अतिरिक्त महाधिवक्ता रणवीर सिंह मरहास ने दिया इस्तीफा, विधि सचिव को भेजा त्यागपत्र


बिलासपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ शासन के अतिरिक्त महाधिवक्ता रणवीर सिंह मरहास ने शनिवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राज्य सरकार के विधि सचिव को त्यागपत्र भेजते हुए इसे तत्काल प्रभाव से स्वीकार करने का अनुरोध किया है।

गौरतलब है कि इससे पहले 17 नवंबर को तत्कालीन महाधिवक्ता प्रफुल्ल भारत ने अपने पद से त्यागपत्र दिया था। इसके बाद अतिरिक्त महाधिवक्ता विवेक शर्मा को नया महाधिवक्ता नियुक्त किया गया। विधि सचिव को प्रेषित अपने इस्तीफे में मरहास ने कहा है कि पिछले दो वर्षों तक इस महत्वपूर्ण पद पर सेवा देना उनके लिए सम्मान और सौभाग्य की बात रही। इस दौरान उन्हें राज्य से जुड़े कानूनी मामलों में योगदान देने, विभिन्न न्यायालयों में शासन का प्रतिनिधित्व करने और अनुभवी व समर्पित सहकर्मियों के साथ कार्य करने का अवसर मिला। 

मरहास ने अपने पत्र में राज्य सरकार द्वारा मिले विश्वास और सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शासन के समर्थन से ही वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन पूरी क्षमता के साथ कर सके। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने अपना कार्यकाल संतोषजनक रूप से पूरा किया है और अब पद छोड़ने का यह उचित समय है।

उल्लेखनीय है कि रणवीर सिंह मरहास भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न अनुषांगिक संगठनों से जुड़े रहे हैं और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय भूमिका निभाते आए हैं। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की स्थापना के बाद वे जबलपुर से बिलासपुर आए और न्यायिक क्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहे। वे लंबे समय तक शासकीय अधिवक्ता के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।


PM की श्रद्धांजलि से भावुक हुए CM, असम के इतिहास के कठिन दौर को याद करते हुए कांग्रेस शासन पर लगाए गंभीर आरोप


 गुवाहाटी। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असम यात्रा को राज्य के लिए भावुक और ऐतिहासिक क्षण बताया है। उन्होंने कहा कि शहीद स्मारक क्षेत्र में प्रधानमंत्री द्वारा श्रद्धांजलि अर्पित किए जाने और शहीद खरगेश्वर तालुकदार की प्रतिमा पर माल्यार्पण से असम के इतिहास के वे कठिन दौर याद आ गए, जब कांग्रेस शासन के दौरान राज्य को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 860 लोगों की स्मृति में बनाए गए नए शहीद स्मारक क्षेत्र का दौरा किया और पुष्पांजलि अर्पित की।

मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि उस समय अवैध घुसपैठ को बढ़ावा मिला, ‘धरती के बेटों’ का नरसंहार हुआ और असम को आर्थिक संकट की ओर धकेला गया। उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति इससे भिन्न है, जब राज्य में विकास को लेकर उत्सव का माहौल है। मुख्यमंत्री के अनुसार, प्रधानमंत्री न केवल असम की संस्कृति की रक्षा में हुए बलिदानों को सम्मान दे रहे हैं, बल्कि राज्य के विकास के लिए पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तुलना में कहीं अधिक निवेश भी कर रहे हैं। सरमा ने कहा कि यह बदलाव असम के लिए नई दिशा और नई उम्मीद का प्रतीक है, जिससे राज्य तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा है।

