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उप मुख्यमंत्री ने PHE के कार्यों की समीक्षा की, जल जीवन मिशन के कार्यों को मिशन मोड में पूर्ण करें - साव


 बिलासपुर / 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  उप मुख्यमंत्री तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री  अरुण साव ने आज लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यों की समीक्षा की। उन्होंने रायपुर के नीर भवन में आयोजित समीक्षा बैठक में जल जीवन मिशन के कार्यों को मिशन मोड में पूर्ण करने के निर्देश दिए। उन्होंने गांवों में पर्याप्त पेयजल की आपूर्ति के लिए भू-जल स्त्रोतों को रिचार्ज करने भू-जल संवर्धन के कार्य प्राथमिकता से करने को कहा। श्री साव ने 12 समूह जल प्रदाय योजनाओं के टेंडर में ठेकेदारों द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण पत्र सही नहीं पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए। उन्होंने निविदा निरस्त कर निविदाकारों के विरूद्ध नियमानुसार कानूनी कार्यवाही करने को कहा। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सचिव  मोहम्मद कैसर अब्दुलहक और जल जीवन मिशन के संचालक डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे भी समीक्षा बैठक में शामिल हुए।

उप मुख्यमंत्री श्री अरुण साव ने बैठक में जल जीवन मिशन के कार्यों की विस्तृत समीक्षा की। उन्होंने क्रेडा (CREDA) द्वारा स्थापित किए जा रहे सोलर पंपों के मापदण्डों का क्रेडा के अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक कर लगातार मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए। उन्होंने जल जीवन मिशन के कार्यों के लिए चयनित तृतीय पक्ष निरीक्षण एजेंसी के कार्यों को अलग से मॉनिटर करने को कहा। इन एजेंसीज द्वारा अच्छा कार्य करने से कार्यों की गुणवत्ता में निश्चित ही सुधार आएगा।

उप मुख्यमंत्री श्री साव ने जल जीवन मिशन के कार्य जहां पूर्ण हो चुके हैं, वहां योजना के प्रचार-प्रसार के साथ जल उत्सव का आयोजन करने को कहा। इससे अन्य गांव भी योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। उन्होंने विभाग के मैदानी अमले को लगातार कार्यस्थलों का भ्रमण कर कार्यों की प्रगति और गुणवत्ता पर नजर रखने के निर्देश दिए। उन्होंने जल जीवन मिशन के कार्यों को मिशन मोड में पूर्ण करने सभी अधिकारियों को फील्ड में निरंतर सक्रिय रहने को कहा।

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के सचिव श्री मोहम्मद कैसर अब्दुलहक ने समीक्षा बैठक में विभागीय कार्यों की भौतिक और वित्तीय प्रगति की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जल जीवन मिशन की नल जल योजनाओं में भू-जल स्त्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करने विभागीय मशीनों के साथ ही जल जीवन मिशन के कार्यों में लगी मशीनों के लिए आगामी 15 नवम्बर तक की कार्ययोजना तैयार की गई है। मिशन के कार्यों का अवयववार (component wise) और योजनावार लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है, ताकि योजनाओं के शेष कार्य दिसम्बर-2024 तक पूर्ण किए जा सकें। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के प्रमुख अभियंता डॉ. एम.एल. अग्रवाल तथा रायपुर, बिलासपुर और जगदलपुर जोन के मुख्य अभियंता भी समीक्षा बैठक में मौजूद थे। 

देवताओं के धरती पर आगमन का संकेत देता है 'कांस का फूल'


 बिलासपुर / 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  मॉनसून अब अपने समापन की ओर है तथा जल्द ही शरद ऋतु का आगमन होने वाला है. मौसम में आने वाले परिवर्तन को लेकर एक तरफ जहां तमाम तरह के उपकरणों से मौसम विभाग मौसम का पूर्वानुमान लगाता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग बिना कोई उपकरण के मौसम का अंदाजा लगा लेते हैं. इन दिनों चारों तरफ कांस के फूल खिले हैं, जिसको देखकर यह कहा जाने लगा है कि मानसून का मौसम समाप्त होने वाला है और शरद ऋतु की शुरुआत हो गई है.

