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हाई कोर्ट: सक्ती के राजा धर्मेंद्र सिंह बरी, छेड़खानी और दुष्कर्म की कोशिश मामले में ट्रायल कोर्ट की सजा रद्द


बिलासपुर । 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने सक्ती के राजा धर्मेंद्र सिंह उर्फ धर्मेंद्र सिदार को छेड़खानी और दुष्कर्म की कोशिश के आरोपों से बरी कर दिया है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई पांच और सात वर्ष की कठोर कैद तथा जुर्माने की सजा को रद्द करते हुए उनकी तत्काल रिहाई के आदेश जारी किए हैं। ट्रायल कोर्ट के फैसले के बाद आरोपी जेल में बंद था।

ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में दी गई थी चुनौती

बीएनएसएस, 2023 की धारा 415(2) के तहत धर्मेंद्र सिंह ने 21 मई 2025 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीसी) सक्ती द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें

  • धारा 450 आईपीसी में पांच वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹5000 जुर्माना

  • धारा 376(1) आईपीसी में सात वर्ष का कठोर कारावास एवं ₹10000 जुर्माना
    की सजा सुनाई थी, जिसे एकसाथ चलाने का आदेश दिया गया था।

दूसरी ओर, पीड़िता ने सजा बढ़ाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। दोनों मामलों की एकसाथ सुनवाई की गई।


क्या है मामला?

पीड़िता ने 10 जनवरी 2022 को पुलिस में लिखित रिपोर्ट दी थी कि 09 जनवरी की रात करीब 9 बजे, जब वह घर पर अकेली थी, आरोपी धर्मेंद्र सिदार घर में घुस आया और अभद्र व्यवहार करते हुए दुष्कर्म की कोशिश की। आरोप है कि आरोपी ने उसकी साड़ी, ब्लाउज और पेटीकोट फाड़ने की कोशिश की। विरोध करने पर उसकी चूड़ियां टूट गईं। शोर मचाने पर आरोपी भाग गया।

रिपोर्ट के आधार पर थाना सक्ती में धारा 450, 354, 376 और 377 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किया गया। जांच के दौरान धारा 377 हटाकर 354(बी) और 376 जोड़ी गईं। पुलिस ने पीड़िता, गवाहों और आरोपी के बयान दर्ज कर आरोपी का मेडिकल परीक्षण कराया। जांच पूरी होने पर आरोप–पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।


याचिकाकर्ता बोले—पारिवारिक विवाद में झूठा फंसाया गया

हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि उन्हें संपत्ति, गोद लेने व उत्तराधिकार से जुड़े पुराने पारिवारिक विवादों के चलते झूठा फंसाया गया है। उन्होंने कहा कि सक्ती के युवराज के रूप में राज्याभिषेक के बाद से उनके खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज होती रही हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि—

  • एक पूर्व शिकायत एसडीओ जांच में झूठी पाई गई थी।

  • 06 मार्च 2022 की डीएसपी जांच में भी घटना के प्रमाण नहीं मिले।

  • सीसीटीवी फुटेज में पीड़िता को रात 9:30 बजे पुलिस स्टेशन पहुंचते देखा गया, जो उसके बयान से मेल नहीं खाता।

  • तत्कालीन टीआई रूपक शर्मा जैसे महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ नहीं की गई।

  • मेडिकल रिपोर्ट में कोई चोट का निशान नहीं पाया गया।

याचिकाकर्ता का कहना था कि ट्रायल कोर्ट ने इन महत्वपूर्ण तथ्यों को नजरअंदाज कर दिया।


हाई कोर्ट ने कहा—अभियोजन आरोप सिद्ध नहीं कर सका

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे सिद्ध करने में विफल रहा।

फैसले में कहा गया—

“अभियोजन के बयानों में विरोधाभास, चिकित्सीय साक्ष्य का अभाव, महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ न होना, सीसीटीवी फुटेज से उत्पन्न संदेह और भौतिक तथ्यों की अनदेखी के चलते दोषसिद्धि को बरकरार रखना सुरक्षित नहीं होगा। आरोपी संदेह का लाभ पाने का हकदार है।”


धर्मेंद्र सिंह सभी आरोपों से बरी, रिहाई के आदेश

डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को पूर्णतः रद्द करते हुए धर्मेंद्र सिंह को धारा 450, 354 और 376(1) आईपीसी के सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने जेल प्रशासन को उनकी तत्काल रिहाई के निर्देश दिए हैं।

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अमित बघेल की तत्काल गिरफ्तारी की मांग खारिज


रायपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी के प्रमुख अमित बघेल के खिलाफ कथित हेट स्पीच मामले में दायर याचिका पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी आपराधिक जांच में अदालत जबरन दिशा-निर्देश नहीं दे सकती। कोर्ट ने आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी और वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निगरानी की मांग को न्यायिक दायरे से बाहर बताया।

अवंती विहार निवासी अमित अग्रवाल की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया था कि बघेल सिंधी, जैन और अग्रवाल समाज के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं और राज्य सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है । याचिकाकर्ता ने बघेल की तुरंत गिरफ्तारी, समयबद्ध जांच और उच्च स्तरीय मॉनिटरिंग की मांग की थी।

राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि बघेल के खिलाफ विभिन्न स्थानों पर कई एफआईआर दर्ज हैं और सभी मामलों में जांच विधि सम्मत रूप से जारी है। जांच में देरी या निष्क्रियता के आरोपों को सरकार ने गलत बताया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने कहा कि जब कई FIR की जांच पहले से प्रगति पर है, तब हाईकोर्ट के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं बनती। 

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि:
“किसी आपराधिक जांच का माइक्रो मैनेजमेंट न्यायालय नहीं कर सकता।” अंत में कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि कानून अपनी प्रक्रिया से ही चलेगा, न दबाव में और न निर्देशों से।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय: विवेक शर्मा नए महाधिवक्ता नियुक्त, प्रफुल्ल कुमार भारत का इस्तीफ़ा स्वीकार

 


बिलासपुर। 
TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ सरकार ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक बदलाव किया है। राज्यपाल द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, राज्य के महाधिवक्ता प्रफुल्ल कुमार भारत का त्यागपत्र तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया गया है।

उनके इस्तीफ़े के बाद सरकार ने बिलासपुर के अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा को राज्य का नया महाधिवक्ता (Advocate General) नियुक्त किया है। राज्यपाल ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 165(1) के तहत विवेक शर्मा को यह नियुक्ति प्रदान की है। अधिसूचना के अनुसार, शर्मा कार्यभार ग्रहण करने की तारीख से महाधिवक्ता के रूप में अपना पद संभालेंगे।

