छत्तीसगढ़ की राजनीति इन दिनों नए-नए रंग बिखेर रही है। रंग भी ऐसे जो बेरोज़गारों के घरों में नहीं, मगर नेताओं के ठहराव वाले ढाबों और होटलों में ज़रूर मिल जाते हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार के दो मंत्री और भाजपा संगठन के कुछ महत्वपूर्ण पदाधिकारी राजधानी रायपुर से अंबिकापुर प्रवास के दौरान सड़क किनारे एक होटल में ठहरे। ठहरना कोई मुद्दा नहीं था, देश की राजनीति सड़क से ही चलती है और कभी-कभी सड़क किनारे सोती भी है।
मुद्दा था उनका मस्तियाना अंदाज़— चेहरे पर ठंडी हवा से भी ठंडा आत्मविश्वास, और पकोड़े-भजियों की तरह खौलती जनता के सवालों से कोसों दूर संतोष… मानो सत्ता का रस उनके लिए चाय की चुस्की हो और जनता की समस्या बस चाय में उभरता हुआ छोटा बुलबुला।
तस्वीर देखकर अचानक उन बेरोज़गारों की याद आ गई, जिन्हें कभी प्रधानमंत्री जी ने भजिया तलने की ऐतिहासिक सलाह दी थी। वह सुझाव अब भारतीय अर्थव्यवस्था के महान “स्टार्टअप मॉडल” के रूप में स्थापित हो चुका है— स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, और अंत में फ्राई-अप इंडिया।
देश का युवा अब सोच रहा है कि नौकरी की तलाश में रिज़्यूमे न भेजकर, नमक-हल्दी की दरकार में कड़ाही भेजनी चाहिए। अब इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्लेसमेंट सेल नहीं, “चाय-भजिया कौशल प्रशिक्षण केंद्र” खुलने चाहिए। जो जितना ज्यादा क्रिस्पी फ्राई करेगा, उसे उतना अधिक पैकेज मिलेगा— टोकरा सहित।
लेकिन चिंता की बात यह है कि भजिया उद्योग ने अभी तक “मिनी मंत्रालय” का दर्जा नहीं पाया। जबकि नेताओं की होटल मस्तियों को देखकर लगता है कि कम से कम सलाहकार पदों पर कुछ अनुभवी रसोइयों की नियुक्ति ज़रूर होनी चाहिए। आख़िर, जो देश के युवा को तेल में उतारकर भविष्य तलने की हिदायत दे सकता है, उसे “फ्राई-केबिनेट” का गठन करके सम्मानित करना ही चाहिए। राजनीति के शौर्य, चाय के स्वाद और जनता के धैर्य को सलाम ! सत्ता का यह भरोसा अनमोल है— “नेता मस्त रहेंगे, जनता तलेगी… तभी देश आगे बढ़ेगा।”
-------------------------------------------------
(नोट - 'कैमरे की कलम' यह साप्ताहिक कालम है, आज से इसकी शुरुआत कर रहा हूँ। यह कॉलम राजनीति, सामाजिक मुद्दों के अलावा कई विषयों पर होगा, इसमें आपको एक फ्रेम के पीछे की हकीकत, उसके पीछे छिपा सच-फ़रेब सब कुछ पढ़ने को मिलेगा। इसे आप मेरे फेसबुक की टाइमलाइन पर भी पढ़ सकते हैं। क्लिक करें -)