दरअसल, कांस के फूल खिलने का मतलब मानसून का जाना और शरद ऋतु के आगमन का संदेश होता है. इसकी चर्चा महाकवि कालिदास से लेकर आदि कवि तुलसीदास तक ने की है. इतना ही नहीं इस फूल के बारे में रविंद्र नाथ टैगोर और काजी नज़रुल इस्लाम ने भी अपनी कविताओं में इसका जिक्र किया है.

कांस के फूल खिलने का मतलब केवल मौसम में परिवर्तन ही नहीं होता है, बल्कि इससे देवताओं के धरती पर आगमन का संकेत भी मिलता है. पश्चिम बंगाल में कांस के फूलों को काफी शुभ माना गया है तथा शारदीय नवरात्र में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस फूल के खिलने का मतलब आसमान में सफेद बादल के समान होता है. तथा इसके खिलने से यह समझा जाता है कि हमारा पर्यावरण धरती पर देवताओं का इंतजार कर रहा है.

कवि तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में इस फूल के बारे में यह लिखा है कि “फूले कास सकल महि छाई, जनु वर्षा कृत प्रकट बुढ़ाई”. इसका मतलब यह होता है कि शरद ऋतु के आगमन से पहले चारों तरफ कांस के फूल का खिलना यह बताता है कि बरसात का मौसम अब बुजुर्ग हो गया है.

 महाकवि कालिई दुल्हन के परिधानदास ने अपनी रचना ऋतुश्रृंगार में शरद ऋतु का वर्णन करते हुए लिखा है कि “फूले हुए कासों के निराले परिधान, साज नूपुर पहन मतवाले हंस गण के”. कालिदास ने कांस के फूलों को न से तुलना की है. वहीं कभी रविंदर नाथ टैगोर ने अपनी रचना “शापमोचन” में भी कांस के फूलों के सौंदर्य का वर्णन किया है.

प्रकृति की यात्रा पर निकले विदेशी मेहमान प्यास बुझाने और थकान मिटाने मोहनभाठा में उतरे


 बिलासपुर /  
TODAY छत्तीसगढ़  /  मोहनभाठा, आज (06 सितम्बर 2024) के ख़ास मेहमान यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू कैमरे का मुख्य आकर्षण रहे। दिन भर की तलाश के बाद अचानक जैकपॉट लगा, 16 की संख्या में एक साथ Eurasian Curlew मैदान में उतरे। मैंने इसके पहले साल 2020 में Eurasian Curlew को मोहनभाठा के इसी मैदान में 8 की संख्या में रिकार्ड किया है।  कहते हैं ना उम्मीदें जब पूरी हो जायें तो बांछे खुद-ब-खुद खिल उठती हैं। मेरे साथ आज कुछ ऐसा ही हुआ। ये बाते और पक्षियों की तस्वीरें खींचने वाले वाइल्डलाइफ फोटो जर्नलिस्ट सत्यप्रकाश पांडेय ने कहीं। उन्होंने इस खूबसूरत और आकर्षक विदेशी मेहमान की कुछ तस्वीरों साथ इंटरनेट से हासिल की गई जानकारी भी साझा की है   .... 

यूरेशियन कर्ल्यू या कॉमन कर्ल्यू (न्यूमेनियस अर्क्वेटा) बड़े परिवार स्कोलोपेसिडे में एक वेडर है। यह यूरोप और एशिया में प्रजनन करने वाले कर्ल्यू में सबसे व्यापक रूप से फैला हुआ है। यूरोप में, इस प्रजाति को अक्सर "कर्ल्यू" के रूप में संदर्भित किया जाता है, और स्कॉटलैंड में इसे "व्हाउप" के रूप में जाना जाता है। 

