वर्षों से जोधपुर राजपुताना वैभव का केन्द्र रहा है। जिसके प्रमाण आज भी जोधपुर शहर से लगे अनेक स्थानों पर प्राचीन इमारतों के रूप में मिल जाते हैं। जोधपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर एक ऐतिहासिक स्थान मौजूद है जिसको मंडोर गार्डन के नाम से पुकारा जाता है। इसी के नाम पर एक ट्रैन का नाम भी रखा गया है-मंडोर एक्सप्रेस जोकि दिल्ली से जोधपुर के लिए चलती है। मैंने भी जोधपुर पहुंचने के लिए इसी ट्रेन का रिजर्वेशन करवाया था। यह ट्रैन शाम को पुरानी दिल्ली से चलती है और सुबह सात बजे जोधपुर पहुंचा देती है।
मण्डोर का प्राचीन नाम ‘माण्डवपुर’ था। जोधपुर से पहले मंडोर ही जोधपुर रियासत की राजधानी हुआ करता था। राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मानकर सुरक्षा के लिहाज से चिड़िया कूट पर्वत पर मेहरानगढ़ फोर्ट का निर्माण कर अपने नाम से जोधपुर को बसाया था तथा इसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। वर्तमान में मंडोर दुर्ग के भग्नावशेष ही बाकी हैं, जो बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बने हैं। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।
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A symbol of royal grandeur – Mandore garden, Jodhpur |
मैंने अपने होटल के मैनेजर से यहां से जुड़ी कुछ जानकारियां जुटाईं। जोधपुर के आसपास ही कई देखने लायक ऐतिहासिक स्थल हैं जिसमे मंडोर अपनी स्थापत्य कला के कारण दूर-दूर तक मशहूर है। मंडोर गार्डन जोधपुर शहर से पांच मील दूर उत्तर दिशा में पथरीली चट्टानों पर थोड़े ऊंचे स्थान पर बना है।
ऐसा कहा जाता है कि मंडोर परिहार राजाओं का गढ़ था। सैकड़ों सालों तक यहां से परिहार राजाओं ने सम्पूर्ण मारवाड़ पर अपना राज किया। चुंडाजी राठौर की शादी परिहार राजकुमारी से होने पर मंडोर उन्हें दहेज में मिला तब से परिहार राजाओं की इस प्राचीन राजधानी पर राठौर शासकों का राज हो गया। मन्डोर मारवाड की पुरानी राजधानी रही है|
यहां के स्थानीय लोग यह भी मानते हैं कि मन्डोर रावण की ससुराल था। शायद रावण की पटरानी का नाम मन्दोद्री होने के कारण से ही इस जगह का नाम मंडोर पड़ा. यह बात यहां एक दंत कथा की तरह प्रचलित है। लेकिन इस बात का कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है।
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Majestic tomb inside the devals (cenotaphs) of Maharaja Shri Jaswant Singh |
मण्डोर स्थित दुर्ग देवल, देवताओं की राल, जनाना, उद्धान, संग्रहालय, महल तथा अजीत पोल दर्शनीय स्थल हैं। मंडोर गार्डन एक विशाल उद्धान है। जिसे सुंदरता प्रदान करने के लिए कृत्रिम नहरों से सजाया गया है। जिसमें ‘अजीत पोल’, ‘देवताओं की साल’ व ‘वीरों का दालान’, मंदिर, बावड़ी, ‘जनाना महल’, ‘एक थम्बा महल’, नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के समाधि स्मारक बने है. लाल पत्थर की बनी यह विशाल इमारतें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। इस उद्धान में देशी-विदेशी पर्यटको की भीड़ लगी रहती है। यह गार्डन पर्यटकों के लिए सुबह आठ से शाम आठ बजे तक खुला रहता है।
जोधपुर और आसपास के स्थान घूमने का सबसे अच्छा साधन है यहां चलने वाले टेम्पो। आप थोड़ी बार्गेनिंग करके पूरे दिन के लिए टेम्पो वाले को घुमाने के लिए तय कर सकते हैं। मैंने भी टेम्पो को पूरे दिन के लिए तय कर लिया। मैं टेम्पो में बैठ कर मंडोर गार्डन पहुंची। यहां काफी लोग आते हैं। आप खाने पीने का सामान गार्डन के गेट से खरीद कर अंदर ले जा सकते हैं। पर थोड़ी सावधानी ज़रूरी है। यहां पर बड़े-बड़े लंगूर रहते हैं जोकि खाना छीन कर भाग जाते हैं। इस जगह को देखने से पहले यहां के इतिहास के बारे में थोड़ी जानकारी ज़रूरी है। यहां का इतिहास जो थोड़ा बहुत मुझे यहां के लोगों से पता चला है। मैं आपके साथ साझा करती हूं।
मंडोर गार्डन का इतिहास -
उद्धान में बनी कलात्मक भवनों का निर्माण जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह व उनके पुत्र महाराजा अभय सिंह के शासन काल के समय सन् 1714 से 1749 ई. के बीच हुआ था। उसके पश्चात् जोधपुर के विभिन्न राजाओं ने इस उद्धान की मरम्मत आदि करवाई और समय समय पर इसे आधुनिक ढंग से सजाया और इसका विस्तार किया। आजकल यह सरकारी अवहेलना और भ्रष्टाचार की मार झेल रहा है। इस स्थान के रख रखाव पर ध्यान दिया जाना बहुत ज़रूरी है। रखरखाव की कमी से पानी की नहर कचरे से भर चुकी है। जिसे देख कर मुझे काफी अफ़सोस हुआ।
