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Tiger death case : सोनहत रेंजर की लापरवाही उजागर, PCCF ने किया निलंबित


बैकुंठपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / कोरिया जिले के सोनहत वनपरिक्षेत्र के असीमांकित ऑरेंज एरिया में 8 नवंबर को नर बाघ का शव मिलने के मामले में जिम्मेदार अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरु हो गई है। इस मामले में सीसीएफ सरगुजा ने मंगलवार को डिप्टी रेंजर व बीटगार्ड को निलंबित किया था। अब पीसीसीएफ ने सोनहत रेंजर विनय कुमार सिंह को भी निलंबित कर दिया है।

पीसीसीएफ वी. श्रीनिवास राव के आदेश से निलंबन आदेश जारी किया गया है। इसमें उल्लेख है कि बाघ विचरणरत था। इसके बावजूद उसकी निगरानी और ग्रामीणों की जानमाल से क्षति से बचाव करने रेंजर सिंह ने कोई विशेष प्रयास नहीं किया और न ही अधीनस्थ अमले से समन्वय स्थापित कर बाघ के पगमार्क के आधार पर कोई प्रभावी कार्रवाई करना पाया है।

CCF सरगुजा ने मंगलवार को डिप्टी रेंजर व बीटगार्ड को निलंबित किया था

इसे भी पढ़ें - कोरिया : छत्तीसगढ़ में फिर एक बाघ की मौत, संरक्षण और सुरक्षा के तमाम दावे फेल। 

मामले में सीसीएफ सरगुजा ने नोटिस  जारी कर जवाब मांगा था। लेकिन निर्धारित समय सीमा में जवाब प्रस्तुत नहीं किया है। मामले में रेंजर विनय कुमार सिंह को निलंबित कर सीसीएफ सरगुजा अटैच कर दिया गया है।

 आपको बताते चलें कि कोरिया वनमंडल के जंगल में 8 नवंबर को दोपहर करीब 1 बजे ग्रामीणों के माध्यम से वन रक्षक गरनई को बाघ का मृत शव पड़े होने की जानकारी मिली थी। यह एरिया ग्राम कटवार के पास खनखोपड़ नाला के किनारे स्थित है। जो कोरिया वनमंडल के बीट गरनई सर्किल रामगढ़ परिक्षेत्र सोनहत के असीमांकित वनक्षेत्र (ऑरेंज एरिया) में आता है।

बाघ की मौत पर हाईकोर्ट गंभीर, PCCF को 10 दिन के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश


 बिलासपुर । 
TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में हाल ही में एक बाघ की मौत की घटना को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए वन विभाग से सख्त जवाब मांगा है और इस मुद्दे पर तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता बताई है। अदालत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं।

           मालूम हो कि गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में 8 नवंबर को बाघ का शव मिला, जिसके पास भैंस का अधखाया शव भी पाया गया। वन विभाग की शुरुआती जांच में बाघ की मौत का कारण जहरखुरानी बताया गया है। वन अधिकारियों का कहना है कि यह घटना बदले की भावना से की गई हो सकती है। इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एके प्रसाद की डिवीजन बेंच ने सोमवार को स्वतः संज्ञान जनहित याचिका के तहत सुनवाई की। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने वन्यजीव संरक्षण में लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि यह छत्तीसगढ़ में बाघ की दूसरी मौत है, जबकि पूरे भारत में पहले ही टाइगर की संख्या सीमित है। उन्होंने राज्य सरकार और वन विभाग से पूछा कि क्या वन्यजीव और जंगलों की रक्षा के लिए कोई ठोस योजना है। चीफ जस्टिस ने कहा, "अगर हम जंगल और वन्यजीव नहीं बचा सके, तो भविष्य में हमारे पास क्या बचेगा।"

अदालत ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को नोटिस जारी कर 10 दिनों के भीतर शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, उन्होंने वन विभाग को निर्देशित किया कि अगली सुनवाई में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए उठाए गए ठोस कदमों की जानकारी दी जाए। वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अपर मुख्य सचिव को भी मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है।

अपने जवाब में वन विभाग की ओर से बताया गया कि घटना स्थल बीट गरनई, सर्किल रामगढ़, परिक्षेत्र सोनहत, कोरिया वन मंडल के पास है। ग्रामीणों से सूचना मिलने के बाद आला अधिकारियों और वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर जांच की। घटनास्थल के आसपास 1.5-2 किमी परिधि में तलाशी ली गई। पशु चिकित्सकों की टीम द्वारा बाघ का पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें जहरखुरानी से मौत की पुष्टि हुई। शव का नियमानुसार अंतिम संस्कार किया गया।

कोरिया : छत्तीसगढ़ में फिर एक बाघ की मौत, संरक्षण और सुरक्षा के तमाम दावे फेल


 बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ की मौत होने का मामला सामने आने से हड़कंप मच गया है। वन अधिकारियों के दावे के अनुसार, बाघ की मौत संभवतः विषाक्त भोजन के कारण हुई है।

 प्राथमिक जांच में संकेत मिले हैं कि इस बाघ ने हाल ही में एक भैंस का शिकार किया था, और कुछ स्थानीय लोगों ने कथित तौर पर बदला लेने के उद्देश्य से भैंस के शव में जहर मिलाया। इसके बाद बाघ के मृत पाए जाने पर वन विभाग ने तीन लोगों को हिरासत में लिया है।मृत बाघ की उम्र लगभग 7-8 साल बताई गई है और उसके शव के पास एक अधखाया भैंस का शव भी मिला है।

 घटनास्थल से लिए गए नमूनों को रायपुर में फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है, जिससे मौत की सही वजह का पता लगाया जा सके।इस घटना से वन्यजीव संरक्षण के मुद्दों पर फिर से चिंता बढ़ गई है और वन अधिकारियों को इस तरह के मामलों की रोकथाम के लिए निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता बताई जा रही है। मालूम हो कि पिछले 20 दिनों से वन विभाग कोरिया जिले में बाघ की निगरानी का दावा कर रहा था.आज उस बाघ का शव मिला है।


Raigarh : करंट से तीन हाथी मरे, क्या लापरवाह बिजली विभाग और बेपरवाह वन अमला मौत की जिम्मेदारी लेगा - सिंघवी


रायपुर  / 
TODAY छत्तीसगढ़  / रायगढ़ जिले के धरघोड़ा वन परिक्षेत्र में चुहकीमार नर्सरी के पास 11kv लाइन के झूलते तार से टकराने के कारण आज तीन हाथियों की मौत हो गई। इस मामले की ख़बर मिलते ही वाइल्डलाइफ और पर्यावरण प्रेमी नितिन सिंघवी ने बिजली कंपनी की लापरवाही और गलती बताते हुए छत्तीसगढ़ पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड से स्पष्ट शब्दों में पूछा है कि वह वन्यजीवों की बिजली करंट से मौत रोकना चाहते हैं या नहीं चाहते ?

हाथियों को बिजली करंट से बचाने लगाई गई थी दूसरी बार जनहित याचिका -

पिछले एक दशक से वन्यजीवों की सुरक्षा, संरक्षण के लिये प्रयासरत नितिन सिंघवी द्वारा दूसरी बार लगाई गई जनहित याचिका का निराकरण हाल (03 अक्टूबर 2024) ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय ने किया। तब बिजली कंपनी ने स्वीकार किया कि वह बिजली लाइन की ऊंचाई बढ़ाकर बिजली लाइनों को कवर्ड कंडक्टर में और एरियल बंच केबल में चरणबद्ध तरीके से करेंगे। श्री सिंघवी ने बिजली कंपनी से पूछा कि चरणबद्ध तरीके से यह कार्य कैसे होगा और कब तक होगा ? बिजली कंपनी को खुलासा करना चाहिए।

बिजली कंपनी बताए कि उसने 1674 करोड़ क्यों मांगे -

नितिन सिंघवी ने खुलासा किया कि 2018 में जब पहली बार उन्होंने हाथियों को बिजली करंट से बचाने के लिए जनहित याचिका दायर की थी तब बिजली कंपनी ने वन विभाग से 33 केवी  की 810 किलोमीटर लाइन, 11 केवी की 3781 किलोमीटर  लाइन में बेयर कंडक्टर  के स्थान पर कवर्ड कंडक्टर लगाने के लिए और निम्न दाब की 3976 किलोमीटर लाइन के तारों को एरियल बंच केबल में करने और सभी लाइन की ऊंचाई बढ़ाने के लिए रुपए 1674 करोड़ वन विभाग से मांगे थे। जबकि 2024 में बिजली कंपनी ने लागत की जो जानकारी दी है उसके हिसाब से यह काम 6 साल बाद भी 975 करोड रुपए में हो सकता है। अगर यह काम 6 साल पहले ही कर दिया जाता तो यह काम अधिकतम 300 करोड रुपए में हो जाता और उन इलाको में वन्यजीवों की मौते, शिकार और बिजली चोरी रुक जाती। 

इस गति से करेंगे तो 150 साल लगेंगे -    

बिजली कंपनी ने पिछले छ: सालो में बिजली तारों के लूज पॉइंट सुधारने, कुछ पोल लगाने और और प्रस्तावित 3976 किलोमीटर निम्नदाब लाइन में से सिर्फ 239 किलोमीटर को बदला, 33 केवी और 11 केवी की एक किलोमीटर लाइन भी कवर्ड कंडेक्टर में नहीं बदली। अभी तक सिर्फ 34 करोड रुपए खर्च किया है यानी प्रतिवर्ष 6 करोड़। इसी गति से अगर बिजली कंपनी काम करेगी तो बिजली लाइन की ऊंचाई बढाकर कवर्ड कंडक्टर करने में 150 साल से ज्यादा लगेंगे। बिजली कंपनी को खुलासा करना चाहिए कि 6 साल पहले उसने 1674 करोड रुपए वन विभाग से मांग कर विवाद की स्थिति क्यों उत्पन्न की और छ: साल बाद अब काम करने को क्यों तैयार हो गई? जब कि भारत सरकार की पहले से जारी गाइडलाइंस के अनुसार बिजली कंपनी को मालूम था कि ये कार्य उसे ही करना है। 

45 प्रतिशत हाथी पिछले छ: साल में मरे -

पिछले 6 सालों में ही बिजली करंट से 35 हाथी मरे हैं जो कि अभी तक बिजली करंट से मरे 78 हाथियों का 45 प्रतिशत होता है। 2001 से लेकर 2024 तक कुल 224  हाथियों की मौत हुई उनमे से 78 हाथी बिजली करंट से मरे हैं। 

वन विभाग भी सो रहा था क्या ? 

