Slider

स्वागत कीजिये, छत्तीसगढ़ में 'स्पून बिल' आये हैं

               
[TODAY छत्तीसगढ़] / सर्दियों के मौसम में छत्तीसगढ़ में कई तरह के प्रवासी-अप्रवासी पक्षी बतौर मेहमान आते हैं। राज्य के कइयों जलाशय मेहमान परिंदों और दुर्लभ पक्षियों की मेजबानी से गुलजार दिखाई दे रहें है। बिलासपुर जिले का कोपरा जलाशय हो या फिर रायपुर, दुर्ग, बेमेतरा जिले में स्थित वैटलैंड। सभी जगह किसी ना किसी प्रजाति के मेहमान परिंदे आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। ऐसे में चम्मच जैसी चोंच वाले स्पून बिल का राज्य में दिखाई देना पक्षी प्रेमियों के लिए कौतुहल का विषय है । 
चम्मच जैसी चोंच वाले स्पून बिल छत्तीसगढ़ में बेमेतरा जिले के गिधवा, भिलाई समेत कई अन्य जगहों पर इसके पहले भी देखे गए हैं। छत्तीसगढ़ के दुर्ग-बेमेतरा को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित एक जलाशय में चम्मच जैसी चोंच वाले स्पून बिल इन दिनों अच्छी खासी संख्या में देखे जा रहें हैं। स्पून बिल, स्टोर्क प्रजाति के होते हैं और लगभग 18 इंच ऊंचे होते है। यह अमुमन फ्लेमिंगों, सारस जैसे पक्षियों के झुण्ड के बीच ही रहना पसंद करते हैं। स्पून बिल जलाशय के समीप ही पेड़ों पर रहते हैं। जानकार बताते हैं स्पून बिल जिसे हिन्दी में चमचा या डाबिल कहते हैं, पालतू बतख से कुछ बडी होती है, लगभग 18 इंच । इसकी टाँगे और गर्दन लम्बी होती है और रंग एक दम सफेद होता है। इसकी चोंच बहुत ही सुस्पष्ट और काफी पीली चौडी तथा चपटी होती है। इसकी चोंच का सामने वाला सिरा एक स्पेटुला या चपटे चमचे के आकार का होता है। प्रजनन काल में इसके सर पर एक मोरछलनुमा पीली कलगी और गर्दन के आगे नीचे भाग में पीला लम्बा धब्बा उभर आता है।यह चिडिया प्राय: अकेली या 15-20 के समूह में या सारसों या दलदल में रहने वाली अन्य चिडियों के साथ रहना पसंद करती है। यह पक्षी वैसे तो भारत में निवास करती है किन्तु शरद ॠतु में बाहर से भी अन्य स्पून बिल पक्षी के आ जाने से इनकी संख्या बढ ज़ाती है।


स्पून बिल दलदल, झीलों, नदियों के कीचड वाले किनारों पर रहते हैं। यह सुबह-शाम भोजन की तलाश में खूब मेहनत करता है और दोपहर में दलदली किनारों पर आराम कर लेता है। यह अपने भोजन के ठिकाने तक पहुँचने से पहले इकहरी तिरछी कतार में, अथवा अंग्रेजी के वी के आकार में धीरे-धीरे पंख लहराता उडता रहता है। उडते समय इसकी गर्दन और टाँगे तनी रहती हैं। ये बहुत ऊँचाई पर उडते हैं। इनका खाना मेंढक और उनके टेडपोल, घोंघें (मोलस्क जाति के जीव) और पानी के कीडे और कुछ मुलायम वनस्पति होते हैं। इनका पूरा झुंड उथले पानी में घुस जाता है ये अपनी गर्दन आगे और अधखुली चोंच टेढी क़रके, चोंच की नोक से कीचड उलट-पुलट करती इधर-उधर घूमते हैं। यह बोलने के नाम पर हल्का सा गुर्राते-से हैं। यह झील के आस-पास पनकौओं, सारसों, बगुलों के साथ पेड पर तिनकों का चबूतरा नुमा घोंसला बनाते हैं। ये एक बार में 3 अण्डे देते हैं जो रंग में मटमैले सफेद कहीं कहीं गहरे बारीक कत्थई धब्बे लिये होते हैं। इनका नीडन काल जुलाई से नवम्बर के बीच होता है। [तस्वीरें / 10 फरवरी 2019] 

© all rights reserved TODAY छत्तीसगढ़ 2018
todaychhattisgarhtcg@gmail.com