प्रफुल्ल कुमार भारत राज्य के शीर्ष विधि अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे थे। उनके इस्तीफ़े के बाद अब विवेक शर्मा पर राज्य सरकार के कानूनी मामलों की पूरी ज़िम्मेदारी होगी। 

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने दिया इस्तीफ़ा


 बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  /   छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। उन्होंने राज्यपाल को पत्र भेजकर अपने त्यागपत्र की जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, मंत्रिमंडल, प्रशासनिक अधिकारियों और बार के सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया। भारत ने अपने पत्र में लिखा है कि राज्य के प्रथम विधि अधिकारी के रूप में कार्य करना उनके लिए सम्मान की बात रही है। 

अपने पत्र में उन्होंने लिखा कि—

“मैं महाधिवक्ता के पद से अपना त्यागपत्र दे रहा हूँ। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों से मिले सहयोग के लिए मैं कृतज्ञ हूँ। उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष राज्य के हितों की रक्षा के कठिन कार्य में नौकरशाहों और सहयोगियों से पूरा सहयोग मिला।”

प्रफुल्ल भारत ने आगे लिखा—

“महाधिवक्ता कार्यालय के सहयोगियों और बार के सदस्यों का मुझे पूरा समर्थन मिला। मैं महामहिम राज्यपाल का अत्यंत आभारी हूँ कि राज्य के प्रथम विधि अधिकारी के रूप में सेवा करने का अवसर दिया। मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल का भी धन्यवाद जिन्होंने मेरी नियुक्ति के लिए सिफारिश की।” 

लंबा अनुभव, बस्तर से हाई कोर्ट तक का सफर

प्रफुल्ल कुमार भारत का जन्म 22 जून 1966 को हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जगदलपुर में प्राप्त की। स्नातकोत्तर (एमए) की डिग्री लेने के बाद उन्होंने एलएलबी उत्तीर्ण किया और वर्ष 1992 में मध्य प्रदेश बार काउंसिल, जबलपुर में नामांकन कराया।

उन्होंने 1992 से 1995 तक जिला न्यायालय जगदलपुर (जिला बस्तर) में प्रैक्टिस की। इसके बाद 1995 से अक्टूबर 2000 तक उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर में और नवंबर 2000 से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में अधिवक्ता के रूप में कार्य किया।

उनका इस्तीफ़ा राज्य की प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्थाओं के बीच एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है।

11 साल अलग रहने के बाद तलाक मंजूर, पत्नी को 20 लाख गुजारा भत्ता देने का आदेश

 पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता : हाईकोर्ट

बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद से जुड़े अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए पति की अपील स्वीकार कर ली और तलाक मंजूर कर दिया। जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस ए.के. प्रसाद की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए पत्नी को दो माह के भीतर पति को 20 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया।

क्या है मामला

अंबिकापुर के 45 वर्षीय व्यक्ति ने 30 मई 2009 को रायपुर की एक महिला से हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। पति का आरोप था कि शादी के एक महीने भीतर ही पत्नी मायके चली गई और वैवाहिक दायित्व निभाने में रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की अर्जी दायर की।

पति ने बताया कि पत्नी 2013 में कुछ समय के लिए उसके साथ रही, लेकिन शारीरिक संबंध बनाने से लगातार इनकार करती रही और संबंध बनाने का दबाव डालने पर सुसाइड करने की धमकी भी दी। मई 2014 से वह मायके में रह रही है और पति के प्रयासों के बावजूद कभी नहीं लौटी। न ही परिवार के किसी कार्यक्रम या अवसर में शामिल हुई।

पत्नी का पक्ष

पत्नी ने पति के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उसका पति एक साध्वी के भक्त हैं और योग-साधना में लीन रहने के कारण वैवाहिक संबंधों में रुचि नहीं रखते थे। उसने पति पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के आरोप लगाए। पत्नी ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक बार अर्जी दायर की थी, लेकिन बाद में उसे स्वयं वापस ले लिया।

फैमिली कोर्ट और फिर हाईकोर्ट

फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी, जिसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील कर कहा कि अदालत ने उनके तर्क सुने बिना ही आवेदन खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के बयान और रिकॉर्ड का अवलोकन कर पाया कि पति-पत्नी पिछले 11 वर्षों से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि वह अब पति के साथ नहीं रहना चाहती। अदालत ने कहा कि इतने लंबे अलगाव और वैवाहिक संबंध पुनर्स्थापित करने से स्पष्ट इनकार मानसिक क्रूरता माना जाएगा। इन परिस्थितियों को देखते हुए डिवीजन बेंच ने पति की अपील स्वीकार कर तलाक मंजूर कर दिया।

हाईकोर्ट ने एट्रोसिटी एक्ट के मामले में ग्रामीणों को बरी किया, विशेष न्यायाधीश का फैसला रद्द


 बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति वर्ग के विरुद्ध कथित आपत्तिजनक शब्दों के उपयोग के आरोप से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए एट्रोसिटी एक्ट के तहत दोषसिद्ध तीन ग्रामीणों को बरी कर दिया है। अदालत ने विशेष न्यायाधीश, एट्रोसिटी, धमतरी द्वारा 2008 में सुनाई गई सजा को रद्द कर दिया।

क्या था मामला

शिकायतकर्ता लखन लाल कुर्रे ने 22 सितंबर 2007 को भखारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि वह 17 सितंबर को ग्राम जोरातराई में एक बैठक में शामिल हुआ था, जहाँ दानीराम, लखन लाल सेन और महेश उर्फ महेन्द्र साहू ने उसे घेरकर गालियाँ दीं और जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया, जिससे वह बेहोश हो गया। यदि अन्य ग्रामीणों ने हस्तक्षेप न किया होता, तो उसकी हत्या भी हो सकती थी। पुलिस ने IPC की धारा 294, 506, 323/34 व एससी-एसटी एक्ट की धारा 3(1)(10) के तहत प्रकरण दर्ज किया था।

विशेष न्यायाधीश ने 10 नवंबर 2008 को धारा 294 में प्रत्येक को 500 रुपये और धारा 323/34 में 1,000 रुपये अर्थदंड (अदा न करने पर क्रमश: एक माह व दो माह कैद) की सजा सुनाई थी। आरोपियों ने इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

हाईकोर्ट का निर्णय - 14 नवंबर 2025 को सुनाए गए फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि—

