पालिघाट के SBI कियोस्क पर शुरू हुआ आईरिस स्कैनर, बुजुर्गों और ग्रामीणों को बड़ी राहत


पालिघाट, करमागढ़ |
 TODAY छत्तीसगढ़  /ग्रामीण अंचल में बैंकिंग सेवाओं को और सुगम बनाने की दिशा में एक अहम पहल करते हुए पालिघाट, करमागढ़ स्थित SBI ग्राहक सेवा केंद्र (कियोस्क) पर अब आईरिस स्कैनर सुविधा शुरू कर दी गई है। इस सुविधा से खाताधारकों की पहचान आंखों की पुतलियों के जरिए की जा रही है, जिससे खासकर बुजुर्गों और श्रमिक वर्ग को बड़ी राहत मिली है।

अब तक फिंगरप्रिंट न मिल पाने के कारण कई बुजुर्ग और मेहनतकश लोग बैंकिंग सेवाओं से वंचित रह जाते थे। नकद निकासी या अन्य कामों के लिए उन्हें दूर बैंक शाखाओं तक जाना पड़ता था। नई आईरिस स्कैनर सुविधा शुरू होने से अब यह परेशानी खत्म हो गई है और लोग अपने गांव में ही आसानी से बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठा पा रहे हैं।

इस सुविधा की शुरुआत SBI बैंक मित्र ओम प्रकाश शर्मा की पहल से की गई है। उन्होंने बताया कि आईरिस स्कैनर के जरिए अब नकद निकासी, खाते से जुड़ी जानकारी और अन्य बैंकिंग सेवाएं सरलता से उपलब्ध कराई जा रही हैं। इससे महिलाओं, बुजुर्गों और ग्रामीण उपभोक्ताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है।

ओम प्रकाश शर्मा ने इस पहल में सहयोग के लिए RBO रायगढ़ के बी. एल. पुर्ति, दिलीप सेठी और प्रिया श्रीवास्तव तथा SBI तमनार (JPL) के रविंद्र कुमार और शिखा कुमारी का आभार जताया। ग्रामीणों का कहना है कि इस नई व्यवस्था से उन्हें सम्मान के साथ, बिना किसी झंझट के बैंकिंग सेवाएं मिल रही हैं। डिजिटल बैंकिंग को गांव तक पहुंचाने की दिशा में इसे एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जिससे ग्रामीणों को सुरक्षित और भरोसेमंद सेवाएं अपने ही क्षेत्र में मिल सकेंगी।

संगीता बरुआ बनीं प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की पहली महिला अध्यक्ष


नई दिल्ली। 
TODAY छत्तीसगढ़  /  प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI) के हालिया चुनाव में संगीता बरुआ ने अध्यक्ष पद पर शानदार जीत दर्ज की है। इस ऐतिहासिक जीत के साथ वे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की पहली महिला अध्यक्ष बन गई हैं। उनके पूरे पैनल ने भी चुनाव में सफलता हासिल की।

अध्यक्ष पद के लिए संगीता बरुआ को कुल 1019 मत प्राप्त हुए। उपाध्यक्ष पद पर जतिन गांधी ने 1029 मतों के साथ विजय हासिल की, जबकि महासचिव पद पर अफजल इमाम 948 मतों के साथ निर्वाचित हुए। इससे पहले सुनील कुमार (संयुक्त सचिव) और अदिति राजपूत (कोषाध्यक्ष) अपने-अपने पदों पर निर्विरोध चुने जा चुके थे।

भाजपा में बड़ा संगठनात्मक बदलाव: नितिन नवीन बने राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष


नई दिल्ली।
  TODAY छत्तीसगढ़  / भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने रविवार को बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री नितिन नवीन को अपना राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया। यह राज्य से जुड़े एक वरिष्ठ नेता के लिए एक बड़ा संगठनात्मक पदोन्नयन माना जा रहा है। वह भाजपा के सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्षों में से एक हैं। यह निर्णय भाजपा की संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया गया और इसकी घोषणा भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह द्वारा जारी आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से की गई। यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है।

