बिलासपुर। TODAY छत्तीसगढ़ / आर्थिक रूप से कमजोर एक महिला रोगी के साथ कथित चिकित्सीय लापरवाही के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व में गठित जांच समिति की रिपोर्ट को अवैध घोषित कर दिया है। अदालत का कहना है कि समिति न तो नियमों के अनुसार गठित की गई थी और न ही अनिवार्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया। हाईकोर्ट ने कलेक्टर बिलासपुर को निर्देश दिया है कि नियम 18 के तहत नई उच्चस्तरीय समिति गठित कर चार माह में जांच पूरी की जाए।
याचिकाकर्ता शोभा शर्मा ESIC योजना के तहत उपचार करा रही थीं। उनका कहना है कि दयालबंद स्थित लालचांदनी अस्पताल से उन्हें ऑपरेशन के लिए आरबी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस भेजा गया। आरोप है कि डॉक्टरों ने उनके बाएँ घुटने की जगह दाएँ घुटने का ऑपरेशन कर दिया। आपत्ति उठाए जाने के बाद कथित तौर पर बिना पर्याप्त जांच के बाएँ घुटने की भी सर्जरी कर दी गई। महिला का कहना है कि दोनों ऑपरेशनों के बावजूद उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और वे आज भी गंभीर शारीरिक अक्षमता और निरंतर दर्द से जूझ रही हैं। रोजगार के अवसर भी उनके लिए लगभग समाप्त हो गए हैं।
आर्थिक कठिनाइयाँ और कानूनी लड़ाई
शोभा शर्मा ने अदालत को बताया कि सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण वे कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पा रही थीं। एक अधिवक्ता द्वारा निःशुल्क (प्रो बोनो) कानूनी सहायता मिलने के बाद ही वे यह मामला अदालत तक ला सकीं।
इस मामले की शिकायत के बाद बनाई गई चार-सदस्यीय समिति ने दोनों अस्पतालों को क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने पाया कि समिति न तो कलेक्टर द्वारा विधिसम्मत रूप से गठित थी और न ही उसका नेतृत्व डिप्टी कलेक्टर स्तर के अधिकारी के हाथ में था। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि ऐसी रिपोर्ट का “कानूनी दृष्टि से कोई मूल्य नहीं” है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश न केवल पीड़िता के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि स्वास्थ्य संस्थानों की जवाबदेही और नियम-पालन को लेकर एक स्पष्ट संदेश भी देता है। अदालत ने संकेत दिया है कि जांच अब नए सिरे से और अधिक पारदर्शिता के साथ की जाएगी।
