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गिद्धों की संख्या बढ़ाने में कान्हा प्रबंधन के प्रयास कारगर

[TODAY छत्तीसगढ़] / ये पुरानी दुनिया का गिद्ध है जो नई दुनिया के गिद्धों से अपनी सूंघने की शक्ति में भिन्न हैं। यह मध्य और पश्चिमी से लेकर दक्षिणी भारत तक पाया जाता है। प्रायः यह खड़ी चट्टानों के श्रंग में अपना घोंसला बनाता है, परन्तु राजस्थान में यह अपना घोंसला पेड़ों पर बनाते हुये भी पाये गये हैं। दूसरे गिद्धों की भांति यह भी अपमार्जक या मुर्दाख़ोर होता है और ऊँची उड़ान भरकर इंसानी आबादी के नज़दीक या फिर जंगलों में मुर्दा पशु को ढूंढ लेते हैं और उनका आहार करते हैं। इनके चक्षु बहुत तीक्ष्ण होते हैं और काफ़ी ऊँचाई से यह अपना आहार ढूंढ लेते हैं। यह प्रायः समूह में रहते हैं। White Rumped Vulture का सर गंजा होता है, उसके पंख बहुत चौड़े तथा पूँछ के पर छोटे होते हैं। इसका वज़न 5.5 Kg से 6.4 Kg होता है। इसकी लंबाई 80-103 से. मी. तथा पंख खोलने में 1.96 से 2.38 मी. की चौड़ाई होती है।
यह जाति आज से दो दशक पहले तक काफी संख्या में पायी जाती थी लेकिन 1990 के दशक में इस जाति का 95% से 98% पतन हो गया है। इसका मूलतः कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है।
आज  गिद्धों का प्रजनन बंदी हालत में किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि खुले में यह विलुप्ति की कगार में पहुँच गये हैं। शायद इनकी संख्या बढ़ जाये। गिद्ध दीर्घायु होते हैं लेकिन प्रजनन में बहुत समय लगाते हैं। गिद्ध प्रजनन में 5 वर्ष की अवस्था में आते हैं। एक बार में एक से दो अण्डे देते हैं लेकिन अगर समय खराब हो तो एक ही चूजे को खिलाते हैं। यदि परभक्षी इनके अण्डे खा जाते हैं तो यह अगले साल तक प्रजनन नहीं करते हैं। यही कारण है कि भारतीय गिद्ध अभी भी अपनी आबादी बढ़ा नहीं पा रहा है। लेकिन देश के कुछ स्थानों से गिद्धों की संख्या बढ़ाने की दिशा में कारगर कदम उठाये गए हैं। 
छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व के औरापानी में भी इनके संरक्षण को लेकर प्रयास जारी है। छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती राज्य मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में इनकी संख्या अच्छी खासी है। कान्हा के जानकारों की माने तो वहां 50 से अधिक की संख्या में White Rumped Vulture  हैं जिनकी संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। 
तस्वीरें / White Rumped Vulture कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से इसी माह ली गई हैं - 

सींगों से बनाया गया स्वागत द्वार, सैलानी आश्चर्य चकित

[TODAY छत्तीसगढ़] / पुरे विश्व में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान अपनी अनेक विशेषताओं के लिए अलग पहचान रखता है। उन्ही विशेषताओं में एक है ये स्वागत द्वार।  मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में हिरण प्रजाति के सींगों से बनाया गया स्वागत द्वार (मेहराब) पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है । कान्हा में म्यूजियम के पास करीब 5 हजार किलो और लगभग 10 हजार सींगों से बनाया गया  विहंगम द्वार अपनी तरह की अलग ही कलाकृति है। कान्हा प्रबंधन के इस प्रयास को देख एक तरफ जहां विदेशी सैलानी आश्चर्य चकित होते हैं वहीँ भारतीय मेहमानों को हिरण की सींगों को काफी करीब से देखने और जानने का मौक़ा मिलता है। कान्हा-किसली जोन के सेंट्रल पॉइंट में बनाया गया ये मेहराब जितना खूबसूरत है उतना ही प्रेरणादायक। प्रेरणादायक इसलिए क्यूंकि कान्हा प्रबंधन ने अपनी सूझ-बूझ से हिरणों की गिरी और टूटी हुई सींगों से एक ऐसा द्वार बनाया है जो सभी को एक नज़र में भाता है। शायद इस तरह के प्रयास दूसरे नेशनल पार्क या फिर टाइगर रिजर्व में देखने को नहीं मिलते हैं। 
आपको बता दें की हिरण प्रजाति के नर के सिर पर प्रजनन काल के पूर्व हर साल सींग उगते हैं। प्रजनन काल के बाद सींग गिर जाते हैं। पार्क प्रबंधन ने हिरण, चीतल और सांभर के सीगों को स्थानीय वनवासियों से एकत्र कराया । विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि इन सींगों को आजादी के बाद से ही एकत्रित किया जा रहा हैं, जिससे इनकी संख्या काफी अधिक हो गई थी । इन्ही सींगों से कान्हा जोन में म्यूजियम के पास पार्क प्रबंधन ने स्वागत द्वार तैयार करने की सालों पहले योजना तैयार की थी जो बरसों से पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र है। बताया जाता है की इस अनोखे द्वार में करीब 10 हजार 830 सींग जिनका वजन लगभग 5 हजार 525 किग्रा हैं। 

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