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फोटो और रिपोर्ट / सत्यप्रकाश पांडेय |
राज्य के रायपुर, दुर्ग, सरगुजा जिले के अलावा बिलासपुर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) को पिछले डेढ़ महीनों से फोटो रिकार्ड किया जा रहा है। बिलासपुर से लगे सीपत, कोटा क्षेत्र के अलावा दुर्ग के पाटन, गिधवा और रायपुर, सरगुजा इलाके में पक्षी प्रेमियों ने न सिर्फ देखा बल्कि इस विदेशी मेहमान की खूबसूरत तस्वीरें भी लीं।
बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) पक्षी की गर्दन व सिर का रंग सफेद, शरीर के बाकी हिस्सों का रंग दूधिया स्लेटी, चोंच व पंजों का रंग सांवला पीला होता है। सिर पर काले रंग की दो धारियां दिखती है, जो बार (छड़) की तरह होती है। इन्हीं बार के कारण इसका नाम बार हेडिड गूज पड़ा है। इसकी आंख भूरे रंग की होती है। नर व मादा एक जैसे दिखते है, लेकिन मादा आकार में नर से थोड़ी छोटी होती है। ये पक्षी मुख्यत कई प्रकार की घास, जड़े, तना, बीज व फल पानी के आसपास उगी वनस्पति से ग्रहण करते हैं।
एक दिन में 16 हजार किमी तक उड़ान भरने वाले विदेशी पक्षी बार हेडेड गूज से छत्तीसगढ़ गुलजार, देखें वीडियो ... @KedarKashyapBJP @ChhattisgarhCMO pic.twitter.com/opSFsemANi
— satyaprakash pandey (@satya4prakash) January 6, 2024
बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) सर्दियों के मौसम में तिब्बत, कजाकिस्तान, मंगोलिया, रूस आदि जगहों से एक लंबा सफर तय करके हिमालय की ऊंची चोटियों के ऊपर से उड़ कर भारत में आते हैं। ये दुनिया के सबसे अधिक ऊंचाई पर उड़ने वाले पक्षियों में तीसरे नंबर के पक्षी हैं, ये लगभग 27 से 29 हजार फीट तक की ऊंचाई पर उड़ कर भारत में पहुंचते हैं। जब इनके गृह क्षेत्र में ठंड बढ़ती है और बर्फबारी शुरू होती है, उस समय ये दक्षिणी एशिया की तरफ प्रवास आरंभ करते है। अपने इस प्रवास से पहले ये काफी अधिक भोजन करके अपने शरीर में काफी वसा जमा कर लेते हैं। जो बाद में इनके सफलता पूर्वक प्रवास में सहायता करता है। लगभग दो माह के समय में ये करीब 8 हजार किलोमीटर दूरी तय करके दक्षिणी भारत तक पहुंचते है। भारत में ये नवंबर-दिसंबर से फरवरी-मार्च तक रहते हैं, इसके बाद वापस अपने स्थान पर लौट जाते हैं।
बार हेडिड गूज (Bar Headed Goose) के प्रजनन का समय मई से जून तक होता है। ये मध्य एशिया में हजारों की संख्या में एक ही जगह पर प्रजनन करते है। ये आमतौर पर एक ही जोड़ा बनाते हैं। ठंडे देशों में काफी ऊंचाई पर अपने घोंसले बनाते है, जबकि अन्य जगह इनके घोंसले नदी या झील के आसपास जमीन पर बने होते हैं। घोंसले में आसपास उगी हुई वनस्पति का ही प्रयोग करते हैं। एक ही क्षेत्र में सामुदायिक घोंसले बनाते है। काफी पक्षी एक साथ रहते हैं। मादा पक्षी 4 से 6 अंडे देती है। कभी-कभी दूसरी मादा भी एक ही घोंसले में अपने अंडे दे देती है। इसके चूजे दो दिन बाद ही चलना शुरू कर देते हैं और तीन-चार दिन में स्वयं भोजन करने लगते है। इसकी संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है, जिसका मुख्य कारण उपयुक्त प्राकृतिक वास का सिकुड़ना, प्रजनन स्थलों का नष्ट होना, अवैध शिकार व अंडों को नुकसान पहुंचना है।
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