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जंगल की राह पर शिक्षा : बिंदावल की बच्चियाँ और अधूरी सरकारी उम्मीदें


 बिलासपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले में स्थित अचानकमार टाइगर रिजर्व केवल वन्य जैव-विविधता का केंद्र ही नहीं, बल्कि वहाँ बसे आश्रित ग्रामों की सामाजिक हकीकत का दर्पण भी है। इसी क्षेत्र का एक छोटा-सा गाँव बिंदावल, आज भी शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत के लिए संघर्ष कर रहा है। यहाँ रहने वाले बच्चे शिक्षा के लिए हर दिन 8 किलोमीटर पैदल चलते हैं। यह दूरी केवल किलोमीटर में नहीं मापी जा सकती, यह उन नीतियों की दूरी है जो आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी इन इलाकों तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ देती हैं। 

बिंदावल से ग्राम छपरवा की दूरी 4 किलोमीटर है, जंगल का रास्ता पक्का है लेकिन वीरान। बिंदावल से करीब 40 से अधिक छात्र-छात्राएँ घना जंगल पार कर छपरवा पहुँचते हैं, जहाँ उन्हें कक्षा 12 तक की पढ़ाई उपलब्ध है। अचानकमार टाइगर रिजर्व के बिंदावल जैसे गाँव विकास के उन दावों की सच्चाई उजागर करते हैं, जो मंचों पर चमकते हैं पर ज़मीन पर बिखर जाते हैं। बिंदावल की बच्चियाँ और बच्चे जिन कठिनाइयों के बावजूद प्रतिदिन स्कूल जाते हैं, वह शिक्षा के प्रति उनके संकल्प की मिसाल है। 

फ़ाइल फोटो/ तीन दशक तक वनांचल (ATR) में शिक्षा की अलख जलाकर रखने वाला मसीहा स्वर्गीय प्रभुदत्त खैरा 
शिक्षा दूत का प्रयास और अधूरी व्यवस्था

छपरवा में उच्च माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा उपलब्ध होने का श्रेय शिक्षा दूत स्वर्गीय प्रभुदत्त खैरा को जाता है, जिन्होंने अपने जीवनकाल में वनों से घिरे इस क्षेत्र में शिक्षा का दीप जलाने के लिए अथक प्रयास किए। उनके प्रयासों से यहाँ स्कूली व्यवस्था तो खड़ी हो गई, लेकिन शिक्षा के बुनियादी ढांचे और सरकारी जिम्मेदारियों का भार अब भी अधूरा ही है।

78 वर्षों बाद भी गुणवत्ता की तलाश

भारत को आज़ाद हुए 78 वर्ष बीत चुके हैं, परंतु बिंदावल और ऐसे ही कई वन आश्रित गाँव आज भी गुणवत्तापूर्ण सरकारी शिक्षा के इंतज़ार में हैं। स्कूल तो हैं, पर वे न तो पर्याप्त संसाधनों से लैस हैं और न ही शिक्षक संख्या और गुणवत्ता के मानकों पर खरे उतरते हैं।

इन बच्चों की दैनिक यात्रा केवल दूरी का नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का प्रतीक है जो वर्षों से उपेक्षित रही है। जंगल पार कर स्कूल पहुँचने वाले बच्चे बच्चियाँ जब यह कहती हैं कि “स्कूल जाते हैं, पर पढ़ाई ठीक से नहीं होती”, तो यह शिक्षा की योजनाओं के खोखलेपन पर सवाल उठाता है।

सरस्वती साइकिल योजना : सुविधा से असुविधा तक

राज्य सरकार की सरस्वती साइकिल योजना का उद्देश्य छात्राओं को सुविधा प्रदान करना था, ताकि वे सुरक्षित और जल्दी स्कूल पहुँच सकें पर बिंदावल की लड़कियों के लिए यह योजना उम्मीद की जगह परेशानी बन गई।

कई छात्राओं को मिली साइकिलें खराब गुणवत्ता की थीं—इतनी कि मात्र एक माह के भीतर ही पुर्जे अलग होने लगे और साइकिलें प्रयोग लायक नहीं रहीं। ऐसे में योजना का उद्देश्य तो दूर, साधनहीनता का दर्द और गहरा हो गया। यह स्थिति प्रशासनिक लापरवाही, निम्न स्तरीय सामग्री की खरीद और निगरानी की कमी, सभी को एक साथ उजागर करती है।

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