कोच्चि | TODAY छत्तीसगढ़ / केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को केरल असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 2007 के तहत जेल में बंद एक महिला को यह ध्यान में रखते हुए रिहा करने का निर्देश दिया है कि उसकी बेटी गर्भावस्था के अंतिम चरण में है और देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
याचिका पर सुनवाई के बाद एक खंडपीठ ने बताया कि आम तौर पर अदालतें हिरासत के आदेशों में हस्तक्षेप नहीं करती हैं, लेकिन जब मौलिक अधिकार शामिल होते हैं तो यह ऐसी शक्ति से रहित नहीं है।
महिला आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के आरोपों के तहत एक दर्जन से अधिक मामलों में शामिल थी और उसे 15 दिसंबर तक हिरासत में रखा गया था।गर्भावस्था के अंतिम चरण में अपनी बेटी के साथ उसने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और गुहार लगाई कि उसकी बेटी की देखभाल करने वाला उसके अलावा कोई नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विशिष्ट परिस्थितियों पर विचार करना होगा, और कहा कि याचिकाकर्ता के पास संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक बेहतर अधिकार है जिसे उसके जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए उचित आधार पर लागू किया जा सकता है। इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने निर्देश दिया कि मां को 14 नवंबर को रिहा किया जाए। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें