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मोतियों के जाल पर मकड़ी ... देखें तस्वीरें

TODAY छत्तीसगढ़  / बारिश के माैसम में प्रकृति मुस्कुरा रही है, ये तस्वीरें उसकी गवाह है। चाराें ओर हरी भरी वादियां धरती के श्रृंगार और यौवन के गीत गुनगुना रही है। इस बीच कुदरत के आँचल में पनपते हर जीव-जंतु का सौंदर्य भी इन दिनों अपने चरम पर है।
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इस तस्वीर को देखकर एक बारगी लगता है कि धागे में मोतियों को पिरोकर मकड़ी ने खूबसूरत जाल बुना है। बारिश की फुहारों के बीच मकड़ी पानी की बूंदों को अपनी आगोश में समेटे हुए है। मोतीनुमा दिखाई पड़ती पानी की बूंदों पर बैठी मकड़ी की इठलाहट देख छायाकार खुद को रोक न सका। कुछ तस्वीरें प्रकृति के आँचल से चुरा लाये हैं सत्यप्रकाश पांडेय  ...

खरीफ फसल : तैयारियों में जुटे किसान, देखें तस्वीरें

TODAY छत्तीसगढ़  / छत्तीसगढ़ समेत बिलासपुर क्षेत्र में मानसून सक्रिय होने के बाद से जिले के अधिकांश हिस्सों में बारिश हो रही है, इससे किसान खरीफ फसल की तैयारी में जुट गए हैं। क्षेत्र के किसानों का कहना है कि इस बार मानसून समय पर आया है, किसान खेती कार्य समय पर शुरू कर चुके हैं और समय पर फसल की बोआई हो पा रही है। जिले के अधिकांश खेतों में धान के थरहा की रोपाई का काम पूरा हो चुका है। इस साल कोरोना वायरस संक्रमण के चलते ग्रामीण इलाकों में मजदूरों की समस्या देखने को नहीं मिली है। चूँकि ग्रामीण क्षेत्र के मजदुर रोजी रोटी की तलाश में शहरी इलाकों का रुख कर जाते थे जो इस बार लॉकडाउन के चलते सम्भव नहीं सका। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
बिलासपुर जिले के अलग-अलग क्षेत्रों से ली गई कुछ तस्वीरें त्यप्रकाश पांडेय  के कैमरे से -

तेंदुआ, एक रहस्यमयी जीव

TODAY छत्तीसगढ़  / तेंदुआ मूल रूप से अफ़्रीका और दक्षिण एशिया पाया जाना वाला स्तनधारी जीव है। संसार की 37 वन्य बिल्ली जातियों में से सबसे सफल वन्य बिड़ाल के रूप में प्रसिद्ध तेंदुए ने विभिन्न वास स्थलों में निवास करने और मनुष्य के साथ रहने के लिए अपने आपको ढाल लिया है। वह बहुत ही चालाक, रहस्यमयी, मौक़ापरस्त और फुर्तीला रात्रिचर परभक्षी है जो छोटे वन्य जीवों और पालतू पशुओं का शिकार करता है। चूंकि उसके आहार बनने वाले जीव गाँवो और कस्बों के बाहरी इलाकों में अधिक पाए जाते हैं, वह भी गाँवों और कस्बों के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है। वह अपने शिकार को मुँह में दबाए आसानी से पेड़ पर चढ़ सकता है। उसकी दृष्टि और सुनने की शक्ति बहुत ही अच्छी होती है। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें 
नर तेंदुआ 2.15 मीटर लंबे होते हैं, जबकि मादाएं कुछ छोटी हैं, लगभग 1.85 मीटर की होती है। नर और मादा की कंधे तक की ऊँचाई 50-75 सेंटीमीटर होती है। नर का वजन लगभग 70 किलो होता है और मादाओं का 50 किलो। तेंदुए लाल, भूरे रंग के होते हैं। उनके शरीर पर काले धब्बों का गुच्छा होता है। बाघ के ही समान तेंदुआ भी अकेले रहना पसंद करता है।
हर तेंदुए का अपना अलग क्षेत्र होता है। तेंदुआ लगभग 3 साल का होने पर प्रजनन करने योग्य बन जाता है। सामान्यतः एक बार में दो शावक पैदा होते हैं। गर्भाधान काल 94 से 98 दिनों का होता है। छोटे हिरण, गीदड़, बंदर, कुत्ते, भेड़ और छोटे मवेशी कान्हा के तेंदुओं की उदरपूर्ति के साधन बनते हैं। तेंदुए की आयु लगभग 12-16 वर्ष की होती है। तेंदुए रहस्यमयी जीव होते हैं जो विरले ही दिखते हैं।

आठ प्रजाति के उल्लू मेरे कैमरे से ...

 TODAY छत्तीसगढ़  / दुनियाभर में उल्लुओं की लगभग 216 प्रजातियां हैं और इनमें से 32 भारत में मिलती हैं।  विभिन्न संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू को भले ही अशुभ माना जाता है, मगर यह संपन्नता के साथ बुद्धि का प्रतीक भी है। यूनानी मान्यता में उल्लू का संबंध कला व कौशल की देवी एथेना से माना गया है और जापान में इसे देवताओं का संदेशवाहक समझा जाता है। भारत की बात करें तो हिंदू मान्यता के अनुसार यह धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। देश में यही मान्यता इस पक्षी की दुश्मन बन गई है। नतीजतन दीपावली से ठीक पहले उल्लू की तस्करी काफी बढ़ जाती है। हर साल विभिन्न हिस्सों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि के मामले सामने आते रहे हैं।  देश के विभिन्न हिस्सों से आठ प्रजाति के उल्लू मेरे कैमरे से ...   
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अहा ! अमरकंटक

TODAY छत्तीसगढ़  / मैकल पर्वत श्रृंखला की तराई में बसे गौरेला इलाके के गांवों में खड़े होकर मैकल की श्रृंखला को देखकर ऐसा लगता है मानो कुदरत ने इस क्षेत्र को दिल खोलकर नेमतें दी है। अमरकंटक की वादियों को देखकर यही लगता है कि धरती पर अगर जन्नत है तो यहीं है! बस यहीं हैं। धर्म, तीर्थ, पर्यटन और आस्था की नगरी अमरकंटक जाने वाले हर मार्ग में ऐसे नज़ारे देखे जाते हैं। ये तस्वीर चुकतिपानी के पास ज्वालेश्वर मार्ग की जिसे अपने कैमरे में समेटा है वरिष्ठ पत्रकार शरद अग्रवाल ने।  TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें 

RTO साहेब, कभी टॉयलेट भी झाँक आइये ...

TODAY छत्तीसगढ़  /  जिला मुख्यालय के ग्राम लगरा में स्थित क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [RTO] के दफ्तर के बाहर बना ये प्रसाधन स्वच्छता अभियान के साथ-साथ टॉयलेट प्रेम की कहानी बयान करता है। आम जनता की सुविधाओं के लिए बनाया गया ये प्रसाधन साफ़-सफाई के अभाव में कितना खूबसूरत नज़र आ रहा है इसकी एक बानगी ये तस्वीरें बता रहीं हैं। हाँ इन तस्वीरों से स्वच्छता अभियान की बदबू आपकी नाक तक नहीं पहुंचेगी, उसके लिए आपको आरटीओ दफ्तर जाना होगा। यहां दिन भर में सैकड़ों लोग सरकारी काम-काज की बदहाल व्यवस्था से निपटने पहुँचते हैं ऐसे में उन्हें प्रसाधन के इस हाल से भी दो-चार होना पड़ता है लिहाजा सब कुछ खुले में करती पब्लिक करे भी तो क्या करे। हालात देखकर साफ़ कहा जा सकता है की यहां महीनों से सफाई नहीं हुई, मवेशियों के अलावा मानव मल जहां-तहाँ बिखरा पड़ा है। इस हाल पर साहब की नज़र नहीं क्यूंकि स्वच्छता अभियान की झाड़ू उन्होंने सरकारी कागजों में लगा कर साफ़-सफाई का नारा बुलंद कर रखा है। 
    जहां एक ओर सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत जनप्रतिनिधि सड़कों पर और सरकारी अफसर-कर्मचारी दफ्तरों में झाडू लगाते नजर आ जाते हैं, वहीं सरकारी दफ्तारों के भीतर झाकने पर स्थिति विपरीत नज़र आती है।  जबकि,खास बात यह है कि साहब के टॉयलेट में सभी व्यवस्थाएं सही हैं और सफाईकर्मी भी उनका विशेष ध्यान रखते हैं। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें  - 

सफाई मित्रों [Egyptian Vulture] की 28 तस्वीरें ...


