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पक्षियों की शरणस्थली पर संकट: अवैध मुरुम खनन ने बढ़ाई चिंता


 बिलासपुर / 
TODAY छत्तीसगढ़  /  प्रकृति का संतुलन तब बिगड़ता है जब मनुष्य अपने अल्पकालिक लाभ के लिए पर्यावरण के दीर्घकालिक हितों को नज़रअंदाज़ कर देता है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से केवल 23 किलोमीटर दूर स्थित मोहनभाठा, प्रवासी/स्थानीय पक्षियों के अलावा अन्य जीव जंतुओं की शरणस्थली इस समय ऐसी ही मानवजनित गतिविधियों के कारण गंभीर खतरे का सामना कर रही है। हाल ही में यहाँ अवैध मुरुम खनन का काम द्रुत गति से शुरू हो गया है, जो इस क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए गहरे संकट का संकेत है। 

प्रवासी पक्षियों की सुरक्षित शरणस्थली

मोहनभाठा, ब्रिटिशकालीन सेना के लिए बनाई गई हवाई पट्टी और उसके आस-पास के सैकड़ों एकड़ की बंजर भूमि भले ही आज अतिक्रमणकारियों के हिस्से में हो लेकिन आज भी बहुत बड़ा क्षेत्र पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियों और वन्यजीवों के लिए अनुकूल है।  जिले के पक्षी और प्रकृति प्रेमी वर्षों से मोहनभाठा को पक्षियों की सुरक्षित शरणस्थली के रूप में जानते रहे है। 

खनन से बदल रहा है भूगोल

मोहनभाठा, अवैध मुरुम खनन से इस क्षेत्र की प्राकृतिक बनावट तेजी से नष्ट हो रही है। अवैध मुरुम उत्खनन से पक्षियों के रहवास और उनके अनुकूल परिस्थितियों पर अब भीषण संकट दिखाई दे रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि रात करीब 9 बजे के बाद खनन के लिए जरूरी मशीन और ढुलाई के लिये हाईवा आता है। रात के अँधेरे में शुरू हुआ खनन का गोरखधंधा तड़के तक जारी रहता है। सरकारी (कभी ब्रिटिश सेना की) जमीन पर रात के अँधेरे में अवैध तरीके से मुरुम के खनन में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के संरक्षण की बात भी दबी जुबान से कही जा रही है। ग्रामीण ऐसे माफियाओं से खौफ खाते हैं लिहाजा खुलकर विरोध करने से कतरा रहें हैं।  

    

कानूनी प्रावधानों की अनदेखी

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 तथा खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत बिना अनुमति खनन पूरी तरह अवैध है। इसके बावजूद स्थानीय स्तर पर प्रशासनिक उदासीनता और राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण यह गतिविधि खुलेआम जारी है। अवैध खनन किसी भी रूप में केवल “आर्थिक गतिविधि” नहीं होता; यह एक पारिस्थितिक अपराध है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और खनिज विनियमन अधिनियम — सभी इस तरह की गतिविधियों पर सख्त रोक लगाते हैं। फिर भी, स्थानीय प्रशासन की आँखों के सामने यह सब खुलेआम हो रहा है।

अवैध गतिविधियाँ और शिकारियों का जमावड़ा

खनन कार्य के बहाने यहाँ बाहरी लोगों की आवाजाही बढ़ गई है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, रात के समय कई संदिग्ध वाहन इस क्षेत्र में घूमते हैं। पिछले कुछ समय से शिकारियों और अवैध धंधों में लिप्त लोगों का जमावड़ा यहाँ नियमित रूप से देखा जा रहा है। इसका सीधा असर पक्षियों और अन्य वन्यजीवों की सुरक्षा पर पड़ रहा है। 

