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11 साल अलग रहने के बाद तलाक मंजूर, पत्नी को 20 लाख गुजारा भत्ता देने का आदेश

 पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता : हाईकोर्ट

बिलासपुर।  TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद से जुड़े अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पत्नी द्वारा पति को शारीरिक संबंध बनाने से रोकना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए पति की अपील स्वीकार कर ली और तलाक मंजूर कर दिया। जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस ए.के. प्रसाद की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए पत्नी को दो माह के भीतर पति को 20 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया।

क्या है मामला

अंबिकापुर के 45 वर्षीय व्यक्ति ने 30 मई 2009 को रायपुर की एक महिला से हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया था। पति का आरोप था कि शादी के एक महीने भीतर ही पत्नी मायके चली गई और वैवाहिक दायित्व निभाने में रुचि नहीं दिखाई। उन्होंने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की अर्जी दायर की।

पति ने बताया कि पत्नी 2013 में कुछ समय के लिए उसके साथ रही, लेकिन शारीरिक संबंध बनाने से लगातार इनकार करती रही और संबंध बनाने का दबाव डालने पर सुसाइड करने की धमकी भी दी। मई 2014 से वह मायके में रह रही है और पति के प्रयासों के बावजूद कभी नहीं लौटी। न ही परिवार के किसी कार्यक्रम या अवसर में शामिल हुई।

पत्नी का पक्ष

पत्नी ने पति के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि उसका पति एक साध्वी के भक्त हैं और योग-साधना में लीन रहने के कारण वैवाहिक संबंधों में रुचि नहीं रखते थे। उसने पति पर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के आरोप लगाए। पत्नी ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक बार अर्जी दायर की थी, लेकिन बाद में उसे स्वयं वापस ले लिया।

फैमिली कोर्ट और फिर हाईकोर्ट

फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी, जिसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में अपील कर कहा कि अदालत ने उनके तर्क सुने बिना ही आवेदन खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों के बयान और रिकॉर्ड का अवलोकन कर पाया कि पति-पत्नी पिछले 11 वर्षों से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि वह अब पति के साथ नहीं रहना चाहती। अदालत ने कहा कि इतने लंबे अलगाव और वैवाहिक संबंध पुनर्स्थापित करने से स्पष्ट इनकार मानसिक क्रूरता माना जाएगा। इन परिस्थितियों को देखते हुए डिवीजन बेंच ने पति की अपील स्वीकार कर तलाक मंजूर कर दिया।

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