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केजरीवाल सरकार को झटका, ACB केंद्र के पास

[TODAY छत्तीसगढ़] / दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को झटका देते हुए ऐंटी-करप्शन ब्यूरो को केंद्र के अधीन रखा है। हालांकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सेवाओं पर नियंत्रण किसके पास है, इसपर SC के दो जजों की राय अलग-अलग रही। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण पर अपना खंडित फैसला बड़ी बेंच के पास भेज दिया। इसके अलावा दो सदस्यीय पीठ भ्रष्टाचार रोधी शाखा (ACB), राजस्व, जांच आयोग और लोक अभियोजक की नियुक्ति के मुद्दे पर सहमत हुई। 
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस अधिसूचना को बरकरार रखा है कि दिल्ली सरकार का एसीबी भ्रष्टाचार के मामलों में उसके कर्मचारियों की जांच नहीं कर सकता है। SC ने कहा कि केंद्र के पास जांच आयोग नियुक्त करने का अधिकार होगा। फैसले के तहत स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की नियुक्ति का अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेगा। वहीं, ऐंटी-करप्शन ब्रांच केंद्र के अधीन रहेगी क्योंकि पुलिस केंद्र के पास है। रेवेन्यू पर एलजी की सहमति लेनी होगी। इलेक्ट्रिसिटी मामले में डायरेक्टर की नियुक्ति सीएम के पास होगी। 
ट्रांसफर व पोस्टिंग पर बंटे  
जस्टिस सीकरी ने अपने फैसले में कहा कि ग्रेड-1 और ग्रेड-2 के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग केंद्र सरकार करेगी जबकि ग्रेड-3 और ग्रेड-4 के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग का मामला दिल्ली सरकार के अधीन होगा। अगर कोई मतभेद होता है तो मामला राष्ट्रपति को जाएगा। दो जजों की बेंच में शामिल जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सर्विसेज केंद्र के पास रहेगा। ऐसे में दोनों जजों की राय बंट गई। 
रेवेन्यू 
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि जमीन से जुड़े मामले दिल्ली सरकार के नियंत्रण में रहेंगे। इसके मुताबिक दिल्ली सरकार जमीनों के रेट और मुआवजे की राशि तय कर सकती है। दिल्ली सरकार को राहत मिली है कि जमीनों का सर्किल सीएम ऑफिस के कंट्रोल में होगा। 
केंद्र के पास ACB 
ऐंटी-करप्शन ब्रांच का अधिकार भी केंद्र को दिया गया है क्योंकि पुलिस बल केंद्र के नियंत्रण क्षेत्र में है। गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और भूमि से जुड़े मामले एलजी के अधिकार क्षेत्र में दिए गए थे। केंद्र सरकार गृह मंत्रालय ने 21 मई 2015 को एक नोटिफिकेशन जारी किया था जिसमें सर्विस मैटर, पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और भूमि से जुड़े मामले एलजी के अधिकार क्षेत्र में दिए गए थे। ब्यूरोक्रेट की सर्विस के मामले भी एलजी को दिए गए थे। केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों को सीमित कर दिया था। [इनपुट - नवभारत टाइम्स]

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