षी का छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे मध्य भारत ( central India) में यह पहला रिकॉर्ड है जब इसे वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने तस्वीरों और वीडियो में रिकार्ड किया है। इस पक्षी के बिलासपुर जिले की सरहद में उतरने की खबर जब पक्षी मित्रों के बीच  फैली तो मोहनभाठा में पक्षी प्रेमियों और फोटोग्राफरों का सुबह से देर शाम तक मजमा लगा रहा । 

 सेन्ट्रल इंडिया में दुर्लभ प्रवासी कैस्पियन प्लोवर की तस्वीरें खींचने का पहला रिकार्ड वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय के नाम हो गया है । यह पक्षी भारत में वाक़ई बेहद दुर्लभ प्रवासी  माना जाता है। आमतौर पर यह यहाँ सिर्फ़ सर्दियों या प्रवास के दौरान थोड़े समय के लिए दिखाई देता है। भारत में इसकी रिपोर्ट बहुत ही कम होती है, इसलिए पक्षीप्रेमियों के लिए यह एक "स्पेशल साइटिंग" होती है। यह पक्षी मध्य एशिया (विशेषकर कैस्पियन सागर के आसपास, रूस, कज़ाख़िस्तान, मंगोलिया) के खुले घास के मैदानों और स्टेपीज़ (steppes) में पाया जाता है। सर्दियों में यह अफ्रीका (पूर्वी और दक्षिणी भाग) तथा भारतीय उपमहाद्वीप तक प्रवास करता है।


 अब तक भारत में -  इस दुर्लभ प्रवासी पक्षी को दिल्ली (Delhi),  गोवा (Goa), महाराष्ट्र (Maharashtra), पुडुचेरी (Pondicherry), तमिलनाडु, केरल, मुंबई क्षेत्र (Uran, Navi Mumbai) और गुजरात (Little Rann of Kutch, Surendranagar) 2007, और 2025 में रिकार्ड किया गया है।

CHHATTISGARH: मोहनभाठा में गोह का शिकार, वन्यप्रेमी की शिकायत पर 8 आरोपी गिरफ्तार

  


 TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर / जिले का मोहनभाठा, एक ऐसा चारागाह जहां भूमि का अवैध अधिग्रहण । शिकारियों की बेखौफ चहलकदमी । मुरूम का अवैध उत्खनन । पेड़ों की कटाई के साथ साथ असामाजिक तत्वों की सुरक्षित पनाहगाह । कुछ समय पहले तक पर्यावरण और पक्षी प्रेमी इसे पक्षियों की स्वर्ग स्थली मानते थे, साथ कुछ अन्य जीव जंतुओं के रहवास का गढ़ । मोहनभाठा जिसने अपने भीतर जैव विविधता की सम्पन्नता को समेट रखा था वो अब सिमटने की कगार पर है । ज़मीन खोरों के साथ साथ शिकारियों का खुलेआम यहां बढ़ता दखल सब कुछ नष्ट करने पर तुला है ।  जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं का पायजामा सिलने में व्यस्त है और वन विभाग को जैव विविधता के अलावा पक्षियों की सम्पन्नता दफ्तर में रखी फाइलों में दिखाई दे जाती है । 

       मोहनभाठा में कल (गुरुवार, 19 जून 2025) दोपहर 1 बजकर 40 मिनट पर तीन लड़के दिखाई पड़े, एक के हाथ में डंडा, दूसरा के पास सब्बल और तीसरे की पीठ पर बोरी । कम उम्र लेकिन बंजर भूमि पर कुछ तलाशती नजरों को हमने पहले पढ़ा फिर उनकी हरकतों को देख हमारा (साथ में प्राण चढ्ढा) शक गहराया । पास जाकर हमने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, कुछ ही देर में उन्हें हमसे किसी तरह का खतरा न होने का यकीन हो गया । उन्होंने बताया कि वे कोटा के पास नवागांव के रहने वाले हैं । गोह की तलाश में भटक रहे हैं । बोरे में दो गोह को पकड़ रखा है, कहने पर उन्होंने बाहर निकालकर दिखाया भी । इन मासूम से दिखाई देने वाले जीव हत्यारों की करतूत को उजागर करने के लिए तस्वीर जरूरी थी, लिहाजा जैसा हमने चाहा वैसा साक्ष्य तस्वीर की शक्ल में जुटा लिया । अब तक हमको सिर्फ इसी एक गिरोह की ख़बर थी, पूछने पर उन्होंने बताया इसे मारकर खाते हैं और इसका कुछ अंग दवा वगैरह के काम आता है । गोह की चमड़ी के भी बाजार में खरीददार है । 

