वन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मैकू मठ का टूटा शिलालेख: जंगल की स्मृति पर प्रहार और समाज के टूटते विवेक का आईना


बिलासपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / अचानकमार टाइगर रिज़र्व (ATR) के कोर ज़ोन में स्थित ऐतिहासिक मेकू मठ सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं है—यह जंगल, वन्यजीवन और उन लोगों के साहस का मौन स्मारक है, जिन्होंने इस कठिन भौगोलिक क्षेत्र में अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया। लेकिन हाल ही में इस स्मारक के शिलालेख को तोड़ दिया गया। यह केवल एक पत्थर तोड़ने की घटना नहीं, बल्कि इतिहास, स्मृति और संवेदनशीलता पर किया गया असंवेदनशील प्रहार है।

एक शहीद वनरक्षक की विरासत

मेकू गोंड, बिंदावल वन ग्राम के एक फायर वॉचर थे—सीमित संसाधनों के बीच जंगल की रक्षा करने वाले उन अनेक अज्ञात नायकों में से एक। 10 अप्रैल 1949 को वह आदमखोर बाघिन का शिकार बने। वन विभाग ने कार्रवाई की और 13 अप्रैल 1949 को कोटा परिक्षेत्र के रेंजर एम. डब्ल्यू. के. खोखर ने उस बाघिन का सफाया किया। इस घटना की याद में यहाँ स्मारक बनाया गया। समय के साथ दूसरा स्मारक भी खड़ा किया गया। लेकिन अब नए मठ का शिलालेख किसी ने तोड़ दिया—यह कृत्य सिर्फ गलत ही नहीं, बल्कि बेहद दुखद और चिंताजनक भी है।  

कोर ज़ोन में हुई शरारत: गंभीर प्रश्नों को जन्म

यह क्षेत्र सामान्य नहीं है। अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र का यह कोर ज़ोन है, जहाँ आज भी बाघों की उपस्थिति दर्ज की जाती है। ऐसे सुरक्षित क्षेत्र में किसी का घुसकर शिलालेख तोड़ देना सुरक्षा व्यवस्था और संवेदनशीलता दोनों पर प्रश्नचिह्न लगाता है। क्या यह महज शरारत है, या स्मारकों से असम्मान का बढ़ता चलन ? 

स्मारक—इतिहास का संरक्षक

एक समाज तभी सभ्य माना जाता है जब वह अपने इतिहास, अपने नायकों और अपनी विरासत को संजोकर रखे। मेकू मठ का शिलालेख केवल पत्थर नहीं था। वह उस व्यक्ति के साहस का प्रतीक था, जिसने वन की रक्षा करते हुए अपना जीवन आहुति कर दिया। उस स्मृति को नष्ट करना न केवल अपराध है, बल्कि हमारे सामाजिक विवेक पर भी गहरा धब्बा है। ऐसा कृत्य किसी ‘शैतानी दिमाग’ की उपज है और इससे कठोर संदेश जाना चाहिए कि इतिहास और संरक्षित क्षेत्रों से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए, दोषियों की पहचान करके उन्हें दंडित करना चाहिए। 


ओडिशा में बनेगी दुनिया की पहली ब्लैक टाइगर सफारी, सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी


 भुवनेश्वर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / ओडिशा के प्रकृति प्रेमियों के लिए बड़ी खुशखबरी है। मयूरभंज जिले में दुनिया की पहली मेलेनिस्टिक (ब्लैक) टाइगर सफारी स्थापित करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। कोर्ट की अनुमति के साथ इस प्रोजेक्ट से जुड़ी अंतिम कानूनी अड़चन भी दूर हो गई है।

यह सफारी बारीपदा से करीब 10 किलोमीटर दूर मंचबंधा में विकसित की जाएगी। इससे पहले प्रोजेक्ट को सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) और नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) से भी स्वीकृति मिल चुकी थी। अब सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बाद ओडिशा सरकार इस परियोजना को शुरू करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। अधिकारियों के अनुसार यह पहल राज्य को वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का बड़ा केंद्र बनाएगी और पूर्वी भारत में रेस्क्यू एवं कंज़र्वेशन व्यवस्था को मजबूत करेगी।

200 हेक्टेयर में विकसित होगा प्रोजेक्ट

कुल 200 हेक्टेयर क्षेत्र में प्रस्तावित इस सफारी में 100 हेक्टेयर हिस्सा टाइगर हैबिटैट के लिए तय किया गया है, जबकि शेष 100 हेक्टेयर क्षेत्र में रेस्क्यू सेंटर, वेटेरिनरी यूनिट, स्टाफ इन्फ्रास्ट्रक्चर और पार्किंग जैसी सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

पहले चरण में पांच ब्लैक टाइगर होंगे शामिल

पहले चरण में नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क से तीन और रांची जू से दो मेलेनिस्टिक टाइगर लाए जाने की योजना है। इन बाघों को डिस्प्ले और कंज़र्वेशन यूनिट में स्थानांतरित किए जाने से पहले विशेषज्ञों की देखरेख में उन्हें नए वातावरण के अनुकूल बनाया जाएगा।

अचानकमार टाइगर रिज़र्व में मंत्री केदार कश्यप का निरीक्षण, पर्यटन बढ़ाने पर फोकस


 बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ के वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप ने शुक्रवार को अचानकमार टाइगर रिज़र्व का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने पर्यटक मार्ग, रिसॉर्ट, चारागाह क्षेत्र और वन्यजीव गतिविधियों का विस्तृत निरीक्षण किया। वन मंत्री केदार कश्यप के साथ PCCF (वन्यप्राणी) अरुण पांडेय मौजूद रहे। वन मंत्री ने मौके पर ही अधिकारियों को कई अहम निर्देश भी दिए।

शुक्रवार की सुबह वन मंत्री श्री कश्यप लोरमी पहुँचे, जहाँ उन्होंने सबसे पहले पर्यटक मार्ग का जायजा लिया। इसके बाद वे हाथी कैंप सिहावल सागर पहुंचे, जो मनियारी नदी का उद्गम स्थल है। निरीक्षण के दौरान मंत्री ने मार्ग सुधार, सुविधाओं के उन्नयन और सुरक्षा प्रबंधन को बेहतर करने के निर्देश दिए।

इसके बाद मंत्री अचानकमार ग्राम पहुँचे, जहाँ ग्रामीणों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। शिवतराई पहुँचकर उन्होंने बैगा रिसॉर्ट, कैंटीन और सोविनियर शॉप के संचालन की विस्तृत समीक्षा की। स्थानीय महिला समूहों ने भी मंत्री का स्वागत किया। मंत्री ने बैगा रिसॉर्ट की आय बढ़ाने के लिए बिलासपुर और रायपुर के होटल संचालकों व टूर ऑपरेटरों के साथ बैठक कर सुझाव लेने के निर्देश दिए और रिज़र्व के व्यापक प्रचार-प्रसार पर जोर दिया।

मंत्री कश्यप ने कहा कि रोड मैपिंग और वाटर बॉडी मार्किंग के बाद नए पर्यटन रूट तैयार किए जाएँ, ताकि पर्यटकों को वन्यजीवों की बेहतर साईटिंग मिल सके। उन्होंने चारागाह विकास कार्यों का निरीक्षण किया और खाद्य घास प्रजातियों के बीज संग्रहण सहित चल रही गतिविधियों पर संतोष जताया।

