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अमरकंटक की राह में एक अनदेखा झरना — मानो प्रकृति मुझे कह रही हो, “रुककर देखो मैं यहीं हूँ सदियों से।”


 बिलासपुर।
  TODAY छत्तीसगढ़  /  अमरकंटक की ओर जाती घुमावदार सड़कें जैसे-जैसे सतपुड़ा-मैकल की गोद में उतरती हैं, हर मोड़ पर प्रकृति का एक नया रूप सामने आता है। इसी यात्रा के दौरान, कबीर चबूतरा से करीब पाँच किलोमीटर पहले, अचानकमार टाइगर रिज़र्व के बफर ज़ोन में, मुझे एक छोटा-सा झरना मिला — अनायास, लेकिन अप्रत्याशित रूप से मन मोह लेने वाला।

सड़क किनारे पत्थरों के बीच से फूटता वह निर्मल जल, मानो पहाड़ियों की धड़कनों में बहती कोई मधुर धुन हो। सूरज की किरणें जब जल पर गिरतीं, तो बूंदें सोने-सी चमक उठतीं। आसपास का वन क्षेत्र हरियाली से आच्छादित था, और पक्षियों की चहचहाहट उस सन्नाटे में जीवन भर देती थी।

स्थानीय लोग बताते हैं कि बरसात के मौसम में यह झरना अपने पूरे सौंदर्य पर होता है — तब इसका पानी उफनता हुआ नीचे की ओर बहता है, और पूरा जंगल धुंध और हरियाली से ढक जाता है। राहगीर यहां रुककर विश्राम करते हैं, तस्वीरें खींचते हैं, और कुछ पल प्रकृति के साथ बिताते हैं।

मुझे यह झरना न केवल अपनी सुंदरता से आकर्षित करता दिखा, बल्कि इसने उस गहराई का एहसास कराया जो सतपुड़ा-मैकल की पहाड़ियों में बसती है — जल, जंगल और जीवन का त्रिवेणी संगम। यही तो इस क्षेत्र की असली पहचान है।

पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि ऐसे कई अनदेखे स्थल इस क्षेत्र की जैवविविधता के जीवंत उदाहरण हैं, और शायद यही कारण है कि पर्यटन विभाग भविष्य में इस जगह को इको-टूरिज़्म सर्किट में शामिल करने की सोच रहा है। अमरकंटक की ओर बढ़ते हुए, उस झरने की आवाज़ देर तक मेरे कानों में गूंजती रही — मानो प्रकृति मुझे कह रही हो, “रुककर देखो, मैं यहीं हूँ, सदियों से।”

(यात्रा वृत्तांत- सत्यप्रकाश पांडेय) 

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