यूरेशियन कर्ल्यू अपनी सीमा में सबसे बड़ा वेडर है, जिसकी लंबाई 50-60 सेमी (20-24 इंच) है, जिसका पंख फैलाव 89-106 सेमी (35-42 इंच) है और शरीर का वजन 410-1,360 ग्राम (0.90-3.00 पाउंड) है। यह मुख्य रूप से भूरे रंग का होता है, जिसकी पीठ सफ़ेद, पैर भूरे-नीले और बहुत लंबी घुमावदार चोंच होती है। नर और मादा एक जैसे दिखते हैं, लेकिन वयस्क मादा में चोंच सबसे लंबी होती है। आम तौर पर एक यूरेशियन कर्ल्यू या कई कर्ल्यू के लिंग को पहचानना संभव नहीं है, क्योंकि उनमें बहुत भिन्नता होती है; हालाँकि, संभोग करने वाले जोड़े में नर और मादा को अलग-अलग पहचानना आम तौर पर संभव है। परिचित आवाज़ ज़ोर से कर्लू-ऊ होती है।

कर्ल्यू की अधिकांश सीमा में एकमात्र समान प्रजाति यूरेशियन व्हिम्ब्रेल (न्यूमेनियस फेओपस) है। व्हिम्ब्रेल छोटा होता है और इसमें चिकनी वक्र के बजाय एक मोड़ के साथ एक छोटी चोंच होती है। फ्लाइंग कर्ल्यू अपने सर्दियों के पंखों में बार-टेल्ड गॉडविट्स (लिमोसा लैपोनिका) से मिलते जुलते हो सकते हैं; हालाँकि, बाद वाले का शरीर छोटा होता है, थोड़ी ऊपर की ओर उठी हुई चोंच होती है, और पैर जो उनकी पूंछ की नोक से बहुत आगे तक नहीं पहुँचते हैं। यूरेशियन कर्ल्यू के पैर लंबे होते हैं, जो एक विशिष्ट "बिंदु" बनाते हैं।

" पहले मुझ पर पांच लोगों की हत्या का आरोप लगाया, फिर जंजीरों से जकड़कर ज़ुल्म की इन्तेहा पार की "

" एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। "


 2015 की बात है, मैं 15 साल का था, अपने 15 सदस्य परिवार के साथ छत्तीसगढ़ के अचानक मार्ग टाइगर रिजर्व (रिजर्व) पंहुचा। हम हाथियों के परिवार में नर हाथी को 10 से 15 वर्षों की आयु में अलग कर दिया जाता है ताकि एक ही खून से वंशवृद्धि ना हो। मैं अपने परिवार और मां से बहुत प्यार करता था परंतु परिवार मुझे अकेला छोड़कर चला गया। रिजर्व में मैं अकेला जंगली हाथी था। अकेले में बहुत रोना आता था, अकेला घूमता था, अनाज खाने की लालच से ग्रामीणों के घर पहुंच जाता था, जरा सा छूने से दीवाल गिर जाती। जब मेरा परिवार रिजर्व आया था तो किसी सदस्य से एक जनहानि हो गई थी परंतु मुझ पर पांच लोगों को मारने का आरोप लगाया गया। विश्वास मानिए आज तक मुझसे एक भी जनहानि नहीं हुई, मैं बहुत शांत स्वभाव का हूं। खैर आदेश जारी हुआ मुझे पड़कर दूसरे हाथी रहवास में छोड़ दिया जावे। 

छत्तीसगढ़ के दो डॉक्टरों की टीम मुझे पकड़ने के लिए लगाई गई। रिजर्व में चार बंधक हाथी भी थे सिविल बहादुर, राजू, लाली और लाली की 10 साल की बेटी पूर्णिमा। मुझे हनी ट्रैप करने के लिए पूर्णिमा को जबरदस्ती जंगल में खदेड़ा जाता था। पूर्णिमा पास आती तो मैं पसंद नहीं करता था अपने छोटे हाथी दांतों से उसे मार भगा देता था। ऐसा कई दिन चला और एक दिन डाक्टरों ने मुझे बेहोश कर पकड़ लिया और उसी जगह ले गए जहां पर बाकी चार हाथी थे परंतु पूर्णिमा नहीं थी। मुझे बाद में पता चला कि मुझे पकड़ने के एक दिन पहले जब अपनी मां लाली के साथ खेल रही थी तब अचानक गिरी और मर गई। पोस्टमार्टम में उसे अंदरूनी चोटें शायद मेरे दांतों से लगी थी, परंतु दस साल की बच्ची को हनी ट्रैप के लिए मैंने तो नहीं बुलाया था, डॉक्टरों ने ही भेजा था। 