यह इस वर्ष मंत्री का अचानकमार टाइगर रिज़र्व का दूसरा दौरा है। उन्होंने 19 मई को दिए गए निर्देशों की भी समीक्षा की और अब तक हुए कार्यों की सराहना की। मंत्री ने कहा कि रिज़र्व के विकास से पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर मिलेंगे।

इस दौरान प्रधान मुख्य वन संरक्षक अरुण पांडे, मुख्य वन संरक्षक मनोज पांडे, उप संचालक गणेश यू.आर. सहित कई अधिकारी मौजूद रहे।

Chhattisgarh: दुर्लभ पक्षियों के आसरे को मिलेगा वैश्विक दर्जा: कोपरा जलाशय प्रस्तावित रामसर स्थल


रायपुर ।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ सरकार ने बिलासपुर जिले में स्थित कोपरा जलाशय को प्रस्तावित रामसर स्थल घोषित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप के निर्देश पर राज्य वेटलैंड प्राधिकरण ने इसके लिए औपचारिक प्रस्ताव भेजा है। प्राकृतिक एवं मानव निर्मित विशेषताओं वाला यह जलाशय जल संसाधन, सिंचाई और जैव विविधता के लिए क्षेत्र का प्रमुख केंद्र माना जाता है।

राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने की उम्मीद

वन मंत्री श्री कश्यप ने कहा कि कोपरा जलाशय को रामसर स्थल का दर्जा मिलने से न केवल इसका संरक्षण और मजबूत होगा, बल्कि क्षेत्र को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलेगी। यह जलाशय वर्षा और आसपास के नालों से भरता है तथा स्थानीय ग्रामीणों की पेयजल और सिंचाई आवश्यकताओं का मुख्य स्रोत है। जलाशय के आसपास की भूमि अत्यंत उपजाऊ होने के कारण कई गाँवों की कृषि गतिविधियाँ इसी पर निर्भर हैं। 

जैव विविधता का समृद्ध केंद्र

कोपरा जलाशय वर्षभर विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों, जलचर जीवों और वनस्पतियों का सुरक्षित आवास बना हुआ है। खासकर प्रवासी पक्षियों की यहां बड़ी संख्या में मौजूदगी दर्ज की जाती है। जलाशय में मछलियों, जलीय पौधों, उभयचर, सरीसृपों और असंख्य कीट-पतंगों की उपस्थिति इसे महत्वपूर्ण जैव विविधता क्षेत्र बनाती है।

दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण का उपयुक्त स्थल

राज्य वेटलैंड प्राधिकरण के अनुसार यह क्षेत्र रिवर टर्न, कॉमन पोचार्ड और इजिप्शियन वल्चर जैसे दुर्लभ एवं संवेदनशील पक्षियों के संरक्षण के लिए अत्यंत उपयुक्त है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोपरा जलाशय रामसर मानदंड 02, 03 और 05 को पूरा करता है, जो इसे एक उत्कृष्ट वेटलैंड इकोसिस्टम बनाते हैं। 

पर्यटन और संरक्षण दोनों को मिलेगा बढ़ावा

केंद्र से स्वीकृति मिलने पर कोपरा जलाशय को अंतरराष्ट्रीय स्तर का संरक्षण मिलेगा और इसका वैज्ञानिक, पर्यावरणीय तथा पर्यटन संबंधी महत्व और बढ़ जाएगा। सरकार जल संरक्षण, जैव विविधता संवर्धन और ग्रामीण आजीविका से जुड़ी गतिविधियों को भी सुदृढ़ करने की तैयारी कर रही है, ताकि क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय समुदाय के बीच बेहतर संतुलन स्थापित किया जा सके।

कर्नाटक के चिड़ियाघर में चार दिन में 31 काले हिरणों की मौत, जीवाणु संक्रमण की आशंका


बेलगावी।
 TODAY छत्तीसगढ़  /  कर्नाटक के बेलगावी जिले में स्थित कित्तूर रानी चेन्नम्मा चिड़ियाघर से एक बेहद चिंताजनक खबर सामने आई है। यहां जीवाणु संक्रमण के चलते चार दिनों में 31 काले हिरणों की मौत हो गई है। लगातार हो रही मौतों के बाद चिड़ियाघर में अब सिर्फ 7 काले हिरण बचे हैं। मामला सामने आते ही सरकार ने उच्च स्तरीय जांच के आदेश जारी कर दिए हैं।

4 दिनों में ऐसे हुईं मौतें

चिड़ियाघर सूत्रों के मुताबिक, गुरुवार को 8 हिरणों की मौत हुई। इसके बाद शनिवार को हालात बिगड़ते गए और 20 हिरणों ने दम तोड़ दिया। पिछले दो दिनों में तीन और हिरण मर गए। ये सभी हिरण 4 से 6 साल की उम्र के थे और गडग के बिंकदत्ती चिड़ियाघर से बेलगावी लाए गए थे।

चिड़ियाघर के उप निदेशक नागेश बालेहोसुर ने बताया कि 29वें हिरण की मौत शनिवार रात, 30वें की रविवार शाम और एक घायल हिरण की मौत सोमवार सुबह हुई। अंतिम हिरण की मौत संक्रमण से हुई या पैर में लगी चोट से, यह पोस्टमार्टम के बाद तय होगा।

मंत्री खुद पहुंचे बेलगावी, अधिकारियों को फटकार

वन मंत्री ईश्वर खंड्रे सोमवार को बेलगावी पहुंचे और चिड़ियाघर अधिकारियों के साथ बैठक कर पूरे मामले की समीक्षा की। उन्होंने मौतों पर दुख जताते हुए बीमारी के स्रोत और फैलाव की दिशा में तुरंत जांच करने के आदेश दिए।

विसरा जांच के लिए भेजा गया

हिरणों के विसरा के सैंपल बेंगलुरु स्थित बन्नेरघट्टा वन्य प्राणी रोग निदान प्रयोगशाला भेजे गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर काले हिरणों की अचानक मौत इस चिड़ियाघर में पहली बार हुई है। डॉक्टरों को जानवरों के इलाज के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिल पाया।

स्थानीय प्रशासन अलर्ट

लगातार मौतों के बाद चिड़ियाघर प्रशासन और वन विभाग हाई अलर्ट पर है। जांच रिपोर्ट आने के बाद ही असल वजह स्पष्ट हो पाएगी।

टाइगर सफारी पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त रोक, सिंघवी ने फैसले को वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट बताया


 रायपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार 17 नवम्बर 2025 को पारित ऐतिहासिक निर्णय में देशभर के टाइगर रिज़र्व प्रबंधन, वन प्रशासन और मानव–वन्यजीव संघर्ष से जुड़े मुआवज़ा ढांचे में व्यापक बदलाव की दिशा तय कर दी है। इस निर्णय ने राज्यों पर तत्काल प्रभाव से कई महत्त्वपूर्ण सुधार लागू करने की जिम्मेदारी भी डाली है।

रायपुर निवासी वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस फैसले को “वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट” बताते हुए मुख्य सचिव एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को पत्र लिखकर आदेश के तत्काल क्रियान्वयन की माँग की है।

कोर और क्रिटिकल हैबिटेट में टाइगर सफारी पर पूर्ण प्रतिबंध

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोर क्षेत्र और क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में किसी भी प्रकार की टाइगर सफारी संचालित नहीं की जा सकती। बफ़र क्षेत्र में सफारी की अनुमति भी तभी होगी जब भूमि गैर-वन अथवा अविकसित/अवक्रमित वन भूमि हो और वह किसी टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा न हो। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय बाघ संरक्षण और प्राकृतिक आवागमन को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने का निर्देश