रिकॉर्ड में ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है कि अपीलकर्ताओं का कृत्य दूसरों को परेशान करने वाला था। शिकायतकर्ता ने स्वयं अश्लील शब्दों के प्रयोग का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया, बल्कि केवल जातिगत गालियों का आरोप लगाया, जो IPC की धारा 294 के दायरे में नहीं आता। गवाहों के बयान में कई विरोधाभास पाए गए। शिकायतकर्ता के बयान में अतिशयोक्ति और चूक दर्ज की गई।

बचाव पक्ष का यह तर्क कि ग्रामीणों ने शिकायतकर्ता के विरुद्ध भी शिकायत की थी, जांच अधिकारी की गवाही से पुष्ट होता है, लेकिन उस शिकायत की जांच नहीं की गई। ट्रायल कोर्ट ने गवाहों के बयानों का समुचित मूल्यांकन नहीं किया। इन तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट ने विशेष न्यायाधीश के आदेश को निरस्त करते हुए आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।

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Bilaspur High Court: चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल, गंभीर लापरवाही के चलते बाएँ घुटने की बजाय दायें घुटने का कर दिया आपरेशन


 बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  /  आर्थिक रूप से कमजोर एक महिला रोगी के साथ कथित चिकित्सीय लापरवाही के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व में गठित जांच समिति की रिपोर्ट को अवैध घोषित कर दिया है। अदालत का कहना है कि समिति न तो नियमों के अनुसार गठित की गई थी और न ही अनिवार्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया। हाईकोर्ट ने कलेक्टर बिलासपुर को निर्देश दिया है कि नियम 18 के तहत नई उच्चस्तरीय समिति गठित कर चार माह में जांच पूरी की जाए।

क्या है मामला ?

याचिकाकर्ता शोभा शर्मा ESIC योजना के तहत उपचार करा रही थीं। उनका कहना है कि दयालबंद स्थित लालचांदनी अस्पताल से उन्हें ऑपरेशन के लिए आरबी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस भेजा गया। आरोप है कि डॉक्टरों ने उनके बाएँ घुटने की जगह दाएँ घुटने का ऑपरेशन कर दिया। आपत्ति उठाए जाने के बाद कथित तौर पर बिना पर्याप्त जांच के बाएँ घुटने की भी सर्जरी कर दी गई। महिला का कहना है कि दोनों ऑपरेशनों के बावजूद उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और वे आज भी गंभीर शारीरिक अक्षमता और निरंतर दर्द से जूझ रही हैं। रोजगार के अवसर भी उनके लिए लगभग समाप्त हो गए हैं।

आर्थिक कठिनाइयाँ और कानूनी लड़ाई

शोभा शर्मा ने अदालत को बताया कि सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण वे कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पा रही थीं। एक अधिवक्ता द्वारा निःशुल्क (प्रो बोनो) कानूनी सहायता मिलने के बाद ही वे यह मामला अदालत तक ला सकीं।

जांच समिति पर सवाल

इस मामले की शिकायत के बाद बनाई गई चार-सदस्यीय समिति ने दोनों अस्पतालों को क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि समिति न तो कलेक्टर द्वारा विधिसम्मत रूप से गठित थी और न ही उसका नेतृत्व डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी के हाथ में था। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसी रिपोर्ट का “कानूनी दृष्टि से कोई मूल्य नहीं” है।

व्यापक संदेश

विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश न केवल पीड़िता के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि स्वास्थ्य संस्थानों की जवाबदेही और नियम-पालन को लेकर एक स्पष्ट संदेश भी देता है। अदालत ने संकेत दिया है कि जांच अब नए सिरे से और अधिक पारदर्शिता के साथ की जाएगी।

स्टेट बार काउंसिल चुनाव 30 सितंबर को, 23 हजार से अधिक अधिवक्ता डालेंगे मत



TODAY छत्तीसगढ़  /  बिलासपुर, 27 सितम्बर। छत्तीसगढ़ स्टेट बार काउंसिल का चुनाव आगामी 30 सितंबर को होगा। इस बार प्रदेशभर के 23 हजार से अधिक अधिवक्ता मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे। चुनाव में कुल 105 प्रत्याशी मैदान में हैं, जो 25 पदों के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। करीब 6 साल बाद यह चुनाव हो रहा है और निर्वाचित परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।

निगरानी करेगी सुपरीवाइजरी कमेटी

वर्ष 2019 में तत्कालीन परिषद के भंग होने के बाद से पदेन अध्यक्ष महाधिवक्ता और दो सदस्यों की समिति ही संचालन कर रही थी। अब चुनाव कराने की जिम्मेदारी बार काउंसिल ऑफ इंडिया की बनाई सुपरवाइजरी कमेटी को दी गई है, जिसकी अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस चंद्रभूषण बाजपेयी कर रहे हैं। सचिव अमित वर्मा को मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है।

पांच वरीयता देना अनिवार्य

इस बार मतदान प्रक्रिया में बदलाव किया गया है। प्रत्येक मतदाता को कम से कम 5 उम्मीदवारों को वरीयता के आधार पर वोट देना अनिवार्य होगा। अधिकतम 25 नाम चुने जा सकते हैं। केवल 5 उम्मीदवारों को वोट देने वाले मतों की वैल्यू अपेक्षाकृत अधिक होगी।

सभी अदालतों में मतदान केंद्र

राज्य के सभी जिला एवं सत्र न्यायालयों तथा सिविल अदालतों में मतदान केंद्र बनाए गए हैं। इन केंद्रों में जिला एवं सत्र न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट पीठासीन अधिकारी रहेंगे। बिलासपुर जिला अदालत परिसर में एकमात्र मतदान केंद्र होगा, जहाँ हाईकोर्ट बार के लिए अलग से सूची तैयार की गई है।

सुबह 9 से शाम 5 बजे तक मतदान

मतदान सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक होगा। बिलासपुर और रायपुर में लगभग 5-5 हजार अधिवक्ता, दुर्ग में 3 हजार तथा राजनांदगांव में 2 हजार वकील मतदान करेंगे। मतदान के बाद मतपेटियां स्ट्रॉन्गरूम में सुरक्षित रखी जाएंगी।

सबसे युवा प्रत्याशी और फिल्मी रंग

चुनाव में 26 वर्षीय अब्दुल मोईन खान सबसे युवा उम्मीदवार हैं। वहीं अधिवक्ता हिमांशु शर्मा के समर्थन में फिल्म अभिनेता कमलेश सावंत (फिल्म दृश्यम में पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाने वाले) प्रचार कर रहे हैं, जिससे चुनावी माहौल में अलग ही रंग देखने को मिल रहा है।


रजत जयंती समारोह: संविधान का व्याख्याकार, नागरिक अधिकारों का संरक्षक और न्याय का सजग प्रहरी बनकर खड़ा है उच्च न्यायालय - राज्यपाल