TODAY छत्तीसगढ़  / ख़ुशी इस बात की है कि Egyptian vulture छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न हिस्सों में अब दिखाई देते है लेकिन संख्या नहीं के बराबर है। पिछले तीन-चार साल से बिलासपुर जिले की सरहद में अलग-अलग जगहों पर दिखाई पड़े सफ़ेद गिद्ध [Egyptian vulture] वैसे तो अपने लौट आने का संदेश दे चुके हैं लेकिन उनके पुनरुत्थान के लिए फौरन कोई कदम नहीं उठाया जाता तो ये पुनः विलुप्त होने से महज एक कदम दूर हैं। सफ़ेद गिद्ध अपने अन्य प्रजाति के पक्षियों की तरह मुख्यतः लाशों का ही सेवन करता है लेकिन यह अवसरवादी भी होता है और छोटे पक्षी, स्तनपायी और सरीसृप का शिकार कर लेता है। अन्य पक्षियों के अण्डे भी यह खा लेता है और यदि अण्डे बड़े होते हैं तो यह चोंच में छोटा पत्थर फँसा कर अण्डे पर मारकर तोड़ लेता है। दुनिया के अन्य इलाकों में यह चट्टानी पहाड़ियों के छिद्रों में अपना घोंसला बनाता है लेकिन भारत में इसको ऊँचे पेड़ों पर, ऊँची इमारतों की खिड़कियों के छज्जों पर और बिजली के खम्बों पर घोंसला बनाते देखा गया है।
यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में पर्याप्त आबादी में पायी जाती थी। 1990 के दशक में इस जाति का 40% प्रति वर्ष की दर से 99% पतन हो गया। इसका मूलतः कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको सफ़ेद गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम meloxicam आ गई है और यह गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं।
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NTPC सीपत में शीतकालीन परिंदों की दस्तक

TODAY छत्तीसगढ़  / शीतकालीन परिंदों ने बिलासपुर की सरहद में आमद दे दी है, विभिन्न प्रजाति के मेहमान आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में दिखाई देंगे ऐसी उम्मीद है। हर साल की तरह इस बरस भी बिलासपुर जिले के कोपरा, कोटा, सीपत और रतनपुर इलाके के जलाशय पक्षियों के कलरव से गुलज़ार होंगे।
हाल ही में कुछ जान पहचान वालों ने शोर मचाया कि बिलासपुर में कुछ मेहमान परिंदे दिखाई दे रहें हैं, जबकि कांक्रीट के जंगल [बिलासपुर शहर के भीतर] में एक भी ऐसा जलाशय नहीं हैं जहां प्रवासी/अप्रवासी परिन्दें पहुँच सके। हाँ बिलासपुर शहर की जीवनदायनी कही जाने वाली अरपा नदी के कुछ हिस्सों [कोनी, भैंसाझार और दयालबंद] में यदा कदा कुछ परिंदे अपनी उपस्थिति देते रहें हैं।
बिलासपुर जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित NTPC सीपत के बाहरी हिस्से में बनाये गए दो जलाशयों में पिछले दस दिनों से कुछ परिन्दें नज़र आ रहें हैं। इन परिंदों की संख्या फिलहाल कम है लेकिन आने वाले दिनों में ये बड़ी संख्या में दिखाई पड़ेंगे ऐसे कयास लगाए जा सकते हैं। सीपत में दिखाई देने वाली जलीय पक्षियों को कोपरा जलाशय में भी कुछ दिन बाद देखा जा सकेगा। अगर आप पक्षी प्रेमी हैं और मेहमान परिंदों की कलाबाजियों को देखना चाहते हैं तो किसी भी वक्त NTPC सीपत चले जाइये। NTPC सीपत में जो परिन्दें आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं उनमें  Tufted Duck,  Common pochard, Eurasian Coot,  Gadwall & Grey Heron, Purple heron समेत कई स्थानीय पक्षियों का डेरा है। 


काली चील, देखिये चुनिंदा तस्वीरें ...


TODAY छत्तीसगढ़  / काली चील (वैज्ञानिक नाम : Milvus migrans) मधयम आकार का एक शिकारी पक्षी है। यह एक्कीपित्रिडी (Accipitridae) कुल का पक्षी है और इस कुल का विश्व का सबसे अधिक पाया जाने वाला पक्षी है। वर्तमान में इनकी पूरे विश्व में संख्या करीब 80 लाख होने का अनुमान है। 

The black kite (Milvus migrans) is a medium-sized bird of prey in the family Accipitridae, which also includes many other diurnal raptors. It is thought to be the world's most abundant species of Accipitridae, although some populations have experienced dramatic declines or fluctuations. Current global population estimates run up to 6 million individuals. Unlike others of the group, black kites are opportunistic hunters and are more likely to scavenge. They spend a lot of time soaring and gliding in thermals in search of food. Their angled wing and distinctive forked tail make them easy to identify. They are also vociferous with a shrill whinnying call. This kite is widely distributed through the temperate and tropical parts of Eurasia and parts of Australasia and Oceania, with the temperate region populations tending to be migratory. Several subspecies are recognized and formerly had their own English names. The European populations are small, but the South Asian population is very large.
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वृक्ष बचाइए, ज़िंदगी खुद-ब-खुद बच जायेगी।