अदालत ने सभी राज्यों से मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर तत्काल प्रभाव से कदम उठाने को कहा है। ऐसे मामलों में हर मानव मृत्यु पर 10 लाख रुपये का अनिवार्य एक्स-ग्रेशिया भुगतान किया जाएगा। यह प्रावधान विशेष रूप से हाथियों से प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहतकारी माना जा रहा है।

टाइगर रिज़र्व प्रबंधन में सुधारों पर जोर

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी राज्य सरकारें छह महीनों के भीतर टाइगर कंज़र्वेशन प्लान (TCP) तैयार करें। इसके साथ ही—

O टाइगर रिज़र्वों में लम्बे समय से खाली पड़े पदों को शीघ्र भरा जाए,

O वेटरिनरी डॉक्टर और वाइल्डलाइफ़ बायोलॉजिस्ट के लिए अलग कैडर बनाया जाए, ताकि फील्ड स्तर पर वैज्ञानिक और पेशेवर संरक्षण कार्यों को गति मिल सके।

O फ्रंटलाइन वनकर्मियों के लिए बीमा और सुरक्षा कवच

ड्यूटी के दौरान मृत्यु या पूर्ण विकलांगता की स्थिति में किसी भी वन कर्मी अथवा दैनिक वेतनभोगी को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी फील्ड स्टाफ को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने को भी अनिवार्य किया है।

MSP आधारित फसल मुआवज़े की माँग हुई तेज

अदालत ने राज्यों को फसल क्षति सहित मानव और मवेशियों की मृत्यु के मामलों में सरल एवं समावेशी मुआवज़ा नीति लागू करने की सलाह दी है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में वन्यजीव प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने फसल क्षति मुआवज़ा MSP के आधार पर निर्धारित करने की माँग तेज कर दी है।

वर्तमान में धान की क्षति पर मात्र ₹9,000 प्रति एकड़ मुआवज़ा मिलता है, जबकि किसान को सामान्य परिस्थितियों में लगभग ₹65,000 प्रति एकड़ की प्राप्ति होती है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यूनतम मुआवज़े के कारण किसान फसल बचाने खेतों में जाने को मजबूर होते हैं, जहाँ हाथियों से आमने-सामने की घटनाओं में जान का जोखिम बना रहता है।

रायपुर स्थित वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को भेजे पत्र में कहा है कि MSP आधारित मुआवज़ा लागू होने से किसान खेतों की सुरक्षा के लिए रात में जाने को विवश नहीं होंगे, जिससे संघर्ष की घटनाएँ भी कम होंगी और सरकार का आर्थिक बोझ भी अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा। यह आदेश राज्यों के लिए वन्यजीव संरक्षण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में तत्काल और निर्णायक कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है।

Supreme Court: मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ मानने पर राज्यों से विचार करने को कहा, टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश


नई दिल्ली। 
TODAY छत्तीसगढ़  /  सुप्रीम कोर्ट ने मानव–वन्यजीव संघर्ष के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर गंभीरता से विचार करें, ताकि पीड़ितों को त्वरित राहत मिल सके। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी घटनाओं में अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो परिजनों को 10 लाख रुपये का अनिवार्य मुआवजा दिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मुआवजा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सीएसएस–आईडब्ल्यूडीएच योजना के तहत तय मानकों के मुताबिक होगा। अदालत ने राज्यों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि मुआवजा प्रक्रिया सरल, सुलभ और समयबद्ध हो।

टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश

अदालत ने बाघ संरक्षण से जुड़े मामलों पर भी विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि कोर या सघन बाघ आवास क्षेत्रों में टाइगर सफारी की अनुमति नहीं दी जा सकती। सफारी सिर्फ बफर ज़ोन में ऐसी बंजर या गैर-वन भूमि पर स्थापित की जा सकेगी, जो बाघ गलियारे के दायरे में न आती हो। इसके साथ ही सफारी चलाने वालों को अनिवार्य रूप से एक रिस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर भी संचालित करना होगा।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व पर सख्त रुख

उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में कथित अवैध निर्माण और बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई की शिकायतों पर गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। राज्य सरकार को तीन महीनों के भीतर सभी अवैध संरचनाएँ गिराने और कटे हुए पेड़ों की भरपाई करने के निर्देश दिए गए हैं। फैसले के अनुसार पारिस्थितिक पुनर्स्थापना की संपूर्ण प्रक्रिया की निगरानी केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) करेगी।

राज्यों के लिए छह महीने की समय-सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को छह महीने के भीतर मानव–वन्यजीव संघर्ष पर मॉडल दिशानिर्देश तैयार करने का आदेश दिया है। राज्यों को इन्हें आगे छह महीनों के भीतर लागू करना होगा। अदालत ने वन, राजस्व, पुलिस, आपदा प्रबंधन और पंचायती राज विभागों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

बफर क्षेत्र में प्रतिबंधित गतिविधियाँ

कोर्ट ने बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में कई गतिविधियों पर रोक लगाने की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इनमें वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषणकारी उद्योग, बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ, खतरनाक पदार्थों का उत्पादन और कम-उड़ान वाले विमानों का संचालन शामिल है।

रिसॉर्ट्स प्रतिबंधित, रात के पर्यटन पर प्रतिबंध, शांत क्षेत्र अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के पास पर्यटन के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए. इसके तहत पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स को केवल बफर्स ​​में ही अनुमति दी जाएगी और वाहनों की वहन क्षमता लागू की जाए. रात्रि पर्यटन पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी. आपातकालीन वाहनों को छोड़कर, मुख्य क्षेत्रों से गुजरने वाली सड़कें शाम से सुबह तक बंद रखी जाएं. इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ईएसजेड सहित पूरा टाइगर रिजर्व तीन महीने के भीतर ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत साइलेंस जोन के रूप में अधिसूचित किया जाए.

पर्यटन पर नियंत्रण और ‘साइलेंस ज़ोन’ की घोषणा

टाइगर रिज़र्व के नजदीक पर्यटन गतिविधियों के लिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण-अनुकूल रिसॉर्ट्स सिर्फ बफर ज़ोन में ही अनुमति योग्य होंगे और गाड़ियों की वहन क्षमता का सख्ती से पालन किया जाएगा। रात्रि पर्यटन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पूरे टाइगर रिज़र्व क्षेत्र — जिसमें ईको-सेंसिटिव ज़ोन भी शामिल है — को तीन महीनों के भीतर साइलेंस ज़ोन के रूप में अधिसूचित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाघ संरक्षण को प्राथमिकता देना अनिवार्य है, और पर्यटन तभी बढ़ाया जा सकता है जब वह पर्यावरण के अनुकूल और स्थानीय पारिस्थितिकी से सामंजस्यपूर्ण हो।

Short Story: धारीदार सन्नाटा, उस दिन जंगल की चुप्पी अलग थी


TODAY
 छत्तीसगढ़  / 
जंगल के दिल में समाई वह संकरी सड़क हमेशा की तरह शांत थी—इतनी शांत कि लगता था पूरी दुनिया अपनी साँसें थामे खड़ी है। पेड़ों की लंबी छायाएँ सड़क पर जाल की तरह फैल रहीं थीं, और हवा में पत्तों, मिट्टी और धूप की मिली-जुली सुगंध तैर रही थी।