भारत सरकार की गाइडलाइंस कहती है कि बिजली कंपनी और वन विभाग संयुक्त रूप से वनों से गुजर रही बिजली लाइनों का निरीक्षण समय-समय पर करेंगे और वन विभाग भी बिजली कंपनी को झूलती लाइनों के बारे में बताएगा। जानकारी के अनुसार जिस लाइन से टकराकर के हाथियों की मौत हुई वह कई दिनों से झूल रही थी और वन विभाग की नर्सरी के पास ही थी। ऐसा लगता है कि वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी भी सो रहे थे जब कि सभी को मालूम था कि वहां हाथी विचरण होता है। 

जहां सबसे ज्यादा खतरा वहां सबसे पहले लाइनों को ठीक कराया जाए - 

2018 की याचिका का निराकार करते वक्त उच्च न्यायालय ने कहा है कि धरमजयगढ़ क्षेत्र में सबसे ज्यादा हाथियों की मृत्यु करंट से हो रही है।  सिंघवी ने मांग की कि बिजली कंपनी और वन विभाग को चाहिए कि वह उन इलाकों में जहां पर लाइन नीचे हैं सबसे पहले लाइनों को भारत सरकार की गाइडलाइंस के अनुसार 20 फीट ऊंचा करें और बजट के अनुसार ऐसे क्षेत्रों में सबसे पहले कवर्ड कंडक्टर और एरियल बंच केवल लगाने का कार्य करें।

लापरवाही : वन विभाग की नर्सरी में झूलते बिजली तार की चपेट में आये तीन हाथी मृत



रायगढ़ / TODAY छत्तीसगढ़  / जिले के घरघोड़ा वन परिक्षेत्र में शुक्रवार की रात चुहकीमार स्थायी रोपणी के पास करंट की चपेट में आने से 3 हाथियों की मौत हो गई, जिसमें दो वयस्क और एक शावक शामिल है। 

 चुहकीमार स्थायी रोपणी के पास शनिवार सुबह तीन हाथियों का शव देखकर विभाग के कर्मियों का हाथ पाँव फूल गया, सूचना पर विभाग के अफसर मौके पर पहुंचें और तमाम औपचारिकता के बीच हाथियों का शव पंचनामा कार्रवाही के बाद उठाया गया ।  हाथियों की मौत नर्सरी में झूल रहे 11 KV विधुत तार की चपेट में आने से हुई है। बताया जा रहा है कि ये रास्ता हाथियों के विचरण का है, बावजूद इसके झूलते बिजली के तारों को विभाग ने नज़रअंदाज किया।  मौके पर करंट की वजह से आस-पास की घास भी जली हुई मिली हैं। 

इधर छत्तीसगढ़ पर्यावरण सरंक्षण समिति के ब्लॉक अध्यक्ष सोमदेव मिश्रा की माने तो  यह बिजली विभाग की लापरवाही है। करंट प्रवाहित तार काफी नीचे झूल रहा था, जबकि घरघोड़ा रेंज में हाथियों का दल अभी काफी संख्या में घूम रहा है, जिससे हाथी करंट की चपेट में आ गए और उनकी मौत हो गयी है। 

अब बाघ की तस्वीरें सोशल साइट्स पर अपलोड हुई तो खैर नहीं - NTCA

 गोंदिया  /  यूं तो बाघ हर किसी के आकर्षण का विषय है. जंगल में सफारी पर नमा जाने के बाद बाघों को देखकर पर्यटकों की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाती है. उनकी तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर अपलोड की जाती हैं. जिससे शिकारियों व को बाघों की लोकेशन मिलती है और उससे बाघों के शिकार का डर रहता है. अतः सुरक्षा की दृष्टि से व्याघ्र प्रकल्प में बाघों का नामकरण व उनके स्थान की घोषणा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालाँकि NTCA के दिशा निर्देशों को ताक पर रखकर पर्यटकों से ज्यादा तस्वीरें देश के विभिन्न टाईगर रिजर्व के गाईड और ड्राईवर पोस्ट करते हैं। ऐसा करने से उनका व्यापार बढ़ता है लेकिन उनकी आर्थिक मजबूती के पीछे बाघ असुरक्षित और अक्सर खतरे में होता है। 

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने बाघों के नामकरण के लिए नियम बनाए हैं. इसके मुताबिक किसी बाघ का नाम C-1, C-2, T-1, T-2 रखे जाने की उम्मीद है. जिन बाघों का कोई नाम नहीं होता उनकी पहचान कोडवर्ड से की जाती है. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क सहित देश के विभिन्न अभ्यारण्य एनटीसीए नियमों का पालन करते हैं. जारी पत्रक के मुताबिक अब किसी भी बाघ का नामकरण नहीं किया जाएगा और किसी भी बाघ की पहचान नाम से नहीं की जाएगी. 

अगर कोई बाघों का नाम बताता है तो सबूत मिलने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसी के तहत यह फैसला लिया गया है. साथ ही सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और अन्य साइट्स से पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों से जुड़े बाघों के नाम हटाने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही पर्यटकों को सोशल मीडिया पर बाघों की तस्वीरें और लोकेशन दिखाने पर भी रोक लगा दी गई है. प्रशासन के नियमों का उल्लंघन करने पर रिसॉर्ट, होम स्टे मालिक, टूरिस्ट गाइड और जिप्सी चालक समेत विभाग के कर्मचारी या गाइड के खिलाफ निलंबन के साथ स्थायी प्रतिबंध का आदेश दिया जाएगा. सभी गाइड, जिप्सी चालकों, रिसॉर्ट मालिकों के साथ होम स्टे प्रदाताओं को नियमों की जानकारी देते हुए एक पत्रक भेजा गया है.

"सोशल मीडिया और खासतौर पर फेसबुक और वाॅट्स एप्प पर बाघों की तस्वीरों के लगातार वाइरल होने पर नेशनल टाइगर कंनसर्वेशन एथोरिटी (एनटीसीए) ने आपत्ति जताई है। पिछले कुछ सालों में बाघों की तस्वीरों को सोशल साइट्स पर शेयर करने का चलन बढ़ा है।  इस पर ध्यान देते हुए बाघों की सुरक्षा के लिये काम कर रही सर्वोच्च संस्थान एनटीसीए ने देशभर के सभी चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डनों को पत्र लिखकर अपने इलाकों में खासतौर पर अपने स्टाफ को इस तरह की तस्वीरों को शेयर करने से मना करने को कहा है।पत्र में एनटीसीए ने कहा है कि इस पिछले कुछ समय से बाघों की जंगलों में तस्वीरें और कैमरा ट्रेप में कैद तस्वीरें सोशल मीडिया में शेयर करती देखी गई हैं। ये बाघों की सुरक्षा के लिये हानिकारक है क्योंकि इनसे शिकारियों को बाघों की लोकेशन का अंदाजा लग सकता है।"

नाम लोकप्रिय होने पर शिकारी हो जाते हैं सक्रिय मानवीय कारणों से बाघों या अन्य वन्यजीवों की वनों की कटाई से उन जीवों को लाभ की बजाय अधिक नुकसान होता है. यह वन्यजीवों पर मानवीय भावनाओं को थोपता है. लोग बाघों को पालतू जानवर मानते हैं और वे बाघों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करते हैं. ये सब खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा, यदि बाघों का नाम अधिक लोकप्रिय हो जाता है, तो शिकारियों के गिरोह सक्रिय हो जाते हैं और उन्हें पकड़ने की योजना बनाते हैं. कई बाघों का नाम वन्यजीव प्रेमियों द्वारा रखा गया है जो नियमित सफारी लेते हैं. इसमें माया, छोटी, मटकासुर, तारा, माधुरी, सोनम, शर्मिली, जूनाबाई, सूर्या आदि नाम चर्चा में थे .


CHHATTISGARH : हाथी-मानव द्वंद कम करने के लिए फसल मुआवजा राशि बढ़ाने की मांग

फोटो / सत्यप्रकाश पांडेय 
रायपुर /   TODAY छत्तीसगढ़  /  हाथियों और वन्यजीवों के लिए कार्यरत प्रदेश के एन.जी.ओ. और  वन्यजीव प्रेमियों ने मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि हाथियों से प्रभावित फसलों की वर्तमान में निर्धारित मुआवजा राशि रुपये 9 हजार से बढ़ाकर रुपये 50 हजार प्रति एकड़ की जाए, इससे किसानों और ग्रामीणों की नाराजगी कम होगी और फसल बचाने जाते वक्त अचानक हुए हमलों से होने वाली जनहानि में भी कमी आएगी। हाथियों से फसल नुकसान बचाने के लिए किसान खेतों में सोने नहीं जायेंगे। इससे हाथी मानव द्वंद कम होगा। 50 हजार की दर से भुगतान करने पर किसान अपनी जान जोखिम में डाल कर फसल बचाने हाथी का सामना नहीं करेंगे और ना ही हाथियों को परेशान कर भगाने का प्रयत्न करेंगे, जिसमे जन हानि हो जाती है। कुछ किसान कई बार हाथी सहित अन्य वन्यप्राणियों से फसल बचाने के लिए तार में बिजली प्रभावित कर देते है, जिससे हाथी और अन्य वन्यप्राणि ही नहीं बल्कि ग्रामीणों की मृत्यु की भी घटनाएं बढ़ रही है।   

2016 की दरों पर दिया जा रहा है हाथी से फसल हानि का मुआवजा  -

एन.जी.ओ. नोवा नेचर वेलफेयर सोसाईटी रायपुर के एम.सूरज, नव उत्थान संस्था अंबिकापुर के प्रभात दुबे, नेचर बायोडायवर्सिटी एसोसिएशन बिलासपुर के मंसूर खान, पीपल फॉर एनिमल्स रायपुर यूनिट-2 रायपुर की कस्तूरी बल्लाल, रायपुर के वन्यजीव प्रेमी गौरव निहलानी और नितिन सिंघवी ने संयुक्त लिखे पत्र में बताया गया है कि वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट के अनुसार छत्तीसगढ़ में देश के 1 प्रतिशत हाथी है जबकि हाथी मानव द्वन्द से जनहानि की दर 15 प्रतिशत से अधिक है। वर्तमान में प्रचलित, हाथियों द्वारा फसल हानि की क्षतिपूर्ति की दर 8 वर्ष पहले 2016 में, तत्कालीन दरों से रुपए 9 हजार प्रति एकड़ निर्धारित की गई थी। वर्ष 2016 में धान की मिनिमम सेल्लिंग प्राइस अर्थात एम.एस.पी. रुपए 1410 प्रति क्विंटल थी। छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी दर बढ़ कर 2024 में रुपए 3100 प्रति क्विंटल हो गई है। तुलना करने पर रुपए 1410 से 120 प्रतिशत बढ़ कर 2024 में 3100 प्रति क्विंटल हो गई है। किसानों को फसल हानि की क्षतिपूर्ति तब ही दी जाती है जब कम से कम 33 प्रतिशत का नुकसान हुआ हो।

क्यों दी जाए 50 हजार की हाथी से फसल हानि क्षतिपूर्ति -

किसानों से सरकार 21 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदती है। रुपए 3100 प्रति क्विंटल की दर से किसान को प्रति एकड़ रुपए 65,100 की राशि धान बिक्री से प्राप्त होती है और उसका प्रति एकड़ खर्चा लगभग रुपए 15 हजार कम कर दिया जावे तो किसान को प्रति एकड़ रुपए 50 हजार की बचत होती है। इसलिए धान की फसल की क्षतिपूर्ति की दर कम से कम रु 50 हजार प्रति एकड़ की जाये।