आपको बता दें कि मॉनिटर लिज़ार्ड छिपकलियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित प्रजातियां हैं और अनुसूची I (एक) के तहत वर्गीकृत हैं। अधिनियम के अनुसार मॉनिटर छिपकली को मारना, पकड़ना या फिर उसकी बिक्री एक संज्ञेय अपराध है।  

      इन लोगों से बातचीत के दौरान तस्वीर लेना जितनी प्राथमिकता थी उतनी ही जरूरत इस गिरोह को पकड़वाने की । मैने बिलासपुर DFO को मोबाईल पर संपर्क करना चाहा, नंबर बंद मिला । इसके बाद CCF बिलासपुर श्री मिश्रा को, नंबर इंगेज । इसके बाद मैने तत्काल WWF के उपेन्द्र दुबे जी को सूचना देकर संबंधितों तक ख़बर भेजने को कहा ।  इस बीच इस गिरोह की मौजूदगी यहीं रही, हम इनसे अभी नज़र हटा भी नहीं पाये थे कि दूसरा गिरोह दिखाई दे गया । इसमें भी अवयस्क लड़के तीन की संख्या में । पीठ पर बोरी, सब्बल, फावड़ा और डंडा । हमने फिर वही कहानी दोहराई, इनके पास कुल तीन गोह थी । हम मामले की गंभीरता को समझ रहे थे लेकिन जिस विभाग को गंभीरता दिखानी थी वो चैन की बंसी बजा रहा था । मौके पर हमने छह आरोपी और पांच गोह (जिंदा हालत में) मिलने की बात फिर से उपेंद्र जी को बताई, उन्होंने बताया सभी को सूचना दे दी गई है । 

        हमने करीब डेढ़ घंटे तक उन शिकारियों पर न सिर्फ नजर बनाए रखी बल्कि वन अमले के आने की बाट भी जोहते रहे । वन विभाग की टीम (तखतपुर वन परिक्षेत्र) पूरे ढाई घंटे बाद आई लेकिन शिकारी तब तक अपना काम करके इलाका छोड़ चुके थे । मौके पर तखतपुर रेंज अफसर के अलावा दस से अधिक की संख्या में वन अफसर, कर्मचारी पहुंचे  लेकिन पहुंचने वालों ने सूचना की गंभीरता को न समझा और ना ही उन्हें विलंब से आने का कोई अफसोस रहा । हमने उन शिकारियों की तस्वीरें, उनसे हासिल जानकारी उन्हें मुहैय्या करा दी । 

       इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि ये शिकारी आखिर कब से इस इलाके में सक्रिय है ? इन शिकारियों के पीछे कोई बड़ा गिरोह या नेटवर्क तो तस्करी का काम नहीं कर रहा ? वन विभाग की टीम सैकड़ों बार की शिकायतों के बावजूद मोहनभाठा का रुख क्यूं नहीं करती ? जिला प्रशासन आखिर भूमि के अवैध अतिक्रमण पर खामोश क्यूं है ? आखिर मुरूम के अवैध उत्खनन को यहां किसका संरक्षण है ?

अब जरा इस गोह के बारे में भी जान लीजिए ....

गोह (Monitor lizards) का नाम आते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है और मस्तिष्क में बड़ी भयानक जहरीली छिपकली की डरावनी तस्वीर कौंध जाती है। गोहेरा, घ्योरा, गोह, विषखोपड़ी आदि नामों से जाना जाने वाला यह प्राणी बेहद शर्मीला सरीसृप है। यह एक बड़ी छिपकली के परिवार से आता है जिसे ‘मोनिटर लिज़र्ड’ कहते हैं।

 भारत में गोह (Monitor lizards) की चार प्रजातियां मिलती हैं बंगाल गोह, पीली गोह, जल गोह और रेगिस्तानी गोह। पीली गोह पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल में पाई जाती है। यह पानी के पास दिखाई देती है व पेड़ पर नहीं चढ़ सकती। जल गोह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी छिपकली है जो आसाम, पश्चिम बंगाल एवं अंडमान के जलीय इलाकों में होती है और पेड़ों पर चढ़ने में माहिर है। रेगिस्तानी गोह राजस्थान के रेतीले इलाकों में रहती है।

जहरीली नहीं है कोई भी प्रजाति - 

अधिकतर नजर आने वाली नस्ल ‘बंगाल गोह’ है जो लगभग समस्त भारत में मिलती है। गोह के छोटे बच्चों को ‘गोहेरा’ कहते हैं। यह विष रहित सरीसृप है। दरअसल भारत में कोई भी छिपकली की प्रजाति विषैली नहीं है। गोह के मुंह में तो विषदंत भी नहीं होते। वयस्क गोह का वजन पांच से सात किलो, लम्बाई डेढ़ से दो मीटर और उम्र 20-22 वर्ष तक होती है। गोह तकरीबन हर तरह के वातावरण में रह सकती है। आप इसे रेगिस्तान, पहाड़, नदी नालों व जंगलों में देख सकते हैं। गोह की त्वचा सख्त है जो इसे शिकारियों, चट्टानों और कंटीले इलाकों में नुकसान से बचाती है। गोह के बारे में अंधविश्वास ऐसे-ऐसे भी हैं कि इसके मांस और पूंछ के तेल के सेवन से शक्ति और पौरुष मिलता है। 

इन्सानों को नहीं काटते - 

गोह (Monitor lizards) घात लगाकर हमला करने के बजाय पीछा करके शिकार करते हैं। गोह बहुत तेज़ दौड़ते हैं। गोह रात में सोते हैं और दिन में शिकार करते हैं। ये भोजन की उपलब्धता के अनुसार अपनी सीमा बदल लेते हैं। गोह आंखें नहीं झपकती और उनकी दृष्टि बहुत तेज़ होती है। गोह कभी इन्सानों को नहीं काटते। काटने के मामले तभी होते हैं जब लोग इसे पकड़ने या मारने का प्रयास करते हैं।

क्यों है विलुप्त होने की कगार पर - 

एक जानकारी के लिहाज से हम कह सकते हैं कि आज भारत में गोह (Monitor lizards) प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। कारण हैं मनुष्य का लालच, अंधविश्वास, और कुदरती निवास का हनन। खाल से बहुमूल्य चमड़ा, मांस से बीमारियों का इलाज एवं खून और हड्डियों से कामोत्तेजक औषधि। पर सबसे अधिक बिकता है इस अभागे प्राणी के नर जननांग। अंधविश्वास है कि नर गोह के जननांग को सुखा कर चांदी के डिब्बे में रखने से घर में लक्ष्मी आती है। इसको ‘हथा जोड़ी’ नाम से पेड़ की जड़ बता कर बेचा जाता है। यह करोड़ों का गोरखधंधा है। वन्य जीव हत्यारों ने साज़िश के तहत यह भ्रांति फैलाई गई कि गोह जहरीले हैं व इसके काटते ही तुरन्त मृत्यु हो जाती है। बाकी काम गोह की शक्ल, चाल और सांप जैसी लम्बी चिरी हुई नीली जीभ पूरा कर देती है। वास्तव में ये जीभ के जरिये सूंघते हैं। वहीं गोह की खाल का इस्तेमाल ‘सेरजस’ (बोडो सारंगी) और ‘डोटारस’ (असम, बंगाल एवं पूर्वी राज्यों के वाद्य यंत्र) और ‘कंजीरा’ को बनाने में भी किया जाता है। ढोलक भी इसके चमड़े से बनते हैं।

संकट की वजह गलत धारणा - 

विश्व में बनने वाले हाथ घड़ी के पट्टे का व्यापार 2500 करोड़ सालाना है जिसमें 90 फीसदी गोह और बाकी छिपकलियों के चमड़े से बनते हैं। औसतन भारत में एक वर्ष में पांच लाख गोह मारी जाती हैं। गलत धारणा के शिकार एक निर्दोष प्राणी का ऐसा हाल निंदनीय है। वहीं राजस्थान के ऊंट पालक ऊंटों को कथित मजबूत बनाने के लिए उन्हें गोह का रस पिलाते हैं। लोग नहीं जानते कि यह जीव जैव विविधता का प्रहरी है व खेतों से कीड़े-मकोड़े आदि खाकर अनाज बचाते हैं।

प्राचीन संस्कृतियों में गोह - 

प्राचीन काल से ही गोह (Monitor lizards) और मनुष्यों का घनिष्ठ संबंध रहा है। बहुत सी संस्कृतियों में गोह को विशिष्ट महत्व प्राप्त है। दक्षिण भारत के विख्यात मीनाक्षी मंदिर में देवी मीनाक्षी का मुख्य प्रतीक गोह है। इसका सिर खतरे से सुरक्षा प्रदान करता है, शरीर लंबे जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। कई मूर्तियों में गोह को देवी पार्वती के वाहन के रूप में भी दर्शाया गया है। अल्लीपुरम में स्थित वेंकटेश्वर मठ के पुराने मंदिर में भगवान मलयप्पा स्वामी का गोह अवतार स्थापित है। बैंकॉक के एक थाई बौद्ध मंदिर में गौतम सिद्धार्थ के अवतार का एक अद्भुत चित्रण जल गोह के सिर से सुशोभित है। आइए जनजागरूकता के जरिये अपने अस्तित्व से जूझते इस निर्दोष, निरीह एवं किसान मित्र जीव को बचाएं।

400 किमी चलकर ATR आई बाघिन : सिर्फ बाघों का आवास नहीं, टाईगर कॉरिडोर्स को भी बचाना होगा - रजनीश सिंह


 बिलासपुर /
  TODAY छत्तीसगढ़  /  मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में स्थित पेंच नेशनल पार्क की एक बाघिन नए ठिकाने की तलाश में छत्तीसगढ़ राज्‍य के अचानकमार टाइगर रिजर्व पहुंच गई है. साल 2022 के अखिल भारतीय बाघ ऑकलन के दौरान यह बाघिन सिवनी पेंच नेशनल पार्क के कर्माझिरी और घाटकोहका परिक्षेत्र में लगे कैमरों में दर्ज हुई थी. दो साल बाद यह बाघिन की लोकेशन अचानकमार टाइगर रिजर्व में पाई गई है.

भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान टाइगर सेल के वैज्ञानिकों ने अचानकमार टाइगर रिजर्व के द्वारा उपलब्‍ध कराए गए बाघिन के फोटोग्राफ का मध्‍य भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों के टाइगर के डॉटाबेस से मिलान कर किया. जिसमें पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन से धारियों के मिलान के आधार पर पुष्टि की गई. अचानकमार प्रबंधन ने बताया कि यह बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में 2023 शीत ऋतु के पहले से ही देखी जा रही है.

पेंच से चलकर अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन, रास आ रही ATR की आबो हवा 

यह खबर सभी वन्‍यजीव प्रेमियों के लिए हर्ष और गौरव का क्षण हैं. क्‍योंकि बाघिन ने लगभग 400 किमी से अधिक की दूरी तय करके अपने नए आवास में गई है. यह खोज इस दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है कि इससे आमजन को कॉरीडोर के संरक्षण की आवश्‍यकता और महत्‍व को समझाने में मदद मिलेगी.

माना जा रहा है कि बीच का एक साल वह कान्हा के जंगल में रही होगी। जिसने एक-दो और 10 नहीं बल्कि पूरे 400 किमी का सफर तय कर यहां पहुंची है। इस बाघिन ने मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से 2022 में अपना सफर शुरु किया था और 2023 में इसे अचानकमार टाइगर रिजर्व में देखा गया और तब से ये बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण कर रही है। अचानकमार टाइगर रिजर्व में इसकी तस्वीर सबसे पहले शीतऋतु की गणना के दौरान सामने आई।

दूसरे टाइगर रिजर्व से अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघों का आना बेहतर संकेत है। अभी बिलासपुर से कान्हा को बाघ कारीडोर माना जा रहा था। लेकिन, इसका दायरा बढ़कर पेंच तक पहुंच गया। अचानकमार के अलावा भी ओडिशा, महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्व से भी छत्तीसगढ़ में बाघ पहुंच रहे हैं। वन विभाग को अब कारीडोर पर बेहतर काम करना होगा।

इस मामले में पेंच टाईगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह से बातचीत हुई, रजनीश सिंह का कहना है - 

"बाघों की फितरत होती है आवास और जीवन साथी की तलाश में अक्सर वे बहुत दूर-दूर तक सफर कर लेते हैं। करीब 400 किमी चलकर पेंच से अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन इस बात को बल देती है कि सिर्फ बाघों का आवास बचाने से काम नहीं चलेगा, टाईगर कॉरिडोर को भी बड़ी जिम्मेदारी के साथ बचाकर सुरक्षित रखना होगा। बाघ और पृथ्वी को बचाने के लिए कॉरिडोर्स का सुरक्षित रहना बहुत जरुरी है। पेंच से कान्हा और कान्हा से अचानकमार टाइगर कॉरिडोर के रास्ते ही ये बाघिन वहां पहुँची होगी। "

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