TODAY छत्तीसगढ़ / बिलासपुर / एक आदिवासी महिला अपने शिक्षक पति की मौत के बाद लंबित देयकों का भुगतान पाने के लिए भटकती रही। आर्थिक तंगी के चलते वह अपने जवान बेटे का इलाज भी नहीं करा पाई और वह चल बसा। आखिर 19 साल के बाद उसे हाईकोर्ट से राहत मिली है। कोर्ट ने ग्रेच्युटी, पेंशन, जीपीएफ आदि का भुगतान करने का आदेश दिया गया है।
बस्तर के अंतागढ़ इलाके के रामजी राम धनेलिया सरकारी सकूल में शिक्षक थे। उनकी सन 2002 में सेवाकाल के दौरान ही मौत हो गई। इसके बाद आर्थिक तंगी से जूझ रही उनकी पत्नी कुशंती बाई बीमा राशि, जीपीएफ आदि प्राप्त करने के लिए विभाग में आवेदन लगाया। अधिकारियों ने उनकी फरियाद नहीं सुनी। कई साल तक ठोकरें खाने के बाद जब उसे कोई भी भुगतान नहीं मिला तो उसने अधिवक्ता जीत पटेल के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाइकोर्ट ने मामला दायर होते ही शासन को नोटिस जारी किया और 25 हजार रुपए की अनुग्रह राशि तथा 75 हजार रुपए बीमा की रकम का तत्काल भुगतान करने का आदेश दिया। इसी वर्ष याचिकाकर्ता कुशंती बाई को उक्त रकम दी गई।
शासन का जवाब आने के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता के देयकों के भुगतान से संबंधित सभी प्रक्रियाओं को चार माह के भीतर निराकृत किया जाए। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि भुगतान में चार महीने से अधिक बिलंब होता है तो इसका ब्याज भी याचिकाकर्ता को दिया जाए, जिसकी वसूली संबंधित अधिकारी से की जाए। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
दफ्तरों से लेकर कोर्ट तक की इस लड़ाई में बीते 19 साल के दौरान याचिकाकर्ता कुशंती बाई के जवान बेटे की इलाज के अभाव में मौत हो गई। आर्थिक तंगी के बीच ही उसे अपनी बड़ी बेटी की शादी करनी पड़ी और छोटी बेटी अभी अविवाहित है, जो उसके साथ रहती है। उसे आर्थिक दबाव के बीच आर्थिक दबाव के बीच दूरस्थ गांव से न्याय के लिए बार-बार जिला मुख्यालय में चक्कर भी लगाना पड़ा।

