भांचादान की भूमि पर कब्जे से परेशान आदिवासी किसान ने लगाई गुहार


बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  / साप्ताहिक जनदर्शन में सोमवार को जिलेभर से पहुंचे सैकड़ों लोगों की समस्याओं की सुनवाई की गई। कलेक्टर संजय अग्रवाल के निर्देश पर नगर निगम आयुक्त प्रकाश सर्वे और जिला पंचायत सीईओ संदीप अग्रवाल ने जनदर्शन में एक-एक आवेदन को गंभीरता से पढ़कर संबंधित अधिकारियों को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए।

जनदर्शन में सबसे अधिक आवेदन एग्रीस्टेक पंजीयन, रकबा छूटने और किसान संबंधी समस्याओं से जुड़े रहे। कोनी निवासी आदिवासी किसान पुरुषोत्तम गोंड़ ने ग्राम गतौरा में भांचादान में प्राप्त भूमि को बेजा कब्जे से मुक्त कराने की फरियाद की। उन्होंने बताया कि गतौरा निवासी नारायण राठौर और उसके दो पुत्र पिछले करीब डेढ़ दशक से उनकी जमीन पर अवैध कब्जा किए हुए हैं। इस पर आवेदन को एसडीएम को भेजते हुए तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए गए।

तखतपुर के ग्राम गुटेना निवासी रामायण श्रीवास ने प्रधानमंत्री आवास योजना की तीसरी किश्त दिलाने की मांग रखी। उन्होंने बताया कि किश्त मिलने की उम्मीद में कर्ज लेकर मकान पूरा करा लिया, लेकिन दो साल बाद भी राशि नहीं मिली। जनपद पंचायत तखतपुर के सीईओ को मामले की जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए गए।

गनियारी के किसान मोहनलाल साहू ने गिरदावरी में धान फसल का उल्लेख नहीं किए जाने की शिकायत की। उन्होंने बताया कि पटवारी द्वारा प्रविष्टि नहीं होने के कारण एग्रीस्टेक पंजीयन के बाद भी वे फसल बिक्री नहीं कर पा रहे हैं। तहसीलदार सकरी को तत्काल सुधार के निर्देश दिए गए।

मस्तुरी के ग्राम भगवानपाली निवासी किसान लाल बहादुर राय ने बताया कि ट्रैक्टर पंजीयन के डेढ़ साल बाद भी आरसी बुक नहीं मिली है। इस पर आरटीओ को तत्काल आरसी बुक जारी करने के निर्देश दिए गए।

तालापारा मरार गली निवासी श्रीमती प्रीति गांगवने ने अटल आवास की मांग करते हुए बताया कि पति द्वारा छोड़ दिए जाने के बाद वह बच्चों के साथ किराये के मकान में रहकर जीवन यापन कर रही हैं।

वहीं, बिल्हा विकासखंड के ग्राम बरतोरी निवासी किसान मनोज कुमार कौशिक ने धान बिक्री के लिए तीसरे टोकन की मांग की। उन्होंने बताया कि 10 एकड़ भूमि में से 8 एकड़ की फसल बेच चुके हैं, शेष 2 एकड़ की उपज बची है। निगम आयुक्त ने खाद्य नियंत्रक को आवेदन भेजकर नियमानुसार कार्रवाई के निर्देश दिए। 

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कैमरे की कलम: जब सवाल अपराध बन जाएँ


भारत के लोकतांत्रिक परिदृश्य में आज सबसे गंभीर संकट यह नहीं है कि सत्ता से सवाल उठ रहे हैं, बल्कि यह है कि सवाल पूछना ही सत्ता के लिए असहज और संदिग्ध गतिविधि बनता जा रहा है। इस असहजता के केंद्र में राज्य-व्यवस्था और मुख्यधारा मीडिया के बीच वर्षों से विकसित होता आया वह गठजोड़ है, जिसने आलोचना को अवांछनीय और सहमति को ‘राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी’ का दर्जा दे दिया है।

