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Chhattisgarh: आदिवासी क्षेत्रों में खनन का विरोध तेज, सरकार पर पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाने के आरोप


रायपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ में खनन परियोजनाओं को लेकर उबाल तेज होता जा रहा है। विभिन्न संगठनों का आरोप है कि शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक आंदोलनों को दरकिनार कर सरकार पुलिस बल के सहारे परियोजनाओं को आगे बढ़ा रही है, जिससे लोगों में गहरी नाराज़गी व्याप्त है। 
जल, जंगल-जमीन के लिए सालों से आदिवासियों के हक़ की आवाज़ बने आलोक शुक्ला ने राजनैतिक लोगों पर खुलकर आरोप लगाया है कि वे केवल बयानबाजी तक सिमित हैं।   
आरोप है कि पिछले दो वर्षों में सरकार का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों की जंगल-जमीन छीनकर निजी कंपनियों के हवाले करना बन गया है। हसदेव अरण्य में कथित तौर पर फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच रिपोर्ट आने के बाद भी परसा और PEKB कोल ब्लॉक के लिए भारी पुलिस बल तैनात कर पेड़ों की कटाई कराई गई। अब दोबारा पेड़ों की कटाई की तैयारी की जा रही है।

इधर रायगढ़ में भी विरोध के बावजूद गारे–पेलमा कोल ब्लॉक के लिए पेड़ काटकर खदान संचालन शुरू कर दिया गया। स्थानीय लोगों के व्यापक विरोध के बावजूद गारे–पेलमा-1 की जनसुनवाई फिर करवाई जा रही है। हाल ही में अंबुजा-अदाणी परियोजना की जनसुनवाई के दौरान प्रशासन की सख्ती के चलते लोगों को सड़क काटकर धरना पर बैठना पड़ा।

मेनपाट में भी बक्साइट खनन के लिए भारी विरोध के बीच जनसुनवाई जबरन आयोजित कराई गई। बस्तर में नंदराज पहाड़ की कथित फर्जी ग्रामसभा निरस्त होने के बावजूद खनन की तैयारी जारी है। आंदोलनकारी संगठनों का कहना है कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के हनन पर मुख्यमंत्री की चुप्पी चिंता का विषय है।  
आरोप ये भी है कि पिछले 25 वर्षों में छत्तीसगढ़ की ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी गई। वहीं कांग्रेस के कुछ नेताओं पर भी आरोप लगे कि वे केवल बयान देकर अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं।

 (सोर्स/ आलोक शुक्ल जी के फेसबुक वाल से)

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