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   [TODAY छत्तीसगढ़ ] /   इसे कचरा या फिर गंदगी मत समझिये, ये तो हमारी आस्था के बाद का बचा हुआ वो सच है जो अब सड़ांध मारने लगा है। हमने कभी मुड़कर इस हकीकत को देखने की कोशिश ही नहीं की, जिन नदियों-तालाबों को हम देव स्वरूप मानकर उसके पवित्र जल से आचमन करते हैं उसे गंदगी के ढेर में तब्दील हमने मिलकर किया है। शहर की जीवनदायिनी अरपा के छठ घाट का ये सुरते हाल हमारी 'स्वच्छ' मानसिकता का सबूत है। "






शहर भर में दस दिवसीय गणेशोत्सव बड़े धूमघाम के साथ मनाया गया। इसके बाद उतने ही जोश-खरोश और गाजेबाजे के साथ प्रतिमाओं का विसर्जन भी हुआ। गणेश विसर्जन के बाद अरपा नदी के छठ घाट पर बड़ी संख्या में कचरा, पॉलिथीन और पूजन सामग्रियों का कचरा यहाँ से वहाँ तक बिखरा हुआ पड़ा है।  इसका मलबा अब सड़ांध मारने लगा है। इससे नदी प्रदूषित हो रही है, लेकिन इसे साफ करने के लिए न तो प्रशासन ने अभी तक कोई सार्थक पहल की और न ही कोई सामाजिक संस्था सामने आई है। हालांकि अरपा को सालों पहले ही प्रदूषित और गंदगी के ढेर में तब्दील किया जा चुका है लेकिन आस्था के बाद यहां-वहां फैले कचरे को देखकर समझा जा सकता है की ये नदी साल में कइयों बार श्रद्धालुओं के कोप का भाजन बनती रही है। 
इस बरस गनीमत ये रही की अधिकाँश गणेश प्रतिमाएं मिटटी की बनी हुई थी, विसर्जन के बाद वो पानी में घुल गईं लेकिन प्रतिमाओं के घुल जाने के बाद कहीं लकड़ी की टुकड़े, बांस की बल्लियां, मिट्टी के टूटे हुए बर्तन, पानी में भीगे रंग-बिरंगे कागज, प्लास्टिक की थैलियां, भगवान गणेश पर चढ़ाये गए रंग-बिरंगे वस्त्र और आकार देने के लिए इस्तेमाल किया गया पैरा अरपा के किनारे तैर रहा है। मूर्ति विसर्जन के बाद हालात खतरनाक हैं क्योंकि प्रतिमाओं के साथ प्लास्टिक एवं अन्य खतरनाक अघुलनशील कचरा और विषैली सामग्री अरपा में तैर रही है। कुछ इसी तरह का हाल शहर से लगे उन तालाबों, जलाशयों का भी है, विसर्जन के बाद स्वच्छता की पैरोकारी करने वाले सामाजिक संगठन न तो सामने आते हैं, ना ही प्रशासन इस मलबे को उठवाने की जहमत उठाता है। नतीजतन महीनों ये मलबा किनारे पड़ा सड़ांध मारता रहता है। छठ घाट में फिर भी राहत है क्यूंकि कुछ समय बाद दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन फिर छठ पूजा के लिए नगर निगम प्रशासन साफ़-सफाई करवाता है। फिलहाल अरपा नदी की तकदीर और इस तस्वीर की सूरत बदलने में कुछ दिनों का वक्त अभी बाकी है।
तस्वीरों को गौर से देखकर सोचियेगा जरूर हम अपनी आस्था के पीछे नदी-तालाबों में क्या छोड़ आते हैं ?  

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