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वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी के नाम को लेकर विवाद, दिल्ली कोर्ट ने जारी किया नोटिस


नई दिल्ली।
 TODAY छत्तीसगढ़  / दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उस याचिका पर आधारित है जिसमें आरोप लगाया गया कि 1980-81 की वोटर लिस्ट में उनका नाम गलत तरीके से शामिल किया गया था। अदालत ने इस मामले में दिल्ली सरकार को भी नोटिस भेजा है और पूरे केस का रिकॉर्ड (TCR) मंगाया है। अगली सुनवाई 6 जनवरी को तय है, जिसमें सोनिया गांधी और राज्य सरकार को अपना जवाब देना होगा।

याचिकाकर्ता का दावा

 विकास त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र की 1980 की वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम मौजूद था, जबकि भारतीय नागरिकता उन्हें अप्रैल 1983 में मिली। याचिकाकर्ता ने मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत खारिज किए जाने के आदेश को भी चुनौती दी है।

भाजपा ने भी सवाल उठाए ।13 अगस्त को भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी यह दावा किया था कि सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट में दो बार शामिल था, जबकि वे उस समय भारतीय नागरिक नहीं थीं। उन्होंने इसे चुनावी कानून के उल्लंघन का उदाहरण बताते हुए सोशल मीडिया पर विस्तार से आरोप साझा किए थे। 

पहली बार नाम शामिल (1980) 

1 जनवरी 1980 को वोटर लिस्ट में संशोधन के दौरान सोनिया गांधी का नाम पोलिंग स्टेशन 145 में क्रम संख्या 388 पर जोड़ा गया, जबकि वे इटली की नागरिक थीं। नाम हटाया और फिर जोड़ा (1983): विरोध के बाद 1982 में नाम हटाया गया, लेकिन 1983 की सूची में फिर से शामिल किया गया। उस समय भी वे भारतीय नागरिक नहीं थीं, क्योंकि नागरिकता उन्हें 30 अप्रैल 1983 को मिली। मालवीय ने सवाल उठाया कि भारतीय नागरिकता लेने में 15 साल का समय क्यों लगा और कैसे एक ही व्यक्ति का नाम बिना नागरिकता के दो बार मतदाता सूची में शामिल हो सकता है।

58% आरक्षण पर फिर विवाद, प्रभावित अभ्यर्थियों की अवमानना याचिका; सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक सुनवाई टली


बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण लागू रखने के राज्य सरकार के फैसले पर फिर विवाद गहराने लगा है। इसी मुद्दे पर प्रभावित अभ्यर्थियों ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। अभ्यर्थियों की ओर से अदालत में अवमानना याचिका दायर कर राज्य सरकार से 58 प्रतिशत आरक्षण की स्थिति स्पष्ट करने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि प्रदेश में दो अलग-अलग आरक्षण रोस्टर लागू होने से राज्य स्तरीय भर्तियों में पदों की संख्या प्रभावित हो रही है, जिससे वे प्रत्यक्ष रूप से नुकसान और असमंजस की स्थिति का सामना कर रहे हैं।

गौरतलब है कि 19 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया था, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। अदालत में अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि मामला वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में लंबित है। यह भी स्पष्ट किया गया कि राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से 58 प्रतिशत आरक्षण जारी रखने के लिए कोई स्थगन आदेश प्राप्त नहीं हुआ है।

अभ्यर्थियों ने अमीन पटवारी, एडीईओ और अन्य भर्ती प्रक्रियाओं में 58 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के खिलाफ यह अवमानना याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने माना कि राज्य में 58 प्रतिशत आरक्षण लागू करना हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना है, हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन होने के कारण अदालत ने फिलहाल निर्णय टालते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद ही इस मामले में आगे सुनवाई की जाएगी।

प्रशिक्षु न्यायाधीशों को लैपटॉप, मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने किया वितरण

फाइल फोटो / टीसीजी न्यूज़ 

Chhattisgarh High Court: ग्रुप-डी भर्ती में अभ्यर्थियों को राहत, रेलवे की याचिकाएं खारिज


बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / रेलवे में ग्रुप-डी की नौकरी पाने का इंतजार कर रहे अभ्यर्थियों को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में वर्ष 2010 में निकाली गई भर्ती की प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं पर अदालत ने अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाया है। जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डबल बेंच ने रेलवे की सभी याचिकाएं खारिज कर दी। इसके साथ ही रिप्लेसमेंट कोटा के तहत योग्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है।

मामला 15 दिसंबर 2010 का है, जब आरआरबी बिलासपुर ने ग्रुप-डी के पदों के लिए अधिसूचना जारी की थी। लंबे समय तक नियुक्ति नहीं होने पर अभ्यर्थियों ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) में मामला पहुंचाया। कैट ने 6 मार्च 2024 को रेलवे को निर्देश दिया था कि 17 जून 2008 की अधिसूचना के अनुसार रिक्त पदों की स्थिति की जांच कर, रिप्लेसमेंट कोटा में योग्य अभ्यर्थियों की नियुक्ति पर विचार किया जाए।

रेलवे ने कैट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए दलील दी कि चयन पैनल में शामिल होने से किसी उम्मीदवार को नियुक्ति का अधिकार स्वतः प्राप्त नहीं हो जाता। हाईकोर्ट ने रेलवे की दलील को खारिज करते हुए कहा कि वैध रूप से तैयार चयन पैनल को बिना ठोस कारण नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भले ही चयनित उम्मीदवार को स्वतः नियुक्ति का अधिकार न हो, लेकिन वह निष्पक्ष, उचित और कानूनी विचार का हकदार है।

अदालत ने यह भी कहा कि जब मेरिट में योग्य उम्मीदवार मौजूद हों और पद रिक्त हों, तो नियुक्ति केवल उचित कारणों से ही रोकी जा सकती है। फैसले से 100 से अधिक अभ्यर्थियों को राहत मिलने की उम्मीद है, जो लंबे समय से नियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे।
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