बेलतरा विधायक ने जनता से किया संवाद, शासन की योजनाओं की मिली जानकारी


बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग द्वारा राज्य सरकार के गठन के दो वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शासन की उपलब्धियों  व जनकल्याणकारी योजनाओं पर आधारित कार्यक्रम का आयोजन सीएमडी कॉलेज मैदान में किया गया। बेलतरा विधायक श्री सुशांत शुक्ला ने कार्यक्रम में लोगों से सार्थक संवाद किया, और योजनाओं के विषय में प्रश्न किए, उन्होंने  जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम की सराहना की।  छत्तीसगढ़ी व्यंजन मेले के साथ आयोजित कार्यक्रम में सरकार के विकास कार्यों और योजनाओं पर आधारित प्रश्नोत्तरी और खेल प्रतियोगिताओं का लोगों ने भरपूर लुत्फ उठाया और इनाम जीते। 
     आर जे अनिमेष ने रोचक और मनोरंजक तरीके से लोगों से योजनाओं से संबंधित प्रश्न किए और विभिन्न गेम्स के जरिए योजनाओं से संबंधित सवाल किए। कार्यक्रम में लोक कलाकारों और स्थानीय प्रतिभाओं  की शानदार प्रस्तुति ने समां बांध दिया। कार्यक्रम में पहुंची श्रीमती सीमा चतुर्वेदी ने कहा कि यहां उन्हें छत्तीसगढ के विभिन्न व्यंजनों के स्वाद के साथ शासन कल्याणकारी योजनाओं  की जानकारी मनोरंजक तरीके से मिली।उन्होंने कहा कि लोक सांस्कृतिक व स्थानीय कलाकारों की शानदार प्रस्तुति ने लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। 
   विभिन्न प्रतियोगिताओं एवं खेल गतिविधियों, सामान्य ज्ञान ,प्रश्नोत्तरी में  विजेता प्रतिभागियों को  जनसंपर्क विभाग की संयुक्त संचालक श्रीमती इस्मत जहां  दानी और बिलासपुर जनसंपर्क कार्यालय की सहायक जनसंपर्क अधिकारी श्रीमती रचना मिश्रा द्वारा पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम के आयोजन में संपूर्ण स्वाद महिला समूह की अध्यक्ष श्रीमती चित्रलेखा तिवारी का सहयोग रहा, कार्यक्रम में बड़ी संख्या में युवाओं ,महिलाओं की सहभागिता रही।

कैमरे की कलम: वर्दी, विवेक और व्यवस्था


इस पोस्ट में दिखाई दे रही तस्वीरें दो अलग-अलग मामलों की हैं, लेकिन संदेश एक ही है—कानून का मखौल। लाल घेरे में कल्पना वर्मा हैं, जबकि बाकी तीन तस्वीरें दंतेवाड़ा के बीच बाजार की हैं, जहाँ एक रिटायर्ड फौजी और पुलिस अफसर तोमेश वर्मा खुलेआम अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन करते दिखते हैं। 
छत्तीसगढ़ में कुछ पुलिस अफसर इन दिनों सुर्खियों में हैं—वैसे इसमें नया कुछ भी नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि सालों पुरानी बदरंग परंपरा को अब महकमे की नई पीढ़ी आगे बढ़ा रही है।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा क्षेत्र में पुलिस अधिकारी (डीएसपी) तोमेश वर्मा पर हुआ प्राणघातक हमला महज एक आपराधिक घटना नहीं । यह उस गहरे और खतरनाक अविश्वास का संकेत था, जो पुलिस और जनता के बीच लगातार पनपता जा रहा है। यह मान लेना आसान होगा कि यह गुस्सा किसी एक घटना की उपज है, लेकिन सच्चाई कहीं अधिक असहज है। यह हमला उस सड़ांध का विस्फोट था, जो लंबे समय से वर्दी के भीतर पल रही है।

यह घटना वर्दी के पीछे छिपे उन बददिमाग चेहरों का आईना है, जिनकी करतूतों ने अब जनता के धैर्य की सीमा तोड़ दी है। गुस्सा अब सिर्फ बातचीत में नहीं, सड़कों पर पीछा करता दिखने लगा है। प्रदेश में कई पुलिस अधिकारी देह शोषण जैसे गंभीर आरोपों में जांच के घेरे में हैं। कहीं रिश्वतखोरी खुलेआम व्यवस्था का हिस्सा बन चुकी है, तो कहीं वर्दीधारी चेहरा देखकर कानून पर तिलक लगाने की परंपरा को ही धर्म मान चुके हैं।

 कुछ पुलिस अफसरों के कारण यहां कानून अब किताबों में नहीं, कंधों पर टंगे सितारों और जेब में भरी हैसियत से चलता है। वर्दी पहनते ही कुछ अफसर यह मान लेते हैं कि संविधान ने उन्हें नहीं, बल्कि संविधान ने खुद को उनके हवाले कर दिया है। लोकतंत्र में सबसे खतरनाक स्थिति वह नहीं होती जब अपराध बढ़ते हैं, बल्कि वह होती है जब अपराध सामान्य लगने लगते हैं। उससे भी खतरनाक तब होता है, जब कानून की रखवाली करने वाली वर्दी सवालों से ऊपर बैठ जाए। 

आज संकट अपराधियों का नहीं, अधिकार के नशे का है और यह नशा सबसे ज्यादा वहीं दिखाई देता है, जहां न्याय की पहली दस्तक होनी चाहिए। 

छत्तीसगढ़ में कुछ पुलिस अधिकारियों पर लगे देह शोषण, घूसखोरी और पद के दुरुपयोग जैसे आरोप कोई अपवाद नहीं हैं। देश के कई राज्यों में इसी तरह के मामले सामने आते रहे हैं। छत्तीसगढ़ की महिला डीएसपी कल्पना वर्मा पर होटल कारोबारी दीपक टंडन द्वारा लगाए गये करोड़ों रुपये की ठगी के आरोप हों या डीएसपी तोमेश वर्मा का हालिया मामला। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के DSP तोमेश वर्मा 19 दिसंबर को कोर्ट के काम से सुकमा से दंतेवाड़ा आए थे। जहां बीच शहर में दुर्ग जिले की रहने वाली एक महिला ने अपने पुरुष दोस्त रिटायर्ड फौजी रमाशंकर साहू के साथ मिलकर उन पर चाकू से वार कर दिया। अपुष्ट ख़बरें तो ये भी हैं कि इसके लिये महिला करीब 400 किलोमीटर सफर तय कर DSP को मारने दुर्ग से दंतेवाड़ा पहुंची थी। वारदात में शामिल ये वही महिला है जिसने करीब 1 साल पहले DSP तोमेश वर्मा पर रेप का आरोप लगाया था।  महिला का आरोप है कि वर्ष 2024 में दुर्ग जिले के मोहन नगर थाने में पदस्थापना के दौरान पुलिस अफसर तोमेश वर्मा ने घर में घुसकर उसके साथ दुष्कर्म व मारपीट की थी । मोहननगर थाने में पुलिस अफसर के खिलाफ FIR भी दर्ज है।  

कोई भी हमला अपराध है—इस पर कोई बहस नहीं। लेकिन हर अपराध की एक पृष्ठभूमि भी होती है और जब पृष्ठभूमि खुद अफसर के फैसलों से बनी हो, तो कटघरे में सिर्फ आरोपी नहीं, निर्णय भी खड़े होते हैं।

 आज ऐसे हालात हैं कि जिसके कंधों पर कानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी टंगी है, वही पुलिस अक्सर उस बोझ को सत्ता, सिफ़ारिश और सुविधा के तराज़ू पर तौलती नज़र आती है। थाने की चौखट पर न्याय नहीं, पहचान पूछी जाती है—नाम से पहले जाति, दर्द से पहले पहुँच और अपराध से पहले राजनीतिक समीकरण।

जनता के सवाल पुलिस को शोर लगते हैं, जबकि सत्ता की फुसफुसाहट आदेश बन जाती है। जिस हाथ को पीड़ित की ढाल बनना था, वही हाथ वसूली की रसीद थमा देता है। जिस वर्दी का रंग भरोसे का प्रतीक था, वह अब डर का पर्याय बन चुकी है। कानून की किताबें अलमारी में बंद हैं, और ज़मीर फ़ाइलों के नीचे दबा पड़ा है। थाने में सच की एंट्री मुश्किल है, लेकिन झूठ की FIR तुरंत दर्ज हो जाती है—बस सही जेब से निकलनी चाहिए। लोकतंत्र में वर्दी को सम्मान इसलिए मिलता है क्योंकि वह कानून की प्रतिनिधि मानी जाती है। लेकिन जब वही वर्दी कानून से भारी पड़ने लगे, तो सवाल केवल व्यवस्था पर नहीं, हमारी सामूहिक चुप्पी पर भी उठता है। 

आज सबसे असुरक्षित व्यक्ति अपराधी नहीं, बल्कि सवाल करने वाला नागरिक है। सवाल पूछते ही व्यवस्था चौकन्नी हो जाती है। कानून अचानक बहुत सक्रिय हो जाता है। धाराएं याद आने लगती हैं, नोटिस चलने लगते हैं, और नागरिक को अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है। लोकतंत्र में सवाल डर का कारण नहीं होते—डर तब होता है, जब जवाब देने की क्षमता खत्म हो जाए।

विडंबना यह है कि इसी ढांचे में हजारों ईमानदार पुलिस कर्मी भी काम कर रहे हैं। वे नियम मानते हैं, ड्यूटी निभाते हैं और भरोसा बचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन उन्हें आगे रखने की जगह पीछे खड़ा कर दिया जाता है, ताकि तस्वीर “मैनेज” रहे। एक सड़ी मछली पूरे तालाब को न सिर्फ गंदा करती है बल्कि उसे बदनाम कर देती है । यह कटाक्ष किसी व्यक्ति, पद या संस्था के खिलाफ आरोप पत्र नहीं है। यह उस मानसिकता पर सवाल है, जिसने जवाबदेही को बोझ और सत्ता को अधिकार समझ लिया है। यह उस चुप्पी पर सवाल है, जो हर बार “प्रक्रिया” के नाम पर ओढ़ ली जाती है।

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