एक पेड़ से मेरे पीछे के पांव मोटी जंजीर से बांध दिए गए, इतना कि आधा इंच भी पाँव आगे नहीं बढ़ सके। पेट में पांच बार मोटी जंजीर घुमा कर बांध दिया। न बैठ पाता, ना सो पता था, भूखा प्यासा रखा गया। बाद में मेरे सामने के और पीछे के दोनों पांव भी आपस में बांध दिए, मैं आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगाता, इससे मेरे चारों पांव में बड़े गहरे जख्म हो गए कीड़े और पस पड़ गया। इस बीच बिलासपुर के एक वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सत्य प्रकाश पांडेय ने मेरी फोटो ली, जो समाचार पत्र में छपी। एक वन्यजीव प्रेमी को फोटो ने व्याकुल कर दिया, वह कोर्ट पहुंच गए। मेरे इलाज के लिए भारतीय एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने दो डॉक्टर दूसरे प्रदेशों से भेजें। डॉक्टरों ने इलाज किया और अपनी रिपोर्ट दी, कहा मैं चार सप्ताह में ठीक हो जाऊंगा और उसके बाद मुझे जंगल में छोड़ दें। डॉक्टर ने लाली, सिविल, राजू की दुर्दशा भी रिपोर्ट में लिखी। सिविल बहादुर के मुंह के अंदर बहुत बड़ा फोड़ा था, जिसका इलाज भी नहीं किया गया था। सिविल, राजू, लाली के सामने के दोनों पांव को ऐसे बाँध कर रखे जाते थे कि वे आगे पीछे भी नहीं हो सकें। डॉक्टरों ने रिपोर्ट में किसी बड़ी सर्विस के दो अधिकारियों द्वारा मुझ पर अत्याचार करने के लिए बहुत भर्त्सना की, कहा अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए। कोर्ट में अधिकारियों ने कहा ठीक होते ही मुझे छोड़ देंगे। 

चार सप्ताह में मैं ठीक हो गया, खुश हो रहा था कि अत्याचार से आजादी मिलेगी। परन्तु अधिकारियों को बहुत बुरा लगा था कि दो पशु चिकित्सकों ने उनकी भर्त्सना कर दी। बस अपनी औकात और हैसियत बताने के लिए अधिकारियों ने मुझे नहीं छोड़ा। छोटा अधिकारी कहता था कि मैं पालतू हो गया हूं। मेरे ऊपर महावत को बैठा कर, लोहे के नुकीले अंकुश से मेरे कान के पीछे की नस जोर से दबाकर महावत कहता बैठ, तो दर्द के कारण में बैठ जाता, तो छोटा अधिकारी कहता यह तो पालतू हो गया, इसे कैसे छोड़ा जाए और मुझे नहीं छोड़ा गया। बड़ा अधिकारी पहले से ही मुझे पालतू बनाना चाहता था। चार महीने बाद बाहरी डॉक्टरों की टीम दोबारा आई लिख कर दिया कि मुझे तत्काल जंगल में छोड़ दिया जाए परंतु मेरी किस्मत में सुख नहीं लिखा था। 