नितिन नवीन वर्तमान में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार में सड़क निर्माण मंत्री हैं और उन्हें भाजपा में एक अनुभवी संगठनात्मक नेता माना जाता है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनके करीबी समन्वय के लिए पहचाने जाने वाले नितिन नवीन ने बिहार में पार्टी के जमीनी संगठन को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने भाजपा युवा मोर्चा के साथ भी व्यापक रूप से काम किया है और युवा कार्यकर्ताओं के बीच संगठनात्मक मजबूती खड़ी करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है।

बिहार में अपने कार्य के अलावा, नितिन नवीन ने राज्य प्रभारी के रूप में भी सेवाएँ दी हैं, जिससे उन्हें अपने गृह राज्य से बाहर संगठनात्मक प्रबंधन का अनुभव मिला है। वर्षों के दौरान उन्होंने कई संगठनात्मक जिम्मेदारियाँ निभाई हैं और एक अनुशासित नेता के रूप में पहचान बनाई है, जिनके पार्टी कार्यकर्ताओं और राज्य नेतृत्व से मजबूत संबंध हैं।

राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में, नितिन नवीन की जिम्मेदारी होगी कि वे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व और राज्य इकाइयों के बीच समन्वय स्थापित करें, संगठनात्मक मामलों की देखरेख करें और देशभर में भाजपा की राजनीतिक एवं चुनावी रणनीतियों को लागू करने में सहयोग करें।

उनकी नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब भाजपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। जनवरी 2020 में पदभार संभालने वाले नड्डा को 2024 के लोकसभा चुनाव सहित कई अहम राजनीतिक चरणों के दौरान पार्टी का नेतृत्व करने के लिए कई बार कार्यकाल विस्तार दिया गया था। हालिया संगठनात्मक फेरबदल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में संक्रमण काल का संकेत देता है।

नितिन नवीन कौन हैं?

नितिन नवीन बिहार से भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हैं। उनका जन्म पटना में हुआ था। वह दिवंगत नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के पुत्र हैं, जो भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक थे। पिता के निधन के बाद उन्होंने सक्रिय चुनावी राजनीति में प्रवेश किया।

नितिन नवीन पांच बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने पहली बार वर्ष 2006 में पटना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीतकर विधानसभा में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने बांकीपुर विधानसभा सीट से 2010, 2015, 2020 और 2025 में लगातार चार बार जीत दर्ज की।

2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा को निर्णायक अंतर से हराया था। हाल के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने बांकीपुर सीट से 51,000 से अधिक मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की। 

कैमरे की कलम: 'फोटो फ्रेम में सत्ता, फुटनोट में जनता'


इन दिनों सोशल मीडिया पर यह तस्वीर कुछ इस तरह वायरल है, जैसे किसी सूबे में बाढ़ आ गई हो और हज़ारों परिवारों से आशियाने छिन गए हों। हालाँकि इस तस्वीर में सिर्फ मुस्कानें हैं - महँगी, सुरक्षित और वातानुकूलित। यह तस्वीर एक शादी समारोह की है। यहां सत्ता और ताक़तवर लोग केंद्र में हैं। दूल्हा है —अमन सिंह (रिटायर्ड आईआरएस ) का बेटा । अमन सिंह, छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह की सरकार में सर्वशक्तिमान मुख्य सचिव रहे। राज्य की राजनीति जिनकी भौंहों की हरकत से दिशा तय करती थी और नौकरशाही जिनसे नज़र मिलाने से पहले कैलेंडर देखती थी। रिटायर हुए तो देश के सबसे ताकतवर पूंजीपतियों में शुमार अडानी समूह से जुड़ गये। यानि सरकारी फाइल से कॉरपोरेट फोल्डर तक की यात्रा, बिना किसी ब्रेकडाउन के।

इतने प्रभावशाली व्यक्ति के बेटे की शादी हो और सरकार बहादुर न पहुँचे — ऐसा सोचना लोकतंत्र के विरुद्ध है। दिल्ली दरबार से लेकर अलग-अलग सूबों के सियासतदान, चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में। सब बारात में शरीक हुये। इस महफ़िल में वे पत्रकार भी मौजूद थे जो सत्ता और पूंजी के बीच पुल नहीं — फ्लाईओवर की भूमिका में हैं। ख़ुशनुमा माहौल में कैमरे क्लिक होते रहे, इतिहास सुरक्षित होता रहा और इन सबके बीच सैकड़ों सवाल कहीं बाहर छूट जाते हैं। 

