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अरण्य भवन में बैठे अफ़सर वनमंत्री को रखते हैं हाशिये पर, दो साल से मंत्री की अनुशंसा का कागज़ दबा है किसी फ़ाइल में

TODAY छत्तीसगढ़  /  रायपुर / वन्यजीवों और वनों की रक्षा करने के अपने प्राथमिक कार्यों को दरकिनार कर दूसरे कार्यों में लगे वन विभाग के गैर जिम्मेदार और आला अधिकारी अब वनमंत्री को भी हाशिये पर रखते हैं।  राज्य के कुछ मनमौजी और मनमाफिक अफसर नियम कायदों को ताक पर रखकर सरकारी काम को अंजाम दे रहें हैं। आलम यह है कि विभाग के उच्च पदों पर बैठे अधिकारी विभागीय मंत्री तक को तवज्जो नहीं देते, विभाग के मंत्री की अनुशंसा की फ़ाइल शायद कहीं धूल खाती पड़ी हो।  

पुष्ट जानकारी के लिहाज से  2 वर्ष पूर्व राज्य के वनमंत्री मोहम्मद अकबर की जानकारी में लाया गया था की राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने वर्ष 2011 में एक गाइडलाइंस जारी की है कि 'जब भी किसी वन में तेंदुआ पकडाये तब उसे पुनः वन में छोड़े जाने से पहले तेंदुए पर अनिवार्य रूप से रेडियो कलर लगाया जावे ताकि उसके मूवमेंट की जानकारी रखी जा सके और उसके व्यवहार का अध्ययन किया जा सके.' राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने यह भी मार्गदर्शन दिया था कि तेंदुआ को उसी जंगल में छोड़ा जाए जहां से वह पकड़ा गया है क्योंकि तेंदुए की मूल प्रवृत्ति वापस अपने आवास क्षेत्र में लौटने की रहती है. दूर के जंगल में छोड़ने पर वह अवसाद में आ जाता है। उस अवसाद के चलते वह पुनः अपने मूल आवास क्षेत्र की तरफ लौटने का प्रयत्न करता है, जिससे तेंदुआ और मानव द्वंद जैसी अन्य प्रकार की गंभीर समस्याएं उत्पन्न होती है. 

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राज्य के वन मंत्री की जानकारी में लाया गया कि वर्ष  2011 की राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की गाइडलाइंस के बाद भी तेंदुआ के लिए रेडियो कॉलर खरीदा ही नहीं गया है। वन्यजीवन और पर्यावरण के प्रति सजग रहने वाले रायपुर के नितिन सिंघवी ने एक पत्र के माध्यम से वन मंत्री मोहम्मद अकबर को यह भी सुझाव दिया कि प्रदेश में भालूओं को पकड़कर वापस वन क्षेत्रों में छोड़ने के बहुत प्रकरण होते हैं अतः भालूओं में भी रेडियो कॉलर लगाकर जंगल में छोड़ा जावे, वन मंत्री को सुझाव दिया गया प्रभावित कि प्रत्येक वृत में आवश्य संख्या में रेडियो कालर उपलब्ध करवाया जाये. मामले की गंभीरता और वन्यजीवन के प्रति संवेदनशील वन मंत्री ने तत्काल विभाग के आला अफसरों को रेडियो कालर लगाने संबंधी पत्र पर अपनी अनुशंसा की, वन मंत्री दवारा अनुशंसित वह पत्र मुख्यालय अरण्य भवन, अटल नगर में जुलाई 2019 में पहुंच गया। मगर इस राज्य के वन और वाइल्डलाइफ के प्रति अपनी कर्तव्यनिष्ठा का ढोल - मजीरा बजाने वाले अफसरों ने आज तक रेडियो कालर की खरीदी नहीं करवाई। 

 बिना रेडियो कालर लगाए छोड़ा है मादा तेंदुआ को - 

सीतानदी अभ्यारण में धमतरी वनमंडल की टीम ने कल 22 मई 2021 को ही एक मादा तेंदुआ को नगरी ब्लॉक से पिंजरे में पकड़कर सफलता पूर्वक सीतानदी अभ्यारण क्षेत्र में छोड़ा है। मुख्यालय द्वारा रेडियो कालर नहीं मुहैया कराने के कारण उस मादा तेंदुवे को बिना रेडियो कॉलर लगाए छोड़ दिया गया। 

दो परिस्थितियों में छोड़ते हैं तेंदुआ और भालू को वापस जंगल में -

कई बार तेंदुआ और भालू को चोटिल होने पर या कोई अन्य कारण से पकड़कर कुछ दिन रेस्क्यू सेंटर जैसे कि जू में रख के इलाज कराया जाता है और ठीक होने पर पुनः जंगल में छोड़ दिया जाता है. वर्ष 2017 से ऐसे लगभग 20 प्रकरण हो चुके हैं जिनमें तेंदुआ और भालू को वापस जंगल में छोड़ा गया है. दूसरी परिस्थिति में तेंदुआ और भालू का लगातार किसी गांव में आने से और अन्य परिस्थितियों में पकड़ कर फील्ड स्तर के अधिकारियों द्वारा निर्णय लेकर, बिना रेस्क्यू सेंटर लाए स्वस्थ जाँच करा कर, सीधे उचित क्षेत्र में छोड़ दिया जाता है.

वन विभाग की नीरसता के कारण नहीं बढ़ रही संख्या - सिंघवी 

रायपुर के वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने TODAY छत्तीसगढ़  से बातचीत करते हुए बताया कि वे पिछले पांच सालों से रेडियो कॉलर लगाने की मांग कर रहे है। कई बार अधिकारियों से भी मिल चुके है, कई पत्र लिख चुके है. अधिकारी वनमंत्री जी की अनुशंसा भी नहीं मानते, गरियाबंद में तेंदुआ पकड़ते हैं और बिना उचित अध्ययन कराएं अचानकमार टाइगर रिजर्व में छोड़ देते हैं. अन्धाधुन अवैध शिकार और रेडियो कालर नहीं लगने से, मोनिटरिंग नहीं होने के कारण तेंदुए की संख्या नहीं बढ़ रही है. 2014 में छत्तीसगढ़ में 846 तेंदुए थे जो कि 4 साल में 0.75 प्रतिशत बढ़ कर 2018 में 852 हुए जबकि मध्य प्रदेश में 2014 में 1817 तेंदुए थे जो की 2018 में 88 प्रतिशत बढ़ कर 3421 हो गए पूरे देश में इन 4 सालों में तेंदुआ का सफलतापूर्वक संरक्षण करके उनकी संख्या बढ़ा दी गई है परंतु छत्तीसगढ़ वन विभाग की नीरसता बरकरार है।  

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