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सिद्ध बाबा में जमा है, पुराने सिक्कों का अनमोल खजाना

 


अगर कभी पुराने सिक्कों की जरूरत बड़ी मात्रा में किसी अध्ययन के लिए पड़ी तो यहां सिध्दबाबा की शरण में आना होगा। यह है केंवची-अमरकंटक मार्ग पर कबीर चबूतरा के पहले सिध्दबाबा। यहां मंदिर से लगा मंदिरनुमा चट्टानों का समूह जो समय के साथ झुकता हुआ ढहने को है। यहां चट्टान में एक सुराख था इस सड़क से गुजरने वाला हर राहगीर यहां नतमस्तक हो चट्टान की सुराख में सिक्का डालता। थोड़ी देर में सिक्का नीचे गिरने पर खनकने की आवाज उस सुराख से आती। पांच छह दशक से यह सब मेरा आंखों देखा रहा। यह वह सड़क है जहां बरसात में पहाड़ पर भूस्खलन हो कर दूर दूर तक मिट्टी और चट्टान गिर राह बन्द होती रही पर सिद्ध बाबा की ये परत दर परत धरी लगने वाली चट्टानें नहीं भसकीं।

पिछले कुछ वर्षो से सिद्धबाबा में भर जाने की वजह सिक्के डालने का सिलसिला बन्द है। मगर जाने कितने दशक या सदी से सिक्के यहां एकत्र हो गये होंगे क्योंकि राह पुरानी है जो बनती और बिगड़ती रही है। 

जानकारी साभार / प्राण चढ्ढा के फेसबुक वाल से - 



मंत्री को ना, SP मुख्यालय में अटैच, फेसबुक पर पोस्ट लिखने से DGP नाराज

[TODAY छत्तीसगढ़] / सुकमा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला के द्वारा मंत्री की बात ना मानना उसके बाद हुई कारवाही को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी मंशा जाहिर करना प्रदेश के पुलिस प्रमुख को नागवार गुजरा है। पुलिस अधीक्षक  जीतेन्द्र शुक्ला के तबादले के बाद मचा विवाद अब थमने का नाम नहीं ले रहा है। आबकारी मंत्री कवासी लखमा और जितेंद्र शुक्ला के बीच संवाद के सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद डीजीपी डीएम अवस्थी ने सख्त स्र्ख अपनाया है और अधिकारीयों को कड़े दिशा निर्देश जारी किये हैं ।
राज्य के पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी ने सभी विभागाध्यक्ष और एसपी को पत्र लिखकर कहा है कि कोई भी अधिकारी केंद्र या राज्य सरकार की नीतियों की आलोचना करता है, तो उसके खिलाफ अनुशानात्मक कार्रवाई होगी। डीजीपी ने कहा कि अखिल भारतीय सेवा के आचरण नियम 1968 के नियम 7 में स्पष्ट है कि अखिल भारतीय सेवा के सदस्य किसी भी आदेश को सोशल मीडिया में जारी नहीं करेंगे। दस्तावेज को सार्वजनिक करना प्रतिबंधित है। शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों के द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग संबंधी मार्गदर्शी निर्देश का कड़ाई से पालन किया जाए। ये वो पत्र है जिसे जिले के प्रभारी मंत्री कवासी लखमा ने जीतेन्द्र शुक्ला को लिखा - 
दरसअल, दो दिन पहले ही कवासी लखमा और जितेंद्र शुक्ला के बीच हुए संवाद का पत्र सोशल मीडिया में वायरल हुआ। इसको लेकर सरकार ने नाराजगी जातई, जिसके बाद डीजीपी ने सभी प्रमुखों को पत्र जारी किया है। सुकमा एसपी रहे जितेंद्र शुक्ला को मंत्री कवासी लखमा ने एक थानेदार का तबादला करने का निर्देश दिया था, जिसका एसपी ने पालन नहीं किया। इसके बाद जितेंद्र को सुकमा से हटाकर पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया। यह विवाद यही नहीं थमा। जितेंद्र ने तबादले के बाद फेसबुक पर पोस्ट किया, जिस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आई।
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक जीतेन्द्र शुक्ला ने बस्तर को बाय-बाय कहते हुए काफी भावनात्मक पोस्ट फेसबुक पर लिखी  ... 

हमारा नेता आईएएस हैं या अनपढ़, दो तस्वीर

[TODAY छत्तीसगढ़] / ये दो तस्वीर छत्तीसगढ़ की हैं। दोनों में विरोधाभास है, लेकिन बहुत संदेश देती हैं।  पहली तस्वीर में मंत्री बने निरक्षर आदिवासी कवासी लखमा है। दूसरी तस्वीर में आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी हैं। चौधरी पहली पारी में खरसिया से फेल होकर घर बैठ गए, जबकि कवासी बस्तर के घोर नक्सल क्षेत्र कोंटा से पांचवीं बार विधायक बन गए। भूपेश बघेल सरकार ने मजबूत जनाधार देख कर उन्हें मंत्री बना दिया है।
यह लोकतंत्र की खूबसूरती है या कमजोर कड़ी, जनता चुनाव में यह नहीं देखती कि हमारा नेता आईएएस हैं या अनपढ़। चुनाव में यह आकलन करती है कि जिसे वोट दे रहे हैं, वह कितना उपयोगी है। क्या फर्क पड़ता है कि शैक्षिक ज्ञान ऊंचा है या नहीं। स्कूल गए हैं या नहीं। फर्क इससे पड़ता है कि जनता के सुख-दुख में आप कितने काम आए। जितने सरल और सहज होंगे, व्यावहारिक होंगे और ज्ञानी होने के आवरण से बाहर निकलेंगे, उतने ही राजनीति में कामयाब होने की संभावना बढ़ेगी।
हम पढ़े-लिखे लोग देश की राजनीति को गाली दे सकते हैं। यह कह कर कोस सकते हैं कि राजनीति को 'अच्छे' लोगों की जरूरत नहीं है। सवाल है, इन 'अच्छे' लोगों ने देश का कितना भला कर दिया। वे गाल बजा देते हैं और समय आने पर देश से ज्यादा अपने स्वार्थों को तवज्जो देते हैं। ऐसे में आदिवासी कवासी को चुनना ही श्रेष्ठ दिखता है। साभार -  जिनेश जैन की वाल से 

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