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Supreme Court: मानव–वन्यजीव संघर्ष को ‘प्राकृतिक आपदा’ मानने पर राज्यों से विचार करने को कहा, टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश


नई दिल्ली। 
TODAY छत्तीसगढ़  /  सुप्रीम कोर्ट ने मानव–वन्यजीव संघर्ष के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए सोमवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों को ‘प्राकृतिक आपदा’ घोषित करने पर गंभीरता से विचार करें, ताकि पीड़ितों को त्वरित राहत मिल सके। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी घटनाओं में अगर किसी व्यक्ति की मौत होती है, तो परिजनों को 10 लाख रुपये का अनिवार्य मुआवजा दिया जाएगा।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मुआवजा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सीएसएस–आईडब्ल्यूडीएच योजना के तहत तय मानकों के मुताबिक होगा। अदालत ने राज्यों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि मुआवजा प्रक्रिया सरल, सुलभ और समयबद्ध हो।

टाइगर सफारी पर कड़े निर्देश

अदालत ने बाघ संरक्षण से जुड़े मामलों पर भी विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि कोर या सघन बाघ आवास क्षेत्रों में टाइगर सफारी की अनुमति नहीं दी जा सकती। सफारी सिर्फ बफर ज़ोन में ऐसी बंजर या गैर-वन भूमि पर स्थापित की जा सकेगी, जो बाघ गलियारे के दायरे में न आती हो। इसके साथ ही सफारी चलाने वालों को अनिवार्य रूप से एक रिस्क्यू और रिहैबिलिटेशन सेंटर भी संचालित करना होगा।

कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व पर सख्त रुख

उत्तराखंड के कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में कथित अवैध निर्माण और बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई की शिकायतों पर गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। राज्य सरकार को तीन महीनों के भीतर सभी अवैध संरचनाएँ गिराने और कटे हुए पेड़ों की भरपाई करने के निर्देश दिए गए हैं। फैसले के अनुसार पारिस्थितिक पुनर्स्थापना की संपूर्ण प्रक्रिया की निगरानी केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) करेगी।

राज्यों के लिए छह महीने की समय-सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को छह महीने के भीतर मानव–वन्यजीव संघर्ष पर मॉडल दिशानिर्देश तैयार करने का आदेश दिया है। राज्यों को इन्हें आगे छह महीनों के भीतर लागू करना होगा। अदालत ने वन, राजस्व, पुलिस, आपदा प्रबंधन और पंचायती राज विभागों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

बफर क्षेत्र में प्रतिबंधित गतिविधियाँ

कोर्ट ने बफर और फ्रिंज क्षेत्रों में कई गतिविधियों पर रोक लगाने की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। इनमें वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषणकारी उद्योग, बड़ी जलविद्युत परियोजनाएँ, खतरनाक पदार्थों का उत्पादन और कम-उड़ान वाले विमानों का संचालन शामिल है।

रिसॉर्ट्स प्रतिबंधित, रात के पर्यटन पर प्रतिबंध, शांत क्षेत्र अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने टाइगर रिजर्व के पास पर्यटन के लिए विशिष्ट निर्देश जारी किए. इसके तहत पर्यावरण के अनुकूल रिसॉर्ट्स को केवल बफर्स ​​में ही अनुमति दी जाएगी और वाहनों की वहन क्षमता लागू की जाए. रात्रि पर्यटन पर पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगी. आपातकालीन वाहनों को छोड़कर, मुख्य क्षेत्रों से गुजरने वाली सड़कें शाम से सुबह तक बंद रखी जाएं. इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ईएसजेड सहित पूरा टाइगर रिजर्व तीन महीने के भीतर ध्वनि प्रदूषण नियमों के तहत साइलेंस जोन के रूप में अधिसूचित किया जाए.

पर्यटन पर नियंत्रण और ‘साइलेंस ज़ोन’ की घोषणा

टाइगर रिज़र्व के नजदीक पर्यटन गतिविधियों के लिए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण-अनुकूल रिसॉर्ट्स सिर्फ बफर ज़ोन में ही अनुमति योग्य होंगे और गाड़ियों की वहन क्षमता का सख्ती से पालन किया जाएगा। रात्रि पर्यटन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि पूरे टाइगर रिज़र्व क्षेत्र — जिसमें ईको-सेंसिटिव ज़ोन भी शामिल है — को तीन महीनों के भीतर साइलेंस ज़ोन के रूप में अधिसूचित किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बाघ संरक्षण को प्राथमिकता देना अनिवार्य है, और पर्यटन तभी बढ़ाया जा सकता है जब वह पर्यावरण के अनुकूल और स्थानीय पारिस्थितिकी से सामंजस्यपूर्ण हो।

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