इसी रास्ते से रोज़ लौटता था चरवाहा रमू, अपनी काली, भारी भैंसों के साथ। वह इस पगडंडी के हर मोड़, हर उभार को जानता था—मानो यह रास्ता उसके भीतर ही बसा हो। भैंसें भी बिना कहे- सुने उसकी चाल को समझतीं, जैसे वर्षों की संगत ने उन्हें एक ही लय में बाँध दिया हो।

लेकिन उस दिन जंगल की चुप्पी अलग थी।

जैसे हवा कहीं थम गई हो।

जैसे कोई अनदेखी आँखें कहीं पास से देख रही हों।

और फिर, मोड़ के पास अचानक तीन धारीदार बिल्लियाँ सड़क पर प्रकट हुईं।

न शोर, न हलचल।

बस तीन सधी हुई, चिकनी आकृतियाँ—धूप में चमकती धारियों के साथ। उनके कान आगे को तने थे, पूँछें फड़कना भी भूल गई थीं, और उनकी जिज्ञासु आँखें भैंसों के झुंड पर टिकी थीं।

रमू एकदम रुक गया।

भैंसें उसके पीछे सटकर खड़ी हो गईं, जैसे किसी अदृश्य संकेत पर। उनकी साँसों की भारी गूँज उन बिल्लियों की स्थिरता के सामने एक अलग ही संगीत बना रही थी।

कुछ क्षण ऐसे बीते जो समय की पकड़ में नहीं आते—

दो अलग दुनियाएँ आमने-सामने खड़ी थीं।

एक ओर वे बिल्लियाँ—जन्मजात शिकारी—जिन्हें शायद ही कभी ऐसे शांत, संगठित जुलूस का सामना करना पड़ा होगा।

दूसरी ओर रमू और उसका झुंड—आदत, अनुशासन और एक-दूसरे पर भरोसे से बंधा परिवार।

बिल्लियाँ भैंसों को ऐसे देख रही थीं जैसे किसी पहेली को सुलझा रही हों।

क्या ये शिकार हैं?

नहीं।

क्या ये खतरा हैं?

शायद।

या फिर बस एक असामान्य दृश्य—जो जंगल की अपनी दिनचर्या में बाधा डाल रहा है।

रमू के दिल की धड़कनें गूँजने लगीं।

उसे पता था कि ये बिल्लियाँ कुछ भी कर सकती हैं—लेकिन उतना ही यह भी कि भैंसें उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगी।

फिर अचानक, धूप में चमकती उनकी धारियाँ सरक गईं—चुपचाप—जंगल के घने झुरमुटों में वापस।

जैसे वे कभी आई ही न हों।

रमू ने गहरी साँस छोड़ी—एक जो राहत से भरी थी, और एक जो उन रहस्यमयी जंगल-जीवों के प्रति सम्मान से।

उसने धीरे से हाथ हिलाया, और भैंसें फिर चल पड़ीं—सड़क पर, धूप पर, और अपने रोज़ के जीवन की ओर।

सन्नाटा लौट आया, पर वह वैसा नहीं था।

उसमें अब एक कहानी थी—एक असंभव, ठहरी हुई मुठभेड़ की।

और रमू जानता था कि वह इस पल को उम्र भर याद रखेगा—जब जंगल ने एक क्षण के लिए अपने रहस्य उसके सामने खोल दिए थे। 

(साभार - @_planettiger_  credit @harsh_gate_photography)

वन्यजीव संरक्षण की नई पहल: जंगलों के पास रह रहे कुत्तों का होगा व्यापक टीकाकरण


 भोपाल।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  चीतों और बाघों को कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (CDV) जैसे खतरनाक संक्रमण से बचाने के लिए मध्यप्रदेश वन विभाग ने एक विशेष पहल शुरू की है। विभाग ने निर्णय लिया है कि जंगलों के आसपास रहने वाले सभी पालतू और आवारा कुत्तों का बड़े स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाया जाएगा, ताकि यह वायरस वन क्षेत्र में प्रवेश न कर सके। 

वन अधिकारियों के अनुसार CDV बड़े मांसाहारी जंतुओं—खासकर बाघों, तेंदुओं और चीतों—के लिए गंभीर खतरा माना जाता है। यह वायरस संक्रमित कुत्तों के संपर्क से वन्यजीवों तक पहुँच सकता है और कई बार जानलेवा भी साबित होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आसपास के क्षेत्रों में कुत्तों का टीकाकरण वायरस के प्रसार को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है।

प्रदेश में हाल के वर्षों में वन्यजीव संरक्षण को लेकर कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें चीतों के पुनर्वास कार्यक्रम भी शामिल हैं। ऐसे में इस नए अभियान को जैव-विविधता की सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। वन विभाग ने स्थानीय निकायों और ग्रामीण समुदायों से भी अभियान में सहयोग करने की अपील की है, ताकि अधिक से अधिक कुत्तों को टीका लगाया जा सके और जंगलों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रखा जा सके।

हाथियों के हालात पर सिंघवी ने जताई चिंता, पूछा क्या हाथियों को पानी में डुबो-डुबो के मारेगा वन विभाग ?

 


रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य में 3 नवंबर की रात एक खुले कुएं में एक शावक सहित तीन हाथियों के गिरने की घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने इसे वन विभाग की घोर लापरवाही बताया। हालांकि वन विभाग ने बड़ी ही सूझ-बुझ के साथ कुँएं से हाथियों को बाहर निकालने में सफलता पाई है। वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमी सिंघवी ने बताया कि वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए और सूखे कुओं को बंद करने को लेकर वे 2018 से मांग कर रहे हैं। इसको गंभीरता से लेकर भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी कार्यवाही करने के लिए वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ शासन को पत्र लिखा था। बाद में सिंघवी के निवेदन पर भारत सरकार ने देश के सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को खुले हुए कुओं को बंद करने के लिए 2022 में आदेश दिया था।

वन विभाग ने राज्य बजट में कोई प्रस्ताव नहीं भेजा

सिंघवी ने बताया कि पिछले सात साल से वन विभाग ने इन कुओं को सुरक्षित करने हेतु राज्य शासन से बजट प्राप्त करने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि प्रदेश में वन क्षेत्र और उसके आसपास खुले और सूखे कुओं की संख्या पचीस हजार से ज्यादा होने का अनुमान है। वर्ष 2024 में कैंपा फंड से सिर्फ 450 खुले कुओं पर सुरक्षा दीवार बनाकर सुरक्षित किया गया, वह भी सिर्फ कांकेर जिले में जब कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने कोई कुआँ बंद नहीं करवाया।

एक माह पहले भी लिखा पत्र

सिंघवी ने बताया कि कीचड़ युक्त डबरी में हाथियों के फंसने को लेकर, कीचड़ युक्त डबरी, सूखे कुओं और खुले कुओं को बंद करने को लेकर उन्होंने राज्य शासन को 25 सितम्बर को पत्र लिखा था, जिसे शासन ने तो गंभीरता से लिया गया, परंतु बाद में विभागीय अधिकारियों ने कोई रूचि नहीं की दिखाई। 

वर्ष 2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी।

2017 की घटना से कोई सबक नहीं लिया

2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी। उसे क्रेन से निकाला गया, परंतु तत्काल ही उसकी मौत हो गई। सिंघवी ने आरोप लगाया कि इस घटना के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। हर साल कई भालू, तेंदुए, लकड़बग्घे और अन्य जानवर इन कुओं में गिरकर या तो मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं, जिन्हें बाद में आजीवन जू में कैद रहना पड़ता है। शायद वन विभाग को खुशी मिलती हो कि जू में जानवरों की संख्या बढ़ रही है। 

