
TODAY छत्तीसगढ़ / बिलासपुर, 25 सितम्बर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मियों द्वारा पेंशन जारी करने के नाम पर अवैध धन की मांग और धन गबन जैसे मामले केवल निजी विवाद नहीं हैं, बल्कि समाज पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसे मामलों में पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की शक्ति केवल असाधारण परिस्थितियों में ही प्रयोग की जानी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता एक सरकारी क्लर्क था, जबकि शिकायतकर्ता मृतक शिक्षक की विधवा हैं। आरोप है कि याचिकाकर्ता और एक अन्य अधिकारी ने शिकायतकर्ता से उनके पति की पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य रिटायरमेंट लाभ जारी कराने के बहाने ₹2 लाख की मांग की थी। इस पर शिकायतकर्ता ने उन्हें खाली चेक सौंप दिया। बाद में पता चला कि ₹2.80 लाख धोखाधड़ी से निकाल लिए गए, जबकि पेंशन की प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हुई।
शिकायत पर 20 जून 2025 को पुलिस ने दोनों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। याचिकाकर्ता की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद उसने हाईकोर्ट में दलील दी कि शिकायतकर्ता अब विवाद सुलझाने को तैयार हैं और एफआईआर रद्द करने पर सहमत हैं।
राज्य पक्ष का तर्क:
सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि एक बार एफआईआर दर्ज होने के बाद निष्पक्ष जांच जरूरी है। केवल आपसी समझौते के आधार पर इसे रद्द नहीं किया जा सकता, खासकर जब आरोप फॉर्जरी और धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों से जुड़े हों।
कोर्ट का निर्णय:
अदालत ने माना कि आरोप अवैध धन की मांग और गबन जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित हैं और यह केवल निजी मामला नहीं है। साथ ही, पक्षकारों के बीच कोई लिखित समझौता भी पेश नहीं किया गया। इसलिए एफआईआर रद्द करने का कोई औचित्य नहीं है। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने शिकायतकर्ता की समझौता याचिका और आरोपी की याचिका दोनों खारिज कर दीं।