 
TODAY छत्तीसगढ़  /  बिलासपुर, 26 सितम्बर।  छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की स्थापना का रजत जयंती समारोह’ का आयोजन महामहिम राज्यपाल श्री रमेन डेका के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने मुख्य अतिथि श्री रमेन डेका एवं मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय, केंद्रीय राज्य मंत्री श्री तोखन साहू को पौधा एवं स्मृति चिन्ह भेंटकर स्वागत एवं अभिनंदन किया। विशिष्ट अतिथि उप मुख्यमंत्री श्री अरुण साव एवं श्री विजय शर्मा, वित्त मंत्री श्री ओपी चौधरी, विधि मंत्री श्री गजेन्द्र यादव, पूर्व राज्यपाल रमेश बैस को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अतिथियों ने रजत जयंती समारोह पर केंद्रित स्मारिका का विमोचन भी किया। 

मुख्य अतिथि राज्यपाल श्री डेका ने कहा कि इस गौरवशाली अवसर पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की रजत जयंती समारोह में आप सभी को संबोधित करना मेरे लिए अत्यंत सम्मान और गर्व का विषय है। 1 नवम्बर 2000 को जब छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई, तब शासन के साथ-साथ न्याय के क्षेत्र में भी एक नई शुरुआत हुई। इस राज्य के जन्म के साथ ही इस महान संस्थादृछत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर की स्थापना हुई। तभी से यह न्यायालय संविधान का व्याख्याकार, नागरिक अधिकारों का संरक्षक और न्याय का प्रहरी बनकर खड़ा है। राज्यपाल श्री रमेन डेका ने लोक अदालत के अंतर्गत लंबित मामलों के हो रहे त्वरित निराकरण के लिए न्यायपालिका की सराहना की। उन्होंने न्यायपालिका में नैतिकता, सुदृढ़ीकरण और न्यायपालिका के लंबित मामलों को कम कर आम जनों को त्वरित न्याय उपलब्ध कराने की बात कही। उन्होंने कहा कि न्याय केवल सामर्थ्यवान लोगों के लिए ही उपलब्ध नहीं हो बल्कि गांव गरीब एवं आमजनों के लिए भी सर्व सुलभ न्याय उपलब्ध हो तभी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका की भूमिका सार्थक बनेगी। 

उन्होंने कहा कि हम उन दूरदर्शी व्यक्तित्वों और संस्थापकों को कृतज्ञतापूर्वक नमन करते हैं, जिन्होंने इस न्यायालय की नींव रखी। प्रथम मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति डब्ल्यू.ए. शिशक और उनके उत्तराधिकारियों ने इस नवगठित न्यायालय को गरिमा, विश्वसनीयता और सशक्त न्यायिक परंपरा प्रदान की। इसी प्रकार अधिवक्ताओं, न्यायालय अधिकारियों एवं कर्मचारियों की निष्ठा और परिश्रम ने इस संस्था को पच्चीस वर्षों तक सुदृढ़ बनाए रखा। इन वर्षों में न्यायालय ने संवैधानिक नैतिकता, नागरिक स्वतंत्रता, आदिवासी अधिकार, पर्यावरण संरक्षण, सुशासन और सामाजिक न्याय जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर निर्णय दिए। इसने छत्तीसगढ़ की विशिष्ट पहचानदृउसके जंगल, खनिज, संस्कृति और वंचित समुदायों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाया। विकास और अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करते हुए इसने यह सुनिश्चित किया कि प्रगति कभी भी न्याय की कीमत पर न हो। 

इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों की उपलब्धता के साथ समय पर न्याय उपलब्ध कराने राज्य सरकार कटिबद्ध:  विष्णुदेव साय   

समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने इस अवसर पर कहा कि हमारा प्रदेश छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना की रजत जयंती मना रहा है। यह शुभ अवसर हमारे हाईकोर्ट की रजत जयंती का भी है। यह वर्ष हमारी विधानसभा का रजत जयंती वर्ष भी है। इन सभी शुभ अवसरों पर मैं आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूँ।. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर की नगरी को एक नई पहचान दी है। इस शुभ अवसर पर हम भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री एवं हमारे राज्य के निर्माता श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनकी दूरदर्षिता से छत्तीसगढ़ राज्य एवं छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की स्थापना संभव हो सकी। 

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों की उपलब्धता के साथ ही हम किसी भी हालत में समय पर न्याय उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध हैं। इसी क्रम में हमने वर्ष 2023-24 की तुलना में विधि एवं विधायी विभाग के बजट में पिछले साल 25 प्रतिशत और इस वर्ष 29 प्रतिशत बढ़ोतरी की है। यह पूरे प्रदेश के लिए गौरव की बात है कि इस पीठ के न्यायाधीश जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस श्री नवीन सिन्हा, जस्टिस श्री अशोक भूषण, जस्टिस श्री भूपेश गुप्ता और जस्टिस श्री प्रशांत कुमार मिश्रा जैसे न्यायाधीश देश की सर्वाेच्च अदालत तक पहुँचे। न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वर्चुअल कोर्ट और लाइव स्ट्रीमिंग जैसे डिजिटल नवाचारों को बढ़ावा दिया है। साथ ही डिजिटल रिकॉर्ड रूम, आधार आधारित सर्च और न्यायिक प्रशिक्षण के नए माड्यूल भी अपनाये जा रहे हैं। अपने 25 वर्षों की इस गौरवशाली यात्रा में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने ऐसे उल्लेखनीय फैसले दिये हैं जो देश भर में नजीर के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ के युवाओं में लॉ प्रोफेशन की ओर भी रुझान बढ़ा है। इससे उन्हें करियर के नये अवसर मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अंग्रेजों के समय की दंड संहिता को समाप्त कर भारतीय न्याय संहिता को लागू किया। अंग्रेजों के समय भारतीय दंड संहिता का जोर दंड पर था। भारतीय न्याय संहिता का जोर न्याय पर है। 

आमजनों का विश्वास प्राप्त करना न्यायपालिका का सर्वाेत्तम उद्देश्य: न्यायाधीश श्री माहेश्वरी 

 प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का प्रयास है कि लोगों को आधुनिक समय के अनुरूप आये नये तकनीकी बदलावों को भी शामिल किया गया है। इसमें फॉरेंसिक साइंस से जुड़ी पहलुओं का काफी महत्व है। लोगों को त्वरित और सुगम न्याय मिल सके, इसके लिए न्यायपालिका को मजबूत करने समय-समय पर जो अनुशंसाएँ की गईं, उनका बीते एक दशक में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में प्रभावी क्रियान्वयन हुआ है। 