सिंघवी ने वर्ष 2018 में भी पत्र लिखा 

झूमर दिखाने के लिए भटक गया है वन विभाग

सिंघवी ने वन विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि वन्य प्राणियों के रक्षक कहलाने वाले अधिकारी वन्य प्राणियों के लिए कार्य करने की बजाय अब इको टूरिज्म बढ़ावा देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कांगेर वेली नेशनल पार्क में लाखों सालों से सुरक्षित झूमर और ग्रीन नामक गुफाएं, जिनकी जैव विविधता मानव हस्तक्षेप से नष्ट हो सकती है, उनकी रक्षा करने की बजाय विभाग उन गुफाओं को इको टूरिज्म के नाम से आम जनता के लिए खोलने की तैयारी में मेहनत और ज्यादा ध्यान दे रहा है। जनता को गुमराह करने के लिए और पब्लिसिटी पाने के लिए दावा कर रहा है कि अचनाकमार टाइगर रिजर्व में कान्हा से भी ज्यादा टाइगर दिखायेंगे।

*पिक्चर बनाने में ज्यादा ध्यान

सिंघवी ने चर्चा में बताया कि बलौदा बाजार वनमंडल, जहां चार हाथियों के कुएं में गिरने की घटना हुई है, उसी वनमंडल के कसडोल क्षेत्र के सिद्ध बाबा झरना के पास वन विभाग के संरक्षण तले दस दिन पहले एक निजी यूनिवर्सिटी ने अकादमिक कार्यों की अनुमति लेकर सूत्रों के अनुसार फिल्म निर्माण का कार्य किया। तब वहां हाथी विचरण कर रहे थे और जानकारी के अनुसार हाथियों की शूटिंग करने के लिए पटाखे फोड़े गए। वन विभाग की जानकारी में सब कुछ रहा, पर अधिकारी आंखें बंद करके बैठे रहे।*

कब तक वन्य प्राणियों कुओं में गिरेंगे 

सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से पूछा कि उन्हें प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खुलासा करना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता इको-टूरिज्म है या वन्यप्राणियों की रक्षा? अगर वन्यप्राणियों की रक्षा करना है, तो उन्हें बताना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए, सूखे कुएं और खतरनाक डबरियां कब तक वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित हो जायेंगी? 

वन्यजीव सप्ताह: भिलाई में छायाचित्र प्रदर्शनी कल से, तस्वीरों के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण का सन्देश

  


TODAY छत्तीसगढ़  /  भिलाई। वन्यजीव सप्ताह 2025 के अंतर्गत वन एवं वन्यजीव संरक्षण के प्रति जनजागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से नेहरू आर्ट गैलरी, इंदिरा प्लेस (सिविक सेंटर) भिलाई में वन्यजीव छायाचित्रों की समूह प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है।

इस प्रदर्शनी का उद्घाटन सोमवार, 6 अक्टूबर की संध्या 5:30 बजे किया जाएगा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री मानस कुमार गुप्ता, मुख्य महाप्रबंधक (योजनाएं), सेल भिलाई इस्पात संयंत्र, विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे। प्रदर्शनी में प्रसिद्ध छायाकार अनूप नायक (रेलवे चरोदा), डॉ. हिमांशु गुप्ता (कैंसर स्पेशलिस्ट, अम्बिकापुर) तथा डॉ. दानेश सिन्हा (असिस्टेंट मेडिकल ऑफिसर, डोंगरगढ़) द्वारा खींचे गए वन्यजीवों के दुर्लभ व आकर्षक छायाचित्र प्रदर्शित किए जाएंगे। आयोजकों के अनुसार, इस छायाचित्र प्रदर्शनी का मुख्य उद्देश्य लोगों में वन एवं वन्यजीवों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना है, ताकि अवैध वृक्ष कटाई और वन्यजीवों के शिकार पर रोक लगाई जा सके।

यह प्रदर्शनी 6 से 8 अक्टूबर 2025 तक प्रतिदिन संध्या 5:30 से रात्रि 8:30 बजे तक दर्शकों के लिए खुली रहेगी। आयोजन के दौरान आगंतुकों को प्रकृति और वन्यजीव संरक्षण से जुड़ा प्रेरणादायक अनुभव प्राप्त होगा।

मोहनभाठा: रनवे पर हींगलाज के फूलों की बहार, इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम


 
 TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर / मोहनभाठा का शांत और ऐतिहासिक स्थल, जो कभी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण रनवे था, आजकल प्रकृति की अद्भुत छटा से सराबोर है। यहां के विशाल मैदानों में, जहाँ कभी युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट गूँजती थी, आज पूरे रनवे पर पीले फूलों की एक अंतहीन बहार देखने को मिल रही है। आम लोग इसे छोटी हींगलाज के नाम से भी जानते हैं। 

इतिहास और प्रकृति का संगम -

यह फूलों की बहार सिर्फ एक खूबसूरत नज़ारा नहीं, बल्कि इतिहास और प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक है। ब्रिटिश शासनकाल में निर्मित यह रनवे, जो कभी सामरिक महत्व रखता था, अब एक ऐसे स्थान में परिवर्तित हो गया है जहाँ पक्षियों, जीव-जंतुओं के साथ-साथ प्रकृति का यह मनोरम दृश्य पर्यटकों और स्थानीय लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

पीले फूलों की चादर - 

कैंडल बुश (Candle Bush) या मोमबत्ती झाड़ी, जिसे वैज्ञानिक रूप से सेनेना अलटा (Senna alata) के नाम से जाना जाता है, एक बहुत ही आकर्षक और उपयोगी पौधा है।  इसे "कैंडल बुश" नाम इसके फूलों के कारण मिला है। आम लोग इसे छोटी हींगलाज के नाम से भी जानते हैं। इसके फूल एक साथ गुच्छों में खिलते हैं और एक खड़ी मोमबत्ती या टॉर्च की तरह दिखते हैं। यह पौधा मूल रूप से उष्णकटिबंधीय अमेरिका का निवासी है, लेकिन अब यह दुनिया के कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाया जाता है, जिसमें एशिया और अफ्रीका भी शामिल हैं।

 इसकी पत्तियों और फूलों का उपयोग त्वचा संक्रमण, जैसे दाद (ringworm) और अन्य फंगल संक्रमणों के इलाज के लिए किया जाता है। इसे अक्सर "रिंगवॉर्म बुश" भी कहा जाता है। इसके चमकीले पीले फूल तितलियों और अन्य परागणकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, जिससे यह बगीचों और प्राकृतिक क्षेत्रों में जैव विविधता को बढ़ावा देता है। कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से अनुकूल परिस्थितियों में, यह पौधा बहुत तेज़ी से फैलता है और आक्रामक खरपतवार बन सकता है, जिससे स्थानीय वनस्पतियों को नुकसान हो सकता है।

Tiger death case : सोनहत रेंजर की लापरवाही उजागर, PCCF ने किया निलंबित


बैकुंठपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / कोरिया जिले के सोनहत वनपरिक्षेत्र के असीमांकित ऑरेंज एरिया में 8 नवंबर को नर बाघ का शव मिलने के मामले में जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरु हो गई है। इस मामले में सीसीएफ सरगुजा ने मंगलवार को डिप्टी रेंजर व बीटगार्ड को निलंबित किया था। अब पीसीसीएफ ने सोनहत रेंजर विनय कुमार सिंह को भी निलंबित कर दिया है।

