जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, मूलभूत अधिकारों में महिलाओं के अधिकारों को भी शामिल किया जाना चाहिए, एक व्यक्ति का सम्मान समाज की पवित्रता से अधिक जरूरी है, महिलाओं को नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें समाज के हिसाब से सोचना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि महिला-पुरुष के अधिकार समान है, जबकि आईपीसी 497 महिला को पुरुष के अधीन बताता है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पति पत्नी को अपने संबंधों में ईमानदार होना जरूरी है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि एडल्टरी अपराध नहीं, लेकिन तलाक का आधार हो सकता है, चीन जापान में भी एडल्टरी अपराध नहीं है। आईपीसी की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह से अलग संबंध बनाना गलत नहीं है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर विवाहित महिला के पति की सहमति से कोई विवाहित पुरुष संबंध बनाता है तो वह अपराध नहीं है, तो क्या महिला पुरुष की निजी संपत्ति है? जो वो उसके इशारे पर चले। इस पुरे मामले पर TODAY छत्तीसगढ़ ने अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े कुछ बुद्धिजीवियों से बात करके उनकी राय जानी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिलासपुर उच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता और समाज सेविका निरुपमा बाजपेयी का मानना है कि - "497 में पहले भी महिला एफआईआर नही कर सकतीं थी, सिर्फ़ पुरूष ही पत्नी से संपर्क बनाने के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर सकता था। यह मानकर कि पत्नी उसकी संपत्ति है जिसे दुसरे पुरूष ने छीना या अपराध किया है। अब पत्नी के समानता के अधिकारो की रक्षा होगी लेकिन साथ मे डर ये भी है की विवाहिता महिला से बलात्कार होगा और पुरुष उसे सहमति सिद्ध करके अपराध से बरी हो सकता है। तलाक का आधार होने पर पत्नी के विरुद्ध पति तलाक लेकर उसे भरण-पोषण देने से बचेगा।"
इस फैसले पर शिक्षिका आभा चौधरी का कहना है - "मैं इस तार्किक फैसले से सहमत हूं, आज बदले हुए परिदृश्य में सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागतेय है। आज लोग दोहरी मानक जीवन शैली का नेतृत्व कर रहे हैं, महिला की स्थिति समानता की ओर बढ़ी है। हाँ भविष्य में महिलाएं अपने लड़के के दोस्त के साथ यौन वासना के आधार पर किसी भी पुरुष मित्र के साथ शामिल होती हैं तो आसानी से पति द्वारा तलाकशुदा किया जा सकता है। अगर वह स्वतंत्र महिला नहीं है तो उसे और अधिक दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ेगा। नैतिकता के आधार पर लोगों को इस निर्णय को स्वीकार करना चाहिए।"
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने अडल्टरी (व्यभिचार) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को 'महिला विरोधी' बताया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इसे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताते हुए मालीवाल ने कहा - 'इस तरीके से आपने देश के लोगों को शादीशुदा होते हुए भी दूसरों के साथ अनुचित संबंध रखने का खुला लाइसेंस दे दिया है। इस फैसले के बाद शादी की पवित्रता का औचित्य क्या है?' इस मामले में अपनी राय व्यक्त करते हुए दूरदर्शन एंकर और वन्यजीव छायाकार गोपा बनर्जी सान्याल कहती हैं कि - "समय के साथ साथ समाज भी बदलता है और उसके अनुरूप कानून में बदलाव भी जरूरी है।आज जहाँ स्त्री समानता और स्वतंत्रता की मांग हो रही है ऐसे समय मे सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्वागत योग्य है। कानून भले ही कोई छूट दे ,पर समाज के अपने नैतिक मापदंड होते है,जिसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता।"
इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था- एडल्टरी एक अपराध ही रहना चाहिए, इसे खत्म करने से विवाह की पवित्रता पर असर पड़ेगा। शाइना जोसफ ने आईपीसी की धारा 497 की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए कहा था कि इस कानून के तहत केवल पुरुषों को ही सजा होती है। उनको 5 साल तक की सजा देने का प्रावधान है जबकि महिलाओं पर उकसाने तक का मामला दर्ज नहीं हो सकता है।
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