बजट की सिर्फ 0.05 प्रतिशत राशि से जन हानि कम होगी  -

वर्तमान में, छत्तीसगढ़ में हाथियों द्वारा फसल हानि पर रुपए 9 हजार प्रति एकड़ की दर से औसत क्षतिपूर्ति रुपए 15 करोड़ प्रतिवर्ष दी जाती है। अगर धान फसल की क्षतिपूर्ति रुपए 50 हजार प्रति एकड़ कर दी जाती है तो राज्य सरकार को 65 करोड रुपए का अतिरिक्त व्यय आएगा। जो कि राज्य के रुपए 1,25,000 लाख करोड़ के बजट का सिर्फ 0.05 प्रतिशत ही होगा। अतिरिक्त क्षतिपूर्ति राशि मिलना सुनिश्चित पाए जाने पर ग्रामीणों में नाराजगी कम होने के साथ साथ किसानों/ग्रामीणों के मध्य मानव-हाथी द्वन्द कम होगा जिससे जनहानि कम होने के साथ साथ वन्यप्राणी की भी रक्षा होगी और जनहानि पर दी जाने वाली राशि भी कम होगी। इसी के साथ अन्य फसलों पर भी अतिरिक्त क्षतिपूर्ति राशि की भी मांग की गई है।

किसानों को फसल हानि की क्षतिपूर्ति भुगतान के लिए एप विकसित किया जाये -

पत्र में मांग की गई है कि किसानों को फसल हानि की क्षतिपूर्ति भुगतान करने के लिए कम से कम 33 प्रतिशत फसल के नुकसान की शर्त खत्म की जाये और फसल हानि क्षतिपूर्ति भुगतान के लिए एप विकसित किया जावे ताकि शीघ्र भुगतान हो सके।


400 किमी चलकर ATR आई बाघिन : सिर्फ बाघों का आवास नहीं, टाईगर कॉरिडोर्स को भी बचाना होगा - रजनीश सिंह


 बिलासपुर /
  TODAY छत्तीसगढ़  /  मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में स्थित पेंच नेशनल पार्क की एक बाघिन नए ठिकाने की तलाश में छत्तीसगढ़ राज्‍य के अचानकमार टाइगर रिजर्व पहुंच गई है. साल 2022 के अखिल भारतीय बाघ ऑकलन के दौरान यह बाघिन सिवनी पेंच नेशनल पार्क के कर्माझिरी और घाटकोहका परिक्षेत्र में लगे कैमरों में दर्ज हुई थी. दो साल बाद यह बाघिन की लोकेशन अचानकमार टाइगर रिजर्व में पाई गई है.

भारतीय वन्‍यजीव संस्‍थान टाइगर सेल के वैज्ञानिकों ने अचानकमार टाइगर रिजर्व के द्वारा उपलब्‍ध कराए गए बाघिन के फोटोग्राफ का मध्‍य भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों के टाइगर के डॉटाबेस से मिलान कर किया. जिसमें पेंच टाइगर रिजर्व की बाघिन से धारियों के मिलान के आधार पर पुष्टि की गई. अचानकमार प्रबंधन ने बताया कि यह बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में 2023 शीत ऋतु के पहले से ही देखी जा रही है.

पेंच से चलकर अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन, रास आ रही ATR की आबो हवा 

यह खबर सभी वन्‍यजीव प्रेमियों के लिए हर्ष और गौरव का क्षण हैं. क्‍योंकि बाघिन ने लगभग 400 किमी से अधिक की दूरी तय करके अपने नए आवास में गई है. यह खोज इस दृष्टि से भी महत्‍वपूर्ण है कि इससे आमजन को कॉरीडोर के संरक्षण की आवश्‍यकता और महत्‍व को समझाने में मदद मिलेगी.

माना जा रहा है कि बीच का एक साल वह कान्हा के जंगल में रही होगी। जिसने एक-दो और 10 नहीं बल्कि पूरे 400 किमी का सफर तय कर यहां पहुंची है। इस बाघिन ने मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व से 2022 में अपना सफर शुरु किया था और 2023 में इसे अचानकमार टाइगर रिजर्व में देखा गया और तब से ये बाघिन अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण कर रही है। अचानकमार टाइगर रिजर्व में इसकी तस्वीर सबसे पहले शीतऋतु की गणना के दौरान सामने आई।

दूसरे टाइगर रिजर्व से अचानकमार टाइगर रिजर्व में बाघों का आना बेहतर संकेत है। अभी बिलासपुर से कान्हा को बाघ कारीडोर माना जा रहा था। लेकिन, इसका दायरा बढ़कर पेंच तक पहुंच गया। अचानकमार के अलावा भी ओडिशा, महाराष्ट्र के टाइगर रिजर्व से भी छत्तीसगढ़ में बाघ पहुंच रहे हैं। वन विभाग को अब कारीडोर पर बेहतर काम करना होगा।

इस मामले में पेंच टाईगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह से बातचीत हुई, रजनीश सिंह का कहना है - 

"बाघों की फितरत होती है आवास और जीवन साथी की तलाश में अक्सर वे बहुत दूर-दूर तक सफर कर लेते हैं। करीब 400 किमी चलकर पेंच से अचानकमार टाईगर रिजर्व पहुँची बाघिन इस बात को बल देती है कि सिर्फ बाघों का आवास बचाने से काम नहीं चलेगा, टाईगर कॉरिडोर को भी बड़ी जिम्मेदारी के साथ बचाकर सुरक्षित रखना होगा। बाघ और पृथ्वी को बचाने के लिए कॉरिडोर्स का सुरक्षित रहना बहुत जरुरी है। पेंच से कान्हा और कान्हा से अचानकमार टाइगर कॉरिडोर के रास्ते ही ये बाघिन वहां पहुँची होगी। "

बारनवापारा अभ्यारण्य में बटरफ़्लाई मीट 21 से 23 अक्टूबर तक, पंजीयन शुल्क में छात्रों को रियायत


रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  / वन विभाग एवं बारनवापारा अभ्यारण्य के संयुक्त तत्वाधान में 21 से 23 अक्टूबर 2024 को अभ्यारण्य में बटरफ्लाई मीट का आयोजन किया जाएगा। जिसके माध्यम को प्रकृति प्रेमियों को तितलियों को करीब से जानने और पहचानने का मौका मिलेगा। साथ ही विषय विशेषज्ञों द्वारा तितलियों के पर्यावास एवं उनके महत्त्व के संबध में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रतिभागियों के साथ साझा की जाएंगी। उक्त आयोजन की तीसरी कड़ी है। इसके पूर्व 2022 एवं 2023 में यह आयोजन किया गया था। विभाग द्वारा बटरफ्लाई मीट की तैयारी पूरी कर ली गई है। आयोजन में भाग लेने एवं जानकारी प्राप्त करने के लिए क्यू आर कोड भी जनरेट किया गया है जिसके माध्यम से आसानी से पंजीयन कराया जा सकता है। बटरफ्लाई मीट में प्रतिभागी स्टूडेंट के 15 सौ रूपये एवं अन्य व्यक्तियों के लिए 2 हजार रूपये पंजीयन शुल्क रखा गया है। इसके साथ ही भाग लेने के लिए 18 वर्ष से 60 वर्ष की आयु निर्धारित की गई है।

गौरतलब है कि बारनवापारा अभ्यारण्य में 150 प्रजाति के तितली एवं मोथ पायी जाती हैं। जिसमे से वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की शेड्यूल वन की क्रिमसन रोज (पैचीलौप्टा हेक्टर) डनाइड इगली (हाइपो सिलिमस मिसीपस) शेड्यूल दो की सिपोरा निरिसा,होगारा एनेक्स, यूक्रीशॉप्स सीनेजस, जेनेलिया लेपीडिया रपेला वरुणा,लैंपिडर्स बोइहन, तजुना शिप्स आदि पाई जाती है। शेड्यूल छह के भी बहुत से प्रजातियां पाई जाती हैं। विगत तीन वर्षों से बारनवापारा अभ्यारण्य में 14-16 हाथियों का दल निवास कर रहा है। साथ ही साथ विगत 8 माह से एक बाघ लगातार अभ्यारण्य में विचरण कर रहा है। बारनवापारा नाम बार और नवापारा गाँव से मिलकर बना है। बारनवापारा अभ्यारण्य अपनी स्थापना के बाद से ही देश के हर हिस्से से पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। बारनवापारा वन्यजीव अभ्यारण्य छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार भाटापारा जिले में स्थित है। अभ्यारण्य का कुल क्षेत्रफल 244.66 वर्ग किमी है। अभ्यारण्य की स्थलाकृति समतल और लहरदार इलाका है। ऊँचाई 640 मीटर समुद्र तल तक है। बालमदेही,जोंक और महानदी नदियाँ अभयारण्य की जीवन रेखा हैं जो अभयारण्य की जल कमी को पूरा करने के लिए अभयारण्य के साथ बहती हैं। वार्षिक वर्षा 1200 मिमी है इस अभ्यारण्य में सागौन, साल और मिश्रित वन की मुख्य वनस्पति है। पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए इसमें शिकार और शिकारियों का अच्छा घनत्व है। अभ्यारण्य के अंदर स्थित बलार जलाशय में कई आर्द्रभूमि पक्षी और मछलियाँ पाई जाती हैं। यह अभ्यारण्य लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए इकोटूरिज्म को बढ़ावा देता है।

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बारनवापारा तक पहुँचने के लिए रायपुर से सड़क मार्ग से दो घंटे का सफर करना पड़ता है। यह रायपुर से NH53 पर 78वें किलोमीटर पर 106 किलोमीटर दूर है। पटेवा एक छोटा शहर है जहाँ बारनवापारा से 28 किलोमीटर की दूरी पर मौसम अनुकूल सड़क पर गाड़ी चलाकर पहुँचा जा सकता है।



C.G. : बिजली करंट से हाथियों की मौत, मामले में हाईकोर्ट ने कहा भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दतः और मूल भावना में पालन किया जाये


रायपुर /  TODAY छत्तीसगढ़  /  हाथियों की बिजली करंट से हो रही मृत्यु को लेकर दूसरी बार दायर की गई जनहित याचिका में वन विभाग ने कोर्ट में शपथपत्र देकर कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी अब भारत सरकार द्वारा हाथियों को बिजली करंट से बचाने के लिए कार्य करेगी। इसके लिए बिजली कंपनी ने निर्देश भी जारी किये है। इसके उपरांत मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. डी. गुरु की युगलपीठ ने रायपुर के नितिन सिंघवी द्वारा दायर जनहित याचिका का निराकरण यह कहते हुए किया कि भारत सरकार की गाइडलाइंस का शब्दतः और मूल भावना में पालन किया जाये। 

