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| सांकेतिक तस्वीर |
उज्जवल दीवान नामक नागरिक ने पुलिस मुख्यालय से आरटीआई के माध्यम से पूछा था कि पुलिसकर्मियों को ज़ीरो कट व क्लीन शेव रखने के निर्देश किस आदेश के तहत जारी किए गए हैं तथा इसकी सत्यापित प्रति उपलब्ध कराई जाए। जवाब में PHQ की प्रशासन शाखा ने साफ लिखा कि “वांछित जानकारी अभिलेखों में उपलब्ध नहीं है।”
इस उत्तर ने यह गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि जब विभाग के रिकॉर्ड में ऐसा कोई नियम मौजूद ही नहीं है, तो फिर अब तक कितने ही जवानों और अधिकारियों को इन आधारों पर दी गई सजा किस नियमन के तहत दी गई? सर्विस बुक में दर्ज इन दंड प्रविष्टियों का आधार क्या था?
आरटीआई लगाने वाले उज्जवल दीवान का कहना है कि पुलिस महकमे में वर्षों पुरानी परंपराओं को बिना लिखित औचित्य के नियम की तरह लागू किया जा रहा है। उन्होंने पूछा है कि “यदि न तो कोई सरकारी आदेश है और न ही यह स्पष्ट है कि ऐसा करना क्यों आवश्यक है, तो फिर इस परंपरा का अंधानुकरण क्यों? और बिना लिखित नियम के सेवा-पुस्तक में सजा कैसे दी जा सकती है?”
पुलिस विभाग में क्लीन शेव और ज़ीरो कट लंबे समय से अनुशासन का हिस्सा माने जाते रहे हैं, लेकिन इनके लिए कोई आधिकारिक, प्रकाशित या राजपत्रित नियम न होना अब बड़ी प्रशासनिक कमी की ओर संकेत करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि स्पष्ट नियम मौजूद नहीं हैं, तो इस आधार पर दी गई सजा को भविष्य में चुनौती दी जा सकती है।
आरटीआई से सामने आया यह मामला पुलिसिंग में पारदर्शिता और अनुशासन संबंधी प्रक्रियाओं की वैधता को लेकर नई बहस को जन्म दे रहा है। अब देखना होगा कि पुलिस मुख्यालय इस खुलासे के बाद कोई औपचारिक नियम जारी करता है या पूर्व में दी गई कार्रवाइयों पर समीक्षा की जाती है।