कोर्ट के कहने पर डेढ़ साल बाद फिर वही डॉक्टरों की टीम बुलाई गई, डॉक्टर ने कहा कि डेढ़ साल हो गए, मुझे एक बार में छोड़ने की बजाय ऐसी जगह पर रखा जाए जहां जंगली हाथी हों उनसे मुझे मिलने दिया जाए, ताकि मैं धीरे-धीरे वापस जंगली जीवन अपना सकूं। डॉक्टर ने कहा कि राजू, सिविल और लाली से मेरी गहरी दोस्ती हो गई है, राजू और मेरा बहुत लगाव है, हम दोनों बहुत खेलते हैं। डॉक्टर ने कहा हम चारों को बिना बांधे जंगली हाथियों के क्षेत्र में रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट डॉक्टर की रिपोर्ट को मानते हैं, परंतु मुझे कब छोड़ा जाए यह वह अधिकारियों की बुद्धि पर छोड़ते हैं। 

कुछ महीनों बाद सिविल और मुझको बहुत दूर रमकोला में बनाये रेस्क्यू सेंटर ले जाने दो ट्रक आए। मैंने महावत से पूछा कि डॉक्टर ने तो कहा था कि राजू, लाली, सिविल और मुझे चारों को जाना है, कोर्ट ने भी माना था, फिर राजू और लाली क्यों नहीं आ रहे? महावत ने कहा सरगुजा के एक हाथी एक्सपर्ट अधिकारी ने कहा है कि राजू और लाली रिजर्व में पेट्रोलिंग का काम करेंगे इसलिए यही रहेंगे। भाग्य की विडंबना देखिए पहले अपने परिवार से बिछड़ा, फिर अत्याचार सहे और अब अपने प्रिय और अजीज राजू से हरदम के बिछड रहा था, रोते रोते मै ट्रक चढ़ा और ट्रक रमकोला के लिए रवाना हो गया।

रमकोला में सिविल और मै दोनों ही थे। बाद में तीन नर और दो मादा कुनकी हाथी आए। मेरी उनसे दोस्ती नहीं हुई, मै पूरे समय में सिविल के साथ ही रहता, परंतु मेरा दुर्भाग्य देखिये एक दिन सिविल भी साथ छोड़कर हरदम के लिए चला गया। यहां भी हम हाथियों के पांव चेन से बांध के रखा जाता है, यहां के अत्याचार के बारे में फिर कभी और हां महावत बता रहा था कि वन्यजीव प्रेमी ने एक बार सबसे बड़े अधिकारी से पूछा कि मुझे छोड़ क्यों नहीं रहे? अधिकारी ने कहा याद नहीं है कोर्ट ने हमारी बुद्धि पर छोड़ा है, अभी हमको बुद्धि नहीं आई है। मेरा नाम सोनू है। 

पेड़ों के तनों पर पेंटिंग करने वालों पर होगी कार्यवाही; शासन ने जारी किया आदेश

राज्य शासन आवास एवं पर्यावरण विभाग ने समस्त विभागों और प्रदेश के समस्त जिला कलेक्टरों को आदेश जारी किया है कि सौंदर्यीकरण के नाम से पेड़ों के तनों पर पेंटिंग न किया जाए एंव पेड़ों पर पेंटिंग करने के मामले में दोषियों पर कार्यवाही की जाये। 


 रायपुर 2 अगस्त /  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ शासन आवास एवं पर्यावरण विभाग ने शासन के मंत्रालय स्थित समस्त विभागों और प्रदेश के समस्त जिला कलेक्टरों को आदेश जारी किया है कि सौंदर्यीकरण के नाम से पेड़ों के तनों पर पेंटिंग न किया जाए एंव पेड़ों पर पेंटिंग करने के मामले में दोषियों पर कार्यवाही करने के निर्देश संबंधितो को जारी किए जाएं। आदेश में कहा है कि पेड़ों के तनों में पेंट करने से विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थ छालों के माध्यम से अंदर चले जाते हैं और पेड़ों को नुकसान एवं उनके मृत्यु होने की संभावना बनी रहती है।

