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टाइगर सफारी पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त रोक, सिंघवी ने फैसले को वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट बताया


 रायपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार 17 नवम्बर 2025 को पारित ऐतिहासिक निर्णय में देशभर के टाइगर रिज़र्व प्रबंधन, वन प्रशासन और मानव–वन्यजीव संघर्ष से जुड़े मुआवज़ा ढांचे में व्यापक बदलाव की दिशा तय कर दी है। इस निर्णय ने राज्यों पर तत्काल प्रभाव से कई महत्त्वपूर्ण सुधार लागू करने की जिम्मेदारी भी डाली है।

रायपुर निवासी वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने इस फैसले को “वन्यजीव संरक्षण का टर्निंग पॉइंट” बताते हुए मुख्य सचिव एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को पत्र लिखकर आदेश के तत्काल क्रियान्वयन की माँग की है।

कोर और क्रिटिकल हैबिटेट में टाइगर सफारी पर पूर्ण प्रतिबंध

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोर क्षेत्र और क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट में किसी भी प्रकार की टाइगर सफारी संचालित नहीं की जा सकती। बफ़र क्षेत्र में सफारी की अनुमति भी तभी होगी जब भूमि गैर-वन अथवा अविकसित/अवक्रमित वन भूमि हो और वह किसी टाइगर कॉरिडोर का हिस्सा न हो। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय बाघ संरक्षण और प्राकृतिक आवागमन को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने का निर्देश

अदालत ने सभी राज्यों से मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर तत्काल प्रभाव से कदम उठाने को कहा है। ऐसे मामलों में हर मानव मृत्यु पर 10 लाख रुपये का अनिवार्य एक्स-ग्रेशिया भुगतान किया जाएगा। यह प्रावधान विशेष रूप से हाथियों से प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहतकारी माना जा रहा है।

टाइगर रिज़र्व प्रबंधन में सुधारों पर जोर

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी राज्य सरकारें छह महीनों के भीतर टाइगर कंज़र्वेशन प्लान (TCP) तैयार करें। इसके साथ ही—

O टाइगर रिज़र्वों में लम्बे समय से खाली पड़े पदों को शीघ्र भरा जाए,

O वेटरिनरी डॉक्टर और वाइल्डलाइफ़ बायोलॉजिस्ट के लिए अलग कैडर बनाया जाए, ताकि फील्ड स्तर पर वैज्ञानिक और पेशेवर संरक्षण कार्यों को गति मिल सके।

O फ्रंटलाइन वनकर्मियों के लिए बीमा और सुरक्षा कवच

ड्यूटी के दौरान मृत्यु या पूर्ण विकलांगता की स्थिति में किसी भी वन कर्मी अथवा दैनिक वेतनभोगी को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करने का आदेश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी फील्ड स्टाफ को आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने को भी अनिवार्य किया है।

MSP आधारित फसल मुआवज़े की माँग हुई तेज

अदालत ने राज्यों को फसल क्षति सहित मानव और मवेशियों की मृत्यु के मामलों में सरल एवं समावेशी मुआवज़ा नीति लागू करने की सलाह दी है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में वन्यजीव प्रेमियों और सामाजिक संगठनों ने फसल क्षति मुआवज़ा MSP के आधार पर निर्धारित करने की माँग तेज कर दी है।

वर्तमान में धान की क्षति पर मात्र ₹9,000 प्रति एकड़ मुआवज़ा मिलता है, जबकि किसान को सामान्य परिस्थितियों में लगभग ₹65,000 प्रति एकड़ की प्राप्ति होती है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि न्यूनतम मुआवज़े के कारण किसान फसल बचाने खेतों में जाने को मजबूर होते हैं, जहाँ हाथियों से आमने-सामने की घटनाओं में जान का जोखिम बना रहता है।

रायपुर स्थित वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन एवं जलवायु परिवर्तन) को भेजे पत्र में कहा है कि MSP आधारित मुआवज़ा लागू होने से किसान खेतों की सुरक्षा के लिए रात में जाने को विवश नहीं होंगे, जिससे संघर्ष की घटनाएँ भी कम होंगी और सरकार का आर्थिक बोझ भी अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ेगा। यह आदेश राज्यों के लिए वन्यजीव संरक्षण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में तत्काल और निर्णायक कदम उठाने का अवसर प्रदान करता है।

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