![]() |
सांकेतिक तस्वीर अचानकमार टाईगर रिजर्व से |
बिलासपुर। TODAY छत्तीसगढ़ / ( सत्यप्रकाश पांडेय ) / प्रकृति का संतुलन बना रहे इसके लिये जंगल में बाघ की अनिवार्यता से इंकार नहीं किया जा सकता। अफ़सोस अचानकमार टाईगर रिजर्व में इस संतुलन को बिगाड़ने की दौड़ लगाते कुत्तों पर विभागीय कर्तव्यनिष्ठा घुटनों के बल घिसटती दिखाई दे रही है। बाघों की संख्या को लेकर सुर्ख़ियों में रहा अचानकमार टाईगर रिजर्व अब कुत्तों के हवाले है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।
दरअसल बीती शाम (24 जनवरी 24, बुधवार) आँखों के सामने जो वाक्या घटित हुआ वो अचानकमार टाईगर रिजर्व की बिगड़ती सेहत और भविष्य पर मंडराते संकटों की ओर साफ़-साफ़ इशारा करता है। शाम करीब सवा 4 बजे का वक्त, मैं और मेरे साथ वरिष्ठ पत्रकार, वाइल्डलाइफ बोर्ड (मप्र, छग) के पूर्व सदस्य प्राण चढ्ढा ने छपरवा से लौटते समय अचानकमार सफारी टिकट बुकिंग (पूर्व) काउंटर से थोड़ा पहले चार चीतलों को जंगल के एक हिस्से से सड़क पार कर दूसरे हिस्से की तरफ तेजी से भागते देखा। चार चीतलों में एक विशाल नर, मादा और दो बच्चे। हम कुछ समझ पाते तब तक चार कुत्तों का झुण्ड उसी रफ्तार से उनका पीछा करते हुए सड़क पार कर गया । चीतल का परिवार ज़िंदगी बचाने के लिये पीछे भाग रही मौत से ज्यादा दूर नहीं था, ये दृश्य देखकर मन विचलित हो उठा। आज ज़िंदगी और मौत के बीच हुई रेस में कौन जीता ये हम नहीं जानते क्यूंकि कुछ दूर की दौड़ के बाद दृश्य आँखों से ओझल हो गया।
बियाबान जंगल में भीतर क्या कुछ हो रहा है इसका शोर सुनने के लिये संवेदना जरूरी है, जिन चीतलों को बाघ का आहार माना जाता है उन्हें ग्रामीणों के कुत्ते नोच-खसोटकर सेहतमंद बने हुए हैं। अचानकमार टाईगर रिजर्व में कायदे-कानून पर टांग उठाकर पेशाब करते आवारा कुत्तों या फिर ग्रामीणों के शिकारी कुत्तों की बढ़ती संख्या को लेकर विभागीय महकमें की पेशानी पर चिंता की लकीरें नहीं दिखाई पड़ती। नतीजा, जंगल सफारी के भीतरी मार्ग के अलावा मुख्य मार्ग शिवतराई बैरियर से लेकर केंवची बैरियर तक कुत्तों की चौपाल लगी नज़र आयेगी।
अचानकमार टाईगर रिजर्व बनने के बाद से अब तक केवल 6 गाँवों का पुनर्वास किया जा सका है, अभी 19 गाँवों का विस्थापन होना बाकी है। विस्थापन के सवाल पर अक्सर वन अफसर उन फाइलों का ज़िक्र करते हैं जो पिछले एक दशक से प्रक्रिया, सियासत और सहमति के मैदान में गोल तक पहुँचने की कोशिश कर रही है। अचानकमार टाईगर रिजर्व में रहने वाले ऐसे 19 गाँवों के अधिकाँश ग्रामीणों ने आवारा कुत्तों को अपना न सिर्फ मददगार बना रखा है बल्कि ये भी सम्भव है कि उन कुत्तों के माध्यम से शिकार जैसे जघन्य अपराध को बेख़ौफ़ अंजाम दिया जा रहा हो । शिकार की संभावना को बल इस बात से भी मिलता है कि अब अचानकमार टाईगर रिजर्व में चीतल, साम्भर जैसे वन्यजीव पिछले कुछ सालों की तुलना में काफी कम सख्या में दिखाई पड़ते हैं।