पीसीसीएफ वी. श्रीनिवास राव के आदेश से निलंबन आदेश जारी किया गया है। इसमें उल्लेख है कि बाघ विचरणरत था। इसके बावजूद उसकी निगरानी और ग्रामीणों की जानमाल से क्षति से बचाव करने रेंजर सिंह ने कोई विशेष प्रयास नहीं किया और न ही अधीनस्थ अमले से समन्वय स्थापित कर बाघ के पगमार्क के आधार पर कोई प्रभावी कार्रवाई करना पाया है।

CCF सरगुजा ने मंगलवार को डिप्टी रेंजर व बीटगार्ड को निलंबित किया था

इसे भी पढ़ें - कोरिया : छत्तीसगढ़ में फिर एक बाघ की मौत, संरक्षण और सुरक्षा के तमाम दावे फेल। 

मामले में सीसीएफ सरगुजा ने नोटिस  जारी कर जवाब मांगा था। लेकिन निर्धारित समय सीमा में जवाब प्रस्तुत नहीं किया है। मामले में रेंजर विनय कुमार सिंह को निलंबित कर सीसीएफ सरगुजा अटैच कर दिया गया है।

 आपको बताते चलें कि कोरिया वनमंडल के जंगल में 8 नवंबर को दोपहर करीब 1 बजे ग्रामीणों के माध्यम से वन रक्षक गरनई को बाघ का मृत शव पड़े होने की जानकारी मिली थी। यह एरिया ग्राम कटवार के पास खनखोपड़ नाला के किनारे स्थित है। जो कोरिया वनमंडल के बीट गरनई सर्किल रामगढ़ परिक्षेत्र सोनहत के असीमांकित वनक्षेत्र (ऑरेंज एरिया) में आता है।

बाघ की मौत पर हाईकोर्ट गंभीर, PCCF को 10 दिन के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश


 बिलासपुर । 
TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में हाल ही में एक बाघ की मौत की घटना को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए वन विभाग से सख्त जवाब मांगा है और इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता बताई है। अदालत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।

           मालूम हो कि गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में 8 नवंबर को बाघ का शव मिला, जिसके पास भैंस का अधखाया शव भी पाया गया। वन विभाग की शुरुआती जांच में बाघ की मौत का कारण जहरखुरानी बताया गया है। वन अधिकारियों का कहना है कि यह घटना बदले की भावना से की गई हो सकती है। इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने सोमवार को स्वतः संज्ञान जनहित याचिका के तहत सुनवाई की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने वन्यजीव संरक्षण में लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यह छत्तीसगढ़ में बाघ की दूसरी मौत है, जबकि पूरे भारत में पहले ही टाइगर की संख्या सीमित है। उन्होंने राज्य सरकार और वन विभाग से पूछा कि क्या वन्यजीव और जंगलों की रक्षा के लिए कोई ठोस योजना है। चीफ जस्टिस ने कहा, "अगर हम जंगल और वन्यजीव नहीं बचा सके, तो भविष्य में हमारे पास क्या बचेगा।"

अदालत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, उन्होंने वन विभाग को निर्देशित किया कि अगली सुनवाई में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए उठाए गए ठोस कदमों की जानकारी दी जाए। वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव को भी मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है।

अपने जवाब में वन विभाग की ओर से बताया गया कि घटना स्थल बीट गरनई, सर्किल रामगढ़, परिक्षेत्र सोनहत, कोरिया वन मंडल के पास है। ग्रामीणों से सूचना मिलने के बाद आला अधिकारियों और वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर जांच की। घटनास्थल के आसपास 1.5-2 किमी परिधि में तलाशी ली गई। पशु चिकित्सकों की टीम द्वारा बाघ का पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें जहरखुरानी से मौत की पुष्टि हुई। शव का नियमानुसार अंतिम संस्कार किया गया।

कोरिया : छत्तीसगढ़ में फिर एक बाघ की मौत, संरक्षण और सुरक्षा के तमाम दावे फेल


 बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ की मौत होने का मामला सामने आने से हड़कंप मच गया है। वन अधिकारियों के दावे के अनुसार, बाघ की मौत संभवतः विषाक्त भोजन के कारण हुई है।

 प्राथमिक जांच में संकेत मिले हैं कि इस बाघ ने हाल ही में एक भैंस का शिकार किया था, और कुछ स्थानीय लोगों ने कथित तौर पर बदला लेने के उद्देश्य से भैंस के शव में जहर मिलाया। इसके बाद बाघ के मृत पाए जाने पर वन विभाग ने तीन लोगों को हिरासत में लिया है।मृत बाघ की उम्र लगभग 7-8 साल बताई गई है और उसके शव के पास एक अधखाया भैंस का शव भी मिला है।

 घटनास्थल से लिए गए नमूनों को रायपुर में फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है, जिससे मौत की सही वजह का पता लगाया जा सके।इस घटना से वन्यजीव संरक्षण के मुद्दों पर फिर से चिंता बढ़ गई है और वन अधिकारियों को इस तरह के मामलों की रोकथाम के लिए निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता बताई जा रही है। मालूम हो कि पिछले 20 दिनों से वन विभाग कोरिया जिले में बाघ की निगरानी का दावा कर रहा था.आज उस बाघ का शव मिला है।


10 हाथी की मौत : बांधवगढ़ के फील्ड डायरेक्टर और सहायक वन संरक्षक निलंबित, अब छत्तीसगढ़ में कार्रवाही का इंतज़ार

फ़ाइल फोटो 

भोपाल / 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने रविवार को उमरिया जिले में 10 जंगली हाथियों की मौत के मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर गौरव चौधरी और प्रभारी सहायक वन संरक्षक फतेह सिंह निनामा को निलंबित करने का आदेश दिया।

 उन्होंने हाथी टास्क फोर्स के गठन का भी आदेश दिया। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हुई बड़ी संख्या में हाथियों की मौत की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री यादव ने कहा कि यह एक गंभीर घटना है, जिसमें कई हाथियों की मौत हुई है, लेकिन फील्ड डायरेक्टर छुट्टी से वापस नहीं आए और हाथियों के झुंड के आने के बाद आवश्यक सावधानियां नहीं बरती गईं। 

Chhattisgarh : परिवार के साथ 29 हाथी का झुण्ड मस्ती के मूड में, ड्रोन में कैद हुआ VIDEO  

डॉक्टर मोहन यादव ने कहा कि हाथी-मानव के बीच सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए मध्य प्रदेश में राज्य स्तरीय हाथी टास्क फोर्स का गठन किया जाएगा। इस पहल का समर्थन करने के लिए विशेष "हाथी मित्र" नियुक्त किए जाएंगे। हाथियों की अधिक गतिविधि वाले क्षेत्रों में फसलों की सुरक्षा के लिए सौर बाड़ लगाने की व्यवस्था की जाएगी।  

मुख्यमंत्री को दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि हाथियों की मौत के मामले में कोई मानवीय साजिश ​ सामने नहीं आई है। इधर, हमलावर हाथी को बांधवगढ़ प्रबंधन की टीम ने रेस्क्यू कर पेड़ से बांध दिया है। मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने वन राज्य मंत्री दिलीप अहिरवार, एसीएस वन अशोक वर्णवाल व पीसीसीएफ असीम श्रीवास्तव को जांच के लिए बांधवगढ़ भेजा था। रविवार को इन्हें सीएम ने समीक्षा के लिए बुलाया था। इसके बाद यह कार्रवाई की गई। हाथियों द्वारा मारे गए लोगों के परिजनों को सरकार 8 लाख के बजाय 25 लाख रु. देगी।

