वायर टेल्ड स्वैलो को स्थानीय भाषा में अबाबील भी कहते है। स्वैलो की यह प्रजाति सारे भारत में पाई जाती है। हिमालय में यह लगभग तीन हजार मीटर तक की ऊंचाई तक देखे जा सकते है। भारत में यह एक स्थानीय पक्षी है, लेकिन सर्दियों में ये पक्षी स्थानीय प्रवास भी करते है। इस पक्षी के शरीर का ऊपरी हिस्से का रंग चमकीला नीला, शरीर का नीचे का हिस्सा दूधिया सफेद व सिर का ऊपरी हिस्सा गहरा बादामी रंग का होता है। इसकी आंख की पुतली गहरी भूरी, चोंच व पंजे काले रंग के होते है। इसके पंख लंबे व पीछे की तरफ बढ़े हुए दिखते है।
TODAY छत्तीसगढ़ / वायर टेल्ड स्वैलो [Wire-tailed swallow ] को स्थानीय भाषा में अबाबील भी कहते है। स्वैलो की यह प्रजाति सारे भारत में पाई जाती है। हिमालय में यह लगभग तीन हजार मीटर तक की ऊंचाई तक देखे जा सकते हैं भारत में यह एक स्थानीय पक्षी है, लेकिन सर्दियों में ये पक्षी स्थानीय प्रवास भी करते हैं। इस पक्षी के शरीर का ऊपरी हिस्से का रंग चमकीला नीला, शरीर का नीचे का हिस्सा दूधिया सफेद व सिर का ऊपरी हिस्सा गहरा बादामी रंग का होता है। इसकी आंख की पुतली गहरी भूरी, चोंच व पंजे काले रंग के होते हैं। इसके पंख लंबे व पीछे की तरफ बढ़े हुए दिखते हैं।
इसकी पूंछ के दो पंख लंबे व पीछे की तरफ बढ़े हुए तार की तरह लंबे हो जाते हैं, जिसके कारण ही इसका नाम वायर टेल्ड पड़ा है। नर व मादा लगभग एक जैसे दिखते हैं। मादा की पूंछ के तारनुमा पंखों की लंबाई नर पक्षी से कम होती है। ये पक्षी जोड़े या एक छोटे समूह में रहते हैं। ये पक्षी मुख्यत: खुले क्षेत्रों, खेलों, नहरों व झीलों के आस-पास रहना पसंद करते है। सुबह व शाम के समय ये एक समूह में पानी के आसपास तारों पर बैठे दिखाई देते हैं।
ये तेज उड़ान भरते हैं और हवा में उड़ने के दौरान ही कीट-पतंगों को खाते रहते हैं। ये तार से बार-बार उड़ान भरते हैं और उड़ते हुए कीट पतंगों को खाकर वापस आकर बैठ जाते हैं। जब ये पानी के ऊपर उड़ते हैं तो इनकी उड़ान काफी नीची होती है। इसका मुख्य कारण पानी की सतह पर उड़ते कीट होते हैं। ये उड़ान के दौरान ही पानी भी पी लेते है। इन पक्षियों के प्रजनन का समय मार्च से सितंबर तक होता है। ये पक्षी एक ही साथी के साथ जोड़ा बनाते हैं। नर व मादा मिलकर अपना घोंसला गीली चिकनी मिट्टी से बनाते हैं। घोंसला एक कपनुमा आकार का होता है। दोनों मिलकर झील व नहरों आदि के किनारों से चिकनी मिट्टी अपनी चोंच में उठा कर लाते हैं। इनके घोंसले आमतौर पर दीवारों या पुल आदि के नीचे बने होते हैं। घोंसले की सुरक्षा को देखते हुए आमतौर पर सीधी खड़ी दीवारों पर छत के पास बनाते है। मादा तीन से चार अंडे देती है। एक ही घोंसले की जगह को बार-बार प्रयोग कर में लेते हैं। नर व मादा मिलकर चूजों को पालते है। प्रजनन के दौरान नर पक्षी मधुर आवाज निकालते हैं।
तस्वीरें / सत्यप्रकाश पांडेय, वाइल्डलाइफ फोटोजर्नलिस्ट [छत्तीसगढ़]