रायपुर। TODAY छत्तीसगढ़ / छत्तीसगढ़ के बारनवापारा अभयारण्य में 3 नवंबर की रात एक खुले कुएं में एक शावक सहित तीन हाथियों के गिरने की घटना को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए रायपुर निवासी नितिन सिंघवी ने इसे वन विभाग की घोर लापरवाही बताया। हालांकि वन विभाग ने बड़ी ही सूझ-बुझ के साथ कुँएं से हाथियों को बाहर निकालने में सफलता पाई है। वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमी सिंघवी ने बताया कि वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए और सूखे कुओं को बंद करने को लेकर वे 2018 से मांग कर रहे हैं। इसको गंभीरता से लेकर भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी कार्यवाही करने के लिए वर्ष 2021 में छत्तीसगढ़ शासन को पत्र लिखा था। बाद में सिंघवी के निवेदन पर भारत सरकार ने देश के सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों को खुले हुए कुओं को बंद करने के लिए 2022 में आदेश दिया था।
वन विभाग ने राज्य बजट में कोई प्रस्ताव नहीं भेजा
सिंघवी ने बताया कि पिछले सात साल से वन विभाग ने इन कुओं को सुरक्षित करने हेतु राज्य शासन से बजट प्राप्त करने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की, जबकि प्रदेश में वन क्षेत्र और उसके आसपास खुले और सूखे कुओं की संख्या पचीस हजार से ज्यादा होने का अनुमान है। वर्ष 2024 में कैंपा फंड से सिर्फ 450 खुले कुओं पर सुरक्षा दीवार बनाकर सुरक्षित किया गया, वह भी सिर्फ कांकेर जिले में जब कि प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) ने कोई कुआँ बंद नहीं करवाया।
एक माह पहले भी लिखा पत्र
सिंघवी ने बताया कि कीचड़ युक्त डबरी में हाथियों के फंसने को लेकर, कीचड़ युक्त डबरी, सूखे कुओं और खुले कुओं को बंद करने को लेकर उन्होंने राज्य शासन को 25 सितम्बर को पत्र लिखा था, जिसे शासन ने तो गंभीरता से लिया गया, परंतु बाद में विभागीय अधिकारियों ने कोई रूचि नहीं की दिखाई।
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| वर्ष 2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी। |
2017 की घटना से कोई सबक नहीं लिया
2017 में प्रतापपुर के पास एक हथिनी सूखे कुएं में गिर गई थी। उसे क्रेन से निकाला गया, परंतु तत्काल ही उसकी मौत हो गई। सिंघवी ने आरोप लगाया कि इस घटना के बाद भी वन विभाग नहीं जागा। हर साल कई भालू, तेंदुए, लकड़बग्घे और अन्य जानवर इन कुओं में गिरकर या तो मर जाते हैं या घायल हो जाते हैं, जिन्हें बाद में आजीवन जू में कैद रहना पड़ता है। शायद वन विभाग को खुशी मिलती हो कि जू में जानवरों की संख्या बढ़ रही है।
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| सिंघवी ने वर्ष 2018 में भी पत्र लिखा |
झूमर दिखाने के लिए भटक गया है वन विभाग
सिंघवी ने वन विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि वन्य प्राणियों के रक्षक कहलाने वाले अधिकारी वन्य प्राणियों के लिए कार्य करने की बजाय अब इको टूरिज्म बढ़ावा देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कांगेर वेली नेशनल पार्क में लाखों सालों से सुरक्षित झूमर और ग्रीन नामक गुफाएं, जिनकी जैव विविधता मानव हस्तक्षेप से नष्ट हो सकती है, उनकी रक्षा करने की बजाय विभाग उन गुफाओं को इको टूरिज्म के नाम से आम जनता के लिए खोलने की तैयारी में मेहनत और ज्यादा ध्यान दे रहा है। जनता को गुमराह करने के लिए और पब्लिसिटी पाने के लिए दावा कर रहा है कि अचनाकमार टाइगर रिजर्व में कान्हा से भी ज्यादा टाइगर दिखायेंगे।
*पिक्चर बनाने में ज्यादा ध्यान
सिंघवी ने चर्चा में बताया कि बलौदा बाजार वनमंडल, जहां चार हाथियों के कुएं में गिरने की घटना हुई है, उसी वनमंडल के कसडोल क्षेत्र के सिद्ध बाबा झरना के पास वन विभाग के संरक्षण तले दस दिन पहले एक निजी यूनिवर्सिटी ने अकादमिक कार्यों की अनुमति लेकर सूत्रों के अनुसार फिल्म निर्माण का कार्य किया। तब वहां हाथी विचरण कर रहे थे और जानकारी के अनुसार हाथियों की शूटिंग करने के लिए पटाखे फोड़े गए। वन विभाग की जानकारी में सब कुछ रहा, पर अधिकारी आंखें बंद करके बैठे रहे।*
कब तक वन्य प्राणियों कुओं में गिरेंगे
सिंघवी ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) से पूछा कि उन्हें प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खुलासा करना चाहिए कि उनकी प्राथमिकता इको-टूरिज्म है या वन्यप्राणियों की रक्षा? अगर वन्यप्राणियों की रक्षा करना है, तो उन्हें बताना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र और उसके आसपास के क्षेत्रों में खुले हुए, सूखे कुएं और खतरनाक डबरियां कब तक वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित हो जायेंगी?