क्या है भारत सरकार की गाइडलाइंस - 

भारत सरकार की वर्ष 2016 की गाइडलाइंस के अनुसार हाथी जैसे वन्य प्राणियों को बिजली करंट से बचाने के लिए हाथी की सूंड जहां तक जा सकती है इतनी ऊंचाई तक विद्युत लाइन रखनी है। गौरतलब है कि पीछे के पांव पर खड़े होने पर और सूंड ऊपर उठाने पर एक व्यस्क हाथी की लंबाई 20 फीट तक हो सकती है। गाइडलाइंस के अनुसार बिजली कंपनी हाथियों के मूवमेंट वाले वन क्षेत्र में विद्युत लाइनों की ऊंचाई 20 फीट करने और विद्युत तारों को कवर्ड कंडक्टर में बदलने या अंडरग्राउंड केबल बिछाने के लिए कार्य करेगी। कंपनी समय-समय पर झुकी हुई बिजली की लाइनों और बिजली के खम्बों को ठीक करने के अलावा बिजली के खम्बों पर 3 से 4 मीटर तक बारबेट वायर लगाएगी ताकि वन्य प्राणी सुरक्षित रहे। हाथी विचरण क्षेत्र में बिजली कंपनी जंगली जानवरों के शिकार हेतु फैलाए जाने वाले स्थान एवं फसलों एवं घरों की सुरक्षा हेतु बनाए गए घेरे में विद्युत फैलाए जाने की नियमित जांच करेगी और अस्थाई पंप और अवैध विद्युत कनेक्शन की भी जांच करेगी। प्रोटेक्टेड एरिया अर्थात नेशनल पार्क, टाइगर रिजर्व, अभ्यारण, एलिफेंट कॉरिडोर में वन विभाग के साथ वर्ष में दो बार संयुक्त सर्वे करेगी। 

आपको बताते चलें कि 26 जून 2024 को अपर मुख्य सचिव वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की अध्यक्षता में ऊर्जा विभाग, विद्युत वितरण कंपनी और वन विभाग के अधिकारियों की बैठक में निर्णय लिया गया कि हाथियों को बिजली करंट से बचाने के लिए भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी गाइडलाइंस का पालन किया जावेगा। बैठक में निर्देश दिए गए की ऊर्जा विभाग बिजली के 11 केवी, 33 केवी लाइन एवं एलटी लाइन के झुके हुए तारों को कसने का काम, तार की ऊंचाई बढ़ाने का काम तथा वन क्षेत्र, हाथी रहवास, हाथी विचरण क्षेत्र में भूमिगत बिजली की लाइन बिछाने अथवा इंसुलेटेड केबल लगाने का कार्य करेंगे। इसके बाद प्रधान मुख्य संरक्षण (वन्यप्राणी) द्वारा सितम्बर में ली गई बैठक में बिजली कंपनी ने बताया कि पंप कनेक्शन के लिए केबल कार्य लगाने का कार्य जारी है। बेयर कंडेक्टर को कवर्ड कंडेक्टर में बदलने का कार्य चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा। वन विभाग ने 2333 लूज पॉइंट को चिन्हित किया गया है जहां सुधार कार्य मार्च 2025 तक करा लिया जायेगा।

जानकारी के मुताबिक़ हाथियों की बिजली करंट से हो रही मृत्यु को लेकर 2018 में सिंघवी द्वारा दायर की गई पहली  जनहित याचिका में विद्युत वितरण कंपनी ने लगभग 8500 किलोमीटर 33 केवी, 11 केवी और निम्न दाब लाइनों की ऊंचाई बढ़ाने और बेयेर कंडक्टर के स्थान पर कवर्ड कंडक्टर और एबीसी केबल लगाने के लिए रुपए 1674 करोड की मांग वन विभाग से की थी। तब से दोनों विभाग खर्चा वहन करने के लिए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे थे। इसको लेकर 2021 में पुनः सिंघवी द्वारा जनहित याचिका दायर कर मांग की गई कि खर्चा कौन वहन करेगा इसकी जवाबदारी तय की जावे। 

प्रकृति की यात्रा पर निकले विदेशी मेहमान प्यास बुझाने और थकान मिटाने मोहनभाठा में उतरे


 बिलासपुर /  
TODAY छत्तीसगढ़  /  मोहनभाठा, आज (06 सितम्बर 2024) के ख़ास मेहमान यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू कैमरे का मुख्य आकर्षण रहे। दिन भर की तलाश के बाद अचानक जैकपॉट लगा, 16 की संख्या में एक साथ Eurasian Curlew मैदान में उतरे। मैंने इसके पहले साल 2020 में Eurasian Curlew को मोहनभाठा के इसी मैदान में 8 की संख्या में रिकार्ड किया है।  कहते हैं ना उम्मीदें जब पूरी हो जायें तो बांछे खुद-ब-खुद खिल उठती हैं। मेरे साथ आज कुछ ऐसा ही हुआ। ये बाते और पक्षियों की तस्वीरें खींचने वाले वाइल्डलाइफ फोटो जर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने कहीं। उन्होंने इस खूबसूरत और आकर्षक विदेशी मेहमान की कुछ तस्वीरों साथ इंटरनेट से हासिल की गई जानकारी भी साझा की है   .... 

यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू (न्यूमेनियस अर्क्वेटा) बड़े परिवार स्कोलोपेसिडे में एक वेडर है। यह यूरोप और एशिया में प्रजनन करने वाले कर्ल्यू में सबसे व्यापक रूप से फैला हुआ है। यूरोप में, इस प्रजाति को अक्सर "कर्ल्यू" के रूप में संदर्भित किया जाता है, और स्कॉटलैंड में इसे "व्हाउप" के रूप में जाना जाता है। 

यूरेशियन कर्ल्यू अपनी सीमा में सबसे बड़ा वेडर है, जिसकी लंबाई 50-60 सेमी (20-24 इंच) है, जिसका पंख फैलाव 89-106 सेमी (35-42 इंच) है और शरीर का वजन 410-1,360 ग्राम (0.90-3.00 पाउंड) है। यह मुख्य रूप से भूरे रंग का होता है, जिसकी पीठ सफ़ेद, पैर भूरे-नीले और बहुत लंबी घुमावदार चोंच होती है। नर और मादा एक जैसे दिखते हैं, लेकिन वयस्क मादा में चोंच सबसे लंबी होती है। आम तौर पर एक यूरेशियन कर्ल्यू या कई कर्ल्यू के लिंग को पहचानना संभव नहीं है, क्योंकि उनमें बहुत भिन्नता होती है; हालाँकि, संभोग करने वाले जोड़े में नर और मादा को अलग-अलग पहचानना आम तौर पर संभव है। परिचित आवाज़ ज़ोर से कर्लू-ऊ होती है।

कर्ल्यू की अधिकांश सीमा में एकमात्र समान प्रजाति यूरेशियन व्हिम्ब्रेल (न्यूमेनियस फेओपस) है। व्हिम्ब्रेल छोटा होता है और इसमें चिकनी वक्र के बजाय एक मोड़ के साथ एक छोटी चोंच होती है। फ्लाइंग कर्ल्यू अपने सर्दियों के पंखों में बार-टेल्ड गॉडविट्स (लिमोसा लैपोनिका) से मिलते जुलते हो सकते हैं; हालाँकि, बाद वाले का शरीर छोटा होता है, थोड़ी ऊपर की ओर उठी हुई चोंच होती है, और पैर जो उनकी पूंछ की नोक से बहुत आगे तक नहीं पहुँचते हैं। यूरेशियन कर्ल्यू के पैर लंबे होते हैं, जो एक विशिष्ट "बिंदु" बनाते हैं।

" पहले मुझ पर पांच लोगों की हत्या का आरोप लगाया, फिर जंजीरों से जकड़कर ज़ुल्म की इन्तेहा पार की "

" एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। "


 2015 की बात है, मैं 15 साल का था, अपने 15 सदस्य परिवार के साथ छत्तीसगढ़ के अचानक मार्ग टाइगर रिजर्व (रिजर्व) पंहुचा। हम हाथियों के परिवार में नर हाथी को 10 से 15 वर्षों की आयु में अलग कर दिया जाता है ताकि एक ही खून से वंशवृद्धि ना हो। मैं अपने परिवार और मां से बहुत प्यार करता था परंतु परिवार मुझे अकेला छोड़कर चला गया। रिजर्व में मैं अकेला जंगली हाथी था। अकेले में बहुत रोना आता था, अकेला घूमता था, अनाज खाने की लालच से ग्रामीणों के घर पहुंच जाता था, जरा सा छूने से दीवाल गिर जाती। जब मेरा परिवार रिजर्व आया था तो किसी सदस्य से एक जनहानि हो गई थी परंतु मुझ पर पांच लोगों को मारने का आरोप लगाया गया। विश्वास मानिए आज तक मुझसे एक भी जनहानि नहीं हुई, मैं बहुत शांत स्वभाव का हूं। खैर आदेश जारी हुआ मुझे पड़कर दूसरे हाथी रहवास में छोड़ दिया जावे। 

छत्तीसगढ़ के दो डॉक्टरों की टीम मुझे पकड़ने के लिए लगाई गई। रिजर्व में चार बंधक हाथी भी थे सिविल बहादुर, राजू, लाली और लाली की 10 साल की बेटी पूर्णिमा। मुझे हनी ट्रैप करने के लिए पूर्णिमा को जबरदस्ती जंगल में खदेड़ा जाता था। पूर्णिमा पास आती तो मैं पसंद नहीं करता था अपने छोटे हाथी दांतों से उसे मार भगा देता था। ऐसा कई दिन चला और एक दिन डाक्टरों ने मुझे बेहोश कर पकड़ लिया और उसी जगह ले गए जहां पर बाकी चार हाथी थे परंतु पूर्णिमा नहीं थी। मुझे बाद में पता चला कि मुझे पकड़ने के एक दिन पहले जब अपनी मां लाली के साथ खेल रही थी तब अचानक गिरी और मर गई। पोस्टमार्टम में उसे अंदरूनी चोटें शायद मेरे दांतों से लगी थी, परंतु दस साल की बच्ची को हनी ट्रैप के लिए मैंने तो नहीं बुलाया था, डॉक्टरों ने ही भेजा था। 

एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। मेरे इलाज के लिए भारतीय एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने दो डॉक्टर दूसरे प्रदेशों से भेजें। डॉक्टरों ने इलाज किया और अपनी रिपोर्ट दी, कहा मैं चार सप्ताह में ठीक हो जाऊंगा और उसके बाद मुझे जंगल में छोड़ दें। डॉक्टर ने लाली, सिविल, राजू की दुर्दशा भी रिपोर्ट में लिखी। सिविल बहादुर के मुंह के अंदर बहुत बड़ा फोड़ा था, जिसका इलाज भी नहीं किया गया था। सिविल, राजू, लाली के सामने के दोनों पांव को ऐसे बाँध कर रखे जाते थे कि वे आगे पीछे भी नहीं हो सकें। डॉक्टरों ने रिपोर्ट में किसी बड़ी सर्विस के दो अधिकारियों द्वारा मुझ पर अत्याचार करने के लिए बहुत भर्त्सना की, कहा अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। कोर्ट में अधिकारियों ने कहा ठीक होते ही मुझे छोड़ देंगे। 

