[TODAY छत्तीसगढ़] / ये दो तस्वीर छत्तीसगढ़ की हैं। दोनों में विरोधाभास है, लेकिन बहुत संदेश देती हैं। पहली तस्वीर में मंत्री बने निरक्षर आदिवासी कवासी लखमा है। दूसरी तस्वीर में आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी हैं। चौधरी पहली पारी में खरसिया से फेल होकर घर बैठ गए, जबकि कवासी बस्तर के घोर नक्सल क्षेत्र कोंटा से पांचवीं बार विधायक बन गए। भूपेश बघेल सरकार ने मजबूत जनाधार देख कर उन्हें मंत्री बना दिया है।
यह लोकतंत्र की खूबसूरती है या कमजोर कड़ी, जनता चुनाव में यह नहीं देखती कि हमारा नेता आईएएस हैं या अनपढ़। चुनाव में यह आकलन करती है कि जिसे वोट दे रहे हैं, वह कितना उपयोगी है। क्या फर्क पड़ता है कि शैक्षिक ज्ञान ऊंचा है या नहीं। स्कूल गए हैं या नहीं। फर्क इससे पड़ता है कि जनता के सुख-दुख में आप कितने काम आए। जितने सरल और सहज होंगे, व्यावहारिक होंगे और ज्ञानी होने के आवरण से बाहर निकलेंगे, उतने ही राजनीति में कामयाब होने की संभावना बढ़ेगी।
हम पढ़े-लिखे लोग देश की राजनीति को गाली दे सकते हैं। यह कह कर कोस सकते हैं कि राजनीति को 'अच्छे' लोगों की जरूरत नहीं है। सवाल है, इन 'अच्छे' लोगों ने देश का कितना भला कर दिया। वे गाल बजा देते हैं और समय आने पर देश से ज्यादा अपने स्वार्थों को तवज्जो देते हैं। ऐसे में आदिवासी कवासी को चुनना ही श्रेष्ठ दिखता है। साभार - जिनेश जैन की वाल से