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राजनीतिक समीक्षा: बिहार में नीतीश की वापसी, मोदी की मौजूदगी ने बदला सत्ता समीकरण का संदेश

 


पटना। 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  बिहार की राजनीति में गुरुवार को हुआ शपथ ग्रहण केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं था, बल्कि सत्ता के बदलते समीकरणों और भविष्य की दिशा का गहरा संकेत भी था। एनडीए को मिली बंपर जीत के बाद नीतीश कुमार ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, जबकि सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने उपमुख्यमंत्री पद संभाला। यह संयोजन ही दिखाता है कि भाजपा और जेडीयू के बीच सत्ता संतुलन को नए सिरे से गढ़ा जा रहा है। इसी बीच एक वीडियो जिसमें नितीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाँव छूकर आशीर्वाद ले रहे हैं, खूब वायरल हो रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपने X हैंडल पर वीडियो शेयर किया है। 

मोदी–नीतीश की गर्मजोशी: पुरानी दूरियों पर विराम ?

शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी ने इस कार्यक्रम के राजनीतिक वजन को कई गुना बढ़ा दिया। मंच पर मोदी और नीतीश की मुस्कुराहटें, सहज बातचीत और साझा फ्रेम से यह स्पष्ट संदेश गया कि दोनों दल आने वाले वर्षों में टकराव के बजाय ‘समन्वय की राजनीति’ आगे बढ़ाना चाहते हैं। बीते कुछ वर्षों में दिल्ली–पटना संबंधों में जो उतार-चढ़ाव दिखा था, इस मंच ने उस दूरी को कम करने की कोशिश के रूप में भी देखा गया।

एनडीए की आंतरिक राजनीति का संतुलन

दो उप मुख्यमंत्रियों की तैनाती केवल प्रशासनिक कदम नहीं है; यह एनडीए के भीतर शक्ति वितरण की रणनीतिक प्रक्रिया भी है। सम्राट चौधरी भाजपा के ओबीसी नेतृत्व को मजबूती देते हैं। विजय सिन्हा संगठन और विधानसभा राजनीति में भाजपा के बढ़ते प्रभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों के बीच नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद पर बैठना स्पष्ट करता है कि जेडीयू अभी भी सत्ता की धुरी है, लेकिन भाजपा अपनी शक्तियों को संतुलित तरीके से स्थापित कर चुकी है।

राजनीतिक संदेश और चुनावी भविष्य

इस समारोह में केंद्रीय मंत्रियों और विभिन्न दलों के नेताओं की मौजूदगी ने यह दिखाया कि केंद्र और राज्य सरकार आने वाले महीनों में ‘विकास–केंद्रित गठबंधन राजनीति’ की नई कथा गढ़ने की कोशिश करेंगे। मोदी और नीतीश दोनों के वक्तव्यों में “जनता की सेवा” और “विकास की ऊंचाइयों” पर जोर दिया गया—जो 2029 की दूरगामी राजनीतिक तैयारी की ओर संकेत भी है।

 एक नया अध्याय या पुराना समीकरण ?

बिहार में नीतीश कुमार की सरकार वापस आने के साथ ही यह बहस फिर तेज हो गई है कि क्या नीतीश–मोदी की यह नजदीकी स्थायी है या केवल राजनीतिक अनिवार्यता के तहत बनी है। फिलहाल के संकेत बताते हैं कि दोनों पक्ष स्थिर शासन और साझा राजनीतिक लाभ के लिए एक तालमेल वाला मॉडल अपनाने के मूड में हैं। इस शपथ ग्रहण ने साफ कर दिया है कि बिहार की राजनीति नई रफ्तार पकड़ चुकी है—और इसकी दिशा आने वाले महीनों में राज्य व राष्ट्रीय राजनीति दोनों को प्रभावित करेगी।  


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