अब बच्चों की सुरक्षा पर भी संकट

खनन स्थल के पास ही गाँव के बच्चे प्रतिदिन क्रिकेट और अन्य खेल खेलने के लिए इकट्ठा होते हैं। पहले यह जगह उनका खेल मैदान हुआ करती थी, लेकिन अब वहाँ बने गहरे गड्ढे स्थिति को बेहद खतरनाक बना चुके है। खेल के दौरान थोड़ी सी लापरवाही किसी गंभीर हादसे का कारण बन सकती है। ग्रामीणों का कहना है कि “जहाँ पहले बच्चे खेलते थे, वहाँ अब खाई बनती दिखाई देती है। 

जरूरी है ठोस कदम

अब वक्त है कि प्रशासन, पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय समुदाय मिलकर इस अवैध खनन को तुरंत रोके। मोहनभाठा की प्राकृतिक विरासत की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना और जिम्मेदारी से संभव है। पक्षियों के शोरगुल और वन्य प्राणियों की शांति तभी बचेगी जब हम विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना सीखेंगे। 

दुर्लभ प्रवासी Caspian plover की तस्वीरें खींचने का सेन्ट्रल इंडिया में पहला रिकार्ड सत्यप्रकाश के नाम

 


TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर / अकल्पनीय मोहनभाठा, कहने को तो बंजर भूमि है मगर प्रवासी, अप्रवासी पक्षियों के अलावा अन्य जीव जंतुओं के लिए जन्नत से कम नहीं है । एक ऐसी भूमि, जो किसी को खाली हाथ नहीं लौटाती । उसी जन्नत से वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने कुछ तस्वीरें खींची हैं । तस्वीर भी किसी आम पक्षी की नहीं बल्कि बेहद दुर्लभ प्रवासी कैस्पियन प्लोवर की। इस पक्षी का मोहनभाठा में दिखाई देना किसी आश्चर्य से कम नहीं, अनुकूल परिस्थितियां देखकर यह पक्षी मोहनभाठा में उतरा। 

       Caspian plover (Anarhynchus asiaticus)  इस बेहद ख़ास और दुर्लभ पक्षी का छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पूरे मध्य भारत ( central India) में यह पहला रिकॉर्ड है जब इसे वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने तस्वीरों और वीडियो में रिकार्ड किया है। इस पक्षी के बिलासपुर जिले की सरहद में उतरने की खबर जब पक्षी मित्रों के बीच  फैली तो मोहनभाठा में पक्षी प्रेमियों और फोटोग्राफरों का सुबह से देर शाम तक मजमा लगा रहा । 

 सेन्ट्रल इंडिया में दुर्लभ प्रवासी कैस्पियन प्लोवर की तस्वीरें खींचने का पहला रिकार्ड वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय के नाम हो गया है । यह पक्षी भारत में वाक़ई बेहद दुर्लभ प्रवासी  माना जाता है। आमतौर पर यह यहाँ सिर्फ़ सर्दियों या प्रवास के दौरान थोड़े समय के लिए दिखाई देता है। भारत में इसकी रिपोर्ट बहुत ही कम होती है, इसलिए पक्षीप्रेमियों के लिए यह एक "स्पेशल साइटिंग" होती है। यह पक्षी मध्य एशिया (विशेषकर कैस्पियन सागर के आसपास, रूस, कज़ाख़िस्तान, मंगोलिया) के खुले घास के मैदानों और स्टेपीज़ (steppes) में पाया जाता है। सर्दियों में यह अफ्रीका (पूर्वी और दक्षिणी भाग) तथा भारतीय उपमहाद्वीप तक प्रवास करता है।


 अब तक भारत में -  इस दुर्लभ प्रवासी पक्षी को दिल्ली (Delhi),  गोवा (Goa), महाराष्ट्र (Maharashtra), पुडुचेरी (Pondicherry), तमिलनाडु, केरल, मुंबई क्षेत्र (Uran, Navi Mumbai) और गुजरात (Little Rann of Kutch, Surendranagar) 2007, और 2025 में रिकार्ड किया गया है।

CHHATTISGARH: मोहनभाठा में गोह का शिकार, वन्यप्रेमी की शिकायत पर 8 आरोपी गिरफ्तार

  