चार सप्ताह में मैं ठीक हो गया, खुश हो रहा था कि अत्याचार से आजादी मिलेगी। परन्तु अधिकारियों को बहुत बुरा लगा था कि दो पशु चिकित्सकों ने उनकी भर्त्सना कर दी। बस अपनी औकात और हैसियत बताने के लिए अधिकारियों ने मुझे नहीं छोड़ा। छोटा अधिकारी कहता था कि मैं पालतू हो गया हूं। मेरे ऊपर महावत को बैठा कर, लोहे के नुकीले अंकुश से मेरे कान के पीछे की नस जोर से दबाकर महावत कहता बैठ, तो दर्द के कारण में बैठ जाता, तो छोटा अधिकारी कहता यह तो पालतू हो गया, इसे कैसे छोड़ा जाए और मुझे नहीं छोड़ा गया। बड़ा अधिकारी पहले से ही मुझे पालतू बनाना चाहता था। चार महीने बाद बाहरी डॉक्टरों की टीम दोबारा आई लिख कर दिया कि मुझे तत्काल जंगल में छोड़ दिया जाए परंतु मेरी किस्मत में सुख नहीं लिखा था। 

कोर्ट के कहने पर डेढ़ साल बाद फिर वही डॉक्टरों की टीम बुलाई गई, डॉक्टर ने कहा कि डेढ़ साल हो गए, मुझे एक बार में छोड़ने की बजाय ऐसी जगह पर रखा जाए जहां जंगली हाथी हों उनसे मुझे मिलने दिया जाए, ताकि मैं धीरे-धीरे वापस जंगली जीवन अपना सकूं। डॉक्टर ने कहा कि राजू, सिविल और लाली से मेरी गहरी दोस्ती हो गई है, राजू और मेरा बहुत लगाव है, हम दोनों बहुत खेलते हैं। डॉक्टर ने कहा हम चारों को बिना बांधे जंगली हाथियों के क्षेत्र में रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट डॉक्टर की रिपोर्ट को मानते हैं, परंतु मुझे कब छोड़ा जाए यह वह अधिकारियों की बुद्धि पर छोड़ते हैं। 

कुछ महीनों बाद सिविल और मुझको बहुत दूर रमकोला में बनाये रेस्क्यू सेंटर ले जाने दो ट्रक आए। मैंने महावत से पूछा कि डॉक्टर ने तो कहा था कि राजू, लाली, सिविल और मुझे चारों को जाना है, कोर्ट ने भी माना था, फिर राजू और लाली क्यों नहीं आ रहे? महावत ने कहा सरगुजा के एक हाथी एक्सपर्ट अधिकारी ने कहा है कि राजू और लाली रिजर्व में पेट्रोलिंग का काम करेंगे इसलिए यही रहेंगे। भाग्य की विडंबना देखिए पहले अपने परिवार से बिछड़ा, फिर अत्याचार सहे और अब अपने प्रिय और अजीज राजू से हरदम के बिछड रहा था, रोते रोते मै ट्रक चढ़ा और ट्रक रमकोला के लिए रवाना हो गया।

रमकोला में सिविल और मै दोनों ही थे। बाद में तीन नर और दो मादा कुनकी हाथी आए। मेरी उनसे दोस्ती नहीं हुई, मै पूरे समय में सिविल के साथ ही रहता, परंतु मेरा दुर्भाग्य देखिये एक दिन सिविल भी साथ छोड़कर हरदम के लिए चला गया। यहां भी हम हाथियों के पांव चेन से बांध के रखा जाता है, यहां के अत्याचार के बारे में फिर कभी और हां महावत बता रहा था कि वन्यजीव प्रेमी ने एक बार सबसे बड़े अधिकारी से पूछा कि मुझे छोड़ क्यों नहीं रहे? अधिकारी ने कहा याद नहीं है कोर्ट ने हमारी बुद्धि पर छोड़ा है, अभी हमको बुद्धि नहीं आई है। मेरा नाम सोनू है। 

ज़मीन में दफ़न 'प्यारे' का कसूर पूछ रहे वन्यप्रेमी, वन अफसरों की क्रूर मानसिकता हुई उजागर


छत्तीसगढ़ के जंगल और वन्यप्राणियों पर खुलकर अत्याचार करने वालों को एक तरफ विभागीय प्रश्रय मिलता रहा है वहीं दूसरी तरफ वन्यप्राणियों पर होते जुल्म के लिये राज्य सरकार ने अब तक किसी वन अफसर पर जिम्मेदारी तय कर कठोर कार्रवाई की हो याद नहीं पड़ता। जंगल और वन्यजीव को लेकर प्रत्येक अफसर की अपनी निजी राय और कानूनी परिभाषा तय है। राज्य के सिमटते वन क्षेत्र और लगातार होती वन्यप्राणियों की मौत इस बात की गवाही है कि छत्तीसगढ़ में जंगल राज को सियासत और नौकरशाही का खुला समर्थन है। हाल ही में सामने आया प्यारे हाथी की मौत का मामला वन अधिकारियों की क्रूर मानसिकता और निकम्मेपन की एक ऐसी मिसाल बन गया है जिसे सालों साल याद रखा जायेगा।
 

 रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ की शान समझे जाने वाले सबसे विशाल हाथी 'प्यारे' को एक साल पहले ग्रामीणों ने सूरजपुर वन मंडल के छुई रेंज के पकनी इलाके में करंट से मार दिया और वन विभाग ने मामला रफा दफा करके हाथी की लाश को दफना दिया। मामले के प्रकाश में आने के बाद छत्तीसगढ़ के वन्यजीव प्रेमी 'प्यारे' हाथी की मौत से विचलित हो गए हैं। प्यारे हाथी को 2018 में रेडियो कालर लगाया गया था, रेडियो कालर एक साल बाद गिर गया। वन विभाग का हाथी मित्र दल प्यारे हाथी पर कड़ी नजर रखता था परंतु गत एक वर्ष से प्यारे हाथी के विचरण की कोई खबर नहीं है। विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से आई जानकारी के मुताबिक़ वन विभाग के अधिकारियों ने हाथी मित्र दल और उस क्षेत्र के एनजीओ को सख्त चेतावनी दे रखी थी कि प्यारे की मौत की खबर कहीं बाहर नहीं निकालनी चाहिए।  

वन विभाग के अधिकारियों पर अपराधिक प्रकरण दर्ज हो, एसआईटी गठित कर जांच करवाई जाये - सिंघवी

 सूरजपुर वन मण्डल में प्यारे की मौत के नाम से कोई प्रकरण और अपराध दर्ज नहीं है, मामले को रफा दफा करने के लिए रायपुर के एक वरिष्ठ अधिकारी का दबाव था। रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने मांग की है कि अगर यह सत्य है की वन विभाग ने प्यारे के शव को चोरी छिपे गाड़ कर मामले का पता नहीं लगने दिया और अपराध पंजीबद्ध नहीं किया, जिससे कि दोषी बच गए, तो ऐसे में वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से लेकर निचले स्तर के अधिकारी के विरुद्ध अपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए और एसआईटी गठित कर जांच करवाये जाँच कराई जानी चाहिए। 

दो साल पहले आगाह किया गया था कि प्यारे हाथी की जान को ख़तरा है ! 

वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने बताया की 2 वर्ष पूर्व 21 फरवरी 2022 को उन्होंने प्रमुख सचिव छत्तीसगढ़ शासन और सचिव पर्यावरण, वन एव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नई दिल्ली को पत्र लिखकर आशंका जाहिर की थी कि अंबिकापुर के मुख्य वन संरक्षक और प्रभारी वन मंडल अधिकारी असफल हो गए हैं और ग्रामीण डीएफओ को पत्र लिखकर दावा कर रहे हैं कि प्यारे ने 500 लोगों को मार दिया है। उसे पकड़ कर रेस्क्यू सेंटर भेजेंगे नहीं तो ग्रामीणों को प्यारे को मारने की अनुमति दी जावे। जब सरपंच का यह पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तब विभाग के जिम्मेदार अफसरों को आगाह कर दिया गया था कि ग्रामीण बदला लेने के लिए प्यारे को मार देंगे।

दो वन अधिकारी प्यारे हाथी को हत्यारा घोषित करवाना चाहते थे, वन मंत्री से की गई थी शिकायत ! 

प्यारे हाथी सूरजपुर, बलरामपुर, सरगुजा वन मंडल और तमोर पिंगला अभ्यारण में विचरण करता था। अंबिकापुर क्षेत्र के वन्यजीव प्रेमी दावा करते हैं कि प्यारे हाथी बहुत ही शांत स्वभाव का था, इसका प्रमाण यह है कि सरगुजा वन मण्डल में प्यारे हाथी से कोई जन हानि नहीं हुई। परन्तु सूरजपुर और बलरामपुर में जितनी भी जन और धन हानि होती थी उसकी जिम्मेदारी तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक अंबिकापुर और वन मण्डल अधिकारी सूरजपुर प्यारे हाथी पर डाल देते थे। चर्चा अनुसार ये दोनों अधिकारी ग्रामीणों और नेताओं को उकसाते थे कि प्यारे को रमकोला के रेस्क्यू सेंटर में भेजने की मांग करें और अपनी असफलता को छुपाने के लिए दोनों अधिकारी भी प्यारे को रेस्क्यू सेंटर भिजवाने के लिए लगातार पत्राचार करते रहे । दोनों अधिकारी कभी लिखते थे कि सूरजपुर वन मंडल में 48 जनहानि के प्रकरण हो चुके हैं और कभी लिखते थे कि प्यारे ने 52 जन हानि की है जबकि खुद ही दावा करते थे कि रेडियो कालर नहीं होने के कारण प्यारे के विचरण क्षेत्र का पता नहीं चल पाता। प्यारे हाथी को बदनाम करने की इस हरकत को लेकर सिंघवी ने वन मंत्री मोहम्मद अकबर तथा प्रमुख सचिव से फरवरी 2022 में शिकायत भी की थी।  

21 मार्च 2022 को भी एक पत्र प्रमुख सचिव छत्तीसगढ़ शासन को लिखा था कि वन अधिकारी प्यारे को हत्यारा घोषित करवाना चाहते हैं। अधिकारियों के पास कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है जिससे कि वो किसी हाथी विशेष से जन हानि बता सकेः कई हाथियों की उपस्थिति में, रात को जब हाथी पहचाना न जा सके तब, प्यारे हाथी को विलियन बनाने के लिए वे ग्रामीणों एवं फील्ड स्टाफ से लिखवा लेते है कि प्यारे हाथी ने जन हानि की है। 

हाथी को रेस्क्यू सेंटर मेंआजीवन कैद करने की कोशिश में लगे अधिकारी जान लें क्या है वन प्राणी संरक्षण अधिनियम के प्रावधान ! 

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम प्रावधानित करता है कि अधिसूचि-एक के संरक्षित वन्यप्राणी हाथी को पकड़कर बंधक नहीं बनाया जा सकता, तब तक के जब तक के मुख्य वन्यजीव संरक्षक को यह विश्वास नहीं हो कि उसे हाथियों के दूसरे रहवासी क्षेत्र पर उसे पुनर्वासित नहीं किया जा सकता। अगर वन हाथी को पकड कर बंधक बनाया जाता है हो वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध होगा जिसके लिए 3 से 7 साल की सजा का प्रावधान है।

सूरजपुर क्षेत्र में विचरण कर रहे बहरादेव हाथी की जान को भी ख़तरा !