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Rajput were the great patrons of art & architecture and Mandore garden was taken cared by the different clans |
यह स्मारक पूरे राजस्थान में पाई जाने वाली राजपूत राजाओं की समाधि स्थलों से थोड़ा अलग हैं। जहां अन्य जगहों पर समाधि के रूप में विशाल छतरियों का निर्माण करवाया जाता रहा है। वहीँ जोधपुर के राजपूत राजाओं ने इन समाधि स्थलों को छतरी के आकर में न बनाकर ऊंचे चबूतरों पर विशाल मंदिर के आकर में बनवाया।
मंडोर उद्धान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक ही पंक्ति में जोधपुर के महाराजाओं के समाधि स्मारक ऊंची पत्थर की कुर्सियों पर बने हैं, जिनकी स्थापत्य कला में हिन्दू स्थापत्य कला के साथ मुस्लिम स्थापत्य कला का उत्कृष्ट समन्वय देखा जा सकता है। जहां एक ओर राजाओं की समाधि स्थल ऊंचे पत्थरों पर मंदिर के आकार के बने हुए हैं वहीं रानियों के समाधि स्थल छतरियों के आकर के बने हुए हैं। यहां पत्थरों पर की हुई नक्कारशी देखने लायक है। यहां मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने देखने को मिलते हैं। यह समाधि स्थल बाहर से जितने विशाल हैं अंदर से भी उतने ही सजाए गए हैं। गहरे ऊंचे नक्कार्शीदार गुम्बद, पत्थरों पर उकेरी हुई मूर्तियों वाले खम्बे और दीवारें उस समय के लोगों की कला प्रेमी होने का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
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Mandore garden the Ancient Kingdom of Parihar Rajputs |
इनमें महाराजा अजीत सिंह का स्मारक सबसे विशाल है। यह उद्धान रोक्स पर बनाया गया था। उसके बावजूद यहां पर पर्याप्त हरयाली नज़र आती है। लाल पत्थरों की एकरूपता को खत्म करने के लिए यहां हरयाली का विशेष ध्यान रखा गया था जिसके लिए उद्धान के बीचों बीच से नहर निकाली गई थी। स्मारकों के पास ही एक फव्वारों से सुसज्जित नहर के अवशेष हैं, इन्हें देख कर लगता है कि कभी यह नहर नागादडी झील से शुरू होकर उद्धान के मुख्य दरवाजे तक आती होगी तो कितनी सुन्दर और कितनी सजीली दिखती होगी। नागादडी झील का निर्माण कार्य मंडोर के नागवंशियों ने कराया था, जिस पर महाराजा अजीत सिंह व महाराजा अभय सिंह के शासन काल में बांध का निर्माण कराया गया था।
यहां एक हॉल ऑफ हीरों भी है। जहां चट्टान पर उकेर कर दीवार में तराशी हुई आकृतियां हैं जो हिन्दु देवी-देवतीओं का प्रतिनिधित्व करती है। अपने ऊंची चट्टानी चबूतरों के साथ, अपने आकर्षक बगीचों के कारण यह प्रचलित पिकनिक स्थल बन गया है। मैंने उधान में घूमते-घूमते अजीत पोल, ‘देवताओं की साल’, ‘वीरों का दालान’, मंदिर, बावड़ी, ‘जनाना महल’, ‘एक थम्बा महल’, नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के स्मारक देखे। मंडोर गार्डन को तसल्ली से देखने के लिए कमसे कम आधा दिन तो लग ही जाता है। इसलिए यहां के लिए समय निकाल कर आएं। क्यूंकि यहां चलना अधिक पड़ता है इसलिए आरामदेह जूते पहन कर आएं और तेज़ धूप से बचने के लिए स्कार्फ या छतरी साथ लाएं।
जोधपुर कैसे पहुँचें?
जोधपुर शहर का अपने हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन हैं जो प्रमुख भारतीय शहरों से अच्छी तरह से जुड़े हैं। नई दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निकटतम अंतरराष्ट्रीय एयरबेस है। पर्यटक जयपुर, दिल्ली, जैसलमेर, बीकानेर, आगरा, अहमदाबाद, अजमेर, उदयपुर, और आगरा से बसों द्वारा भी यहां तक पहुंच सकते हैं।
कब जाएं?
इस क्षेत्र में वर्ष भर एक गर्म और शुष्क जलवायु बनी रहती है। ग्रीष्मकाल, मानसून और सर्दियां यहां के प्रमुख मौसम हैं। जोधपुर की यात्रा का सबसे अच्छा समय अक्टूबर के महीने से शुरू होकर और फरवरी तक रहता है।
कहां ठहरें?
मंडोर से जोधपुर 8 किलोमीटर दूर है। इसलिए ठहरने के लिए जोधपुर एक अच्छा विकल्प है। जोधपुर में ठहरने के हर बजट के होटल हैं। अगर आप राजस्थानी संस्कृति और ब्लू सिटी का फील लेने जोधपुर जा रहे हैं तो ओल्ड सिटी में ही रुकें। यह स्टेशन से ज़्यादा दूर नहीं है। विदेशों से आए सैलानी यहां ओल्ड ब्लू सिटी में बड़े चाव से रुकते हैं। ब्लू सिटी मेहरानगढ़ फोर्ट के दामन में बसा पुराना शहर है। जहां कई होटल और होम स्टे मिल जाते हैं। पर यहां ठहरने के लिए पहले से बुकिंग करवालें क्यूंकि विदेशियों में ब्लू सिटी का अत्यधिक क्रेज़ होने के कारण यह वर्ष भर भरे रहते हैं।
कितने दिन के लिए जाएं?
जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कमसे कम 3-4 दिन का समय रखें।
फिर मिलेंगे दोस्तों, अगले पड़ाव में राजस्थान के कुछ अनछुए पहलुओं के साथ, तब तक खुश रहिये, और घूमते रहिये. - डा० कायनात क़ाज़ी