 TODAY छत्तीसगढ़  / बिलासपुर / जिले का मोहनभाठा, एक ऐसा चारागाह जहां भूमि का अवैध अधिग्रहण । शिकारियों की बेखौफ चहलकदमी । मुरूम का अवैध उत्खनन । पेड़ों की कटाई के साथ साथ असामाजिक तत्वों की सुरक्षित पनाहगाह । कुछ समय पहले तक पर्यावरण और पक्षी प्रेमी इसे पक्षियों की स्वर्ग स्थली मानते थे, साथ कुछ अन्य जीव जंतुओं के रहवास का गढ़ । मोहनभाठा जिसने अपने भीतर जैव विविधता की सम्पन्नता को समेट रखा था वो अब सिमटने की कगार पर है । ज़मीन खोरों के साथ साथ शिकारियों का खुलेआम यहां बढ़ता दखल सब कुछ नष्ट करने पर तुला है ।  जिला प्रशासन सरकारी योजनाओं का पायजामा सिलने में व्यस्त है और वन विभाग को जैव विविधता के अलावा पक्षियों की सम्पन्नता दफ्तर में रखी फाइलों में दिखाई दे जाती है । 

       मोहनभाठा में कल (गुरुवार, 19 जून 2025) दोपहर 1 बजकर 40 मिनट पर तीन लड़के दिखाई पड़े, एक के हाथ में डंडा, दूसरा के पास सब्बल और तीसरे की पीठ पर बोरी । कम उम्र लेकिन बंजर भूमि पर कुछ तलाशती नजरों को हमने पहले पढ़ा फिर उनकी हरकतों को देख हमारा (साथ में प्राण चढ्ढा) शक गहराया । पास जाकर हमने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, कुछ ही देर में उन्हें हमसे किसी तरह का खतरा न होने का यकीन हो गया । उन्होंने बताया कि वे कोटा के पास नवागांव के रहने वाले हैं । गोह की तलाश में भटक रहे हैं । बोरे में दो गोह को पकड़ रखा है, कहने पर उन्होंने बाहर निकालकर दिखाया भी । इन मासूम से दिखाई देने वाले जीव हत्यारों की करतूत को उजागर करने के लिए तस्वीर जरूरी थी, लिहाजा जैसा हमने चाहा वैसा साक्ष्य तस्वीर की शक्ल में जुटा लिया । अब तक हमको सिर्फ इसी एक गिरोह की ख़बर थी, पूछने पर उन्होंने बताया इसे मारकर खाते हैं और इसका कुछ अंग दवा वगैरह के काम आता है । गोह की चमड़ी के भी बाजार में खरीददार है । 

आपको बता दें कि मॉनिटर लिज़ार्ड छिपकलियां वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित प्रजातियां हैं और अनुसूची I (एक) के तहत वर्गीकृत हैं। अधिनियम के अनुसार मॉनिटर छिपकली को मारना, पकड़ना या फिर उसकी बिक्री एक संज्ञेय अपराध है।  

      इन लोगों से बातचीत के दौरान तस्वीर लेना जितनी प्राथमिकता थी उतनी ही जरूरत इस गिरोह को पकड़वाने की । मैने बिलासपुर DFO को मोबाईल पर संपर्क करना चाहा, नंबर बंद मिला । इसके बाद CCF बिलासपुर श्री मिश्रा को, नंबर इंगेज । इसके बाद मैने तत्काल WWF के उपेन्द्र दुबे जी को सूचना देकर संबंधितों तक ख़बर भेजने को कहा ।  इस बीच इस गिरोह की मौजूदगी यहीं रही, हम इनसे अभी नज़र हटा भी नहीं पाये थे कि दूसरा गिरोह दिखाई दे गया । इसमें भी अवयस्क लड़के तीन की संख्या में । पीठ पर बोरी, सब्बल, फावड़ा और डंडा । हमने फिर वही कहानी दोहराई, इनके पास कुल तीन गोह थी । हम मामले की गंभीरता को समझ रहे थे लेकिन जिस विभाग को गंभीरता दिखानी थी वो चैन की बंसी बजा रहा था । मौके पर हमने छह आरोपी और पांच गोह (जिंदा हालत में) मिलने की बात फिर से उपेंद्र जी को बताई, उन्होंने बताया सभी को सूचना दे दी गई है । 