नितिन सिंघवी ने वन विभाग को आगाह किया है कि उसी इलाके में विचरण करने वाले बहरादेव हाथी के विरुद्ध भी बहुत नफरत फैलाई गई है जिससे ग्रामीणों में बहरादेव हाथी के विरुद्ध भी रोष है, उसकी भी जान को खतरा है। 


यात्रा संस्मरण : वन्य प्राणियों की बहुलता से सम्पन्न बारनवापारा पर्यटकों के साथ-साथ वाइल्ड प्रेमियों के आकर्षण का बड़ा केंद्र


 बिलासपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  (सत्यप्रकाश पांडेय )  जब जंगल का व्यक्ति, जंगल और वन्यप्राणी को अपनी प्रतिष्ठा बना ले तो यक़ीन मानिये उस पूरे इलाके की समृद्धि, सम्पन्नता और वैभव का आलोक दूर तक फैला नज़र आता है। छत्तीसगढ़ राज्य के नक़्शे में अपनी अलग पहचान बना चुकी बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी बदलते वक्त के साथ काफी बदली-बदली सी नज़र आती है। यहाँ नेपाल ठाकुर जैसे जिप्सी (मालिक) चालक और दीपक यादव जैसे कई कुशल मार्गदर्शक (गाईड) हैं जो प्रत्येक पर्यटक को जंगल के इतिहास, भूगोल और वहाँ मौजूद वन्यप्राणियों के बारे में विस्तार से बताते हैं । मैं और वाइल्डलाइफ में सिद्धहस्त श्री प्राण जी चढ्ढा ने पिछले दो दिनों तक इस सेंचुरी की ख़ाक छानी और जितना अधिक हो सका ज्ञान, तस्वीर साथ लेकर घर लौटे।  

 बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी राज्य में तेंदुओं के लिये अलग पहचान बनाती दिखाई देती है। यहाँ अलग-अलग क्षेत्र में 50 से अधिक तेंदुए हैं जो सफारी के दौरान पर्यटकों के आकर्षण और रोमांच का बड़ा हिस्सा हैं। इसके अलावा नील गाय, भालू, साम्भर, चीतल, ब्लैक बक, गौर, वुल्फ, जंगली सुअर, गोल्डन जैकाल आसानी से बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं।  

              बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में तेंदुए की बढ़ती संख्या के पीछे की मुख्य वजह सोन कुत्तों की कमी होना है। करीब एक दशक पहले तक इस सेंचुरी में वाइल्ड डॉग (सोन कुत्ता) का आतंक था। बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में जंगली हाथियों की मौजूदगी भी है जो वन के अलावा वन्यप्राणियों की सुरक्षा का बड़ा कवच है। यह सेंचुरी आज की स्थिति में वन और वन्यप्राणियों के अलावा पक्षियों, तितलियों, कीट-फतिंगों की विभिन्न प्रजातियों से भरी पड़ी है। इस सेंचुरी में एक वक्त ऐसा भी रहा जब शिकारियों के खौफ से न सिर्फ वन्यप्राणी छिपे रहते थे बल्कि वन महकमें के तात्कालीन अफसरों और कर्मियों की हवाइयाँ उड़ी रहती थी। बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी कभी सिर्फ ऐशगाह के नाम से जानी जाती थी, अब यहां के वन्यप्राणी और स्वच्छ आबो-हवा पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी प्रबंधन ने पर्यटकों की बुनियादी जरूरतों का विशेष ख्याल रखा है। यहां के म्यूजियम में बलौदाबाजार में मिलने वाले विभिन्न स्टोन, बारनवापारा में पाएं जाने वाले पशु-पक्षियों का जीवंत चित्रण एवं जानकारी उपलब्ध है, जो बच्चों एवं आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षक एवं ज्ञानवर्धक है।  मुख्य चौक में नया पर्यटक सुविधा केंद्र बनाया गया है, जिससे यहां आने वाले पर्यटकों को सभी जानकारियां मिल जाएगी।

 बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी में आकाश से बातें करते  ऊँचे-ऊँचे वृक्षों को देखिये, फिर आँख बंद करके क्षेत्र से गुजरने वाली जीवनदायनी दो नदियां बालमदेही और जोंक का कल-कल स्वर महसूस कीजिये।  बारनवापारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी  की भौगोलिक संरचना प्रत्येक प्राणी, वन्यप्राणी के लिहाज से अनुकूल है। इस अभ्यारण्य में मैदानी और छोटे-बड़े पठारी इलाकों के बीच अनेक वनस्पति, औषधीय पौधों के अलावा सागौन, साजा, बीजा, लेंडिया, हल्दू, सरई, धौंरा, आंवला, अमलतास, कर्रा जैसे छोटे-बड़े वृक्ष दिखाई देते हैं।   

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ATR : प्रकृति संतुलन बिगाड़ने की दौड़ लगाते कुत्तों पर विभागीय कर्तव्यनिष्ठा घुटनों के बल

सांकेतिक तस्वीर अचानकमार टाईगर रिजर्व से 

बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  ( सत्यप्रकाश पांडेय ) / प्रकृति का संतुलन बना रहे इसके लिये जंगल में बाघ की अनिवार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता। अफ़सोस अचानकमार टाईगर रिजर्व में इस संतुलन को बिगाड़ने की दौड़ लगाते कुत्तों पर विभागीय कर्तव्यनिष्ठा घुटनों के बल घिसटती दिखाई दे रही है। बाघों की संख्या को लेकर सुर्ख़ियों में रहा अचानकमार टाईगर रिजर्व अब कुत्तों के हवाले है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

            दरअसल बीती शाम  (24 जनवरी 24, बुधवार) आँखों के सामने जो वाक्या घटित हुआ वो अचानकमार टाईगर रिजर्व की बिगड़ती सेहत और भविष्य पर मंडराते संकटों की ओर साफ़-साफ़ इशारा करता है। शाम करीब सवा 4 बजे का वक्त, मैं और मेरे साथ वरिष्ठ पत्रकार, वाइल्डलाइफ बोर्ड (मप्र, छग) के पूर्व सदस्य प्राण चढ्ढा ने छपरवा से लौटते समय अचानकमार सफारी टिकट बुकिंग (पूर्व) काउंटर से थोड़ा पहले चार चीतलों को जंगल के एक हिस्से से सड़क पार कर दूसरे हिस्से की तरफ तेजी से भागते देखा। चार चीतलों में एक विशाल नर, मादा और दो बच्चे। हम कुछ समझ पाते तब तक चार कुत्तों का झुण्ड उसी रफ्तार से उनका पीछा करते हुए सड़क पार कर गया । चीतल का परिवार ज़िंदगी बचाने के लिये पीछे भाग रही मौत से ज्यादा दूर नहीं था, ये दृश्य देखकर मन विचलित हो उठा। आज ज़िंदगी और मौत के बीच हुई रेस में कौन जीता ये हम नहीं जानते क्यूंकि कुछ दूर की दौड़ के बाद दृश्य आँखों से ओझल हो गया। 

           बियाबान जंगल में भीतर क्या कुछ हो रहा है इसका शोर सुनने के लिये संवेदना जरूरी है, जिन चीतलों को बाघ का आहार माना जाता है उन्हें ग्रामीणों के कुत्ते नोच-खसोटकर सेहतमंद बने हुए हैं। अचानकमार टाईगर रिजर्व में कायदे-कानून पर टांग उठाकर पेशाब करते आवारा कुत्तों या फिर ग्रामीणों के शिकारी कुत्तों की बढ़ती संख्या को लेकर विभागीय महकमें की पेशानी पर चिंता की लकीरें नहीं दिखाई पड़ती। नतीजा, जंगल सफारी के भीतरी मार्ग के अलावा मुख्य मार्ग शिवतराई बैरियर से लेकर केंवची बैरियर तक कुत्तों की चौपाल लगी नज़र आयेगी।  

अचानकमार टाईगर रिजर्व बनने के बाद से अब तक केवल 6 गाँवों का पुनर्वास किया जा सका है, अभी 19 गाँवों का विस्थापन होना बाकी है। विस्थापन के सवाल पर अक्सर वन अफसर उन फाइलों का ज़िक्र करते हैं जो पिछले एक दशक से प्रक्रिया, सियासत और सहमति के मैदान में गोल तक पहुँचने की कोशिश कर रही है। अचानकमार टाईगर रिजर्व में रहने वाले ऐसे 19 गाँवों के अधिकाँश ग्रामीणों ने आवारा कुत्तों को अपना न सिर्फ मददगार बना रखा है बल्कि ये भी सम्भव है कि उन कुत्तों के माध्यम से शिकार जैसे जघन्य अपराध को बेख़ौफ़ अंजाम दिया जा रहा हो । शिकार की संभावना को बल इस बात से भी मिलता है कि अब अचानकमार टाईगर रिजर्व में चीतल, साम्भर जैसे वन्यजीव पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी कम सख्या में दिखाई पड़ते हैं। 

जानकारी के मुताबिक़ कुछ समय पहले तक पशु चिकित्सक डॉक्टर पीके चन्दन की मदद से अचानकमार टाईगर रिजर्व में आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने की कोशिश हुई, काफी हद तक सफलता मिलने की बात भी कही जाती है। पशु चिकित्सक डॉक्टर पीके चन्दन और उनकी टीम टाईगर रिजर्व के भीतर घूमते आवारा कुत्तों को ट्रेंकुलाइज कर बेहोश करती फिर उसे पकड़कर जंगल के बाहर दूर किसी इलाके में छोड़ आती। ये व्यवस्था वर्तमान में बंद है लिहाजा कुत्तों की बढ़ती आबादी और आज़ादी पर विभाग का जमीनी अमला सिर्फ तमाशबीन बना कमजोर वन्यजीवों की मौत का तमाशा देख रहा है। कल शाम की आँखों देखी घटना का जिक्र हमने जब अचानकमार बैरियर पहुंचकर वहां मौजूद वन कर्मियों से किया, जवाब सुनकर विचलित मन और घायल हो गया। जंगल की निगहबानी में लगे वन कर्मी ने बड़ी सहजता और मुस्कुराते हुए कहा 'सर ये तो रोज का है' .... जवाब सुनकर हम आगे बढ़े, शिवतराई पहुंचकर उपसंचालक एटीआर विष्णु नायर से इस घटना और इसके निदान को लेकर मोबाइल पर बातचीत हुई। उन्होंने आश्वस्त किया है कि कुत्तों को पकड़ने का काम फिर शुरू होगा। 