हर सत्ता को संवाद की नहीं, वैधता की भूख होती है और हर संस्थागत मीडिया को निर्बाध संचालन के लिए संरक्षण चाहिए। यहीं से वह सौदा शुरू होता है, जिसमें राज्य को एक अनाक्रमणीय छवि मिलती है और मीडिया को विज्ञापन, पहुँच और सुरक्षा। इस लेन-देन में पत्रकारिता का मूल धर्म—सत्ता से सवाल—धीरे-धीरे अप्रासंगिक कर दिया जाता है।

इतिहास गवाह है कि सत्ता हमेशा अपने अनुकूल मीडिया चाहती रही है। राजाओं के दौर में यह भूमिका दरबारी कवियों और चारण-भाटों ने निभाई। आधुनिक लोकतंत्र में वही भूमिका अक्सर कॉरपोरेट-विज्ञापन आधारित, रजिस्टर्ड मीडिया संस्थानों ने संभाल ली है। माध्यम बदले, पर चरित्र प्रायः वही रहा—सत्ता के प्रति विनम्रता।

इस पृष्ठभूमि में सोशल मीडिया एक दुर्घटना की तरह उभरा एक ऐसा मंच जो न संपादकीय नियंत्रण से बंधा है, न विज्ञापन नीति से, न ही सत्ता की भाषा सीखने को बाध्य। यही कारण है कि तमाम अव्यवस्थाओं और जोखिमों के बावजूद, सोशल मीडिया आज राज्य और उसके पोषित मीडिया—दोनों के लिए सबसे असहज क्षेत्र बन गया है।

इसी असहजता की अभिव्यक्ति हालिया घटनाक्रम में दिखती है, जब नवोदित सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर आकांक्षा टोप्पो को हिरासत में लिया गया। यह कार्रवाई केवल किसी एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है। यह उस संस्थागत मानसिकता को उजागर करती है, जिसमें असुविधाजनक भाषा और असहज सवालों को कानून-व्यवस्था का मुद्दा बना दिया जाता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि इस प्रकरण में विवाद का केंद्र तथ्य नहीं, बल्कि भाषा और शैली रही। जब सवालों का तथ्यात्मक खंडन संभव नहीं होता, तब अक्सर अभिव्यक्ति की मर्यादा, शालीनता और अनुशासन को हथियार बनाया जाता है। यह लोकतांत्रिक बहस नहीं, बल्कि विमर्श का दमन है।

विडंबना यह है कि जिन मीडिया संस्थानों ने वर्षों तक सत्ता की हर प्रेस-कॉन्फ्रेंस को बिना सवाल किए प्रसारित किया, नीतिगत विफलताओं को शब्दजाल में ढका और जनसरोकारों के स्थान पर प्रायोजित बहसों को प्राथमिकता दी वही संस्थान आज सोशल मीडिया को पत्रकारिता के मानक सिखाने में अग्रणी बने हुए हैं।

यह दोहरा मापदंड अब छिपा नहीं रहा। मुख्यधारा मीडिया का बड़ा हिस्सा व्यवहार में राज्य का संचार तंत्र बन चुका है जहाँ आलोचना ‘नकारात्मकता’ और प्रश्न ‘अराजकता’ माने जाते हैं। इसीलिए जब सोशल मीडिया से उठती स्वतंत्र आवाज़ें सत्ता की विफलताओं को सीधा संबोधित करती हैं, तो राज्य और मीडिया—दोनों एक सुर में असहज हो जाते हैं।

सोशल मीडिया पर उभरे कई नाम—जिनमें कमला नेताम जैसे लोग भी शामिल हैं—इस गठजोड़ के बाहर खड़े हैं। इनके पास न संस्थागत सुरक्षा है, न कानूनी कवच, न कॉरपोरेट समर्थन। इनके पास केवल सवाल हैं और यही इनका सबसे बड़ा अपराध बनता जा रहा है।

यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि सोशल मीडिया पत्रकारिता अपरिपक्व है, कई बार गैर-जिम्मेदार भी। लेकिन यह अपरिपक्वता उस संस्थागत चुप्पी से कम खतरनाक है, जिसने मुख्यधारा मीडिया को जकड़ रखा है। यहाँ सुधार की आवश्यकता है दमन की नहीं।

लोकतंत्र में राज्य की शक्ति इस बात से नहीं मापी जाती कि वह कितनी प्रशंसा अर्जित करता है, बल्कि इस बात से मापी जाती है कि वह कितनी तीखी आलोचना सहन कर सकता है। और मीडिया की साख इस बात से तय होती है कि वह सत्ता की भाषा बोलता है या उसे कटघरे में खड़ा करता है।

यदि राज्य-व्यवस्था और मीडिया का यह गठजोड़ असहज सवालों को दबाने का स्थायी औज़ार बन गया, तो इसका नुकसान किसी एक इंफ्लुएंसर या मंच तक सीमित नहीं रहेगा। यह उस लोकतांत्रिक स्पेस को संकुचित कर देगा, जहाँ से जनता सत्ता को आईना दिखा सकती है और जब लोकतंत्र में आईने टूटते हैं, तो चेहरे नहीं बदलते इतिहास बदलता है।

समापन समारोह: राज्य स्तरीय युवा महोत्सव में लोक, सूफी और आधुनिक संगीत का अद्भुत संगम


बिलासपुर।
 TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय युवा महोत्सव में सांस्कृतिक विविधता, लोक परंपरा और आधुनिक संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिला। महोत्सव के मंच पर एक के बाद एक प्रस्तुत हुईं मनमोहक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने दर्शकों को देर रात तक बांधे रखा। संगीत, लोकधुनों और सूफियाना अंदाज़ से सजे इस आयोजन में युवाओं के साथ-साथ हर आयु वर्ग के दर्शकों में खासा उत्साह रहा। 

कार्यक्रम की शुरुआत स्वप्निल बैंड की शानदार और ऊर्जावान प्रस्तुति से हुई। बैंड ने देशभक्ति और भावनाओं से ओतप्रोत गीतों की प्रस्तुति देकर पूरे माहौल को देशभक्ति भावना से भर दिया। बैंड द्वारा प्रस्तुत वंदेमातरम्, छाप तिलक और तेरी दीवानी  जैसे लोकप्रिय गीतों पर दर्शक झूमते नजर आए। विशेष रूप से गीतकार राकेश शर्मा के गीतों ने श्रोताओं के दिलों को छू लिया। 

सुप्रसिद्ध लोक गायिका आरू साहू ने छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की भावनात्मक प्रस्तुति देकर दर्शकों को भावविभोर कर दिया। उन्होंने मैया… जसगीत, जय श्री राम, सुआ गीत और पंथी, पचरा गीत की शानदार प्रस्तुति देकर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दियाउनकी गायकी में छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति, आस्था और परंपरा की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिली। पंथी गीत पर दर्शकों ने विशेष उत्साह दिखाया और तालियों के साथ कलाकारों का उत्साहवर्धन किया,युवा उनके गीतों पर झूमते नजर आए। 

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए काफिला बैंड ने अपने सूफियाना गीतों की प्रस्तुति से पूरे वातावरण को आध्यात्मिक रंग में रंग दिया। सूफी संगीत की गहराई और भावनात्मकता ने श्रोताओं को आत्मिक शांति का अनुभव कराया। बैंड की प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा। वहीं, बस्तर बैंड ‘दायरा’ की जोशीली और दमदार प्रस्तुति ने  दर्शकों को उत्साह से भर दिया। पारंपरिक और आधुनिक संगीत के मिश्रण से सजी उनकी प्रस्तुति पर युवा दर्शक खुद को थिरकने से रोक नहीं पाए। बस्तर अंचल की सांस्कृतिक छाप लिए इस प्रस्तुति ने युवाओं को उत्साहित किया।

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