जानकारी के मुताबिक़ कुछ समय पहले तक पशु चिकित्सक डॉक्टर पीके चन्दन की मदद से अचानकमार टाईगर रिजर्व में आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने की कोशिश हुई, काफी हद तक सफलता मिलने की बात भी कही जाती है। पशु चिकित्सक डॉक्टर पीके चन्दन और उनकी टीम टाईगर रिजर्व के भीतर घूमते आवारा कुत्तों को ट्रेंकुलाइज कर बेहोश करती फिर उसे पकड़कर जंगल के बाहर दूर किसी इलाके में छोड़ आती। ये व्यवस्था वर्तमान में बंद है लिहाजा कुत्तों की बढ़ती आबादी और आज़ादी पर विभाग का जमीनी अमला सिर्फ तमाशबीन बना कमजोर वन्यजीवों की मौत का तमाशा देख रहा है। कल शाम की आँखों देखी घटना का जिक्र हमने जब अचानकमार बैरियर पहुंचकर वहां मौजूद वन कर्मियों से किया, जवाब सुनकर विचलित मन और घायल हो गया। जंगल की निगहबानी में लगे वन कर्मी ने बड़ी सहजता और मुस्कुराते हुए कहा 'सर ये तो रोज का है' .... जवाब सुनकर हम आगे बढ़े, शिवतराई पहुंचकर उपसंचालक एटीआर विष्णु नायर से इस घटना और इसके निदान को लेकर मोबाइल पर बातचीत हुई। उन्होंने आश्वस्त किया है कि कुत्तों को पकड़ने का काम फिर शुरू होगा।
अचानकमार टाईगर रिजर्व में राजनैतिक, नौकरशाह, पर्यावरण-विशेषज्ञ, वन्य-प्रेमी, पर्यटक, व्यवसायी और आधुनिक इतिहासकार के अलावा आम-ओ-ख़ास सब घूमते हैं। सतपुड़ा मैकल पर्वत की श्रृंखला के इस हिस्से को मैंने सन 1994 से देखना शुरू किया, तब ये खूबसूरत अभ्यारण्य था। साल 2009 में टाईगर रिजर्व बना, इन तीन दशक में मैंने इस जंगल के बनते-बिगड़ते स्वरूप को काफी करीब से देखा। इन 30 सालों में दर्द से कराहते इस जंगल के हिस्से में सिर्फ और सिर्फ घाव आये। बिगड़ते जंगल के स्वरुप को संवारने, पर्यटन के क्षेत्र में अचानकमार को शिखर तक ले जाने के दावे कईयों बार सुने, अफ़सोस वो दावे कागजी पन्नों में सिमट कर रह गये।
मुझे याद है पिछले बरस अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र को पॉलिथीन मुक्त करने का शंखनाद किया गया, जनजागरूकता के लिए कार्यक्रम भी हुये। पॉलिथीन मुक्त अचानकमार टाईगर रिजर्व क्षेत्र की हकीकत मुख्य सड़क से लेकर सफारी के भीतरी हिस्सों में देखी जा सकती है। पेट्रोलिंग, कब कहाँ और कौन करता है ये करने वाला जानता होगा या अफसर बता सकते हैं। मौजूदा स्टाफ से काम लेना अफसरों की यकीनन मजबूरी है, भले ही वो कर्मी ड्यूटी के वक्त भी शराब के नशे में हो। मुख्यालय से दूर शहरी क्षेत्र में रहने वाले अधिकाँश रेंज अफसर से लेकर मुँह लगे वन कर्मी रोटी जंगल की खाते हैं मगर ड्यूटी जंगल की करने से परहेज रखते हैं। ऐसे में अचानकमार टाईगर रिजर्व में पडोसी राज्य से बाघ लाने की तैयारी भी की जा रही है, वन प्रबंधन की वर्तमान कोशिशों में बाघ की संख्या भविष्य में क्या होगी गर्भ में छिपा जवाब है मगर टाईगर रिजर्व के हालात को सुधारने के लिये जमीनी स्तर पर अभी काफी कुछ करना बाकी है। तब तक अभय कुत्तों का आक्रमण अभ्यारण्य के जीवों पर जारी है .... TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
बता दें कि साल 2017 में बिलासपुर हाईकोर्ट ने चार साल पुरानी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान बाघों की संख्या के सरकारी आंकड़ो पर सवाल उठाए. कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि अचानकमार टाइगर रिजर्व सेंचुरी में 28 बाघ होने का दावा व्यवहारिक नहीं लगता. कोर्ट ने कहा कि वहां इतने बाघ होते तो दिखते जरूर. दरअसल बिलासपुर स्थित अचानकमार टाइगर रिजर्व सेंचुरी में हर महीने सैकड़ों पर्यटक बाघ देखने आते हैं. लेकिन पर्यटकों को मायूसी हाथ लगती है. सुबह से शाम तक घूमने पर भी पर्यटकों को कोई बाघ नजर नहीं आता. जबकि वन विभाग का दावा (2017 से पहले) है कि यहां 19 बाघ है.
आपको बता दें कि रायपुर के नितिन सिंघवी ने 2012 में एक याचिका दायर की थी. याचिका में दो साल के अंदर बाघों के अवैध शिकार और उनकी अचानक मौत पर सवाल उठाए थे.