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश श्री जे.के. माहेश्वरी ने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और यह धान्य पूर्णता की ओर ली जाती है। जहां धर्म है वहां विजय है। हमार सच्चा कर्म और विचार ही धर्म है। चेतना ही सहज धर्म से जोड़ती है। अगले 25 साल में हम न्यायपालिका को कहां रखना चाहते है इस पर विचार और योजना बनाने का समय है। आम आदमी कोर्ट के दरवाजे पर एक विश्वास के साथ आता है उस मूल भावना के साथ कार्य करें। उन्होंने न्याय व्यवस्था से जुड़े बेंच, बार और लॉयर को विजन के साथ आगे बढ़ने प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि सभी समेकित विजन बनाएं ताकि न्यायपालिका अपने जनकल्याण के अंतिम उद्वेश्य तक पहुंच सके। न्यायाधीश श्री माहेश्वरी ने कहा कि भारत के संविधान में रूल ऑफ लॉ की भावना पूरी हो इसके लिए सभी कार्य करें और अंतिम पायदान तक खड़े व्यक्ति तक न्याय पहंुचे इस सोच के साथ आगे बढ़ना है। उन्होंने कहा कि आमजनों का विश्वास प्राप्त करना न्यायपालिका का सर्वाेत्तम उद्देश्य है। हाईकोर्ट की स्थापना के साक्षी रहे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश श्री प्रशांत कुमार मिश्रा ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के रजत जयंती कार्यक्रम के लिए बधाई एवं शुभकामनाएं दी और न्यायालय से जुड़े अपने संस्मरण साझा किया। 

रजत जयंती कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री श्री तोखन साहू ने कहा कि आज केवल न्यायपालिका के 25 वर्षों की यात्रा का उत्सव नहीं है बल्कि न्यायपालिका की उस सुदृढ़ परंपरा का सम्मान है जिसने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा में अपना निरंतर योगदान दिया है। पिछले 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने न्याय की पहुंच को आम जनता तक सरल बनाने, पारदर्शिता सुनिश्चित करने और तकनीकी को क्रांति की तरह अपनाने में अभूतपूर्व कार्य किए हैं। 

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री रमेश सिन्हा ने स्वागत भाषण दिया। न्यायालय की स्थापना के रजत जयंती अवसर पर सभी अतिथियों और उपस्थित जनों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का रजत जयंती कार्यक्रम निश्चित रूप से हम सभी के लिए गौरवशाली क्षण है। पिछले 25 वर्षों में न्यायालय ने विधि के शासन को स्थापित करने बेहतर कार्य किया है। उन्होंने न्यायालय की स्थापना से लेकर अब तक उपलब्धि एवं कामकाज में आए सकरात्मक बदलाव से सभा को अवगत कराया।  

समारोह के अंत में न्यायाधीश श्री संजय के अग्रवाल ने आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री श्री अरूण साव, श्री विजय शर्मा, वित्त मंत्री श्री ओपी चौधरी, विधि विधायी मंत्री श्री गजेन्द्र यादव, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री एम.एम. श्रीवास्तव, तेलंगाना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी सैम कोसी, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री यतीन्द्र सिंह, पूर्व राज्यपाल श्री रमेश बैस, मुख्य सचिव श्री अमिताभ जैन, डीजीपी श्री अरूणदेव गौतम, महाधिवक्ता श्री प्रफुल्ल भारत, विधायक श्री धरमलाल कौशिक, श्री अमर अग्रवाल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष श्री चंदेल सहित अन्य न्यायाधीश, अधिवक्ता, जन प्रतिनिधिगण तथा न्यायिक सेवा से जुड़े अधिकारी उपस्थित थे।   

इलाहाबाद हाईकोर्ट: राहुल गांधी को बड़ा झटका, याचिका खारिज


 TODAY छत्तीसगढ़  /  लखनऊ, 26 सितम्बर।  इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रायबरेली से सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने वाराणसी की विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ दायर उनकी याचिका को खारिज कर दिया है। अब विशेष अदालत इस मामले में मुकदमा दर्ज करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकेगी। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ ने दिया।

मामला सितंबर 2024 का है। अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान राहुल गांधी ने कथित तौर पर कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल ठीक नहीं है और सवाल किया था कि क्या सिख पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं या गुरुद्वारे जा सकते हैं ? इस बयान को भड़काऊ और समाज में विभाजनकारी बताते हुए विरोध हुआ।

वाराणसी निवासी नागेश्वर मिश्रा ने इस बयान के खिलाफ सारनाथ थाने में एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने अदालत का रुख किया। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 28 नवंबर 2024 को क्षेत्राधिकार के अभाव में वाद खारिज कर दिया था।

इसके पश्चात मिश्रा ने निगरानी याचिका दायर की। वाराणसी की विशेष अदालत ने 21 जुलाई 2025 को इसे स्वीकार करते हुए मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी। राहुल गांधी ने इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि, अब हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी है, जिससे केस की सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है।


हाईकोर्ट सख्त : सड़क पर स्टंट और गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं, दोषियों का लाइसेंस होगा रद्द


 TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर, 26 सितम्बर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्गों और सार्वजनिक सड़कों पर लगातार हो रही स्टंटबाजी, गुंडागर्दी और तलवार से केक काटकर जन्मदिन मनाने जैसी घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की खंडपीठ ने साफ कहा कि सड़क पर उपद्रव की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने राज्य सरकार और पुलिस को कड़ी चेतावनी देते हुए ऐसे मामलों में ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने तक की कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

हाईकोर्ट के समक्ष पेश रिपोर्ट में बताया गया कि रायपुर के खरोरा क्षेत्र में युवकों ने हाइवे पर पटाखे जलाते हुए केक काटा, वहीं बिलासपुर रतनपुर बायपास पर कुछ लड़कों ने तलवार से केक काटकर जन्मदिन मनाया। इस दौरान ट्रैफिक जाम और दहशत की स्थिति बनी। पुलिस ने बिलासपुर की घटना में 15 युवकों को हिरासत में लिया, जिनमें 9 नाबालिग हैं। तलवार और वाहन जब्त कर बीएनएस की धारा 126(2), 191(2) व आर्म्स एक्ट की धारा 25, 27 के तहत केस दर्ज किया गया है।

