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Ramnath Kovind in Home Village : अपने गांव की माटी को लगाया सर माथे, 'कभी कल्पना नहीं की थी कि देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा ...'

TODAY छत्तीसगढ़  / कानपुर / राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इन दिनों अपने गृह जनपद कानपुर में हैं। यहां वह अपनी जन्मभूमि कानपुर देहात के परौंख गांव पहुंचे। यहां राष्ट्रपति का अभिनंदन किया गया। इसके बाद वह स्थानीय मंदिर में पूजा-अर्चना करने पहुंचे। 

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वह अजब नजारा था। हर किसी की आंखें थोड़ी देर के लिए नम सी हो गईं, जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी माटी को सर से लगाया। राष्ट्रपति कोविंद इन दिनों अपने गृह जनपद उत्तर प्रदेश के कानपुर में हैं। यहां वह अपनी जन्मभूमि कानपुर देहात के परौंख गांव पहुंचे। यहां राष्ट्रपति का अभिनंदन किया गया।

राष्ट्रपति ने कहा, 'मैंने सपने में भी कभी कल्पना नहीं की थी कि गांव के मेरे जैसे एक सामान्य बालक को देश के सर्वोच्च पद के दायित्व-निर्वहन का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था ने यह कर के दिखा दिया।'

अपनी जन्मभूमि, अपने गांव पहुंचे राष्ट्रपति भावुक हो गए। उन्होंने कहा, 'मैं कहीं भी रहूं, मेरे गांव की मिट्टी की खुशबू और मेरे गांव के निवासियों की यादें सदैव मेरे हृदय में विद्यमान रहती हैं। मेरे लिए परौंख केवल एक गांव नहीं है, यह मेरी मातृभूमि है, जहां से मुझे, आगे बढ़कर, देश-सेवा की सदैव प्रेरणा मिलती रही।'

राष्ट्रपति ने कहा, 'मातृभूमि की इसी प्रेरणा ने मुझे हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट से राज्यसभा, राज्यसभा से राजभवन व राजभवन से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया।'

राष्ट्रपति कोविंद के कानपुर देहात में अपने पैतृक गांव परौंख के दौरे में बाबासाहेब डॉ बीआर आंबेडकर मिलन केंद्र और वीरांगना झलकारी बाई इंटर कॉलेज पहुंचे। यहां उन्होंने एक समारोह को संबोधित किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि जन्मभूमि से जुड़े ऐसे ही आनंद और गौरव को व्यक्त करने के लिए संस्कृत काव्य में कहा गया है, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जन्म देने वाली माता और जन्मभूमि का गौरव स्वर्ग से भी बढ़कर होता है।

प्रेसिडेंट ने कहा कि गांव में सबसे वृद्ध महिला को माता तथा बुजुर्ग पुरुष को पिता का दर्जा देने का संस्कार मेरे परिवार में रहा है, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या संप्रदाय के हों। आज मुझे यह देख कर खुशी हुई है कि बड़ों का सम्मान करने की हमारे परिवार की यह परंपरा अब भी जारी है।

भारतीय संस्कृति में ‘मातृ देवो भव’, ‘पितृ देवो भव’, ‘आचार्य देवो भव’ की शिक्षा दी जाती है। हमारे घर में भी यही सीख दी जाती थी। माता-पिता और गुरु तथा बड़ों का सम्मान करना हमारी ग्रामीण संस्कृति में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। [एनबीटी ]

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