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मैकू मठ का टूटा शिलालेख: जंगल की स्मृति पर प्रहार और समाज के टूटते विवेक का आईना


बिलासपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / अचानकमार टाइगर रिज़र्व (ATR) के कोर ज़ोन में स्थित ऐतिहासिक मेकू मठ सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं है—यह जंगल, वन्यजीवन और उन लोगों के साहस का मौन स्मारक है, जिन्होंने इस कठिन भौगोलिक क्षेत्र में अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया। लेकिन हाल ही में इस स्मारक के शिलालेख को तोड़ दिया गया। यह केवल एक पत्थर तोड़ने की घटना नहीं, बल्कि इतिहास, स्मृति और संवेदनशीलता पर किया गया असंवेदनशील प्रहार है।

एक शहीद वनरक्षक की विरासत

मेकू गोंड, बिंदावल वन ग्राम के एक फायर वॉचर थे—सीमित संसाधनों के बीच जंगल की रक्षा करने वाले उन अनेक अज्ञात नायकों में से एक। 10 अप्रैल 1949 को वह आदमखोर बाघिन का शिकार बने। वन विभाग ने कार्रवाई की और 13 अप्रैल 1949 को कोटा परिक्षेत्र के रेंजर एम. डब्ल्यू. के. खोखर ने उस बाघिन का सफाया किया। इस घटना की याद में यहाँ स्मारक बनाया गया। समय के साथ दूसरा स्मारक भी खड़ा किया गया। लेकिन अब नए मठ का शिलालेख किसी ने तोड़ दिया—यह कृत्य सिर्फ गलत ही नहीं, बल्कि बेहद दुखद और चिंताजनक भी है।  

कोर ज़ोन में हुई शरारत: गंभीर प्रश्नों को जन्म

यह क्षेत्र सामान्य नहीं है। अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र का यह कोर ज़ोन है, जहाँ आज भी बाघों की उपस्थिति दर्ज की जाती है। ऐसे सुरक्षित क्षेत्र में किसी का घुसकर शिलालेख तोड़ देना सुरक्षा व्यवस्था और संवेदनशीलता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या यह महज शरारत है, या स्मारकों से असम्मान का बढ़ता चलन ? 

स्मारक—इतिहास का संरक्षक

एक समाज तभी सभ्य माना जाता है जब वह अपने इतिहास, अपने नायकों और अपनी विरासत को संजोकर रखे। मेकू मठ का शिलालेख केवल पत्थर नहीं था। वह उस व्यक्ति के साहस का प्रतीक था, जिसने वन की रक्षा करते हुए अपना जीवन आहुति कर दिया। उस स्मृति को नष्ट करना न केवल अपराध है, बल्कि हमारे सामाजिक विवेक पर भी गहरा धब्बा है। ऐसा कृत्य किसी ‘शैतानी दिमाग’ की उपज है और इससे कठोर संदेश जाना चाहिए कि इतिहास और संरक्षित क्षेत्रों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए, दोषियों की पहचान करके उन्हें दंडित करना चाहिए। 


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