प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में अब तक कहा जा रहा था कि कोदो की फसल में मौजूद पेस्टिसाइड से 10 हाथियों की मौत हुई है। रविवार काे सीएम ने ट्वीट करके जानकारी दी कि कोदो की फसल में पेस्टिसाइड के उपयोग के सबूत नहीं मिले हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि फिर हाथियों की मौत कैसे हुई? हाथियों के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट 2-3 दिन में मिल सकती है। 

हाथी अब वनों के स्थाई सदस्य हैं, इसके लिए ग्रामीणों को जागरूक करेंगे - डॉ. यादव


शहडोल / 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  बांधवगढ़ से लौटे जांच दल के साथ समीक्षा के दौरान रविवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि पहले हाथी छत्तीसगढ़ से आकर लौट जाते थे, पर अब वो यहां स्थाई रूप से बस गए हैं। ऐसे में हाथियों की आवाजाही को देखते हुए स्वाभाविक रूप से स्थाई प्रबंधन के लिए शासन के स्तर पर हाथी टास्क फोर्स बनाने का निर्णय लिया जा रहा है।

हाथियों को अन्य वन्य प्राणियों के साथ किस तरह रखा जाए, इसके लिए योजना बनाई जा रही है। इसमें कर्नाटक, केरल और असम जैसे राज्यों की बेस्ट प्रैक्टिसेस को शामिल किया जाएगा। इन राज्यों में मध्यप्रदेश के अधिकारियों को भेजा जाएगा ताकि सहअस्तित्व की भावना के आधार पर हाथियों के साथ बफर एरिया, कोर एरिया में बाकी का जन जीवन प्रभावित न हो, इसका अध्ययन किया जाएगा।

टाइगर रिजर्व के बफर एरिया के बाहर के जो मैदानी इलाके हैं वहां की फसलें उसमें सोलर फेंसिंग या सोलर पैनल द्वारा व्यवस्था कर फसलों को सुरक्षित किया जाएगा। यह मनुष्यों के लिए भी सुरक्षा का साधन होगा। वन विभाग को कहा गया है ऐसे क्षेत्रों में कहां कहां कृषि हो रही है, उसे कैसे बचा सकते हैं। हाथी फसल नष्ट न कर पाएं, यह सुनिश्चित करना होगा।

डॉ मोहन यादव ने कहा कि वन क्षेत्र में जो अकेले हाथी घूमते हैं और अपने दल से अलग हो जाते हैं इनको रेडियो टेगिंग का निर्णय लिया गया है। ट्रेकिंग कर उन पर नजर रखी जा सकेगी। आने वाले समय में ऐसी घटना न हो, भविष्य में इसका ध्यान रखा जा सकेगा। यह इस दिशा में ठोस कार्यवाही होगी।

ऐसे अन्य महत्वपूर्ण उपायों को लागू करने के लिए विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाएगा। भविष्य में ऐसी ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के प्रयास किए जाएंगे। हाथी अब वनों के स्थाई सदस्य हैं, इसके लिए ग्रामीणों को जागरूक किया जायेगा। लोगों को बताया जाये कि प्रदेश में टाइगर और अन्य वन्य प्राणी जिस तरह स्थाई निवास करते हैं, अब हाथी भी हमारे वनों का हिस्सा बन गए हैं।

मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने उमरिया में पिछले दिनों 10 हाथियों की अलग-अलग दिन हुई मृत्यु की घटना दुखद एवं दर्दनाक बताते हुए वन अमले को सतर्क रहने के निर्देश दिए। उमरिया और सीधी जिले में बड़ी संख्या में हाथियों की मौजूदगी दिख रही है। ऐसे में फील्ड डायरेक्टर एवं अन्य अधिकारियों को सतर्क और सजग रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जिन जिलों में हाथी वन क्षेत्रों में रह रहे हैं वहां हाथी मित्र जन जागरूकता के लिए कार्य करेंगे। भविष्य में ऐसे वन क्षेत्र विकसित किए जाएंगे, जिसमें हाथियों की बसाहट के साथ सह अस्तित्व की भावना मजबूत हो सके।

Chhattisgarh : परिवार के साथ 29 हाथी का झुण्ड मस्ती के मूड में, ड्रोन में कैद हुआ VIDEO

 रायगढ़  / TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ राज्य के धरमजयगढ़ वन मंडल के लैलूंगा वन परिक्षेत्र के अमलीडीही के जंगल का यह वीडियो इन दिनों खूब सुर्खियां बटोर रहा है। छत्तीसगढ़ में एक तरफ जहाँ हाल ही में चार हाथी करंट से अकाल मौत का शिकार हुये वही दूसरी ओर रायगढ़ जिले के धरमजयगढ़ वन मंडल का यह वीडियो काफी सुकून देने वाला है। यह वीडियो वन विभाग ने ड्रोन के माध्यम से बनवाया है जिसमें साफ़ दिखाई दे रहा है कि हाथियों का एक बड़ा झुण्ड जंगल के बीच आराम करने के बाद पास के जलाशय में मस्ती कर रहा है। इस झुण्ड में 29 हाथी होने की जानकारी दी गयी है जिसमें नर - मादा के अलावा बच्चे शामिल हैं।   

CHHATTISGARH : सीमा विवाद में फंसी हाथी की मौत, क्या हम सभी हाथी की मौत में दोषी नहीं हैं ?

बिलासपुर जिले के तखतपुर क्षेत्र में करंट की चपेट में आकर मरा हाथी शावक 

(सत्यप्रकाश पांडेय) /  क्या वन्यप्राणियों के खिलाफ़ क्रूरता बढ़ी है ? हम पक्के तौर पर ये कह सकते हैं कि हाँ, क्रूरता का ग्राफ और तरीका दोनों बदला है । इन सबके बीच जिम्मेदारियों से भागने का तरीका भी बदला है, वन्यप्राणियों के शिकार और उनकी अकाल मौत पर अक्सर जिम्मेदार अफसरों की बयानबाजी गैर जिम्मेदारी का ठोस सबूत भी देती है। इंसानी क्रूरता का शिकार वन्यप्राणी सीमा बंधन को नहीं समझता, भूख और सुरक्षित रहवास के लिये भटकता वन्यजीव अक्सर मौत के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है या फिर मौत उसके हिस्से आती है। इन सबके बीच संवेदनहीन अफसरों के बयान कइयों बार सवाल भी खड़े करते है, अफ़सोस अहंकार की गर्मी से तपते ऐसे वन अफसरों को आपने कभी वन्यप्राणियों की मौत पर झूठा मातम मनाते भी नहीं देखा होगा। इन तमाम बदलाव के बीच इस दौर जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वो ये कि अब इस तरह की क्रूरता को कैमरे में कैद किया जा रहा है और सोशल मीडिया पर लगातार शेयर किया जा रहा है। 

    छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौजूदगी और उनकी बड़ी आबादी को लेकर कोई संशय नहीं है। राज्य में हाथियों की उपस्थिति के इतिहास को खंगाले तो यहां के जंगलों से उनका रिश्ता सैकड़ों साल पुराना नज़र आयेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ में हाथियों की घर वापसी से जंगल के अफसर परेशान हो सकते है। राज्य में हाथी-मानव द्वन्द के तरीके और कारणों पर सालों से काम भी चल रहा है। इन सालों में हाथी और इंसानी मौत के आंकड़े कुछ ऊपर नीचे हो सकते हैं लेकिन एक दशक में कोई ठोस कार्य योजना जिसका सकारात्मक परिणाम धरातल पर दिखाई देता हो ऐसा अब तक नज़र नहीं आया। राज्य में हाथी कभी करंट की चपेट में आकर मरे तो कभी जहर या फिर गढ्ढों में गिरकर अकाल मौत का शिकार बने। 