कोर्ट ने बिलासपुर पुलिस अधीक्षक और रायपुर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए कि वे स्टंट ड्राइविंग और सड़क पर उपद्रव रोकने के लिए अपनाए गए निवारक उपायों, चलाए गए जागरूकता अभियानों और अब तक हुई कार्रवाई का विस्तृत हलफनामा पेश करें। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब्त सभी वाहन अदालत की अनुमति के बिना किसी भी हालत में रिहा नहीं किए जाएंगे और दोषियों के लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जानकारी भी कोर्ट में दी जानी चाहिए।

गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट ने बिलासपुर मस्तूरी रोड पर युवकों द्वारा कारों में खतरनाक स्टंट का स्वतः संज्ञान लिया था। उस मामले में पुलिस ने 18 कारें जब्त की थीं, मगर अदालत ने पुलिस की कार्रवाई को नाकाफी बताते हुए मुख्य सचिव से शपथपत्र में जवाब मांगा था।


पेंशन रिलीज़ के नाम पर अवैध धन की मांग: हाईकोर्ट ने कहा– यह केवल निजी विवाद नहीं, एफआईआर रद्द करने से किया इंकार


TODAY छत्तीसगढ़  /  बिलासपुर, 25 सितम्बर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मियों द्वारा पेंशन जारी करने के नाम पर अवैध धन की मांग और धन गबन जैसे मामले केवल निजी विवाद नहीं हैं, बल्कि समाज पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसे मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की शक्ति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही प्रयोग की जानी चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता एक सरकारी क्लर्क था, जबकि शिकायतकर्ता मृतक शिक्षक की विधवा हैं। आरोप है कि याचिकाकर्ता और एक अन्य अधिकारी ने शिकायतकर्ता से उनके पति की पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य रिटायरमेंट लाभ जारी कराने के बहाने ₹2 लाख की मांग की थी। इस पर शिकायतकर्ता ने उन्हें खाली चेक सौंप दिया। बाद में पता चला कि ₹2.80 लाख धोखाधड़ी से निकाल लिए गए, जबकि पेंशन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई।

शिकायत पर 20 जून 2025 को पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद उसने हाईकोर्ट में दलील दी कि शिकायतकर्ता अब विवाद सुलझाने को तैयार हैं और एफआईआर रद्द करने पर सहमत हैं।

राज्य पक्ष का तर्क:

सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि एक बार एफआईआर दर्ज होने के बाद निष्पक्ष जांच जरूरी है। केवल आपसी समझौते के आधार पर इसे रद्द नहीं किया जा सकता, खासकर जब आरोप फॉर्जरी और धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों से जुड़े हों।

कोर्ट का निर्णय:

अदालत ने माना कि आरोप अवैध धन की मांग और गबन जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित हैं और यह केवल निजी मामला नहीं है। साथ ही, पक्षकारों के बीच कोई लिखित समझौता भी पेश नहीं किया गया। इसलिए एफआईआर रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने शिकायतकर्ता की समझौता याचिका और आरोपी की याचिका दोनों खारिज कर दीं।


1000 करोड़ का NGO घोटाला: हाईकोर्ट ने CBI जांच के दिए आदेश, 11 वरिष्ठ IAS सहित कई अफसरों पर गिरी गाज


TODAY
 छत्तीसगढ़  / 
 बिलासपुर, 25 सितम्बर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग में हुए करीब 1000 करोड़ रुपये के NGO घोटाले की जांच CBI से कराने का आदेश दिया है। जस्टिस प्रार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने 2018 से लंबित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इतने बड़े पैमाने की अनियमितताओं की निष्पक्ष जांच केवल CBI ही कर सकती है।

यह मामला राज्य स्त्रोत नि:शक्तजन संस्थान से जुड़ा है, जहां फर्जी NGOs बनाकर दिव्यांगों के नाम पर सरकारी योजनाओं के फंड की लूट की गई। विशेष ऑडिट में 31 तरह की वित्तीय अनियमितताएँ सामने आईं, जिनमें बिना अनुमति अग्रिम निकासी, काल्पनिक मशीनों की खरीदी, फर्जी कर्मचारियों को भुगतान, कागजी अस्पताल, मनमाने ट्रांसफर, गायब वाउचर और कैशबुक से मेल न खाने वाले खाते शामिल हैं। शुरुआती जांच में ₹5.67 करोड़ के फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई थी, लेकिन कुल घोटाला ₹1000 करोड़ से अधिक का बताया जा रहा है।

याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने आरोप लगाया था कि यह संस्थान शुरू से ही घोटाले के उद्देश्य से बनाया गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर संगठित भ्रष्टाचार है। राज्य सरकार द्वारा उच्च अधिकारियों को बचाने की कोशिश और अधूरी जांच पर भी नाराज़गी जताई गई।

हाईकोर्ट के निर्देश: - 

CBI को FIR दर्ज होने की तारीख से सभी मूल दस्तावेज जब्त करने और 15 दिनों के भीतर विभागीय रिकॉर्ड सुरक्षित करने का आदेश। सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएगा। पूर्व मुख्य सचिव अजय सिंह की अगुवाई में गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट का आदेश यथावत रहेगा।

वरिष्ठ अफसरों की संलिप्तता: - 

घोटाले में 11 वरिष्ठ IAS और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शामिल हैं। इनमें पूर्व मुख्य सचिव आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती जैसे नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा राजेश तिवारी, सतीश पांडेय, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर भी संदेह जताया गया है।

इन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर CBI जांच पर रोक लगाने की कोशिश की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने मामला वापस हाईकोर्ट को भेज दिया। न्यायालय का रुख साफ है कि बिना निष्पक्ष जांच के दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं होगा।


Chhattisgarh High Court : सौम्या चौरसिया की अग्रिम जमानत याचिका खारिज


बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / आय से अधिक संपत्ति मामले में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव रहीं सौम्या चौरसिया की अग्रिम जमानत याचिका को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। सौम्या चौरसिया ने गिरफ्तारी से बचने के लिए कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया।

आपको बता दें कि तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार में सौम्या चौरसिया को काफी पॉवर फूल अफसर माना जाता था, वे कोयला घोटाले के आरोप में पिछले दो साल से जेल में बंद हैं। इस मामले में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और आर्थिक अपराध अनुसंधान (EOW) विभाग ने उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। जांच में सौम्या की 50 से अधिक संपत्तियों को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अटैच किया है, जो कि उनकी संपत्तियों की जांच का हिस्सा है।

Chhattisgarh High Court : तत्कालीन सरकार ने IPS जीपी सिंह को राजनितिक षड्यंत्र के तहत फंसाया, तीनों FIR रद्द करने का आदेश

