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दीपावली : तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने के लिए उल्लुओं की बलि लेते हैं, शिकार करना दंडनीय अपराध है

 दीपावली में उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है। पक्षियों का व्यापार करने वाले उल्लुओं को मुँह माँगे दाम पर बेचते हैं। जानकार बताते हैं कि पक्षियों का व्यापार करने वाले कई दुकानदार इसके लिए तंत्र क्रिया करने वालों से एडवांस रूपये भी ले लेते हैं। दीपावली के दिन तांत्रिक तंत्र-मंत्र को जगाने का काम करते हैं। इसके लिए वे उल्लुओं की बलि देते हैं। वन अधिनियम के तहत उल्लुओं का शिकार करना दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके उल्लुओं की खरीद-फरोख्त बेखौफ़ होती है। तंत्र-मंत्र की भेंट चढ़े उल्लूओं का कुनबा आज संकट में है, उल्लू की कई प्रजातियाँ अब दिखाई भी नहीं पड़ती। इस दीपावली कोशिश कीजियेगा हमारे इर्द-गिर्द उल्लू बलि ना चढ़े, अगर हम एक उल्लू भी बचाने में कामयाब रहे तो समझियेगा पर्यावरण को हम शुभ दीपावली का सबसे बेहतरीन उपहार दे पाए।    

दीपावली में उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है। पक्षियों का व्यापार करने वाले उल्लुओं को मुँह माँगे दाम पर बेचते हैं।

बिलासपुर। 
 TODAY छत्तीसगढ़  /  विश्व में उल्लुओं की करीब 250 प्रजातियां हैं, इनमें से 36 प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं। ये सभी 36 प्रजातियां वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। अतः पक्षियों का शिकार करना, व्यापार करना, तस्करी करना या किसी अन्य तरह से उनका शोषण करना एक दंडनीय अपराध हैं। लेकिन कानून व्यवस्था के बावजूद भी, विशेषकर ग्रामीण परिवेश में, अंधविश्वासों, कुरीतियों और कुप्रथाओं के चलते सैंकडों निर्दोष उल्लू हर साल मार दिये जाते हैं। भारत में, उल्लुओं की ऐसी 16 प्रजातियां की पहचान की गयी है जिनकी आमतौर पर तस्करी की जाती है। 

इन 16 प्रजातियों का सबसे ज्यादा शिकार...

ओरिएंटल स्कोप्स आउल, मोटल्ड वुड आउल, ब्राउन वुड, कॉलार्ड स्कोप्स, टॉनी फिश आउल, स्पॉट-बैलिड ईगल-आउल, स्पॉटेड आउलेट, जंगल आउलेट, ब्राउन हॉक आउल, बार्न आउल, कॉलर्ड आउलेट, एशियन बॉर्ड आउलेट, ब्राउनफिश आउल, डस्की-ईगल आउल, ईस्टर्न ग्रास आउल, रॉक फिश आउल।

ये उल्लू अंधविश्वास और रीति रिवाजों से पीड़ित हैं जिनका अक्सर उपयोग स्थानीय लोग करते हैं जो तांत्रिक कहलाते हैं। हर साल, तांत्रिकों के कारण और अंधविश्वास के चलते, कुलीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने , वर्जनाओं से जुड़े रीति रिवाजों एंव अनुष्ठानों की पूर्ति के लिये सैकड़ों उल्लुओं को बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है या फिर उनके विभिन्न अंगों जैसे खोपड़ी, पंख, हृदय, रक्त, आंख, अंड़े एंव हड्डियों इत्यादि का उपयोग कर ऐसे अनुष्ठानों को पूरा किया जाता है। 

आज उल्लुओं को ऐसे मारना एक मनोविकृति है, क्यों कि उल्लू एक शिकारी पक्षी हैं, जो चूहे, छछूंदर और हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार कर, पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। इसलिये इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी कहते हैं। उल्लू धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते है। 

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