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पोप के पिछले साल के आंसू, और इस साल...

क्रिसमस के हफ्ते भर पहले पोप ने यह ऐलान किया है कि नाबालिकों के यौन शोषण में चर्च अब गोपनीयता के नियम का इस्तेमाल नहीं करेगा। अब तक चर्च में एक ऐसा नियम लागू था जिसके तहत पादरियों द्वारा बच्चों के यौन शोषण के मामलों को छुपा दिया जाता था और किसी भी देश में चर्च सरकारी जांच एजेंसियों को ऐसे मामलों न खबर देते थे, और न ही जांच में सहयोग करते थे। चर्च का यह मानना था कि ऐसा करके वे यौन शोषण के पीडि़तों की निजता, और अभियुक्तों की प्रतिष्ठा की रक्षा करता था। अब वैटिकन से जारी नए आदेश के मुताबिक चर्च ने यह बंदिश हटा ली है। 
हम बरसों से चर्च, और बाकी धर्मों की भी बहुत सी संस्थाओं में बच्चों और महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ लिखते आए हैं, और उन कड़ी कार्रवाई की मांग करते रहे हैं। चर्च के भीतर भी बहुत से नेता ऐसी मांग करते रहे हैं, और यह ताजा फेरबदल बच्चों के यौन शोषण में कमी लाने में मदद कर सकता है। चर्च के ही एक सबसे अनुभवी आर्चबिशप का कहना है कि इससे जांच में आने वाली अड़चनें घटेंगी और पारदर्शिता बढ़ेगी। हमने करीब एक बरस पहले इस मामले पर पोप और चर्च की कड़ी आलोचना के साथ उस वक्त की खबरों पर लिखा था- ''पोप फ्रांसिस ने चिली में गिरजाघरों के पादरियों द्वारा दुष्कर्म और यौन शोषण के शिकार बच्चों से मुलाकात की और उनकी आपबीती सुनी। दर्दभरी दास्तां सुनते समय पीडि़त बच्चों के साथ पोप भी रो पड़े। बाद में उन्होंने कहा, यह पीड़ा और शर्म का विषय है। पोप ने बच्चों के कल्याण के लिए प्रार्थना की। चर्च पदाधिकारियों के उत्पीडऩ की घटनाओं से चिली में भारी गुस्सा है। सोमवार को पोप का दौरा शुरू होने से पहले लोगों ने विरोध स्वरूप दो चर्चों में आगजनी भी की। दौरे में यौन शोषण के शिकार लोगों से पोप की यह दूसरी मुलाकात है। इससे पहले 2015 में फिलेडेल्फिया की यात्रा में पोप फ्रांसिस यौन शोषण के शिकार लोगों से मिले थे। पोप की इस ताजा मुलाकात पर अर्जेटीना के बिशप की ओर से अटपटी टिप्पणी आई है। उन्होंने कहा, पोप हमेशा चर्च पदाधिकारियों के यौन शोषण की चर्चा करते हैं। वह राजनीतिज्ञों के ऐसे ही आचरण पर कभी नहीं बोलते।''
हमने उस वक्त लिखा था- ''अब सवाल यह उठता है कि क्या पोप के ऐसे आंसुओं की कोई कीमत है? जब तक किसी देश के कानून के खिलाफ जुर्म करने वाले ऐसे पादरियों को पुलिस, अदालत और जेल का सामना न करना पड़े, तब तक उनसे जख्मी हुए बच्चों के लिए आंसू बहाना एक फिजूल का पाखंड है। यह मामला अपने किस्म का अकेला नहीं है, और वेटिकन के तहत आने वाले ईसाई संगठनों में स्कूलों, हॉस्टलों, और चर्चों में पहले भी ऐसा होते आया है, और ऐसे हर बलात्कारी को चर्च बचाते भी आया है। अभी-अभी लंदन में कुछ मदरसों में बच्चियों के साथ ऐसा हुआ, और किसी धार्मिक संगठन ने उसके खिलाफ कुछ नहीं किया। लोगों को याद होगा कि कुछ बरस पहले भारत के बाहर सबसे मशहूर हिन्दू संगठन इस्कॉन के हॉस्टलों में इसी तरह बच्चों का यौन शोषण सामने आया था, और उस वक्त शायद इस संगठन ने सैकड़ों करोड़ का हर्जाना देकर अदालत के बाहर उस मामले को खत्म करवाया था। अमरीकी कानून इस तरह के जुर्म पर भी रूपयों से समझौता अदालत के बाहर करने देता है, लेकिन दुनिया के बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर यौन शोषण को हर्जाना देकर छोड़ा नहीं जा सकता।''
हमने लिखा था- ''हमारा यह मानना है कि पोप सरीखे दुनिया के सबसे अधिक अनुयायियों वाले अकेले धार्मिक मुखिया को इंसानियत और कानून इन दोनों के लिए कुछ अधिक सम्मान दिखाना चाहिए था। यह सिलसिला गलत है कि धर्म का चोगा पहनने वाले बलात्कारियों को अफसोस जाहिर करके और आंसू बहाकर छोड़ दिया जाए। इससे इस धर्म के बाकी संस्थानों में भी यह संदेश जाता है कि वे कुछ भी करके बच सकते हैं। ऐसे लोगों को पूरी जिंदगी के लिए धार्मिक संस्थानों से बाहर तो करना ही चाहिए, उन्हें कानून के हवाले भी तुरंत ही करना चाहिए।''
हमने लिखा था- ''भारत में हम लगातार देख रहे हैं कि धर्म और आध्यात्म से जुड़े हुए संगठनों ने तरह-तरह के बाबा और बापू लोग नाबालिग बच्चियों से बलात्कार को एक आदतन हरकत बनाकर चल रहे हैं, और यौन शोषण की भयानक कहानियां सामने आ रही हैं। यह सिलसिला थमना चाहिए, और हमाराख्याल है कि जिस धर्म या आध्यात्म के संगठन या मुखिया ऐसे जुर्म करते पकड़ाते हैं, उनकी संस्थानों की दौलत जब्त करने का भी कानून बनाना चाहिए। फिलहाल पोप के आंसुओं पर महज रोया जा सकता है, क्योंकि वे एक पाखंड के अलावा कुछ नहीं हैं।''
अब करीब साल भर बाद हम अपनी ऊपर लिखी हुई किसी भी बात की गंभीरता को कम नहीं आंक रहे, और पोप की इस ताजा घोषणा के असर को देखने में कई बरस लग जाएंगे कि यह सचमुच ही पादरियों के हाथ बच्चों के यौन शोषण को रोकने में कारगर कदम रहेगा, या यह महज दिखावे का एक ढोंग साबित होगा। यह बात याद रखने की जरूरत है कि धर्म में जहां-जहां ब्रम्हचर्य की शर्त लादी जाती है, वहां-वहां बच्चों और महिलाओं के यौन शोषण की घटनाएं होती ही हैं।
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