             पिछले दस दिनों में छत्तीसगढ़ और उसकी सीमा से सटे राज्य मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में कुल 15 हाथी मारे गये। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और बिलासपुर जिले में चार हाथी करंट की चपेट में आने से मरे। इन चार हाथियों की मौत के कारण एक हैं, वजह अलग-अलग। रायगढ़ जिले के घरघोड़ा वन क्षेत्र में करंट से जिन तीन हाथियों की मौत हुई वो बिजली विभाग और वन विभाग की संयुक्त लापरवाही का नतीजा थी। 

             बिलासपुर जिले के तखतपुर क्षेत्र के टिन्गीपुर इलाके में पिछले दिनों जिस नर हाथी शावक का शव बरामद हुआ वो भी करंट लगने से मरा। यहां शिकार के लिए बिजली का तार बिछाया गया था, जिसमें दल से भटका हुआ हाथी फंसा और काल के गाल में समा गया। असल तमाशा हाथी की मौत के बाद शुरू हुआ, अफसरों ने कहा जिस जगह हाथी का शव मिला वो राजस्व के हिस्से में आता है। हाथी का शव जिस खेत में था, वहां से कुछ दूर चलें तो अचानकमार टाईगर रिजर्व की सीमा शुरू होती हैं। दूसरी तरफ वन विकास निगम का इलाका है, बचा हिस्सा बिलासपुर वन मंडल और राजस्व विभाग की मिल्कियत। 

             हाथी की मौत के बाद मचे हाहाकार से भयभीत चंद वन अफसर अपनी जिम्मेदारियों से भागते दिखे। एक वन्यप्राणी की अकाल मौत पर गाल बजाते वन अफसरों ने लाश को न सिर्फ सीमा विवाद में फंसाया बल्कि मिडिया को दिये बयानों के माध्यम से उन्होंने अपनी संवेदनहीनता का खुलकर परिचय भी छपवाया। मीडिया बयानों के मुताबिक़ -

"अधिकारियों के पास बड़ा क्षेत्र होता है, इसलिए पूरे क्षेत्र की निगरानी उनके द्वारा संभव नहीं है। इसलिए जिनकी जैसी जवाबदारी है वैसी ही कार्यवाही होगी।"    - प्रभात मिश्रा, सीसीएफ बिलासपुर 

"मृतक और अन्य हाथियों का दल अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण करते रहते थे, जिस पर विभाग के कर्मचारी लगातार निगरानी करते थे। कुछ दिन पहले ही पांच हाथियों में से एक हाथी घूमते हुए मुंगेली और निगम के एरिया में पहुंच गया, जिसकी सूचना निगम को भी दी गई थी। हमारा एरिया नहीं होने की वजह से कुछ नहीं कर पाए। इसके बाद 31 अक्टूबर की रात को हाथी के गुम होने और उसके मौत की सूचना मिलते ही जानकारी बिलासपुर वन मंडल को दी गई। हमारे सूचना के बाद ही बिलासपुर वन मंडल की टीम ने मौके पर पहुंचकर मृतक हाथी के मामले में जांच शुरु की है।"    _ गणेश यूआर, डिप्टी डायरेक्टर, एटीआर      

"पांच हाथियों के दल से एक हाथी जब बिछड़ा था तो इसकी सूचना सभी को देनी चाहिए थी, लेकिन किसी ने भी सूचना देना उचित नहीं समझा। इसके बाद हाथी का शव तखतपुर ब्लाक के टिंगीपुर में मिला, जो बिलासपुर वन मंडल का क्षेत्र नहीं है। यह क्षेत्र वन विकास निगम और एटीआर के बीच राजस्व का है, जिसके बाद मौके पर पहुंचकर हाथी का शव पोस्टमार्टम कराने के बाद अंतिम संस्कार करने के उपरांत बिसरा रिपोर्ट जबलपुर भेजी जा रही है। इस मामले में दो को गिरफ्तार किया गया है, जिनसे पूछताछ हो रही है।"  _ सत्यदेव शर्मा, डीएफओ, वन मंडल बिलासपुर   

इन बयानों को पढ़कर आप अफसरों की कार्यशैली और कार्यक्षेत्र का दायरा बखूबी समझ सकते हैं। यहां ये बताना लाजिमी होगा कि पिछले कुछ महीनों से अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र में पाँच हाथियों का दल लगातार विचरण कर रहा है। उसी दल से बिछड़ा एक शावक इंसानी क्रूरता का शिकार बन गया। 

कृषि भूमि और खनन प्रथाओं के लिए वन्यजीवों के आवासों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है। राज्य के हसदेव का कटता जंगल प्रत्यक्ष प्रमाण है। परिणामस्वरूप होने वाले उपभोग से बेजुबान वन्यजीवों के लिए कोई जगह नहीं बचती, जिन्हें मानव बस्तियों में घुसने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं पता। ऐसे में प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने की हर कड़ी में इंसान और उसकी बदनियती छिपी हुई है। जानवरों के प्रति इस क्रूरता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। हाथी को समस्या का नाम देने वालों से पूछा जाना चाहिये कि क्या हम सभी हाथी की मौत में दोषी नहीं हैं ?

Chhattisgarh : करंट से एक और हाथी की मौत, बिलासपुर वन मंडल के तखतपुर परिक्षेत्र का मामला

बिलासपुर / TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र से लगे टिन्गीपुर इलाके में एक हाथी की मौत का मामला प्रकाश में आया है। हाथी की मौत शिकार के लिए बिछाई गयी बिजली तार में प्रवाहित करंट लगने से हुई है। मामला बिलासपुर वन मंडल के तखतपुर परिक्षेत्र का बताया जा रहा है। मृत हाथी का पोस्टमार्डम कल 2 नवम्बर की सुबह कराया जायेगा। आपको बताते चलें कि पिछले एक सप्ताह में छत्तीसगढ़ में करंट की चपेट में आने से चार हाथी मारे जा चुके हैं। हाल ही में रायगढ़ वन मंडल के घरघोड़ा रेंज के चुहकीमार इलाके में तीन हाथी मारे गये थे। 

जानकारी के मुताबिक़ अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र से सटा हुआ तखतपुर वन परिक्षेत्र का इलाका टिन्गीपुर आज सुबह एक हाथी की अकाल मौत के बाद सुर्ख़ियों में आ गया। इस क्षेत्र में वन विकास निगम की सीमा से लगी राजस्व भूमि के एक खेत में नर हाथी का शव होने की ख़बर विभागीय अमले को हुई। मौके पर पहुंचें वन विभाग के अधिकारियों ने आस-पास के क्षेत्र का मुआयना किया। हाथी की मौत बिजली के करंट से हुई है जो अज्ञात शिकारियों द्वारा इलाके में बिछाया गया था। 

CCF मनोज पांडेय हाथी की मौत की खबर मिलने के बाद घटना स्थल पहुंचें, उन्होंने इस मामले में DFO बिलासपुर, SDO लोरमी, SDO लोरमी (ATR) बफर और वन विकास निगम के परिक्षेत्र अधिकारी को अग्रिम कार्रवाही के निर्देश दिए हैं। विभाग के जिम्मेदार अधिकारी की माने तो सम्भवतः घटना दो दिन पुरानी है। 


© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com