रायपुर। TODAY छत्तीसगढ़ / छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों जो हो रहा है, वह किसी प्राकृतिक आपदा का नतीजा नहीं, बल्कि प्रशासनिक निष्क्रियता का खुला प्रदर्शन है। बाघ, तेंदुआ, बाइसन और हाथी जैसा संवेदनशील, विशालकाय वन्यप्राणी एक-एक कर मारे जा रहे हैं, लेकिन जंगलों के तथाकथित रक्षक 'छत्तीसगढ़ वन विभाग' अब भी फाइलों और फार्मेलिटी की आड़ में बेशर्मी से छिपे हुए हैं। इसी बीच वन विभाग की कार्यप्रणाली पर एक और गंभीर सवाल खड़े करने वाला मामला सामने आया है, जिसमें जिस वन्यप्राणी चिकित्सक पर बाइसन की मौत का आरोप लगा उसी से शासन के स्पष्ट आदेशों के विपरीत दोबारा सेवाएं ली जा रही हैं।
राज्य के अलग-अलग इलाकों से शिकार की लगातार सामने आ रही घटनायें इस बात का सबूत हैं कि राज्य में वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। यह कहना अब गलत नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ “शिकार का हॉटस्पॉट” नहीं, बल्कि “शिकारगढ़” बनता जा रहा है। अफसोस यह है कि इस बदलाव का श्रेय बंदूकधारी शिकारियों से ज्यादा दफ्तरों में बैठे अफसरों को जाता है।
बीते दिनों सूरजपुर जिला में बाघ के शिकार, भोरमदेव अभ्यारण में चार बाइसन (गौर) की मौत, खैरागढ़, भोरमदेव और कांकेर में तेंदुओं के शिकार, तथा उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व में दो सांभरों के शिकार की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इन घटनाओं ने वन विभाग की जवाबदेही और निगरानी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे विपरीत हालातों में राज्य वन विभाग की कार्यप्रणाली पर एक और गंभीर सवाल खड़े करने वाला मामला सामने आया है, जिसमें जिस वन्यप्राणी चिकित्सक पर बाइसन की मौत का आरोप लगा उसी से शासन के स्पष्ट आदेशों के विपरीत दोबारा सेवाएं ली जा रही हैं। आखिर इसमें किसका कैसा स्वार्थ निहित है ?
जनवरी 2025 में बरनावापारा अभ्यारण से गुरु घासीदास नेशनल पार्क भेजी गई एक मादा बाइसन की मौत के मामले में गंभीर आरोप लगे थे। विवेचना में मुख्य वन्यजीव संरक्षक (वन्यप्राणी) सह फील्ड डायरेक्टर उदंती-सीता नदी टाइगर रिजर्व सतोविषा समाजदार ने स्पष्ट उल्लेख किया कि एक्टिवान दवा के कालातीत (एक्सपायर्ड) होने और उसी दवा के उपयोग के कारण ट्रांसलोकेट की गई मादा गौर की मृत्यु संभावित प्रतीत होती है।
इस रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) सुधीर अग्रवाल ने 2 मार्च 2025 को वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. राकेश वर्मा को आगामी आदेश तक वन्यप्राणी से जुड़े सभी कार्यों से तत्काल पृथक करने के आदेश जारी किए थे। साथ ही अलग आदेश में उन्हें वन्यप्राणी उपचार, निदान और संबंधित सभी कार्यों से हटाया गया था।
उल्लेखनीय है कि डॉ. राकेश वर्मा इससे पहले रायपुर जंगल सफारी में 17 चौसिंघा की मौत के मामले में भी विवादों में रह चुके हैं, जहां विधानसभा अध्यक्ष तक ने उन्हें हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद अब उन्हें ‘स्पेशलिस्ट’ बताकर दोबारा सेवाओं में लिए जाने से वन विभाग की मंशा और पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग गया है।
वन्यजीव संरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इस तरह की कथित मेहरबानी से न केवल विभाग की साख पर असर पड़ रहा है, बल्कि छत्तीसगढ़ में वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर आमजन की चिंताएं भी लगातार बढ़ती जा रही हैं।

