TODAY छत्तीसगढ़ / देश की राजधानी दिल्ली के निर्भया दुष्कर्म मामले के फांसी की सजा पाने वाले दोषी अक्षय सिंह की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने आज खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि जो तर्क बचाव पक्ष की तरफ से दिए हैं, उनपर पहले भी सुनवाई हो चुकी है और याचिका में उठाई गई बातों का कोई आधार नहीं मिला है. ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद निर्भया के दोषियों के खिलाफ डेथ वॉरंट जारी होने का रास्ता साफ माना जा रहा है. कोर्ट के इस फैसले पर निर्भया की मां ने कहा है कि वह खुश हैं और वह अदालत के फैसले का सम्मान करती हैं। आपको बता दें कि इससे पहले न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने करीब एक घंटे तक याचिकाकर्ता और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला सुनाया है।
इससे पहले अक्षय सिंह की ओर से पेश वकील ए पी सिंह ने दलीलें दी और कहा कि मामले की जांच सवालों के घेरे में है। उन्होंने कहा,“हमारे पास नए तथ्य हैं। मीडिया, राजनीति और जनता के दवाब में अक्षय को दोषी ठहरा दिया गया।” TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
सिंह ने कहा कि पीड़ति का दोस्त मीडिया से पैसे लेकर इंटरव्यू दे रहा था। इससे केस प्रभावित हुआ। वह विश्वसनीय गवाह नहीं था। इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि इसका इस मामले से क्या संबंध है। वकील ने कहा- वह लड़का मामले में इकलौता चश्मदीद गवाह है। उसकी गवाही मायने रखती है।
Asha Devi, mother of 2012 Delhi gang-rape victim: The court has given them (convicts) to time to seek remedy. Court is only looking at their (convicts) rights and not ours. There is no guarantee that a judgement will be given on next date of hearing. pic.twitter.com/Yk6ZmQRLJH— ANI (@ANI) December 18, 2019
सिंह ने रेयान इंटरनेशनल केस में स्कूल छात्र की हत्या का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा,“इस मामले मैं बेकसूर को फंसा दिया गया था। अगर सीबीआई की तफ्तीश नहीं होती तो सच सामने नहीं आता। इसलिए हमने इस केस मे भी सीबीआई जांच की मांग की थी।” बाद में दिल्ली पुलिस की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि संबंधित मामले में मानवता शर्मसार हो गई थी और भगवान को भी इस तरह के हैवान बनाने के लिए खुद को शर्मिंदा होना पड़ा होगा। उन्होने किसी प्रकार की राहत दिए जाने का विरोध किया।