TODAY छत्तीसगढ़ / बिलासपुर, 25 सितम्बर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग में हुए करीब 1000 करोड़ रुपये के NGO घोटाले की जांच CBI से कराने का आदेश दिया है। जस्टिस प्रार्थ प्रतीम साहू और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की डिवीजन बेंच ने 2018 से लंबित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि इतने बड़े पैमाने की अनियमितताओं की निष्पक्ष जांच केवल CBI ही कर सकती है।
यह मामला राज्य स्त्रोत नि:शक्तजन संस्थान से जुड़ा है, जहां फर्जी NGOs बनाकर दिव्यांगों के नाम पर सरकारी योजनाओं के फंड की लूट की गई। विशेष ऑडिट में 31 तरह की वित्तीय अनियमितताएँ सामने आईं, जिनमें बिना अनुमति अग्रिम निकासी, काल्पनिक मशीनों की खरीदी, फर्जी कर्मचारियों को भुगतान, कागजी अस्पताल, मनमाने ट्रांसफर, गायब वाउचर और कैशबुक से मेल न खाने वाले खाते शामिल हैं। शुरुआती जांच में ₹5.67 करोड़ के फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई थी, लेकिन कुल घोटाला ₹1000 करोड़ से अधिक का बताया जा रहा है।
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने आरोप लगाया था कि यह संस्थान शुरू से ही घोटाले के उद्देश्य से बनाया गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी की कि यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर संगठित भ्रष्टाचार है। राज्य सरकार द्वारा उच्च अधिकारियों को बचाने की कोशिश और अधूरी जांच पर भी नाराज़गी जताई गई।
हाईकोर्ट के निर्देश: -
CBI को FIR दर्ज होने की तारीख से सभी मूल दस्तावेज जब्त करने और 15 दिनों के भीतर विभागीय रिकॉर्ड सुरक्षित करने का आदेश। सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा जाएगा। पूर्व मुख्य सचिव अजय सिंह की अगुवाई में गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट का आदेश यथावत रहेगा।
वरिष्ठ अफसरों की संलिप्तता: -
घोटाले में 11 वरिष्ठ IAS और राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शामिल हैं। इनमें पूर्व मुख्य सचिव आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल और पीपी सोती जैसे नाम प्रमुख हैं। इनके अलावा राजेश तिवारी, सतीश पांडेय, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा पर भी संदेह जताया गया है।
इन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर CBI जांच पर रोक लगाने की कोशिश की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने मामला वापस हाईकोर्ट को भेज दिया। न्यायालय का रुख साफ है कि बिना निष्पक्ष जांच के दोषियों तक पहुंचना संभव नहीं होगा।
