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सफ़रनामा, सत्यप्रकाश के साथ : मैं मुसाफिर हूँ, मेरी सुबह कहीं शाम कहीं ...

ये यायावर पशुपालक आज यहाँ कल कहीं और... ।  बीते 11 नवम्बर को मेरे जिले (बिलासपुर) की सरहद से करीब 130 किलोमीटर दूर ग्राम तरच (मध्यप्रदेश) के घुमावदार मोड़ पर इन यायावरों से मेरा अचानक आमना-सामना हुआ। हम काले हिरणों की शरण स्थली, कारोपानी जा रहे थे और ये उसी रास्ते से 24 किलोमीटर का सफर और तय कर छत्तीसगढ़ की सीमा में प्रवेश करने वाले थे। अक्सर इनके काफ़िले को देखकर मैं रुक जाता हूँ, जिज्ञासा इनको जी भरकर देखने की और लालच कुछ तस्वीरों का।

 हर साल की तरह इस बरस भी हजारों मील की दूरी क़दमों से नाप देने वाले यायावर अपने अस्थाई ठिकानों को लौट रहे थे । उस मोड़ पर इनको देख मैंने कार रोकी और सड़क किनारे रुका, ये चलते रहे। कुछ तस्वीरों के बाद चलते-चलते मेरी बात उस युवा से हुई जिसके कदमों के पीछे ऊंटों का रेला कदमताल कर रहा था । बातचीत की औपचारिकता में पता चला कि काफ़िल राजस्थान से मई माह के अंतिम सप्ताह में चला है। राजस्थान के जोधपुर से 65 किलोमीटर दूर भेंलड़ गाँव के रहने वाले तेजसिंग कुनबे के अगवा हैं, उन्होंने बताया उनके सूबे में पशुओं के चारों का संकट दशकों पुरानी समस्या है लिहाज हर साल गर्मी की शुरुआत होते ही वे दूसरे राज्यों की ओर निकल पड़ते हैं। 

        तेजसिंह कहते हैं उनके जैसे सैकड़ों परिवार हैं जो हर बरस देश के दूसरे प्रांतों का रुख करते हैं । राजस्थानी जहाज ऊँट, भेड़, कुत्तों के बीच जिंदगी जीने की तमाम जरूरतों के साथ सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करते हैं । ये यायावर पूरी जिंदगी सफ़र पर होते हैं जो प्रकृति के रौद्र रूप और उसके सौंदर्य को काफी करीब से देखते और भोगते हैं । पशुचारा की आड़ में व्यवसाय पर निकले ये लोग शिक्षा से कोसो दूर होते हैं । हालांकि अशिक्षा इनके व्यवसाय में आड़े नहीं आती । 

        आपको बता दें कि राजस्थान और गुजरात में पशुपालन का व्यवसाय रायका-रैबारी, बागरी ओर बावरिया समाज से जुड़े हुए लोग करते हैं। ये समाज सालों से यही काम कर रहा हैं। भारत में ऊंट पालने का काम ये सभी जातियां करती हैं किन्तु इनकी ब्रीडिंग रायका- रैबारी लोग ही करवाते हैं। ये ब्रीडिंग राजस्थान के मारवाड़ के साथ-साथ गुजरात के कच्छ में भी होती है। कहते हैं ऊंट रेगिस्तान का जहाज है तो बकरी गरीब की गाय है। भेंड़-बकरी को थोड़ा सा चराकर कभी भी दूध निकाला जा सकता है। मरुभूमि में गरीब व्यक्ति के पोषण का आधार भेंड़-बकरी ही है जो उसके जीवन और अस्तित्व से जुड़ी है। 

              जानकार ये भी बताते हैं सैकड़ों भेड़ और ऊँट लेकर हजारों मील सफ़र तय करने वाले ये लोग रंगमंच की वो कठपुतलियां हैं जिनकी डोर दूर देश में बैठे इनके आकाओं के पास होती है । इनको तो बस चलते जाना है... बस चलते जाना । रास्ता कब ख़त्म होगा ये जानने की ख्वाहिश में पीढियां गुजर गई । 

ऊंट से सीखें जीवन जीने की कला - 

ऊंट रेगिस्तान का जहाज कहलाता है. कठोर वातावरण में भी जिंदगी जीने का हुनर रखने वाला ये जीव हमें जीवन के कई अनमोल पाठ सिखाता है. 

 O रेगिस्तान की भीषण गर्मी और पानी की कमी को सहने वाला ऊंट हमें संयम और कठिन परिस्थितियों में धैर्य रखना सिखाता है.

O ऊंट अपने शरीर में वसा का संचय करके लंबे समय तक भोजन और पानी के बिना रह सकता है. यह हमें दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करने और उन्हें पाने के लिए संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल करने की सीख देता है.

O रेगिस्तान के कठिन रास्तों पर चलने वाला ऊंट हमें कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय का महत्व समझाता है.

O ऊंटों का एक समूह मिलकर चलता है. यह हमें सहयोग और टीम वर्क के बल पर किसी भी चुनौती का सामना करने की सीख देता है.

O ऊंट रेगिस्तान के सीमित संसाधनों में ही अपना जीवन यापन कर लेता है. यह हमें सादगी से जीना और संतुष्ट रहना सिखाता है.

O रेगिस्तान के बदलते तापमान और वातावरण में रहने वाला ऊंट हमें परिस्थिति के अनुसार खुद को ढालना सिखाता है.

O ऊंट अपने चौड़े पैरों से रेत में आसानी से चल सकता है. यह हमें समस्याओं का समाधान खोजने और चुनौतियों से पार पाने की सीख देता है.

O रेगिस्तान में भटकते हुए भी ऊंट पानी की तलाश जारी रखता है. यह हमें धैर्य न खोने और आशा बनाए रखने का पाठ देता है.

O ऊंट भारी सामान ले जाने में सक्षम है. यह हमें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनने की सीख देता है.

O ऊंट आमतौर पर शांत और मिलनसार स्वभाव का होता है. यह हमें दूसरों के साथ सद्भाव से रहने का पाठ देता है.

O ऊंटों की चराई से रेगिस्तान की मिट्टी मजबूत होती है, जिससे मरुस्थलीकरण रुकता है. यह हमें पर्यावरण संरक्षण के महत्व का बोध कराता है.

O ऊंट पालने वाले समुदाय रेगिस्तान में रहने के लिए सदियों से अनूठ तरीके अपनाते आए हैं. यह हमें पारंपरिक ज्ञान के सम्मान का पाठ देता है.

O ऊंट रेगिस्तान में कम पानी और भोजन में ही अपना गुजारा कर लेता है. यह हमें आत्मनिर्भर बनने और संसाधनों का प्रबंधन करने की सीख देता है.

O ऊंट रेगिस्तान में लगातार चलता रहता है. यह हमें जीवन में निरंतर प्रगति करते रहने और सीखने का पाठ देता है.

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