TODAY छत्तीसगढ़  / ईश्वर के दर पर पहुँचने का ये प्रवेश द्वार कुदरत की अनमोल कृति है, दशकों पुराने वट वृक्ष की सैकड़ों शाख एक तरफ अपने अक्षय होने का प्रमाण दे रहीं हैं तो वहीं दूसरी तरफ इस वृक्ष की शाखों ने कइयों प्राकृतिक द्वार की शक्ल अख्तियार कर ली है। बिलासपुर से कोटा मार्ग पर ग्राम गनियारी में सड़क किनारे सैकड़ों साल पुराना ये बरगद का पेड़ अपनी महत्ता को बताता हुआ बड़ी ही दृढ़ता के साथ खड़ा है।
वृक्षों की पूजा हमारे देश की समृद्ध परंपरा और जीवनशैली का अंग रहा है । वैसे तो हर पेड़-पौधे को उपयोगी जानकर उसकी रक्षा करने की परंपरा है लेकिन वटवृक्ष या बरगद की पूजा का खास महत्व बताया गया है। जहां तक धार्मिक महत्व की बात है, इस वृक्ष की बड़ी महिमा बताई गई है। वटवृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। यह पेड़ लंबे समय तक अक्षय रहता है, इसलिए इसे 'अक्षयवट' भी कहते हैं. अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है।
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TODAY छत्तीसगढ़  /  ये ज़िंदगी का दस्तूर है साहेब, पेट की आग बुझाने के लिए 'आग' लगाने का इंतज़ाम भी जरुरी है। इस कोशिश में जुटे नौनिहालों की नज़र अगर कैमरे पर पड़ जाए तो उनकी प्राइज़लेस खुशियों का ठिकाना नहीं रहता। 
TODAY छत्तीसगढ़  / कुदरत के आँगन से अपना हिस्सा बटोरते ग्रामीण बच्चे, दरअसल इन दिनों खेतों में लगी धान की फसल किसान काट रहा है। फसल कटाई के बाद किसान धान लेकर घर चला जाता है लेकिन खेत में धान की कुछ बालिया पड़ी रह जाती हैं जिस पर पक्षियों के साथ-साथ गाँव के बच्चों का हिस्सा होता है जो उसे बीनकर पहले इकठ्ठा करते हैं फिर गाँव के ही साहूकार को देकर कुछ 'खाई' का इंतज़ाम कर लेते हैं। इसे 'सिला' बीनना भी कहते हैं । यह तस्वीर कोटा [बिलासपुर] क्षेत्र के ग्राम मोहनभाठा से ली गई है जहां फसल कटाई के बाद कुछ बच्चे धरती के आँचल में बिखरा अपना हिस्सा बटोरने पहुंचे थे।
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 TODAY छत्तीसगढ़ / आज का शनिवार रावत नाच महोत्सव का शनिवार है। आज की रात गांव- देहात की संस्कृति संस्कारधानी को अपनी आगोश में ले लेगी । बिलासा की नगरी पूरी रात गुड़दुम बाजे की गमक और रावत नाच दलों की कुहुक से गूंज उठी है। सच मायने में आज का शनिवार शाम से रविवार के तड़के तक कुछ अलग होगी। यदुवंशी शहर के बीच लालबहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में आयोजित रावत नाच महोत्सव का हिस्सा बनने पहुँच चुके हैं। चारो तरफ डफडा- निशान-मोहरी –टिमकी की थाप के बीच खुशी से तुलसी- कबीर के दोहे के साथ नर्तकों की कुहुक गुलाबी ठण्ड में गर्माहट पैदा कर रही है । 
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TODAY छत्तीसगढ़  / इस विडंबना को समझने की कोशिश कीजिये। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत में किसानों की आर्थिक हालात बदलने को लेकर एक बार फिर से भरोसा दिलाया है और कहा है कि 2022 तक उनकी इनकम दोगुनी हो जाएगी । मोदी कहते हैं कि 'इस देश के अन्नदाता को किसी भी तरह की चिंता से मुक्त होना चाहिए।'
दूसरी तरफ छत्त्तीसगढ़ में किसानों को धान का मूल्य 2500 रूपये मिले इसको लेकर भूपेश सरकार प्रदर्शन की तैयारी में है। इधर विपक्ष की कुर्सी पर विराजमान पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह कहते हैं वे गाँव-गाँव जाकर कांग्रेस के एजेंडे की याद किसानों को दिलाएंगे। सियासी बिसात पर दौड़ लगा रहे जुमले और वायदों से भ्रमित किसान फिलहाल खेतों में पक चुकी फसल को काटकर घर की देहरी तक पहुंचाने में व्यस्त है। किसान को धान का कितना समर्थन मूल्य मिलेगा ये फिलहाल सरकार के गर्भ में छिपा यक्ष प्रश्न है।
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