 अचानकमार टाईगर रिजर्व में राजनैतिक, नौकरशाह, पर्यावरण-विशेषज्ञ, वन्य-प्रेमी, पर्यटक, व्यवसायी और आधुनिक इतिहासकार के अलावा आम-ओ-ख़ास सब घूमते हैं। सतपुड़ा मैकल पर्वत की श्रृंखला के इस हिस्से को मैंने सन 1994 से देखना शुरू किया, तब ये खूबसूरत अभ्यारण्य था। साल 2009 में टाईगर रिजर्व बना, इन तीन दशक में मैंने इस जंगल के बनते-बिगड़ते स्वरूप को काफी करीब से देखा। इन 30 सालों में दर्द से कराहते इस जंगल के हिस्से में सिर्फ और सिर्फ घाव आये। बिगड़ते जंगल के स्वरुप को संवारने, पर्यटन के क्षेत्र में अचानकमार को शिखर तक ले जाने के दावे कईयों बार सुने, अफ़सोस वो दावे कागजी पन्नों में सिमट कर रह गये। 

       मुझे याद है पिछले बरस अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र को पॉलिथीन मुक्त करने का शंखनाद किया गया, जनजागरूकता के लिए कार्यक्रम भी हुये। पॉलिथीन मुक्त अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र की हकीकत मुख्य सड़क से लेकर सफारी के भीतरी हिस्सों में देखी जा सकती है। पेट्रोलिंग, कब कहाँ और कौन करता है ये करने वाला जानता होगा या अफसर बता सकते हैं। मौजूदा स्टाफ से काम लेना अफसरों की यकीनन मजबूरी है, भले ही वो कर्मी ड्यूटी के वक्त भी शराब के नशे में हो। मुख्यालय से दूर शहरी क्षेत्र में रहने वाले अधिकाँश रेंज अफसर से लेकर मुँह लगे वन कर्मी रोटी जंगल की खाते हैं मगर ड्यूटी जंगल की करने से परहेज रखते हैं। ऐसे में अचानकमार टाईगर रिजर्व में पडोसी राज्य से बाघ लाने की तैयारी भी की जा रही है, वन प्रबंधन की वर्तमान कोशिशों में बाघ की संख्या भविष्य में क्या होगी गर्भ में छिपा जवाब है मगर टाईगर रिजर्व के हालात को सुधारने के लिये जमीनी स्तर पर अभी काफी कुछ करना बाकी है। तब तक अभय कुत्तों का आक्रमण अभ्यारण्य के जीवों पर जारी है  ....  TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें   

बता दें कि साल 2017 में बिलासपुर हाईकोर्ट ने चार साल पुरानी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान बाघों की संख्या के सरकारी आंकड़ो पर सवाल उठाए. कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि अचानकमार टाइगर रिजर्व सेंचुरी में 28 बाघ होने का दावा व्यवहारिक नहीं लगता. कोर्ट ने कहा कि वहां इतने बाघ होते तो दिखते जरूर. दरअसल बिलासपुर स्थित अचानकमार टाइगर रिजर्व सेंचुरी में हर महीने सैकड़ों पर्यटक बाघ देखने आते हैं. लेकिन पर्यटकों को मायूसी हाथ लगती है. सुबह से शाम तक घूमने पर भी पर्यटकों को कोई बाघ नजर नहीं आता. जबकि वन विभाग का दावा (2017 से पहले) है कि यहां 19 बाघ है.

आपको बता दें कि रायपुर के नितिन सिंघवी ने 2012 में एक याचिका दायर की थी. याचिका में दो साल के अंदर बाघों के अवैध शिकार और उनकी अचानक मौत पर सवाल उठाए थे.

Bar Headed Goose : 29 हजार फीट की ऊँचाई तक उड़ने वाले मेहमान परिन्दों से गुलजार है छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्से

फोटो और रिपोर्ट /  सत्यप्रकाश पांडेय 
 बिलासपुर ।  TODAY छत्तीसगढ़  /  बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) को भारत में स्थानीय भाषा में हंस, बड़ा हंस या सफेद हंस भी करते है। यह एक प्रवासी पक्षी है जो सर्दियों के मौसम में भारत के लगभग सभी हिस्सों में शामिल छत्तीसगढ़ राज्य में भी बड़ी संख्या में देखा जा सकता है। अपने प्रवास के दौरान ये खूबसूरत पक्षी दलदली क्षेत्रों में, खेती के आस-पास वाली जगहों, पानी व घास के नजदीक, झीलों, जोहड़ों व पानी के टैंकों में देखे जा सकते है। ये एक समूह में रहना पसंद करते है। बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, सरगुजा संभाग में इन दिनों अच्छी संख्या में दिखाई दे रहा है। इस पक्षी को देखने और इनकी तस्वीरें खींचने का लालच प्रत्येक प्रकृति प्रेमी को इनके करीब लेकर जाता है। 

 राज्य के रायपुर, दुर्ग, सरगुजा जिले के अलावा बिलासपुर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose)  को पिछले डेढ़ महीनों से फोटो रिकार्ड किया जा रहा है। बिलासपुर से लगे सीपत, कोटा क्षेत्र के अलावा दुर्ग के पाटन, गिधवा और रायपुर, सरगुजा इलाके में पक्षी प्रेमियों ने न सिर्फ देखा बल्कि इस विदेशी मेहमान की खूबसूरत तस्वीरें भी लीं। 

बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose)  पक्षी की गर्दन व सिर का रंग सफेद, शरीर के बाकी हिस्सों का रंग दूधिया स्लेटी, चोंच व पंजों का रंग सांवला पीला होता है। सिर पर काले रंग की दो धारियां दिखती है, जो बार (छड़) की तरह होती है। इन्हीं बार के कारण इसका नाम बार हेडिड गूज पड़ा है। इसकी आंख भूरे रंग की होती है। नर व मादा एक जैसे दिखते है, लेकिन मादा आकार में नर से थोड़ी छोटी होती है। ये पक्षी मुख्यत कई प्रकार की घास, जड़े, तना, बीज व फल पानी के आसपास उगी वनस्पति से ग्रहण करते हैं। 

बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) सर्दियों के मौसम में तिब्बत, कजाकिस्तान, मंगोलिया, रूस आदि जगहों से एक लंबा सफर तय करके हिमालय की ऊंची चोटियों के ऊपर से उड़ कर भारत में आते हैं। ये दुनिया के सबसे अधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले पक्षियों में तीसरे नंबर के पक्षी हैं, ये लगभग 27 से 29 हजार फीट तक की ऊंचाई पर उड़ कर भारत में पहुंचते हैं। जब इनके गृह क्षेत्र में ठंड बढ़ती है और बर्फबारी शुरू होती है, उस समय ये दक्षिणी एशिया की तरफ प्रवास आरंभ करते है। अपने इस प्रवास से पहले ये काफी अधिक भोजन करके अपने शरीर में काफी वसा जमा कर लेते हैं। जो बाद में इनके सफलता पूर्वक प्रवास में सहायता करता है। लगभग दो माह के समय में ये करीब 8 हजार किलोमीटर दूरी तय करके दक्षिणी भारत तक पहुंचते है। भारत में ये नवंबर-दिसंबर से फरवरी-मार्च तक रहते हैं, इसके बाद वापस अपने स्थान पर लौट जाते हैं। 

बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) के प्रजनन का समय मई से जून तक होता है। ये मध्य एशिया में हजारों की संख्या में एक ही जगह पर प्रजनन करते है। ये आमतौर पर एक ही जोड़ा बनाते हैं। ठंडे देशों में काफी ऊंचाई पर अपने घोंसले बनाते है, जबकि अन्य जगह इनके घोंसले नदी या झील के आसपास जमीन पर बने होते हैं। घोंसले में आसपास उगी हुई वनस्पति का ही प्रयोग करते हैं। एक ही क्षेत्र में सामुदायिक घोंसले बनाते है। काफी पक्षी एक साथ रहते हैं। मादा पक्षी 4 से 6 अंडे देती है। कभी-कभी दूसरी मादा भी एक ही घोंसले में अपने अंडे दे देती है। इसके चूजे दो दिन बाद ही चलना शुरू कर देते हैं और तीन-चार दिन में स्वयं भोजन करने लगते है। इसकी संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण उपयुक्त प्राकृतिक वास का सिकुड़ना, प्रजनन स्थलों का नष्ट होना, अवैध शिकार व अंडों को नुकसान पहुंचना है।

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राष्ट्रीय पक्षी दिवस आज : जरूरत है पक्षियों के संरक्षण, संवर्धन को लेकर गंभीर होने की


 बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  /   पक्षी, मनमोहक जीव जो आकाश की शोभा बढ़ाते हैं, स्वतंत्रता और प्राकृतिक सुंदरता के प्रतीक हैं। पक्षी पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। यकीन मानिये पक्षी हमारे पर्यावरण का अभिन्न अंग हैं। आज राष्ट्रीय पक्षी दिवस है, जरूरत है पक्षियों के संरक्षण, संवर्धन को लेकर गंभीर होने की। 

भारत के अलग-अलग प्रांत अपने विविध वन्य जीवन के लिए ख़ास पहचान रखते है। पक्षी, प्रकृति प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखते हैं जो संरक्षण के महत्व के बारे में तेजी से जागरूक भी हो रहे हैं। पक्षियों के महत्व को पहचानते हुए, हमारे पंख वाले दोस्तों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनकी सुंदरता का आनंद लेने के लिए राष्ट्रीय पक्षी दिवस हर साल आज 5 जनवरी को मनाया जाता है।  प्रकृति प्रेमी, पर्यावरणविद, पक्षी रक्षक और संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग राष्ट्रीय पक्षी दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। अफ़सोस छत्तीसगढ़ में इस खास दिन को यादगार बनाने कोई ऐसे आयोजन नहीं नज़र आते। 

कुछ पक्षी विशेषज्ञों के मुताबिक़ दुनिया की लगभग 10,000 पक्षी प्रजातियों में से 12 फीसदी पक्षियों की प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। आपको बता दें कि मानव निर्मित समस्याओं के कारण पक्षियों की रहने की स्थिति में बहुत गिरावट आई है। वनों की कटाई से लेकर जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग से लेकर निवास स्थान के नुकसान तक, पक्षियों ने अपने घर खो दिए हैं और इससे उनके रहने की गुणवत्ता भी खत्म हो गई है। 

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'उस गाँव में पक्षियों को लेकर ना फिर वैसी भीड़ जुटी ना मेले लगे'

( रिपोर्ट / सत्यप्रकाश पांडेय )
बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /   बेमेतरा जिले के दुर्ग वन मंडल का गिधवा-परसदा, जिसे पक्षी विहार के रूप में भी कुछ लोग जानते हैं। साल 2021 में पहली बार पक्षियों के लिये गाँव में मेला सजा। गाँव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उनके मंत्री-संतरी और नौकरशाह बड़ी संख्या में पहुँचें। गिधवा-परसदा, जहाँ हर साल सैकड़ों की संख्या में प्रवासी परिंदे पहुँचते हैं उसे राज्य के नक्शे में अलग पहचान देने का शोर मचाया गया। पक्षी मेले के मंच से आते शोर में रोजगार और रोजगार के अवसर का भरोसा पाकर ग्रामीण सपनों की दीवार चुनने लगे। अफ़सोस,  उस दिन के बाद से आज तलक गाँव में पक्षियों को लेकर ना वैसी भीड़ जुटी ना मेले लगे। ग्रामीणों को रोजगार के अवसर की तलाश, तलाश बनकर ही रह गई। कुछ बेरोजगारों को उम्मीद थी रोजगार मिलेगा, जिन्हें बतौर वालेंटियर काम मिला उन्हें इतना भी मानदेय नहीं मिलता कि वे घर चला सकें। कुछ बातें उसी गिधवा गाँव से जहाँ लोगों को आज भी 'उस मेले में कही गई बातें याद हैं।'   