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई यह शाही शादी आज के संदर्भ में इसलिए खास है क्योंकि तस्वीर में जो हँसी है वह छत्तीसगढ़ की हालिया सूरत से सीधा टकराती है। तस्वीर के केंद्र में — गौतम अडानी है। उनके इर्द-गिर्द — छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, दिल्ली दरबार के बड़े नेता राजीव प्रताप रूड़ी, संगठन की कमान से सियासी अखाड़े में तीरंदाजी करने वाले सौदान सिंह, पूर्व सांसद और भाजपा की प्रभावशाली नेत्री सरोज पांडेय के अलावा सत्ता की निरंतरता के अन्य गवाह बैठे हैं।

यह पारिवारिक फोटो नहीं है। यह उस गठजोड़ का सामूहिक चित्र है जो चुनावों से नहीं बदलता। कहावत यूँ ही नहीं बनी — सियासत और पूंजीपतियों का हनीमून कभी खत्म नहीं होता। यह रिश्ता सात फेरों से नहीं, नीतियों, परियोजनाओं और एमओयू से बंधा होता है। यहाँ जनता की भूमिका साफ़ है, वह सिर्फ फोटोग्राफ़र है। वो तस्वीर खींचती है, जो हमेशा फ्रेम से बाहर रहती है। सरकारें बदलती हैं, घोषणापत्र बदलते हैं, नारे बदलते हैं लेकिन निवेशक वही रहते हैं। बस कुर्सी के सामने बैठने वाला चेहरा बदल जाता है।

शादी समारोह में भोजन की मेज पर जमी सत्ता और पूंजी की यह महफ़िल आगे और कितने गुल खिलाएगी यह भविष्य नहीं, बस्तर तय करेगा। फिलहाल तो राज्य के जंगल, खासकर हसदेव इस तस्वीर को देखकर सिहर रहा हैं। छत्तीसगढ़ के जंगल इन दिनों किसी प्राकृतिक आपदा से नहीं, बल्कि तथाकथित विकास पुरुषों की दृष्टि से सबसे अधिक संकट में हैं। फर्क बस इतना है कि इस आपदा को सरकारी फाइलों में “परियोजना”, कॉरपोरेट प्रस्तुतियों में “निवेश” और मीडिया की सुर्खियों में “रोज़गार सृजन” कहा जा रहा है। इनके लिये जंगल अब पेड़ों का समूह नहीं “अवरोध” बन चुके हैं। नदियाँ जीवनदायिनी नहीं बल्कि “अनुपयोगी संसाधन” हैं। आदिवासी समाज संस्कृति नहीं, बल्कि “पुनर्वास की समस्या” है और वन्यजीव ? वे तो विकास के रास्ते में आने वाले आंकड़े भर हैं। 

जिस देश में संविधान ने आदिवासियों को जंगलों का संरक्षक माना, उसी देश में उन्हें अपने ही घर में अवैध घोषित किया जा रहा है। ग्राम सभा की सहमति अब एक औपचारिक मुहर भर है, जिसे परियोजना की गति के अनुसार लगाया या हटाया जा सकता है। विडंबना यह है कि जिन लोगों ने सदियों तक जंगल बचाया, वे आज “वन भूमि पर अतिक्रमणकारी” कहलाते हैं, और जिनका जंगल से रिश्ता सिर्फ मुनाफ़े का है, वे विकास दूत बन गये हैं। 

जब तस्वीरों में सब बहुत सुरक्षित, बहुत खुश और बहुत संतुष्ट दिखें तो समझ लीजिए कहीं न कहीं कोई जंगल कट चुका है, कोई नदी दम तोड़ चुकी है और कोई आदिवासी पुनर्वास के वादे में गायब हो चुका है। यह मुलाक़ात शिष्टाचार की मिसाल भी हो सकती है लेकिन छत्तीसगढ़ के जंगलों, नदियों और ज़मीनों को विकास की रफ्तार में समय से भी तेज़ चलते देखकर मुझे तो डर लगता है। आपका पता नहीं ... 

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