TODAY छत्तीसगढ़ / इंडियन मुस्लिम लीग ने नागरिकता संशोधन विधेयक के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है. गुरुवार को उसकी ओर से एक याचिका दायर की गई है. सोमवार को लोकसभा ने और बुधवार को राज्यसभा ने इस बिल को बहुमत से मंज़ूर किया है, यह बिल 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव के लिए लाया गया है.
Indian Union Muslim League (IUML) will file a writ petition against #CitizenshipAmendmentBill2019 in Supreme Court today.— ANI (@ANI) December 12, 2019
इस बदलाव के बाद भारत के तीन पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, जैन, पारसी, ईसाई, बौद्ध और सिखों को भारत की नागरिकता दिए जाने का रास्ता खुल गया है. मुस्लिम लीग के सांसदों पीके कुन्हालिकुट्टी, ईटी मोहम्मद बशीर, अब्दुल वहाब और केएन कनी ने सामूहिक तौर पर यह याचिका दायर की है.
याचिका दायर करने वालों का कहना है कि वे किसी को शरण दिए जाने के ख़िलाफ़ नहीं हैं लेकिन इस सूची से मुसलमानों को अलग रखना उनके साथ धर्म के आधार पर भेदभाव है जिसकी अनुमति भारत का संविधान नहीं देता. याचिका दायर करने वाले के वकीलों का कहना है कि यह संशोधन संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है, संविधान की प्रस्तावना में लिखा गया है कि भारत एक सेकुलर देश है नागरिकता को धर्म से जोड़ा जा रहा है जो सही नहीं है. TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें
.@iumlofficial moved the Supreme Court Thursday challenging the Citizenship (Amendment) Bill, saying it violates the fundamental Right to Equality of the Constitution. #CABPassed #CAB2019 https://t.co/s4qZFhL5lQ— Deccan Herald (@DeccanHerald) December 12, 2019
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और सरकार से जुड़े लोगों ने बार-बार दावा किया है कि इसका भारत के अल्पसंख्यकों से कोई संबंध नहीं है, इससे उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह संशोधन तीन देशों में बसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए है और मुसलमान इन तीन देशों में अल्पसंख्यक नहीं हैं.
याचिका में श्रीलंका के तमिल हिंदुओं और बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों को शामिल न किए जाने पर एतराज़ किया गया है और इसे भेदभाव बताया गया है.
IUML National Treasurer Janab @AbdulWahabPV MP addressing Rajya Sabha on #CAB.— Indian Union Muslim League (@iumlofficial) December 11, 2019
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याचिका दायर करने वालों की मांग है कि इस संशोधन विधेयक को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया जाए. लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद अब इस बिल को क़ानून का रूप देने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है. [एजेंसी]