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बिलासपुर जिले के तखतपुर क्षेत्र में करंट की चपेट में आकर मरा हाथी शावक |
(सत्यप्रकाश पांडेय) / क्या वन्यप्राणियों के खिलाफ़ क्रूरता बढ़ी है ? हम पक्के तौर पर ये कह सकते हैं कि हाँ, क्रूरता का ग्राफ और तरीका दोनों बदला है । इन सबके बीच जिम्मेदारियों से भागने का तरीका भी बदला है, वन्यप्राणियों के शिकार और उनकी अकाल मौत पर अक्सर जिम्मेदार अफसरों की बयानबाजी गैर जिम्मेदारी का ठोस सबूत भी देती है। इंसानी क्रूरता का शिकार वन्यप्राणी सीमा बंधन को नहीं समझता, भूख और सुरक्षित रहवास के लिये भटकता वन्यजीव अक्सर मौत के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है या फिर मौत उसके हिस्से आती है। इन सबके बीच संवेदनहीन अफसरों के बयान कइयों बार सवाल भी खड़े करते है, अफ़सोस अहंकार की गर्मी से तपते ऐसे वन अफसरों को आपने कभी वन्यप्राणियों की मौत पर झूठा मातम मनाते भी नहीं देखा होगा। इन तमाम बदलाव के बीच इस दौर जो सबसे बड़ा बदलाव आया है वो ये कि अब इस तरह की क्रूरता को कैमरे में कैद किया जा रहा है और सोशल मीडिया पर लगातार शेयर किया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में हाथियों की मौजूदगी और उनकी बड़ी आबादी को लेकर कोई संशय नहीं है। राज्य में हाथियों की उपस्थिति के इतिहास को खंगाले तो यहां के जंगलों से उनका रिश्ता सैकड़ों साल पुराना नज़र आयेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ में हाथियों की घर वापसी से जंगल के अफसर परेशान हो सकते है। राज्य में हाथी-मानव द्वन्द के तरीके और कारणों पर सालों से काम भी चल रहा है। इन सालों में हाथी और इंसानी मौत के आंकड़े कुछ ऊपर नीचे हो सकते हैं लेकिन एक दशक में कोई ठोस कार्य योजना जिसका सकारात्मक परिणाम धरातल पर दिखाई देता हो ऐसा अब तक नज़र नहीं आया। राज्य में हाथी कभी करंट की चपेट में आकर मरे तो कभी जहर या फिर गढ्ढों में गिरकर अकाल मौत का शिकार बने।
पिछले दस दिनों में छत्तीसगढ़ और उसकी सीमा से सटे राज्य मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में कुल 15 हाथी मारे गये। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और बिलासपुर जिले में चार हाथी करंट की चपेट में आने से मरे। इन चार हाथियों की मौत के कारण एक हैं, वजह अलग-अलग। रायगढ़ जिले के घरघोड़ा वन क्षेत्र में करंट से जिन तीन हाथियों की मौत हुई वो बिजली विभाग और वन विभाग की संयुक्त लापरवाही का नतीजा थी।
बिलासपुर जिले के तखतपुर क्षेत्र के टिन्गीपुर इलाके में पिछले दिनों जिस नर हाथी शावक का शव बरामद हुआ वो भी करंट लगने से मरा। यहां शिकार के लिए बिजली का तार बिछाया गया था, जिसमें दल से भटका हुआ हाथी फंसा और काल के गाल में समा गया। असल तमाशा हाथी की मौत के बाद शुरू हुआ, अफसरों ने कहा जिस जगह हाथी का शव मिला वो राजस्व के हिस्से में आता है। हाथी का शव जिस खेत में था, वहां से कुछ दूर चलें तो अचानकमार टाईगर रिजर्व की सीमा शुरू होती हैं। दूसरी तरफ वन विकास निगम का इलाका है, बचा हिस्सा बिलासपुर वन मंडल और राजस्व विभाग की मिल्कियत।
हाथी की मौत के बाद मचे हाहाकार से भयभीत चंद वन अफसर अपनी जिम्मेदारियों से भागते दिखे। एक वन्यप्राणी की अकाल मौत पर गाल बजाते वन अफसरों ने लाश को न सिर्फ सीमा विवाद में फंसाया बल्कि मिडिया को दिये बयानों के माध्यम से उन्होंने अपनी संवेदनहीनता का खुलकर परिचय भी छपवाया। मीडिया बयानों के मुताबिक़ -
"अधिकारियों के पास बड़ा क्षेत्र होता है, इसलिए पूरे क्षेत्र की निगरानी उनके द्वारा संभव नहीं है। इसलिए जिनकी जैसी जवाबदारी है वैसी ही कार्यवाही होगी।" - प्रभात मिश्रा, सीसीएफ बिलासपुर
"मृतक और अन्य हाथियों का दल अचानकमार टाइगर रिजर्व में विचरण करते रहते थे, जिस पर विभाग के कर्मचारी लगातार निगरानी करते थे। कुछ दिन पहले ही पांच हाथियों में से एक हाथी घूमते हुए मुंगेली और निगम के एरिया में पहुंच गया, जिसकी सूचना निगम को भी दी गई थी। हमारा एरिया नहीं होने की वजह से कुछ नहीं कर पाए। इसके बाद 31 अक्टूबर की रात को हाथी के गुम होने और उसके मौत की सूचना मिलते ही जानकारी बिलासपुर वन मंडल को दी गई। हमारे सूचना के बाद ही बिलासपुर वन मंडल की टीम ने मौके पर पहुंचकर मृतक हाथी के मामले में जांच शुरु की है।" _ गणेश यूआर, डिप्टी डायरेक्टर, एटीआर
"पांच हाथियों के दल से एक हाथी जब बिछड़ा था तो इसकी सूचना सभी को देनी चाहिए थी, लेकिन किसी ने भी सूचना देना उचित नहीं समझा। इसके बाद हाथी का शव तखतपुर ब्लाक के टिंगीपुर में मिला, जो बिलासपुर वन मंडल का क्षेत्र नहीं है। यह क्षेत्र वन विकास निगम और एटीआर के बीच राजस्व का है, जिसके बाद मौके पर पहुंचकर हाथी का शव पोस्टमार्टम कराने के बाद अंतिम संस्कार करने के उपरांत बिसरा रिपोर्ट जबलपुर भेजी जा रही है। इस मामले में दो को गिरफ्तार किया गया है, जिनसे पूछताछ हो रही है।" _ सत्यदेव शर्मा, डीएफओ, वन मंडल बिलासपुर
इन बयानों को पढ़कर आप अफसरों की कार्यशैली और कार्यक्षेत्र का दायरा बखूबी समझ सकते हैं। यहां ये बताना लाजिमी होगा कि पिछले कुछ महीनों से अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र में पाँच हाथियों का दल लगातार विचरण कर रहा है। उसी दल से बिछड़ा एक शावक इंसानी क्रूरता का शिकार बन गया।
कृषि भूमि और खनन प्रथाओं के लिए वन्यजीवों के आवासों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है। राज्य के हसदेव का कटता जंगल प्रत्यक्ष प्रमाण है। परिणामस्वरूप होने वाले उपभोग से बेजुबान वन्यजीवों के लिए कोई जगह नहीं बचती, जिन्हें मानव बस्तियों में घुसने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं पता। ऐसे में प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने की हर कड़ी में इंसान और उसकी बदनियती छिपी हुई है। जानवरों के प्रति इस क्रूरता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। हाथी को समस्या का नाम देने वालों से पूछा जाना चाहिये कि क्या हम सभी हाथी की मौत में दोषी नहीं हैं ?