गौरतलब है कि विभिन्न नगरी निकायों द्वारा पेड़ों पर पेंटिंग करने की शिकायत रायपुर स्थित नितिन सिंघवी ने 2019 और 2021 में मुख्य सचिव से की थी तथा सभी संबंधित विभागों को उचित निर्देश जारी करने की मांग की थी परन्तु सिर्फ नगरी प्रशासन एवं विकास विभाग ने नगर पालिक निगमों के आयुक्तों और मुख्य न्यायपालिक अधिकारियों, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायत को आदेश जारी किए थे। दूसरे अन्य विभागों को आदेश जारी नहीं किए जाने के कारण दूसरे विभाग सौंदर्यीकरण के नाम से पेंटिंग का कार्य कर रहे थे। सिरपुर महोत्सव 2024 में साडा द्वारा सड़क के दोनों तरफ लगभग 75 से ज्यादा पेड़ों के तनों पर पेंटिंग करने की शिकायत सिंघवी ने फिर मुख्य सचिव से की और मांग की कि आवास एवं पर्यावरण विभाग को निर्देशित किया जावे कि वह सभी विभागों को भविष्य में पेड़ों में पेंटिंग न करने के निर्देश दे ।

सिंघवी ने शासन की संवेदनशीलता पर धन्यवाद देते हुए बताया कि पेड़ों को अपनी छाल के माध्यम से गैसों (जैसे ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड) का आदान-प्रदान करने की आवश्यकता होती है। पेंट, इन छिद्रों को अवरुद्ध करता है, जिससे यह महत्वपूर्ण प्रक्रिया बाधित होती है। पेंट, पेड़ की बढ़ने और फैलने की क्षमता को बाधित करते है, विकास के लिए छाल को लचीला होना चाहिए, और पेंट इस लचीलेपन को रोकता है। कुछ पेंट में ऐसे रसायन होते हैं जो पेड़ों के लिए जहरीले होते हैं, ये रसायन छाल में घुस सकते हैं और पेड़ की आंतरिक प्रणालियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पेंट, छाल को अधिक गर्मी बनाए रखने का कारण बन सकता है, जो पेड़ को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर गर्म जलवायु में। रसायनिक मटेरियल तनों की छालों के माध्यम से अंदर चले जाते हैं जिससे उनके टिशु (ऊतक) और सेल (कोशिकाएं) की मृत्यु की संभावना बनी रहती है। 


UP ATS ACTION : भिलाई के स्मृति नगर से संदिग्ध आतंकी गिरफ्तार

 


भिलाई नगर । TODAY छत्तीसगढ़  / उत्तर प्रदेश एटीएस ने भिलाई के स्मृति नगर से संदिग्ध आतंकी को पकड़ा और कल ही उसे लेकर उत्तर प्रदेश रवाना हो गई है ।

मिली जानकारी के मुताबिक़ छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला अंतर्गत भिलाई में यूपी एटीएस ने मंगलवार देर रात करीब 10 बजे एक संदिग्ध आतंकी को गिरफ्तार किया है। यह संदिग्ध जिले के स्मृति नगर के संग्राम चौक इलाके में छिपा हुआ था। एटीएस की टीम उसे लेकर लखनऊ रवाना हो गई है।

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दुर्ग पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पकड़ा गया संदिग्ध आतंकी छत्तीसगढ़ का रहने वाला वजीहुद्दीन उर्फ वजीर है। यूपी की यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद अलीगढ़ में कोचिंग पढ़ाता था। यूपी एटीएस को उसके खिलाफ इनपुट मिले थे। अलीगढ़ के रहने वाले संदिग्ध आतंकी अब्दुल्ला अर्सलान और मास दिन तारिक के खिलाफ मुंबई में गिरफ्तार दो संदिग्ध आतंकियों से वजीहुद्दीन का इनपुट मिला था। दो दिन पहले यूपी एटीएस ने दो संदिग्ध आतंकियों अलीगढ़ निवासी अब्दुल्ला अर्सलान और मास बिन तारिक को गिरफ्तार किया था। जांच में सामने आया कि दोनों के तार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट यूनियन से जुड़े हुए हैं। दोनों के पास से आईएसआईएस और अलकायदा इंडियन AQIS से जुड़े साहित्य और दस्तावेज मिले थे।

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