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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के अवमानना मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा ...

TODAY छत्तीसगढ़  / [कमल दुबे ] / सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के एक अवमानना मामले के निर्णय को पलटा, जिसे हाईकोर्ट ने अवमानना नहीं माना था उसे सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की अवमानना करार दिया है । ये पूरा मामला छत्तीसगढ़ के मोहार रिज़र्ववायर प्रोजेक्ट के टेंडर का है। 
आपको बता दें की मोहार प्रोजेक्ट के एक टेंडर में डी डी बिल्डर्स की टेक्निकल बिड इस आधार पर नहीं खोली गयी थी कि उसके बिड के साथ इनकारपोरेशन सर्टिफिकेट संलग्न नहीं है। निविदाकर्ता का कहना था कि इनकारपोरेशन सर्टिफिकेट,  वर्क आर्डर मिलने पर जमा कर दिया जायेगा। लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गयी। इस पर डी डी बिल्डर्स ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका लगाई तो हाई कोर्ट ने डी डी बिल्डर्स के पक्ष में निर्णय देते हुए उसे निविदा में शामिल करने का आदेश पारित किया। इस पर मोहार प्रोजेक्ट की ओर से छत्तीसगढ उच्च न्यायालय में रिव्यु पिटीशन भी लगाई गई जोकि रिजेक्ट हो गयी थी लेकिन मोहार प्रोजेक्ट द्वारा फाइनांशियल बिड में डी डी बिल्डर्स को फिर बाहर करते हुए थर्ड पार्टी को वर्कऑर्डर जारी कर दिया गया।
इस पर डी डी बिल्डर्स ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में कोर्ट की अवमानना का मामला दायर किया। इस मामले की सुनवाई में उच्च न्यायालय ने इसे कोर्ट की अवमानना नहीं माना। इसके बाद डी डी बिल्डर्स ने सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन लगाई। जिस पर आज सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ये माना कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी डी डी बिल्डर्स को टेंडर में शामिल नहीं करना हाई कोर्ट की अवमानना है। डी डी बिल्डर्स v/s एस के टिकाम के इस मामले की पैरवी डी डी बिल्डर्स की तरफ से अधिवक्ता अपूर्व त्रिपाठी ने की। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इसे अवमानना मान लेने पर डी डी बिल्डर्स ने मामले को आगे नहीं बढ़ाया । उनका कहना है कि इस सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से उन्हें एक अन्य पिटीशन में फायदा होगा। रिव्यु पिटीशन फ़ाइल करने के पहले ही वर्क ऑर्डर जारी कर दिया गया था। TODAY छत्तीसगढ़ के WhatsApp ग्रुप में जुड़ने के लिए क्लिक करें 
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि ये अवमानना तो है अब क्या करना चाहते हैं आप ? 
इस पर अपूर्व त्रिपाठी ने कहा कि एस के टिकाम और अन्य को सजा करवा कर उनके पक्षकार को कुछ नहीं मिलेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट ये मान लेती है और आर्डर में लिख देती है कि इन अधिकारियों से गलती हुई है तो इतने में ही हम संतुष्ट हैं। फिर कोर्ट ने ऐसा ही आर्डर किया। 
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