 बिलासपुर / TODAY छत्तीसगढ़  / आय से अधिक संपत्ति, देशद्रोह और ब्लैकमेलिंग मामले में फंसे IPS जीपी सिंह को हाईकोर्ट ने बुधवार को बड़ी राहत दी है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र अग्रवाल की बेंच ने उनके खिलाफ दर्ज तीनों FIR को रद्द कर दिया है।

हाईकोर्ट कोर्ट ने कहा कि, उन्हें परेशान करने के लिए झूठे मामलों में फंसाया गया है। किसी भी मामले में उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। सुनवाई में चंडीगढ़ के सीनियर काउंसिल रमेश गर्ग वर्चुअल उपस्थित हुए। 

हाईकोर्ट बोला- राजनितिक षड्यंत्र के तहत फंसाया

IPS जीपी सिंह ने अपने खिलाफ दर्ज सभी FIR को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में एडवोकेट हिमांशु पांडेय के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें बताया गया कि तत्कालीन सरकार ने उन्हें राजनितिक षड्यंत्र के तहत फंसाया है। याचिकाकर्ता के खिलाफ जितने भी केस हैं, सभी में कोई साक्ष्य नहीं हैं।

इस दौरान हाईकोर्ट ने माना कि उन्हें परेशान करने के लिए बिना सबूतों के FIR दर्ज की गई थी। इनमें एक भी केस चलने लायक नहीं है। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने तीनों FIR को रद्द करने का आदेश दिया है।

जब्त सोना भी जीपी सिंह का नहीं

जीपी सिंह के एडवोकेट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में बताया कि जिस व्यक्ति से गोल्ड सीज हुआ है, उस व्यक्ति को एसीबी ने आरोपी नहीं बनाया है, जबकि गोल्ड को जीपी सिंह का बताकर उन्हें आरोपी बनाया गया है। जिस स्कूटी से गोल्ड जब्त हुआ है, वह भी जीपी सिंह का नहीं है। उनके परिजनों के नाम पर भी रजिस्टर्ड नहीं है।

एडवोकेट ने बताया कि सुपेला में दर्ज एक्सटॉर्शन के मामले में बताया गया कि यह सालों बाद बदले की भावना से केस दर्ज किया गया है। कई साल बाद मामला दर्ज होने से मामला समझ से परे है।

कागज के टुकड़ों की रेडियोग्राफी में षड़यंत्र के सबूत नहीं

राजद्रोह के मामले में अधिवक्ता हिमांशु पांडेय ने कोर्ट को बताया कि जो कागज के कटे-फटे टुकड़े जीपी सिंह के ठिकाने से मिले हैं। उनको आधार पर मानकर राजद्रोह का आरोपी बनाया गया है। उन कागजों से कोई भी षड्यंत्र परिलक्षित नहीं होता। एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा अदालत में पेश किए गए जवाब में भी स्पष्ट है कि कागज के टुकड़ों की रेडियोग्राफी में कोई भी स्पष्टता नहीं है।

ACB ने की थी कई ठिकानों पर छापेमारी

छत्तीसगढ़ के 1994 बैच के IPS अधिकारी जीपी सिंह के खिलाफ 2021 में ACB ने सरकारी आवास सहित कई ठिकानों पर छापेमारी कर 10 करोड़ की अघोषित संपत्ति और कई संवेदनशील दस्तावेज़ बरामद किए थे। इसके बाद जीपी सिंह पर राजद्रोह का केस दर्ज हुआ, जिसमें उन पर सरकार गिराने की साजिश रचने का आरोप था।

जुलाई 2021 में उन्हें निलंबित किया गया और कुछ दिनों बाद राजद्रोह का केस दर्ज हुआ। इसके अलावा 2015 में दुर्ग निवासी बिजनसमैन कमल सेन और बिल्डर सिंघानिया के बीच व्यवसायिक लेन-देन को लेकर विवाद हुआ था। इस दौरान सिंघानिया ने सेन के खिलाफ केस दर्ज करा दिया।

कैट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में दी है चुनौती

बता दें कि इसके पहले 30 अप्रैल को छत्तीसगढ़ पुलिस के सीनियर अधिकारी IPS जीपी सिंह को CAT (केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण) से बड़ी राहत मिली थी। CAT ने चार सप्ताह में जीपी सिंह से जुड़े सभी मामलों को निराकृत कर बहाल किए जाने का आदेश दिया था। जुलाई 2023 में राज्य सरकार की अनुशंसा पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी थी।

कैट के फैसले के बाद राज्य शासन ने उन्हें फिर से बहाल करने के लिए केंद्र सरकार से अनुशंसा की थी, लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें बहाल करने के बजाय कैट के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है। इसके चलते उनकी बहाली का मामला अटका हुआ है। इस मामले की सुनवाई दिसंबर में होगी। (सोर्स/ साभार - दैनिक भास्कर)



Chhattisgarh High Court : हाथियों की बिजली करंट से मौतों पर स्वत: संज्ञान में ली गई जनहित याचिका, सचिव और MD से मांगा कोर्ट ने शपथ पत्र


 बिलासपुर / 
TODAY छत्तीसगढ़  /   रायगढ़ जिले में घरघोड़ा वन परिक्षेत्र में तीन हाथियों की मौत के मामले में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति बी.डी.गुरु ने स्वत: संज्ञान में ली गई जनहित याचिका पर सुनवाई कर सचिव ऊर्जा विभाग तथा मैनेजिंग डायरेक्टर छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी से शपथ पत्र प्रस्तुत करने के आदेश दिए। प्रकरण की अगली सुनवाई 20 नवंबर को निर्धारित की गई है। 

हस्तक्षेप याचिका भी लगाई गई - 

रायपुर के वन्य जीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने भी जनहित याचिका में हस्तक्षेप याचिका दायर कर बताया कि बिलासपुर वन मण्डल में भी एक अक्टूबर को बिजली करंट से एक हाथी शावक की मौत हो गई। बिजली तार टूटने से 9 अक्टूबर को कांकेर में तीन भालू की मौत हो गई थी।  शिकार करने के लिए लगाए गए बिजली तार से कोरबा में 15 अक्टूबर को दो लोग मारे गए थे तथा 21 अक्टूबर को भी शिकार करने के लिए लगाए गए बिजली तार से अंबिकापुर के बसंतपुर के जंगल में एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है। कोर्ट ने हस्तक्षेप याचियाचिकाकर्ता की याचिका पर भी शपथ पत्र देने के लिए आदेशित किया है।