        हमने करीब डेढ़ घंटे तक उन शिकारियों पर न सिर्फ नजर बनाए रखी बल्कि वन अमले के आने की बाट भी जोहते रहे । वन विभाग की टीम (तखतपुर वन परिक्षेत्र) पूरे ढाई घंटे बाद आई लेकिन शिकारी तब तक अपना काम करके इलाका छोड़ चुके थे । मौके पर तखतपुर रेंज अफसर के अलावा दस से अधिक की संख्या में वन अफसर, कर्मचारी पहुंचे  लेकिन पहुंचने वालों ने सूचना की गंभीरता को न समझा और ना ही उन्हें विलंब से आने का कोई अफसोस रहा । हमने उन शिकारियों की तस्वीरें, उनसे हासिल जानकारी उन्हें मुहैय्या करा दी । 

       इन सबके बीच एक बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि ये शिकारी आखिर कब से इस इलाके में सक्रिय है ? इन शिकारियों के पीछे कोई बड़ा गिरोह या नेटवर्क तो तस्करी का काम नहीं कर रहा ? वन विभाग की टीम सैकड़ों बार की शिकायतों के बावजूद मोहनभाठा का रुख क्यूं नहीं करती ? जिला प्रशासन आखिर भूमि के अवैध अतिक्रमण पर खामोश क्यूं है ? आखिर मुरूम के अवैध उत्खनन को यहां किसका संरक्षण है ?

अब जरा इस गोह के बारे में भी जान लीजिए ....

गोह (Monitor lizards) का नाम आते ही शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है और मस्तिष्क में बड़ी भयानक जहरीली छिपकली की डरावनी तस्वीर कौंध जाती है। गोहेरा, घ्योरा, गोह, विषखोपड़ी आदि नामों से जाना जाने वाला यह प्राणी बेहद शर्मीला सरीसृप है। यह एक बड़ी छिपकली के परिवार से आता है जिसे ‘मोनिटर लिज़र्ड’ कहते हैं।

 भारत में गोह (Monitor lizards) की चार प्रजातियां मिलती हैं बंगाल गोह, पीली गोह, जल गोह और रेगिस्तानी गोह। पीली गोह पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल में पाई जाती है। यह पानी के पास दिखाई देती है व पेड़ पर नहीं चढ़ सकती। जल गोह विश्व की दूसरी सबसे बड़ी छिपकली है जो आसाम, पश्चिम बंगाल एवं अंडमान के जलीय इलाकों में होती है और पेड़ों पर चढ़ने में माहिर है। रेगिस्तानी गोह राजस्थान के रेतीले इलाकों में रहती है।

जहरीली नहीं है कोई भी प्रजाति - 

अधिकतर नजर आने वाली नस्ल ‘बंगाल गोह’ है जो लगभग समस्त भारत में मिलती है। गोह के छोटे बच्चों को ‘गोहेरा’ कहते हैं। यह विष रहित सरीसृप है। दरअसल भारत में कोई भी छिपकली की प्रजाति विषैली नहीं है। गोह के मुंह में तो विषदंत भी नहीं होते। वयस्क गोह का वजन पांच से सात किलो, लम्बाई डेढ़ से दो मीटर और उम्र 20-22 वर्ष तक होती है। गोह तकरीबन हर तरह के वातावरण में रह सकती है। आप इसे रेगिस्तान, पहाड़, नदी नालों व जंगलों में देख सकते हैं। गोह की त्वचा सख्त है जो इसे शिकारियों, चट्टानों और कंटीले इलाकों में नुकसान से बचाती है। गोह के बारे में अंधविश्वास ऐसे-ऐसे भी हैं कि इसके मांस और पूंछ के तेल के सेवन से शक्ति और पौरुष मिलता है। 

