गोंदिया / यूं तो बाघ हर किसी के आकर्षण का विषय है. जंगल में सफारी पर नमा जाने के बाद बाघों को देखकर पर्यटकों की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच जाती है. उनकी तस्वीरें खींचकर सोशल मीडिया पर अपलोड की जाती हैं. जिससे शिकारियों व को बाघों की लोकेशन मिलती है और उससे बाघों के शिकार का डर रहता है. अतः सुरक्षा की दृष्टि से व्याघ्र प्रकल्प में बाघों का नामकरण व उनके स्थान की घोषणा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. हालाँकि NTCA के दिशा निर्देशों को ताक पर रखकर पर्यटकों से ज्यादा तस्वीरें देश के विभिन्न टाईगर रिजर्व के गाईड और ड्राईवर पोस्ट करते हैं। ऐसा करने से उनका व्यापार बढ़ता है लेकिन उनकी आर्थिक मजबूती के पीछे बाघ असुरक्षित और अक्सर खतरे में होता है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने बाघों के नामकरण के लिए नियम बनाए हैं. इसके मुताबिक किसी बाघ का नाम C-1, C-2, T-1, T-2 रखे जाने की उम्मीद है. जिन बाघों का कोई नाम नहीं होता उनकी पहचान कोडवर्ड से की जाती है. जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क सहित देश के विभिन्न अभ्यारण्य एनटीसीए नियमों का पालन करते हैं. जारी पत्रक के मुताबिक अब किसी भी बाघ का नामकरण नहीं किया जाएगा और किसी भी बाघ की पहचान नाम से नहीं की जाएगी.
अगर कोई बाघों का नाम बताता है तो सबूत मिलने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इसी के तहत यह फैसला लिया गया है. साथ ही सोशल मीडिया में फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और अन्य साइट्स से पर्यटकों और वन्यजीव प्रेमियों से जुड़े बाघों के नाम हटाने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही पर्यटकों को सोशल मीडिया पर बाघों की तस्वीरें और लोकेशन दिखाने पर भी रोक लगा दी गई है. प्रशासन के नियमों का उल्लंघन करने पर रिसॉर्ट, होम स्टे मालिक, टूरिस्ट गाइड और जिप्सी चालक समेत विभाग के कर्मचारी या गाइड के खिलाफ निलंबन के साथ स्थायी प्रतिबंध का आदेश दिया जाएगा. सभी गाइड, जिप्सी चालकों, रिसॉर्ट मालिकों के साथ होम स्टे प्रदाताओं को नियमों की जानकारी देते हुए एक पत्रक भेजा गया है.
"सोशल मीडिया और खासतौर पर फेसबुक और वाॅट्स एप्प पर बाघों की तस्वीरों के लगातार वाइरल होने पर नेशनल टाइगर कंनसर्वेशन एथोरिटी (एनटीसीए) ने आपत्ति जताई है। पिछले कुछ सालों में बाघों की तस्वीरों को सोशल साइट्स पर शेयर करने का चलन बढ़ा है। इस पर ध्यान देते हुए बाघों की सुरक्षा के लिये काम कर रही सर्वोच्च संस्थान एनटीसीए ने देशभर के सभी चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डनों को पत्र लिखकर अपने इलाकों में खासतौर पर अपने स्टाफ को इस तरह की तस्वीरों को शेयर करने से मना करने को कहा है।पत्र में एनटीसीए ने कहा है कि इस पिछले कुछ समय से बाघों की जंगलों में तस्वीरें और कैमरा ट्रेप में कैद तस्वीरें सोशल मीडिया में शेयर करती देखी गई हैं। ये बाघों की सुरक्षा के लिये हानिकारक है क्योंकि इनसे शिकारियों को बाघों की लोकेशन का अंदाजा लग सकता है।"
नाम लोकप्रिय होने पर शिकारी हो जाते हैं सक्रिय मानवीय कारणों से बाघों या अन्य वन्यजीवों की वनों की कटाई से उन जीवों को लाभ की बजाय अधिक नुकसान होता है. यह वन्यजीवों पर मानवीय भावनाओं को थोपता है. लोग बाघों को पालतू जानवर मानते हैं और वे बाघों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करते हैं. ये सब खतरनाक हो सकता है. इसके अलावा, यदि बाघों का नाम अधिक लोकप्रिय हो जाता है, तो शिकारियों के गिरोह सक्रिय हो जाते हैं और उन्हें पकड़ने की योजना बनाते हैं. कई बाघों का नाम वन्यजीव प्रेमियों द्वारा रखा गया है जो नियमित सफारी लेते हैं. इसमें माया, छोटी, मटकासुर, तारा, माधुरी, सोनम, शर्मिली, जूनाबाई, सूर्या आदि नाम चर्चा में थे .