रांची हाईकोर्ट : गैंगस्टर अमन साव के चुनाव लड़ने की उम्मीदें ख़त्म

रायपुर /  TODAY छत्तीसगढ़  /  तेलीबांधा पुलिस की रिमांड पर सौंपा गया गैंगस्टर अमन साव झारखंड में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ पाएगा। रांची हाईकोर्ट ने नामांकन के लिए सशरीर उपस्थिति के आवेदन पर अनुमति नहीं दी है। झारखंड हाईकोर्ट ने अनुमति देने से साफ मना कर दिया है। इधर बिलासपुर हाईकोर्ट में भी अमन साव की याचिका खारिज हो गई है। 

आपको बता दें कि गैंगस्टर अमन साव ने चुनाव लड़ने के सिलसिले में नामांकन के लिए उपस्थिति के लिए उच्च न्यायालय से इजाजत माँगी थी। वह झारखंड की बड़कागांव सीट से चुनाव लड़ना चाहता है। नामांकन की आख़िरी तारीख 25 अक्टूबर है। उसका पर्चा लेकर वकील शनिवार को ही रांची पहुंचे थे।

CHHATTISGARH HIGH COURT : चारागाह जमीन पर कॉलेज भवन निर्माण, जनहित याचिका खारिज

बिलासपुर। TODAY छत्तीसगढ़  /  बालोद जिले के ग्राम भालूकोन्हा भरदाकला में चारागाह जमीन पर कॉलेज भवन निर्माण को लेकर हाईकोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका कोर्ट ने खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उचित फोरम में अपील करने की छूट दी है। उस पर 5,000 रुपये की कास्ट भी लगाई है

भालूकोन्हा, भरदाकला के द्रोण कुमार साहू ने इस याचिका के माध्यम से गांव में चारागाह की जमीन पर शासकीय महाविद्यालय भवन के निर्माण का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि इस भूमि पर मौजूद चारागाह और जंगल को नष्ट करने के बजाय, कॉलेज को गांव की अन्य खाली बंजर भूमि पर बनाया जा सकता है। इससे पहले रिट पिटीशन दायर की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। राजस्व मंडल ने भी अपील को निरस्त कर दिया था। इसके बाद पीआईएल के माध्यम से यह मुद्दा हाईकोर्ट में लाया गया। मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद तथ्यों के आधार पर याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को उचित फोरम में अपील करने की अनुमति दी। 


CHHATTISGARH HIGH COURT : RTI के तहत जानकारी मांगने वाले को अब हर संस्था को देनी होगी जानकारी


बिलासपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  सूचना के अधिकार (RTI) के संबंध में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता की पहले ही मृत्यु हो चुकी है। सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत दायर आवेदन के अनुसार कोई भी जानकारी देने के लिए संस्था उत्तरदायी नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भविष्य में यदि कोई व्यक्ति अधिनियम 2005 के तहत कोई जानकारी मांगता है तो संबंधित सोसायटी सूचना देने के लिए उत्तरदायी होगी। इसके साथ ही याचिका को कोर्ट ने निराकृत कर दी है।

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चर्च ऑफ़ क्राईस्ट मिशन द्वारा कुदुदंड बिलासपुर में संचालित अलग-अलग प्राथमिक शाला और शेफर स्कूल के आय-व्यय का ब्यौरा लेने संस्था के बाहर के एक व्यक्ति ने संस्था में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। इसे संस्था ने देने से यह कहकर इंकार कर दिया था कि, यह कोई शासकीय संस्थान नहीं है। इसके अलावा इसे कोई अनुदान भी नहीं मिलता है। बाद में शिकायतकर्ता का निधन भी हो गया। संस्था द्वारा सूचना नहीं प्रदान करने पर संस्था के बाहर के सदस्यों ने सूचना आयोग में आवेदन पेश किया था। मामले की सुनवाई के बाद सूचना आयोग ने संस्था को नोटिस जारी कर जानकारी नहीं देने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना ठोंका था।

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सूचना आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता संस्था ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई जस्टिस एके प्रसाद की सिंगल बेंच में सुनवाई हुई। संस्था की ओर से पेश जवाब में कहा कि गैर अनुदान प्राप्त संस्थान होने के कारण आय-व्यय का लेखा-जोखा सूचना के अधिकार में नहीं दिया जा सकता है। आरटीआई के तहत जानकारी मांगने वाला आवेदनकर्ता संस्था का सदस्य भी नहीं है।


आयकर : किसी करदाता के खिलाफ एकपक्षीय मूल्यांकन सही है - हाईकोर्ट

 बिलासपुर /   TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आयकर अधिनियम 1961 की धारा 144 के तहत किसी करदाता के खिलाफ एकपक्षीय मूल्यांकन को सही ठहराया है। यह फैसला उस करदाता के खिलाफ लिया गया जिसने न तो मूल्यांकन कार्यवाही में भाग लिया और न ही अपने बैंक खाते में जमा 11 लाख 44 हजार 070 की नकद राशि के स्रोत की संतोषजनक व्याख्या की।

जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की पीठ ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 68 और 69ए के अनुसार यदि कोई करदाता अस्पष्टीकृत नकदी जमा के लिए संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देता है तो उस राशि को कर योग्य आय के रूप में माना जा सकता है। मामले में करदाता को कई बार नोटिस भेजे गए, परंतु उसने किसी नोटिस का जवाब नहीं दिया और न ही अधिकारियों के सामने पेश हुआ, जिसके कारण यह एकपक्षीय मूल्यांकन हुआ।

मूल्यांकन अधिकारी, आयकर आयुक्त (अपील), और आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने करदाता के खिलाफ फैसला सुनाया, क्योंकि वह अपने दावे को ठोस दस्तावेजी साक्ष्यों से प्रमाणित करने में असमर्थ रहा। करदाता ने आईटीएटी के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी लेकिन न्यायालय ने आईटीएटी के फैसले की पुष्टि की। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि नकद जमा की स्पष्ट व्याख्या करने में करदाता की विफलता के कारण इसे आय के रूप में माना जा सकता है।

जस्टिस अग्रवाल द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया है- "यदि करदाता अपने खाते में पाई गई जमा राशि के स्रोत और प्रकृति के बारे में संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देता है, तो इसे प्रथम दृष्टया उसकी आय माना जाएगा।" कोर्ट ने करदाता के इस दावे को भी खारिज किया कि नकद जमा किसी तीसरे पक्ष की थी और उसने संग्रह एजेंट के रूप में काम किया था। कोर्ट ने कहा कि तीसरे पक्ष को बुलाकर इस बात की पुष्टि करानी चाहिए थी।

सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले- आयकर आयुक्त सलेम बनाम के चिन्नाथंबन (2007) का हवाला देते हुए, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब जमा किसी तीसरे पक्ष के नाम पर होती है, तो उस व्यक्ति को धन के स्रोत के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए अवश्य बुलाना चाहिए।

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