बता दें कि देश-दुनिया के अलग-अलग प्रजातियों के पक्षियों को पनाह देने वाले गिधवा-परसदा में छत्तीसगढ़ का पहला पक्षी महोत्सव का आयोजन साल 2021 में 31 जनवरी से 2 फरवरी तक तीन दिनों तक किया गया था । जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गिधवा में 150 प्रकार के पक्षियों का अनूठा संसार है। पक्षी मेला, इको टूरिज्म के विकास और स्थानीय रोजगार की दृष्टि से गिधवा-परसदा में आयोजन किया गया ।

तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गिधवा-परसदा क्षेत्र में पक्षी जागरूकता एवं प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना का बड़ा ऐलान किया था,  इसके लिये भवन निर्माण का काम प्रगति पर है। गिधवा-परसदा में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ये भी कहा था की राज्य के समस्त वेटलैंड का संरक्षण एवं प्रबंधन छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड करेगा। एकाध जगह छोड़ दें तो इस दिशा में धरातल पर ठोस काम होता कहीं दिखाई नहीं पड़ता। 

 ‘गिधवा-परसदा पक्षी विहार’ को विश्व स्तरीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की बात कही गई थी । भरोसा यह भी दिलाया गया कि छत्तीसगढ़ के इस पक्षी विहार को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र में स्थापित करने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। पक्षी विज्ञानियों, प्रकृति प्रेमियों और यहां आने वाले सैलानियों के लिए विभिन्न सुविधाएं विकसित की जाएंगी।

यहाँ करीब 100 एकड़ में फैले पुराने तालाब के अलावा परसदा में भी 125 एकड़ के जलभराव वाला जलाशय है। यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों का अघोषित अभयारण्य माना जाता है। सर्दियों की दस्तक के साथ अक्टूबर से मार्च के बीच यहां यूरोप, मंगोलिया, बर्मा और बांग्लादेश से पक्षी पहुंचते हैं। जलाशय की मछलियां, गांव की नम भूमि और जैव विविधता इन्हें काफी आकर्षित करती है। गिधवा परसदा के अलावा एरमशाही,कूंरा और आसपास के छोटे-बड़े तालाब इन पक्षियों की शरणस्थली हैं। 

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जंगल राज : राजकीय पशु वन भैंसा पर करोड़ों खर्च, संख्या केवल एक वो भी अंधा और बूढा


रायपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  सच को सामने आने में थोड़ा वक्त जरूर लग सकता है लेकिन झूठ का मायाजाल और उसकी निगहबानी करने वालों का घेरा काफी बड़ा होता है लिहाजा सच सामने होकर भी दिखाई नहीं पड़ता। अफसरशाही के झूठे मायाजाल में फंसा छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु अपनी संख्या और वजूद दोनों को लेकर संघर्ष करता दिखाई पड़ रहा है। वैसे डिप्टी डायरेक्टर उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व के एक पत्र ने वन विभाग के कुछ बड़े अफसरों की पोल खोल दी है। 

 अब यह अधिकारिक है कि छत्तीसगढ़ में शुद्ध रक्तता का सिर्फ एक राजकीय वन भैंसा बचा है वन विभाग दावा करता रहा है कि छत्तीसगढ़ में 8 वन भैंसे है, छ: उदंती सीतानदी में बाड़े में, एक उदंती सीतानदी के जंगल में स्वतंत्र विचरण कर रहा है और एक जंगल सफारी में है परन्तु डिप्टी डायरेक्टर उदंती सीतानदी टाइगर रिज़र्व के पत्र ने वन विभाग की पोल खोल दी है। 

जू अथॉरिटी के पत्र के बाद सकते में आ गया वन विभाग  -

दरअसल वन विभाग ने असम से लाई गई पांच मादा वन भैसों से, छत्तीसगढ़ के सात नर वन भैसों द्वारा प्रजनन कराने का ब्रीडिंग प्लान बना कर सेन्ट्रल जू अथॉरिटी को भेजा, साथ में छत्तीसगढ़ के वन भैसों के नामों की सूची भी भेजी। जू अथॉरिटी ने जवाब में कहा कि जो नाम भेजे हैं उनमे सिर्फ छोटू वन भैंसा ही शुद्ध नस्ल का है, बाकी सब हाइब्रिड है, इनसे प्रजनन नहीं कराया जा सकता, अथॉरिटी के नियम इसकी अनुमति नहीं देते।

जीव दया जागी वन विभाग के मन में, संविधान का दिया हवाला और भाग जाने दिया  -

जू अथॉरिटी की आपत्ति के बाद वन्य जीवों को आजीवन बंधक बनाने की मानसिकता रखने वाले वन विभाग में अचानक जीव दया जाग गई। 10 अगस्त 2023 से उदंती सीतानदी में बाड़े में बंद हाइब्रिड भैंसों को फ़ूड सप्लीमेंट (दलिया, मक्का, विटामिन सप्लीमेंट) देना बंद कर दिया गया। खाना देना बंद करने के 21 दिन बाद डिप्टी डायरेक्टर ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को पत्र लिखा कि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वे सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखे, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे। डिप्टी डायरेक्टर ने लिखा कि संविधान के अनुसार राज्य का भी कर्तव्य है कि राज्य पर्यावरण रक्षा और सुधार करने तथा देश के सभी वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा। डिप्टी डायरेक्टर ने जू अथॉरिटी की आपत्ति का हवाला देकर लिखा कि समस्त हाइब्रिड वन भैसों को स्वतंत्र विचरण हेतु छोड़ा जाना उचित होगा। 


तीन लॉट में भागे हाइब्रिड वन भैंसे - 

वन भैंसों को खाना देना बंद करने के 23 दिन बाद 3 सितम्बर की रात भूख के कारण 11 हाइब्रिड वन भैंसे बाड़ा तोड़ कर भाग गए, उसके बाद 24 सितम्बर की रात 5 और 17 अक्टूबर को 2 कुल 18 वन भैंसा जंगल भाग गए। 

बाड़े में कौन कौन तीन बचे -

1. एक मात्र बचा शुद्ध नस्ल का छोटू वन भैंसा, 23 वर्ष का उम्रदराज वन भैंसा है, बाड़े में वीरा नामक वन भैंसा से हुई लड़ाई के दौरान उसकी दोनों आँख ख़राब हो गई, वह लगभग अँधा है। बताया जाता है कि बाड़े में लगे लोहे के बाहर निकले टुकडों से टकरा कर उसकी आखें ख़राब हो गई है। 

2.हाइब्रिड प्रिंस पूर्णत: अँधा है बताया जाता है, वह स्वछंद विचरण करता था परन्तु अज्ञात कारणों से उसकी दोनों आँख ख़राब हो गई, उसे अलग बाड़े में रखा गया है।

3.हाइब्रिड आनंद बीमार है। आनंद की वीरा से लड़ाई के दौरान दोनों सिंग ऊपर से टूट गए थे। आज से तीन माह पूर्व उसमे पस पड़ा हुआ था, उसके बाद उसे और कोई डॉक्टर देखने नहीं गया। 

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने उदंती सीतानदी में जीव दया दिखा कर वन भैंसों को बाड़ा तोड़कर जाने को मजबूर करने पर और जाने देने के लिए वन विभाग को बधाई दी है। उन्होंने चर्चा में बताया कि कुछ साल पहले ग्रामीणों से रम्भा और मेनका नामक हाइब्रिड वन भैंसा ले कर आ गया था, उन दोनों का परिवार बढ़ गया और सब जंगल भाग गए। पछले 3 महीने से वे जंगल में स्वच्छंद और स्वतंत्र घूम रहे हैं। 

महाराष्ट्र के कोलामारका कंजर्वेशन रिजर्व में है शुद्ध नस्ल के वन भैंसे 

अब सेंट्रल इंडिया में शुद्ध नस्ल के कुछ ही वन भैंसे स्वतंत्र विचरण करने वाले बचे हैं, जो कि अधिकतर समय महाराष्ट्र के गडचिरोली के कोलामारका कंजर्वेशन रिजर्व में रहते हैं, कभी-कभी इंद्रावती नदी पार करके वह छत्तीसगढ़ में आ जाते हैं। छत्तीसगढ़ वन विभाग दावा करता है कि वह छत्तीसगढ़ के हैं।

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जंगल सफारी : 17 चौसिंगा की मौत के मामले में जाँच शुरू, गोवा घूमने गये डॉ. वर्मा लौटे


 रायपुर ।  TODAY छत्तीसगढ़  /   नवा रायपुर के जंगल सफारी में 17 चौसिंगा की मौत के मामले में जांच शुरू हो गई है। सफारी की डायरेक्टर और डीएफओ मर्सबिला ने छत्तीसगढ़ को बताया कि सभी मृत और जीवित चौसिंगों की जांच के लिए वेटनरी हेल्थ कमेटी की नियुक्ति की गई है। इस कमेटी में अंजोरा वेटनरी कॉलेज के प्रोफ़ेसर के साथ वन विभाग के पशु चिकित्सक भी जांच करेंगे। 

कल सफारी के डॉ. चंदन कुमार ने 17 चौसिंगों की मौत किसी बीमारी के संक्रमण की वजह से होना बताया था । अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मृत चौसिंगों की जांच उनके बिसरे से होगी या किसी अन्य तरीके से। उधर इन चौसिंगों के संक्रमण अवधि और मौतों के बावजूद गोवा भ्रमण पर गए डॉ. राकेश वर्मा लौट आए हैं। उन्हें भी नोटिस दिया गया है। सफारी में कुल 24 चौसिंगे रखे गए हैं। बताया जा रहा है कि इनकी संचालक ने छुट्टी रद्द कर दी गई थी। उसके बाद भी डॉक्टर को वरिष्ठ अफसरों की अनुमति लेकर छुट्टी पर गोवा जाने की अनुमति दे दी।

यह जानते हुए भी कि नंदनवन जू एवं सफारी, नवा रायपुर में वन्यप्राणियों के स्वास्थ्यगत अत्यंत विपरीत परिस्थितियां निर्मित हो रही है, वे प्रस्थान कर गये एवं अनेको बार संपर्क करने पर भी उनका मोबाईल बंद पाया गया। नंदनवन जू एवं सफारी, नवा रायपुर में वन्यप्राणियों की स्थिति निरंतर गंभीर बनी हुई है। करीब तीन, चार दिनों तक यह मामला दबा रहा। इसी दरम्यान अमले में व्याप्त खेमेबाजी के चलते आज इन मौतों का खुलासा हुआ। करीब डेढ़ दशक पुराने इस जंगल सफारी में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में जानवर बीमारी से मारे गए हैं। इससे पहले यहां अब तक 24 चौसिंगा, 3 काले हिरण और एक नीलगाय की मौत हो चुकी है। 

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