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देवताओं के धरती पर आगमन का संकेत देता है 'कांस का फूल'


 बिलासपुर / 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  मॉनसून अब अपने समापन की ओर है तथा जल्द ही शरद ऋतु का आगमन होने वाला है. मौसम में आने वाले परिवर्तन को लेकर एक तरफ जहां तमाम तरह के उपकरणों से मौसम विभाग मौसम का पूर्वानुमान लगाता है, वहीं ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग बिना कोई उपकरण के मौसम का अंदाजा लगा लेते हैं. इन दिनों चारों तरफ कांस के फूल खिले हैं, जिसको देखकर यह कहा जाने लगा है कि मानसून का मौसम समाप्त होने वाला है और शरद ऋतु की शुरुआत हो गई है.

दरअसल, कांस के फूल खिलने का मतलब मानसून का जाना और शरद ऋतु के आगमन का संदेश होता है. इसकी चर्चा महाकवि कालिदास से लेकर आदि कवि तुलसीदास तक ने की है. इतना ही नहीं इस फूल के बारे में रविंद्र नाथ टैगोर और काजी नज़रुल इस्लाम ने भी अपनी कविताओं में इसका जिक्र किया है.

कांस के फूल खिलने का मतलब केवल मौसम में परिवर्तन ही नहीं होता है, बल्कि इससे देवताओं के धरती पर आगमन का संकेत भी मिलता है. पश्चिम बंगाल में कांस के फूलों को काफी शुभ माना गया है तथा शारदीय नवरात्र में इसका इस्तेमाल भी किया जाता है. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस फूल के खिलने का मतलब आसमान में सफेद बादल के समान होता है. तथा इसके खिलने से यह समझा जाता है कि हमारा पर्यावरण धरती पर देवताओं का इंतजार कर रहा है.

कवि तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में इस फूल के बारे में यह लिखा है कि “फूले कास सकल महि छाई, जनु वर्षा कृत प्रकट बुढ़ाई”. इसका मतलब यह होता है कि शरद ऋतु के आगमन से पहले चारों तरफ कांस के फूल का खिलना यह बताता है कि बरसात का मौसम अब बुजुर्ग हो गया है.

 महाकवि कालिई दुल्हन के परिधानदास ने अपनी रचना ऋतुश्रृंगार में शरद ऋतु का वर्णन करते हुए लिखा है कि “फूले हुए कासों के निराले परिधान, साज नूपुर पहन मतवाले हंस गण के”. कालिदास ने कांस के फूलों को न से तुलना की है. वहीं कभी रविंदर नाथ टैगोर ने अपनी रचना “शापमोचन” में भी कांस के फूलों के सौंदर्य का वर्णन किया है.

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