इन्सानों को नहीं काटते - 

गोह (Monitor lizards) घात लगाकर हमला करने के बजाय पीछा करके शिकार करते हैं। गोह बहुत तेज़ दौड़ते हैं। गोह रात में सोते हैं और दिन में शिकार करते हैं। ये भोजन की उपलब्धता के अनुसार अपनी सीमा बदल लेते हैं। गोह आंखें नहीं झपकती और उनकी दृष्टि बहुत तेज़ होती है। गोह कभी इन्सानों को नहीं काटते। काटने के मामले तभी होते हैं जब लोग इसे पकड़ने या मारने का प्रयास करते हैं।

क्यों है विलुप्त होने की कगार पर - 

एक जानकारी के लिहाज से हम कह सकते हैं कि आज भारत में गोह (Monitor lizards) प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। कारण हैं मनुष्य का लालच, अंधविश्वास, और कुदरती निवास का हनन। खाल से बहुमूल्य चमड़ा, मांस से बीमारियों का इलाज एवं खून और हड्डियों से कामोत्तेजक औषधि। पर सबसे अधिक बिकता है इस अभागे प्राणी के नर जननांग। अंधविश्वास है कि नर गोह के जननांग को सुखा कर चांदी के डिब्बे में रखने से घर में लक्ष्मी आती है। इसको ‘हथा जोड़ी’ नाम से पेड़ की जड़ बता कर बेचा जाता है। यह करोड़ों का गोरखधंधा है। वन्य जीव हत्यारों ने साज़िश के तहत यह भ्रांति फैलाई गई कि गोह जहरीले हैं व इसके काटते ही तुरन्त मृत्यु हो जाती है। बाकी काम गोह की शक्ल, चाल और सांप जैसी लम्बी चिरी हुई नीली जीभ पूरा कर देती है। वास्तव में ये जीभ के जरिये सूंघते हैं। वहीं गोह की खाल का इस्तेमाल ‘सेरजस’ (बोडो सारंगी) और ‘डोटारस’ (असम, बंगाल एवं पूर्वी राज्यों के वाद्य यंत्र) और ‘कंजीरा’ को बनाने में भी किया जाता है। ढोलक भी इसके चमड़े से बनते हैं।

संकट की वजह गलत धारणा - 

विश्व में बनने वाले हाथ घड़ी के पट्टे का व्यापार 2500 करोड़ सालाना है जिसमें 90 फीसदी गोह और बाकी छिपकलियों के चमड़े से बनते हैं। औसतन भारत में एक वर्ष में पांच लाख गोह मारी जाती हैं। गलत धारणा के शिकार एक निर्दोष प्राणी का ऐसा हाल निंदनीय है। वहीं राजस्थान के ऊंट पालक ऊंटों को कथित मजबूत बनाने के लिए उन्हें गोह का रस पिलाते हैं। लोग नहीं जानते कि यह जीव जैव विविधता का प्रहरी है व खेतों से कीड़े-मकोड़े आदि खाकर अनाज बचाते हैं।

प्राचीन संस्कृतियों में गोह - 

प्राचीन काल से ही गोह (Monitor lizards) और मनुष्यों का घनिष्ठ संबंध रहा है। बहुत सी संस्कृतियों में गोह को विशिष्ट महत्व प्राप्त है। दक्षिण भारत के विख्यात मीनाक्षी मंदिर में देवी मीनाक्षी का मुख्य प्रतीक गोह है। इसका सिर खतरे से सुरक्षा प्रदान करता है, शरीर लंबे जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। कई मूर्तियों में गोह को देवी पार्वती के वाहन के रूप में भी दर्शाया गया है। अल्लीपुरम में स्थित वेंकटेश्वर मठ के पुराने मंदिर में भगवान मलयप्पा स्वामी का गोह अवतार स्थापित है। बैंकॉक के एक थाई बौद्ध मंदिर में गौतम सिद्धार्थ के अवतार का एक अद्भुत चित्रण जल गोह के सिर से सुशोभित है। आइए जनजागरूकता के जरिये अपने अस्तित्व से जूझते इस निर्दोष, निरीह एवं किसान मित्र जीव को बचाएं।

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